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दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही, आपराधिक घटनाओं से निपटने के लिए सबसे अच्छा उपाय यह किया जा सकता है, कि महिलाओं को स्वयं भी आत्मरक्षा के गुर सीखने चाहिए। हालांकि भारत देश में अपने साथ हर समय किसी प्रकार का हथियार रखने की अनुमति आसानी से नहीं मिलती और यह नैतिक भी नहीं है, इसलिए यहाँ पर हम प्राचीन मार्शल आर्ट (Martial Arts) युद्ध कलाओं का सहारा ले सकते हैं। जहां आप अपने शरीर को एक प्रकार का हथियार बनाकर अपने प्रतिद्वंदी को चारों खाने चित कर सकते हैं।
मार्शल आर्ट एक युद्ध शैली है, जिसका प्रयोग कई प्राचीन संस्कृतियों में लम्बे समय से किया जा रहा है। कलारीपयट्टू को अब तक की ज्ञात पहली मार्शल आर्ट माना जाता है, जिसकी उत्पत्ति लगभग 3000 साल पहले भारत में ही हुई थी। इसे विशेष तौर पर युद्ध के लिए डिज़ाइन किया गया था और इसमें हथियार प्रशिक्षण, स्ट्राइक (Strikes) , किक (Kicks) और ग्रेपलिंग (Grappling) जैसी विभिन्न तकनीकें शामिल थीं। इस कला को पुरुषों और महिलाओं दोनों को अपनी रक्षा करने के लिए सिखाया जाता था। बाद के वर्षों में कलारीपयट्टू, बोधिधर्म (बौद्ध भिक्षु) के माध्यम से चीन में भी फैल गया। इन भिक्षुओं ने शाओलिन भिक्षुओं (Shaolin Monks) को इसकी शिक्षा दी, जिसके बाद शाओलिन कुंग फू का जन्म हुआ। शाओलिन कुंग फू (Shaolin Kung Fu), जिसे शाओलिन वुशु (Shaolin Wushu) या शाओलिन क्वान (Shaolin Quan,) के नाम से भी जाना जाता है, चीन की एक बहुत पुरानी और प्रसिद्ध प्रकार की मार्शल आर्ट है। इसे 1500 साल पहले हेनान प्रांत के शाओलिन मंदिर में विकसित किया गया था। यह चान बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को मार्शल आर्ट तकनीकों के साथ जोड़ता है। जानकार मानते हैं कि शाओलिन से कई अन्य मार्शल आर्ट शैलियों की उत्पत्ति हुई है और यह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मार्शल आर्ट शैलियों में से एक है।
मार्शल आर्ट के उपयोग का सबसे पुराना प्रमाण मिस्र से मिलता है, जहां कुश्ती को भित्ति चित्रों में दर्शाया गया था, लेकिन संभवतः इसका उपयोग युद्ध के बजाय खेल के लिए किया जाता था। मार्शल आर्ट को पूर्वी एशिया में फैलाने में उनकी भूमिका के लिए बौद्ध धर्म को सभी मार्शल आर्ट का जनक माना जाता है।
एशिया में मार्शल आर्ट भिक्षुओं और किसानों के बीच विकसित हुई, जिन्हें हमलावरों से अपनी रक्षा करने के लिए इसे सीखने की आवश्यकता थी। समय के साथ, यह चीन में सैनिक प्रशिक्षण का एक अभिन्न अंग बन गया।
चीनी मार्शल आर्ट को लड़ाई में प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने के लिए गुप्त रखा गया, और यह कला कुलों के भीतर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही थी। चीन में मार्शल आर्ट का आविष्कार करने का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जाता है, लेकिन कई किंवदंतियाँ इसकी स्थापना को सम्राट हुआंगड़ी (Emperor Huangdi) से जोड़ती हैं।
चीन में मार्शल आर्ट का सबसे पुराना रूप जिओ डि (Jiao Di) है, जिसे आधुनिक चीनी कुश्ती (शुआई जिओ) का अग्रदूत माना जाता है। जापान में सबसे पुरानी मार्शल आर्ट कोरियू (Koryu) है, जिसने कराटे, जूडो और ऐकिडो (Judo And Aikido.) जैसी अन्य युद्ध कलाओं को जन्म दिया।
कुंग फू को कराटे से भी पुराना माना जाता है। भारत में सबसे लोकप्रिय मार्शल आर्ट कराटे को माना जाता है क्योंकि इसे सीखना आसान है और इसे वास्तविक परिस्थितियों में तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है। कराटे का इतिहास लगभग 1400 वर्ष पुराना है, और इसकी शुरुआत दारुमा से हुई, जिन्होंने पश्चिमी भारत में ज़ेन बौद्ध धर्म (Zen Buddhism) की स्थापना की। उन्होंने आध्यात्मिक और भौतिक तरीकों का एक कठिन संयोजन सिखाया, जो इतना कठिन था कि उनके शिष्य अक्सर थक जाते थे। इसलिए अपने शिष्यों को सम्पूर्ण रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए, उन्होंने एक प्रगतिशील प्रशिक्षण प्रणाली विकसित की, जिसे उन्होंने एकिन-क्यो (Ekin-Kyo) नामक पुस्तक में लिखा, जो कराटे पर पहली पुस्तक थी। लगभग 500 ईस्वी में, चीन के शाओलिन मंदिर में दारुमा के दार्शनिक सिद्धांतों के साथ संयुक्त रूप से शारीरिक प्रशिक्षण पढ़ाना शुरू कर दिया गया।
कुंग-फू शैलियाँ दो प्रकार की थीं:
1.उत्तरी चीन से शाओलिन कुंग-फू
2.दक्षिणी चीन से शोकी स्कूल
इन शैलियों ने ओकिनावा की मूल युद्ध शैली ओकिनावा-ते की (Okinawa-Te Ki) के विकास को प्रभावित किया। चूँकि ओकिनावा के इतिहास में हथियारों पर लंबे समय तक प्रतिबंध था, इसलिए द्वीप पर निहत्थे लड़ने की यह तकनीक अत्यधिक उन्नत हो गई थी।
1916 में मास्टर गिचिन फुनाकोशी (Master Gichin Funakoshi) ने जापान में कराटे-डो की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न ओकिनावान कराटे के तरीके सीखे और इन शैलियों का संश्लेषण सिखाया, जिन्हें शोटोकन (Shotokan) के नाम से जाना जाता है। शोटोकन जापान और दुनिया भर में बेहद लोकप्रिय हो गया, जिससे मास्टर फुनाकोशी को "आधुनिक कराटे-डो के जनक" की उपाधि मिली। कराटे की उत्पत्ति ओकिनावा द्वीप पर हुई थी, और यह चीनी गोंग फू से प्रभावित था, जो प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट से भी प्रभावित था। तो एक तरह से कराटे का सीधा कनेक्शन भारत से है।
कराटे एक अद्भुत मार्शल आर्ट है जिसमें घूंसे, ब्लॉक, किक और खुले हाथ से प्रहार किया जाता है। 1970 और 1980 के दशक में, भारत में कराटे ने खूब लोकप्रियता हासिल की। कराटे इंडिया ऑर्गेनाइजेशन (Karate India Organization (KOI), विश्व कराटे फेडरेशन (World Karate Federation) द्वारा भारत में कराटे के लिए आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त निकाय है। इसकी 40 संबद्ध इकाइयाँ हैं, जिनमें 29 राज्य टीमें और 7 केंद्र शासित प्रदेश टीमें शामिल हैं। उनके पास सर्विसेज, आईटीबीपी (ITBP,), असम राइफल्स (Assam Rifles) और जैन यूनिवर्सिटी (Jain University) जैसे सहयोगी सदस्य भी हैं। आज, कराटे की कई शैलियाँ और रूप उभर रहे हैं, इनमे से प्रत्येक की अपनी अनूठी तकनीक और कौशल हैं। यह दुनिया में मार्शल आर्ट के सबसे बड़े स्कूलों में से एक बन गया है, दुनिया भर में लाखों लोग इसका अभ्यास करते हैं। फिल्मों और संगीत सहित कई देशों की संस्कृति पर भी इसने अपना प्रभाव छोड़ा है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4k99mx5n
https://tinyurl.com/yc7bbz4v
https://tinyurl.com/2j4yk5vp
चित्र संदर्भ
1. मार्शल आर्ट सीखती भारतीय महिला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. कलारीपयट्टु में सर्प वदिवु या साँप मुद्रा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. चीनी मार्शल आर्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. शोटोकन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. मार्शल आर्ट के दाव पेंच सीखती महिला को दर्शाता चित्रण (Pexels)
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