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हमारे देश भारत में अलग-अलग समय और स्थानों के प्रचारकों द्वारा सभी प्रकार एवं श्रेणीयों के संगीत वाद्ययंत्रों का आविष्कार किया गया हैं। साथ ही, तकनीकी उद्देश्यों के लिए प्राचीन काल से ही इन वाद्ययंत्रों का व्यवस्थित ढंग से वर्गीकरण हुआ हैं। भारत में वाद्ययंत्रों का प्रचलित वर्गीकरण, कम से कम दो हज़ार साल पहले ही कर दिया गया था। इस वर्गीकरण का पहला उल्लेख भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में है। नाट्यशास्त्र भरत मुनि द्वारा संकलित प्रदर्शन कलाओं का एक प्राचीन ग्रंथ है, जो 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच लिखा गया था। उन्होंने वाद्ययंत्रों को ‘घन वाद्य’, ‘अवनद्ध वाद्य’, ‘सुषिर वाद्य’ और ‘तत् वाद्य’ के रूप में वर्गीकृत किया हैं।
उड़ीसा में स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर में, एक महिला की झांझ बजाते हुए लगभग 8 फीट ऊंची मूर्ति मौजूद है।झांझ दरअसल एक घन वाद्य है। साथ ही, मूर्तिकला में घन वाद्य के सबसे पहले ज्ञात चित्रणों में से एक नागार्जुनकोंडा की नक्काशी है। इस नक्काशी में,गौतम बुद्ध के ‘स्वर्ग से अवतरण’ वाले प्रासंगिक को दर्शाया गया है। यहां भी घन झांझ काफी विशिष्ट हैं।
वाद्ययंत्रों में घन वाद्य श्रेणी के यंत्र काफ़ी सुंदर और प्रसिद्ध हैं। ये दरअसल, ठोस या दृढ़ यंत्र होते हैं। वे टकराने पर, हिलाने पर या खरोंचने पर कंपन करते हुए ध्वनि उत्पन्न करते हैं। घंटी, घंटा, झुनझुना आदि घन वाद्य के कुछ प्रमुख उदाहरण है।इन वाद्ययंत्रों में ट्यूनिंग(Tuning) अथवा समस्वरण की आवश्यकता नहीं होती है।
इनके माध्यम से उत्पन्न होने वाली ध्वनि कम अवधि की होती हैं। ठोस पदार्थ से बने ये वाद्ययंत्र, अपनी लचीली प्रकृति के कारण, स्वयं ध्वनि उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं।यह ध्वनि, इन वाद्ययंत्रों पर प्रहार करने पर; इन्हें खींचने पर; इनमें घर्षण निर्मित करके या इन्हें हवा से उत्तेजित किए जाने पर तरंगों में उत्सर्जित होती हैं। ये वाद्य यंत्र चीनी मिट्टी, लकड़ी, धातु या कांच से बने होते हैं। इस श्रेणी के वाद्ययंत्र आमतौर पर, स्ट्राइकर(Striker) या हथौड़े से बजाए जाते हैं। जबकि, ये वाद्ययंत्र एक निश्चित स्वर उत्पन्न करने में अक्षम होते हैं, जो किसी राग के निर्माण हेतु आवश्यक होते हैं। इसीलिए, शास्त्रीय संगीत में इनका प्रयोग कम ही किया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि, घन वाद्ययंत्र मनुष्य द्वारा आविष्कृत सबसे पुराने वाद्य यंत्र हैं। क्योंकि, ये वाद्य मुख्य रूप से लयबद्ध होते हैं, इन वाद्ययंत्रों को लोक और जनजातीय संगीत तथा नृत्य के दौरान बजाया जाता है। जल तरंग, घटम् आदि इन वाद्ययंत्रों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
हमें इनका उपयोग सरल लग सकता है, हालांकि,पेशेवर संगीतकारों को इन्हें सावधानी से संभालना होता हैंक्योंकि,ये वाद्य बहुत तेज ध्वनि उत्पन्न करते हैं। साथ ही, अगर इन्हें विशिष्ट तकनीकों के अनुसार नहीं बजाया जाता है तथा हाथ में सही तरीके से नहीं पकड़ा जाता है, तो ये वाद्य मुख्य धुन को बाधित कर सकते हैं। अतः इन्हें बजाते समय नियमों और निर्धारित मुद्राओं का सटीक पालन करना आवश्यक हैं।
आज इन वाद्यों का उपयोग भारत, तिब्बत,पाकिस्तान, दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य कुछ विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रों में किया जाता है।
आइए अब घन वाद्य के कुछ उदाहरणों को देखते हैं:
•मंजीरा या ताल
यह हाथों में लेकर बजाए जाने वाले छोटे झांझ की एक जोड़ी होती है। इसे अक्सर ही हिंदू भक्ति संगीत के दौरान बजाया जाता हैं। यह पीतल या कांस्य से बना होता है।
•खरताल
यह घन वाद्य का एक अन्य उदाहरण है। यह दो डिस्क(Disc) या प्लेटों(Plate) से बना, लकड़ी का एक क्लैपर(Clapper) होता है। खरताल का शाब्दिक अर्थ “हाथों की लय” है, और इसका उपयोग मुख्य रूप से भक्ति और लोक गीतों में किया जाता है।
•चिमटा
इस वाद्य यंत्र को ग्रामीण संगीत प्रदर्शनों और संगीत कार्यक्रमों में बजाया जा सकता है।इसका आकार, चिमटे की एक जोड़ी जैसा दिखता है।
•मोरचंग
मोरचंग घन वाद्य यंत्र का एक अन्य उदाहरण है।यह आकार में छोटा होने के बावजूद भी काफी आकर्षक होता है।इसमें हमारी जिह्वा के समान एक हिस्सा होता है,जिसे छेड़ने पर ध्वनि उत्पन्न होती है। हिंदुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत परंपराओं में एक माध्यमिक लयबद्ध वाद्ययंत्र के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
•जलतरंग
जलतरंग चीनी मिट्टी के कुछ अलग-अलग कटोरों से बनाया गया यंत्र होता है। जलतरंग पर एक पतली बांस की छड़ी का उपयोग करके सीधा प्रहार किया जाता है।ये कटोरे उनके आकार एवं संख्या में भिन्न हो सकते हैं और सभी पानी से भरे होते हैं। उनमें भरे गए पानी की मात्रा के आधार पर, प्रत्येक कटोरा एक निश्चित स्वरमान उत्पन्न करता है।इसका उपयोग पारंपरिक भारतीय राग और विभिन्न धुनों को बजाने के लिए किया जाता है।
•घटम
घटम मिट्टी का एक बर्तन या मटका होता है, जिसका मुख संकीर्ण होता है। घटम तालवाद्य भी घन वाद्य की श्रेणी में आता है।संगीतकार अपने हाथों से इस पर प्रहार करके, ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
कितनी दिलचस्प बात है कि, कुछ छोटे–छोटे एवं सरल प्रतीत होने वाले वाद्य यंत्र भी सुमधुर ध्वनि का निर्माण करते हैं। अतः भारतीय संगीत में इनका स्थान एवं महत्त्व वाकई में अतुलनीय है!
संदर्भ
https://tinyurl.com/yfmhu4sh
https://tinyurl.com/33ur37sc
https://tinyurl.com/yc47zrvz
https://tinyurl.com/5xcy8w3h
चित्र संदर्भ
1. बुद्ध के स्वर्ग अवतरण के दृश्य और मंजीरे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. झांझ बजाते व्यक्ति को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. सेंगिला बजाते संगीतकार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मंजीरा वाद्ययंत्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. खरताल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. चिमटे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. मोरचंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. जलतरंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. घटम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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