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19वीं सदी में चाय का बढ़ता व्यापार,व बड़ी ही रोमांचक प्रतिस्पर्धा,उन नवनिर्मित जहाज़ों में

जौनपुर

 31-07-2023 09:48 AM
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

“क्लिपर (Clipper)” 19वीं सदी के मध्य में एक प्रकार का व्यापारी नौकायन जहाज़ था, जिसे गतिशीलता पाने के लिए निर्मित किया गया था। क्लिपर अपनी लंबाई के हिसाब से आमतौर पर संकीर्ण होते थे। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में निर्मित अन्य जहाज़ों की तुलना में यह छोटे होते थे। इसके साथ ही, इन पर सीमित मात्रा में माल वहन किया जा सकता था और उनके पाल का कुल क्षेत्र बड़ा होता था। क्लिपर, किसी विशिष्ट जहाज़ के स्वरूप को संदर्भित नहीं करता है। वे स्कूनर(Schooners), ब्रिग्स(Brigs), ब्रिगंटाइन(Brigantines) आदि के साथ-साथ, फुल-रिग्ड जहाज़ (Full-rigged ships) प्रकार भी हो सकते हैं। क्लिपर्स का ज्यादातर निर्माण ब्रिटिश और अमेरिकी शिपयार्ड(British and American shipyards) या डॉक में किया गया था।हालांकि फ्रांस(France), ब्राजील(Brazil), नीदरलैंड(Netherland) और अन्य देशों ने भी कुछ क्लिपर्स का उत्पादन किया था। क्लिपर्स का कार्यान्वयन पूरी दुनिया में होता था। विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम(United Kingdom) और चीन(China) के बीच व्यापार मार्गों पर, ट्रान्स–अटलांटिक(Trans–Atlantic) व्यापार में और कैलिफ़ोर्निया गोल्डरश(California gold rush) के दौरान केप हॉर्न(Cape Horn) के आसपास न्यूयॉर्क(New York) से सैन फ्रांसिस्को(San Francisco) मार्ग पर भी इनका कार्यान्वयन होता था। जावा(Java) में चाय व्यापार और यात्री सेवा के लिए 1850 के दशक की शुरुआत में डच(Dutch) क्लिपर्स का निर्माण किया गया था।
क्लिपर के उपयोग में, वर्ष 1843 से तेजी आने लगी।क्योंकि, तब चीन से विश्व भर में चाय की मांग और वितरण भी तेजी से बढ़ रही थी। इसके बाद, क्रमशः 1848 और 1851 में कैलिफोर्निया और ऑस्ट्रेलिया(Australia) में सोने के क्षेत्रों में, इनकी तेजी से मांग जारी रही। हालांकि, यह युग वर्ष 1869 में स्वेज़ नहर(Suez Canal) के खुलने के पश्चात समाप्त हो गया था । कुछ सबसे उल्लेखनीय क्लिपर्स में, चीन के क्लिपर्स शामिल थे, जिन्हें ‘चाय क्लिपर्स’ या ‘अफ़ीम क्लिपर्स’ भी कहा जाता था ।इन्हें यूरोप(Europe) और ईस्टइंडीज(East Indies) के बीच व्यापारी जल मार्गों में संचालित करने हेतु, बनाया गया था। इनमें से एक अंतिम क्लिपर, कट्टी सार्क(Cutty Sark) को आज भी, यूनाइटेड किंगडम के ग्रेनीच (Greenwich) शहर में, एक मुक्त डॉक में संरक्षित करके रखा गया है।
दरअसल, क्लिपर्स का निर्माण, चाय जैसे मौसमी व्यापारों या यात्री मार्गों के लिए ही किया गया था।हालांकि, चाय के व्यापार में ही इनका अधिक महत्त्व था। यह तेज़ गति वाले जहाज़ चाय, अफ़ीम, मसाले, यात्री और डाक (Mail) जैसे कम मात्रा वाले तथा उच्च-लाभकारी वस्तुओं के वहन हेतु, काफी उपयुक्त थे। विभिन्न क्लिपर्स के बीच प्रतिस्पर्धा भी होती थी, और इनका समय और विवरण कुछ समाचार पत्रों में दर्ज भी किया जाता था। क्लिपर प्रतिस्पर्धा ने तुरंत ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।क्योंकि, इनकी गति और प्रतिद्वंद्विता रोमांचकारी थी, इसके अलावा जहाज़ जितने तेज़ थे, उतने ही सुंदर भी थे। 19वीं शताब्दी के मध्य में, चीन से ब्रिटेन तक चाय ले जाने वाले क्लिपर्स प्रत्येक ऋतु की नई फसल के साथ,लंदन(London) बंदरगाह में आने वाले, पहले जहाज़ बनने के लिए अनौपचारिक दौड़ में प्रतिस्पर्धा करते थे। 1866 की ‘ग्रेट टी रेस(Great Tea Race)’ का उत्सुकता से अनुसरण भी किया गया था। इस महत्त्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा में पांच क्लिपर्स ने भाग लिया था। उनके नाम टैपिंग(Taeping), एरियल(Ariel), सेरिका(Serica), फ़ायरी क्रॉस(Fiery Cross) और टैटसिंग(Taitsing) थे।
आइए, जानते हैं इस प्रतियोगिता की पृष्ठभूमि । 17वीं शताब्दी में चीन से यूरोप में चाय लाई गई थी, लेकिन, तब यह केवल एक विलासिता की वस्तु थी। 19वीं शताब्दी तक, चाय का परिवहन कम मात्रा में ही होता था। 19वीं सदी के अंत तक चीन, चाय के उत्पादन का मुख्य केंद्र था। चीन से ब्रिटेन(Britain) तक चाय के व्यापार पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार 1834 में समाप्त हो गया। इस प्रतिस्पर्धा के कारण, तेज़ जहाज़ों की ज़रूरत पड़ी, क्योंकि व्यापारियों में चाय की प्रत्येक नई फसल के साथ बाज़ार में पहले स्थान पर रहने की होड़ थी। अतः कंपनी के एकाधिकार के दौरान चाय ले जाने वाले धीमे ईस्टइंडियामेन(East Indiamen) जहाज़ों के विपरीत, चाय क्लिपर्स को तेज गति के लिएनिर्मित किया गया था। इसके साथ ही, कंपनी की प्राथमिकता प्रत्येक जहाज़ पर जितना संभव हो उतना सामान ले जाकर, लागत को कम करना थी। चूंकि, ईस्टइंडियामेन विशालऔर मजबूत तो थे लेकिन धीमे होने के कारण तेज जहाजों की जरूरत महसूस की गई। 1800 तक, एक ईस्टइंडियामेन जहाज़ औसतन 1,200 टन माल ले जा सकता था। और इस यात्रा के लिए उन्हें करीब–करीब एक साल लगता था। दूसरी ओर, नए क्लिपर एक यात्रा के दौरान, लगभग 1,650 टन माल ले जा सकते थे और केवल तीन महीनों में ही नई चाय फसल के साथ लंदन पहुंच जाते थे।
इन क्लिपर्स की भव्यता, गति, सुंदरता और बनावट वाकई में रोमांचकारी थी। और शायद इसीलिए इनकी प्रतिस्पर्धा में लोगों को काफी रुचि थी। आप यहां प्रस्तुत किए गए चित्रों के माध्यम से यह समझ ही सकते हैं!

संदर्भ
https://tinyurl.com/muaj3sfz
https://tinyurl.com/yc5y8afn
https://tinyurl.com/e9b7z9xn
https://tinyurl.com/2ec76ykv

चित्र संदर्भ
1. क्लिपर जहाज को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. एक निर्माणाधीन जहाज को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. अपनी यात्रा के दौरान क्लिपर जहाज को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. ग्रेट टी रेस को दर्शाता चित्रण (GetArchiv)
5. ईस्टइंडियामेन जहाज़ को दर्शाता चित्रण (picryl)



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