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कांजीवरम वस्त्र की शोभा एवं आभा बढ़ाता है, पौराणिक रक्षक ‘याली’ का रूपांकन

जौनपुर

 14-07-2023 09:25 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

कांजीवरम बुनकर के कुशल हाथों से कपड़े पर बुना गया क्रूर याली, जो कि हिंदू मंदिरों के स्तंभों पर गढ़ा गया एक पौराणिक जानवर है, का रूपांकन भी अनुग्रह और महिमा का रूप धारण कर लेता है! मंदिर कला से प्रेरित अन्य पारंपरिक रूपांकनों के साथ, याली कांजीवरम की प्रतिष्ठित रेशम साड़ियों की शोभा बढ़ाने वाले सबसे पुराने रूपांकनों में से एक है।
याली शब्द संस्कृत शब्द ‘व्याला’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘डरावना योद्धा’ होता है। यह योद्धा एक शेर के शरीर और सिर, एक हाथी की सूंड और दांत एवं एक सर्प की पूंछ से बना है। इन जानवरों से जुड़े गुणों क्रमशः क्रूरता, ताकत और चालाकी के कारण, मंदिर के प्रवेश द्वारों और स्तंभों पर याली की उपस्थिति सार्थक है। यह एक योद्धा के रूप में मंदिर के अंदर के पवित्र स्थान की रक्षा करता हैं। याली को अक्सर दक्षिणी भारत के मध्ययुगीन उत्तरार्ध मंदिरों और प्रारंभिक आधुनिक मंदिरों में चित्रित किया गया है। सबसे पुरानी ज्ञात याली मूर्तियों में से एक का निर्माण सातवीं या आठवीं शताब्दी में वर्तमान तमिलनाडु राज्य के पल्लव राजवंश के शासनकाल के दौरान किया गया था। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के दौरान, बौद्ध संदर्भों में भी याली के रूपांकन निर्मित किए गए थे, जहां उन्हें व्यालका के रूप में जाना जाता था और आमतौर पर उन्हें मकर के साथ जोड़ा जाता था।
सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारतीय मंदिरों में याली एक सर्वव्यापी सजावटी तत्व के रूप में उभरने लगा। विजयनगर शैली के बाद, पूरे तमिलनाडु में नायक राजनेताओं द्वारा निर्मित मंदिरों में इसकी अभिव्यक्ति विशेष रूप से देखी जाती है। उत्तरी भारत में, गजसिम्हा (संस्कृत में “हाथी-शेर”) रूपांकन में याली आम है, जिसमें शेर और हाथी के बीच की लड़ाई को दर्शाया गया है और शेर को विजयी मुद्रा में दिखाया गया है। माना जाता है कि याली की आकृतियाँ संरक्षक के रूप में कार्य करती हैं, जो मंदिर को खतरों से बचाती हैं। याली को देवताओं का दिव्य वाहन भी माना जाता था और वास्तुकला और मूर्तिकला में इसके रूपांकन का उपयोग वीरता और प्रकृति की मौलिक शक्तियों को दर्शाने के लिए किया जाता था।
याली की आकृतियाँ भारत में कई गुफाओं और संरचनात्मक मंदिरों में पाई जाती हैं, जिनमें सालुवनकुप्पम में बाघ गुफा, दासरुम में ऐरावतेश्वर मंदिर, मदुरै में मिनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर, हम्पी, कर्नाटक में विरुपाक्ष मंदिर और कैलासनाथ मंदिर, एलोरा और कोणार्क का सूर्य मंदिर आदि शामिल हैं। हम्पी मंदिरों में याली की मूर्तियों के दो उदाहरण आप नीचे प्रस्तुत किए गए चित्र में देख सकते है, जिसमें ऊपर विट्ठल मंदिर और नीचे कृष्ण मंदिर है। आइए, अब कपड़ों पर याली के रूपांकनों के बारे में पढ़ते हैं। कपड़े पर याली का रूपांकन करना प्रत्येक कारीगर या डिज़ाइनर (Designer) का सपना ही होता है। बुनकर कपड़ों पर आमतौर पर एक समृद्ध और नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए, अमूर्त रूपांकनों के साथ साड़ी के किनारी पर या पल्लू पर याली के रूपांकन बनाते हैं। ज़री या रेशम के धागे में झिलमिलाता यह जादुई प्राणी तथा इसकी भव्यता और अलौकिक सुंदरता कांजीवरम बुनकरों और कपड़ा कारीगरों की कुशलता का एक प्रमाण है। कांजीवरम शिल्प महीन रेशम में प्रकृति को जीवंत करता है, साथ ही दक्षिण भारत के इतिहास, संस्कृति और पौराणिक कथाओं को भी चित्रित करता है। यहां भी, याली रूपांकन सौंदर्य और अलंकरण से परे है, और बुनकर को बुरी नज़र से बचाने, या अनुष्ठान के अवसरों के लिए पवित्रता की भावना देने के इरादे से कपड़ों पर बुना जाता है। साथ ही, याली कांजीवरम पर पाए जाने वाले सुरक्षा के सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक है। अपनी प्रतिमा-विज्ञान में, याली अनेक रूपों और व्यक्तित्वों को धारण करता है। याली को अक्सर गतिशील विवरण में प्रस्तुत किया जाता है। इसे दौड़ने, घूमने, उछलने या किसी हमले में छलांग लगाने वाली गतिविधियों में प्रस्तुत किया जाता है। कांजीवरम कपड़े पर, शेर के सिर वाले ‘सिम्हा’ याली और हाथी के सिर वाले ‘गज’ याली, सबसे ज्यादा बुने जाते हैं। याली को बुनकर की सुरक्षा के रूप में रेशम में बुना जाता है। सिम्हा याली को कपड़े पर मंदिर के रक्षक के रूप में बुना जाता है, जबकि गज याली को शक्ति और बुद्धि के अर्थ के रूप में। याली को कांजीवरम की किनारी और पल्लू पर ज़री और रेशमी धागों से जटिल विवरण में बुना जाता है। कभी-कभी इसके शरीर पर बिंदी भी लगाई जाती है, या चक्रम और पेस्ली (Paisley) के भीतर भी बुना जाता है। अक्सर, इसे मोर या अन्नम के नाजुक रूपांकन के साथ भी जोड़ा जाता है। ये दोनों रूपांकन एक-दूसरे को रूप और प्रतीकवाद में संतुलित करते हैं, और प्रत्येक व्याख्या में याली एक रक्षक बनता है।
आइए याली के 12 रूपों और उनके संक्षिप्त अर्थ या प्रतीकवाद के बारे में जानते हैं-

1. सिम्हा याली: भयंकर रक्षक
2. गज याली: बुद्धि और शक्ति का प्रतीक
3. नर याली: ज्ञान का प्रतीक
4. मृग याली: शक्ति, गति और बुद्धि का प्रतीक
5. स्वान याली: वफादारी और सुरक्षा का प्रतीक
6. सरदुला याली: क्रूरता में सुंदरता
7. मेष याली: एकीकृत बल
8. असवा याली: योद्धा के साहस का प्रतीक
9. गंडकी याली: स्वतंत्रता, शांति और एकांत का प्रतीक
10. मर्जारा याली: कपट का चेहरा
11. वृक याली: एक शिकारी की प्रकृति
12. सर्प याली: मृत्यु का प्रतीक


संदर्भ
https://tinyurl.com/yhffw7b3
https://tinyurl.com/yv26fj7k
https://tinyurl.com/46mpa464
https://tinyurl.com/2wv6wrhw

चित्र संदर्भ

1. मदुरै मीनाक्षी अम्मन मंदिर में याली स्तंभों और कांजीवरम वस्त्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1010 ई. के बृहदीश्वर शिव मंदिर,में याली स्तंभ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. कर्नाटक के रामेश्वर मंदिर में याली स्तंभ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. हम्पी मंदिरों में याली की मूर्तियों के दो उदाहरण, जिसमें ऊपर विट्ठल मंदिर और नीचे कृष्ण मंदिर है। को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. कांजीवरम साड़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पुथु मंडपम, मदुरै, तमिलनाडु के स्तंभों में याली को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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