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भारत को सोने की चिड़िया बनाने में कुषाण साम्राज्य का योगदान, प्रमाण है इनके सिक्कों में

जौनपुर

 14-08-2023 10:42 AM
धर्म का उदयः 600 ईसापूर्व से 300 ईस्वी तक

भारत में बौद्ध धर्म और गांधार कला के संरक्षण में कुषाण राजवंश का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। लोकप्रिय कुषाण शासक, कनिष्क महान (लगभग 127-150 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान कुषाण साम्राज्य ने खूब विस्तार किया तथा व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से पूर्व तथा पश्चिम को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि कुषाण शासक कनिष्क के पिता विम कडफिसेस (Vim Kadphises) या कडफिसेस द्वितीय के बारे में आज भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। किंतु हाल ही में हमारे उत्तर प्रदेश के प्राचीन स्थलों में विम कडफिसेस के शासनकाल में निर्मित कई सिक्के खोजे गए हैं, जो हमें उनके शासनकाल के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। कुषाण भारत में एक और शासक समूह था, जो चीन के घास के मैदानों से उत्पन्न हुआ था। वे उत्तर प्रदेश के मथुरा में बस गए और कई शताब्दियों तक शासन किया। उनके बाद, आंतरिक एशिया और पूर्वी यूरोप से आकर सफेद हूण भारत में बस गए, जिनमें तोरमाण और मिहिरकुला जैसे शासकों ने छठी शताब्दी ई.पू. में शासन किया। कुषाण राजवंश लगभग 30 से 375 ईस्वी तक मौजूद एक शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करता था। इस साम्राज्य का विस्तार आज के उज्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तरी भारत के कई हिस्सों, यहाँ तक कि वाराणसी जैसे स्थानों तक भी फ़ैल गया था। कुजुल कडफिसेस (Kujula Kadphises) को कुषाण वंश का संस्थापक माना जाता है। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युची या युएझ़ी (Yuchi Or Yuezhi) लोगों के मूल का मानते हैं। अपने शासनकाल के दौरान कुषाणों ने बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और पारसी धर्म सहित विभिन्न धर्मों का पालन किया। इस साम्राज्य में शासन-प्रशासन के लिए ग्रीक भाषा का उपयोग किया जाता था लेकिन बाद में इसके लिए बैक्ट्रियन भाषा (Bactrian Language) का प्रयोग किया जाने लगा। कुषाण शासक अपने सिक्कों पर "कोशानो (Koshano)" जैसे नामों का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने शकों (Shakya) को विस्थापित करके तख्त-ए संगिन (Tajikistan) जैसे स्थानों पर भी किले बनवाये। आज खुदाई में मिलने वाली उस समय की प्राचीन मूर्तियाँ, उनके राजसी वैभव को दर्शाती हैं। कुषाण शासक कनिष्क के पिता विम कडफिसेस को कुषाण साम्राज्य का अत्यंत कुशल शासक माना जाता है, उन्होंने 113 से 127 ईस्वी के आसपास, आज के भारत और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में शासन किया था। उनके पिता का नाम कुजला कडफिसेस (Kujala Kadphises) था। कुजला कडफिसेस 25 ई. के आसपास, कुषाण जनजाति के एक शक्तिशाली शासक के रूप में उभरे। अपने शासनकाल में उन्होंने पार्थिया, काबुल, कंधार और अफगानिस्तान और हिंदू कुश पहाड़ों सहित कई अन्य क्षेत्रों को भी नियंत्रित किया। आगे चलकर कुषाण साम्राज्य का और अधिक विस्तार हुआ और इसमें यूनानियों, शकों और पार्थियनों द्वारा शासित क्षेत्र भी जुड़ हो गए थे। कुजला कडफिसेस के शुरुआती सिक्कों में "सत्य के धर्म" जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता हैं और उनके बाद के सिक्कों में "महाराजा राजाधिराज" जैसे शीर्षक थे, जिन्हें रोमन सम्राट के सिक्कों के समान ही खरोष्ठी नामक लिपि में लिखा गया था। भारत के सीमांत क्षेत्र में शासन करने के बावजूद, कडफिसेस प्रथम, तत्कालीन भारतीय संस्कृति से बेहद प्रभावित थे। उस समय के अन्य कुषाण का झुकाव भी भारतीयों की तरफ बढ़ रहा। कडफिसेस प्रथम ने, लंबे समय तक अपने विशाल साम्राज्य में शासन किया और लगभग 80 वर्ष की आयु (संभवतः 64 ई. के आसपास) उनका निधन हो गया। कडफिसेस प्रथम के बाद उनका पुत्र विम कडफिसेस, उनका उत्तराधिकारी बना जिसे कडफिसेस द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। अपने पिता के नक़्शे कदमों पर चलते हुए, विम कडफिसेस ने भी भारत में कुषाण साम्राज्य का खूब विस्तार किया। उनके शासनकाल में उनका साम्राज्य संभवतः सिंधु नदी से लेकर मथुरा तक फ़ैल गया था। उनके शासनकाल में निर्मित सिक्कों पर हिंदू देवताओं के चित्र नजर आते हैं, जिसके आधार पर जानकार यह बता सकते हैं ,कि उन्होंने भगवान शिव के भक्त के रूप सनातन धर्म को अपना लिया। कडफिसेस द्वितीय के शासनकाल के दौरान भी भारत के विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। इस दौरान कुषाणों ने रोमन साम्राज्य के साथ भी मजबूत वाणिज्यिक संबंध स्थापित किये और भारत तथा मध्य एशिया के बीच एक व्यापार पुल के रूप में काम किया। भारत से रोम साम्राज्य को रेशम, रत्न, मसाले और बढ़िया चावल जैसी कई चीजें निर्यात की गई जिसके बदले में रोमन साम्राज्य से सोने का आयात किया गया। वह अपने व्यापार में सोने के सिक्के, यूनानी शराब और दास भी खरीदते-बेचते थे। सोने की प्रचुरता होने और देश की समृद्धि के कारण कुषाण सम्राटों ने खूब सोने के सिक्के जारी किये। विम कडफिसेस को विशेषतौर पर कुषाण साम्राज्य के विस्तार के अलावा तांबे, चांदी और खासतौर पर सोने के सिक्कों को जारी करने के लिए जाना जाता है। इन सोने के सिक्कों का व्यापार रोमन साम्राज्य के साथ किया जाता था और इनका वजन भी पहली शताब्दी के रोमन सिक्कों के समान था। इस सोने के व्यापार ने कुषाण साम्राज्य को अपार समृद्ध बना दिया। आगे चलकर इस साम्राज्य ने रेशम मार्ग यानी सिल्क रोड (Silk Road) को भी नियंत्रित किया, जो उस दौर में चीन, भारत और पश्चिम को जोड़ने वाला एक प्रमुख व्यापार मार्ग हुआ करता था। आज भी विभिन्न स्थानों से कुषाण साम्राज्य के अभिलेख, अवशेष और सिक्के प्राप्त होते रहते हैं। विम कडफिसेस के शासनकाल के दौरान निर्मित स्वर्णिम सिक्कों पर, अक्सर एक तरफ त्रिरत्न का बौद्ध प्रतीक और दूसरी तरफ हिंदू भगवान शिव का प्रतिनिधित्व दिखाई देता है। इन सिक्कों पर शिव के साथ त्रिशूल भी दर्शाया गया है। ऊपर दिए गए चित्र में कुषाण साम्राज्य (विम कडफिसेस के समय के) के प्राचीन सोने के सिक्के दिखाए गए हैं। इस सेट में चार सिक्के हैं, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग मुद्राओं में विम कडफिसेस की मुकुटधारी आकृति दिखाई गई है। उन्हें अपने दाहिने हाथ में गदा-राजदंड या लॉरेल शाखा पकड़े हुए दिखाया गया है, उनके कंधे पर आग की लपटें हैं, और दाईं या बाईं ओर एक तमघा (एक आदिवासी प्रतीक) है। सिक्कों में पीछे की तरफ खरोष्ठी लिपि में एक शिलालेख वर्णित है।" यह शिलालेख विम कडफिसेस को भव्य उपाधियों के साथ वर्णित करता है, जो उसके अधिकार और शासन को दर्शाता है। सिक्कों पर चित्रण में भगवान शिव का एक इथे फैलिक (खड़ा लिंग) प्रतिनिधित्व भी शामिल है। शिव अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए हैं और अपना बायाँ हाथ नंदी बैल की पीठ पर टिकाए हुए हैं, जो दाहिनी ओर अपना सिर बाईं ओर करके खड़ा है। इस दृश्य के बाईं ओर बौद्ध त्रिरत्न दिखाए गए है, जो बौद्ध धर्म में "तीन रत्नों" का प्रतिनिधित्व करता है। विम कडफिसेस, ने अपने कई सिक्कों को शिव के चित्रण के साथ-साथ ग्रीक और खरोष्ठी दोनों लिपियों में शिलालेखों से सजाया था। कलात्मक और भाषाई तत्वों का यह मिश्रण कुषाण साम्राज्य के विविध सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाता है, जो ग्रीक, मध्य एशियाई और भारतीय प्रभाव वाले क्षेत्रों तक फैला हुआ है। कुषाण साम्राज्य ने मध्य एशिया और चीन में बौद्ध धर्म के विस्तार में अहम भूमिका निभाई, जिस कारण लगभग 200 वर्षों तक शांति के समय को "पैक्स कुषाण (Pax Kushan)" के नाम से जाना गया। इसके अलावा रोमन साम्राज्य, फारस और अक्सुमाइट साम्राज्य (Aksumite Empire) से भी इनका गहरा संबंध था। कुषाण साम्राज्य ने रोमन साम्राज्य और चीन के बीच व्यापार के लिए एक पुल का काम किया। हालाँकि, आगे चलकर इस साम्राज्य को भी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। तीसरी शताब्दी में एक के बाद एक हुए कई आक्रमणों के कारण यह साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों में टूट गया। भारत के अन्य राज्यों के शासकों जैसे सासानियों, गुप्तों और अन्य शासकों ने इस साम्राज्य पर बड़ा हमला किया और अंततः कुषाण साम्राज्य का अस्तित्व मिटा दिया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yt43j556
https://tinyurl.com/3dvph4mb
https://tinyurl.com/3mxph4bh
https://tinyurl.com/4ap7sy25
https://tinyurl.com/2s3vwmvw

चित्र संदर्भ
1. डाल्वर्ज़िन टेपे खजाने से प्राप्त कुषाण सोने की सिल्लियो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मथुरा संग्रहालय में विमा कडफिसेस की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विमा कडफिसेस शिलालेख संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कनिष्क प्रथम के सिक्के को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुषाण भक्त चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. सिल्क रोड को दर्शाता एक चित्रण (franpritchett)
7. कुषाण साम्राज्य (विम कडफिसेस के समय के) के प्राचीन सोने के सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. इथिफैलिक शिव के साथ कुजुला कडफिसेस को दर्शाता एक चित्रण (franpritchett)



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