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आपने एक बहुत लोकप्रिय कहावत अवश्य सुनी होगी कि “दुनिया में अमीर, और अधिक अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब और अधिक गरीब हो रहे है।" लेकिन यह भी सच है कि “ज्यादा आमदनी होने पर ज्यादा टैक्स भी देना पड़ता है" भारत में कई मामलों में तो आपको सरकार को 28% टैक्स भी देना पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद भी टैक्स (Tax) या कर देने के संदर्भ में केवल नौकरीपेशा आदमी ही क्यों परेशान रहता है?
भारत में ‘करदाता’ (Taxpayer) शब्द का प्रयोग आम तौर पर मध्यवर्गीय आम आदमी के लिए किया जाता है जो आयकर का भुगतान करता है। हालाँकि, सरकार की कमाई का सबसे बड़ा श्रोत, वास्तव में, ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (Goods And Services Tax (GST) को माना जाता है, जिसका भुगतान गरीब से गरीब आदमी भी करता है। इसके बाद कंपनियों द्वारा अपने मुनाफ़े पर चुकाए जाने वाले ‘निगम कर’ (Corporation Tax) का स्थान आता है, और आखिर में ‘व्यक्तिगत आयकर’ (Personal Income Tax) के माध्यम से सरकार के पास पैसा जाता है।
भारत में व्यावसायिक या निगम कर’ (Corporate Tax) दो प्रकारों में विभाजित हैं:
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष कर विभिन्न प्रकार के व्यवसायों से एक वित्तीय वर्ष में अर्जित आय पर लगाया जाता है। जबकि आयात या निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर लगने वाले सीमा शुल्क को अप्रत्यक्ष कर कहा जाता है।
व्यक्तिगत करदाताओं और कंपनियों के लिए कर दरें अलग-अलग होती हैं।
1. व्यक्तिगत आयकर:
व्यक्तिगत करदाता विभिन्न कर स्लैब और दरों के आधार पर व्यक्तिगत आयकर का भुगतान करते हैं।
2. कॉर्पोरेट टैक्स:
भारत में, घरेलू और विदेशी दोनों कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट आय-कर (Corporate Income-Tax (CIT) का भुगतान करना आवश्यक है। घरेलू कंपनियों को अपनी सभी आय पर कर देना पड़ता है, जबकि विदेशी कंपनियों को केवल भारत में अर्जित आय पर कर लगता है। सीआईटी का, आयकर अधिनियम द्वारा निर्धारित एक विशिष्ट दर के अनुसार भुगतान किया जाता है। हर साल केंद्रीय बजट में इन दरों में बदलाव होता रहता है। ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ (Companies Act 1956) के तहत पंजीकृत ‘सार्वजनिक और निजी’ दोनों कंपनियों पर यह कर लगाया जाता है।
कंपनियों के लिए आय के प्रकार:
लाभ (Profit): जब कोई कंपनी अपनी व्यावसायिक गतिविधियों के खर्चों से अधिक पैसा कमाती है, तो इसे लाभ कहा जाता है। कंपनियों को अपने इस मुनाफे पर कर देना पड़ता है।
किराये की आय: यदि कोई कंपनी अपनी संपत्ति किसी और को किराए पर देती है, तो किराए के रूप में अर्जित धन को भी व्यावसायिक आय माना जाता है और उस पर कर लगाया जाता है।
पूंजीगत लाभ: जब किसी कंपनी की संपत्ति का मूल्य बढ़ जाता है, तो इसे पूंजीगत लाभ कहा जाता है। कंपनियों को उन संपत्तियों को बेचने पर पूंजीगत लाभ पर कर का भुगतान करना पड़ता है।
अन्य स्रोतों से आय: कोई भी अन्य आय, जो कंपनी अर्जित करती है, जैसे लाभांश या ब्याज, पर अन्य स्रोतों से आय के रूप में अलग से कर लगाया जाता है।
भारत में घरेलू कंपनियों के लिए कर की दर वर्तमान में 30% है। इसके अलावा, यदि कंपनी की शुद्ध आय 1 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये के बीच है तो आयकर अधिनियम के तहत इस पर 7% का अधिभार लगाया जाता है। यदि किसी कंपनी की शुद्ध आय 10 करोड़ रुपये से अधिक है, तो उस पर 12% का अधिभार लगाया जाता है। हालांकि, कुछ घरेलू कंपनियों के लिए धारा 115बीएए (115BAA) नामक 2019 के एक विशेष प्रावधान के तहत 25.168% की कम कर दर पर कर का भुगतान करने का विकल्प है, जिसमें कर की आधार दर 22%, अधिभार दर 10% तथा सैस (CESS) दर 4% होती है। वहीं विदेशी कंपनियों पर अलग-अलग दर से कर लगाया जाता है। विदेशी कंपनियों द्वारा प्राप्त रॉयल्टी (Royalties) या शुल्क पर 50% कर लगाया जाता है, जबकि अन्य आय पर 40% कर लगाया जाता है। यदि किसी विदेशी कंपनी की शुद्ध आय 1 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये के बीच है, तो उस पर 2% सरचार्ज लगाया जाता है। यदि इसकी शुद्ध आय 10 करोड़ रुपये से अधिक है तो 5% का अधिभार लागू होता है।
घरेलू कंपनियों पर उनके टर्नओवर के आधार पर निर्धारण वर्ष 2023-24 के लिए निम्नलिखित दरें लागू हैं :
यहां यह समझना आवश्यक है कि यदि कोई कंपनी धारा 115बीएए या धारा 115बीएबी के तहत कर लगाने का विकल्प चुनती है, तो कुल आय की परवाह किए बिना अधिभार दर 10% तय की जाती है।
अतिरिक्त जिम्मेदारी:
- सभी कंपनियों की कुल कर देनदारी में 4% ‘स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर’ (Health and Education Cess) भी जोड़ा जाता है।
- यदि उपरोक्त दरों के अनुसार कर की गणना कम है तो अर्जित लाभ (Book Profit) पर 15% का न्यूनतम वैकल्पिक कर लागू होता है।
आयकर रिटर्न दाखिल करना:
विदेशी कंपनियों सहित सभी भारतीय कंपनियों को हर साल 30 अक्टूबर तक अपना आयकर रिटर्न (Income Tax Return) दाखिल करना जरूरी है।
कंपनी द्वारा दाखिल किए जाने वाले टैक्स रिटर्न फॉर्म:
धारा 11 के तहत छूट प्राप्त करने वाली कंपनियों को छोड़कर अन्य सभी कंपनियों को फॉर्म आईटीआर 6 (ITR 6) का उपयोग करके अपना रिटर्न दाखिल करना होता है और 2013 की धारा 8 के तहत पंजीकृत सभी कंपनियों को फॉर्म आईटीआर 7 ( ITR 7) का उपयोग करके अपना रिटर्न दाखिल करना आवश्यक है।
टैक्स ऑडिट (Tax Audit): आयकर अधिनियम के अनुसार कुछ कंपनियों को अपने खातों का ऑडिट करने और आयकर रिटर्न के साथ कर ऑडिट रिपोर्ट जमा करने की आवश्यकता होती है। इसे टैक्स ऑडिट के रूप में जाना जाता है।
कॉर्पोरेट टैक्स योजना: कंपनियां अपनी वित्तीय स्थिति को अनुकूलित करने और कर देनदारी को कम करने के लिए कर में छूट की मांग भी कर सकती हैं। इसमें कानून द्वारा प्रदान की गई छूट, लाभांश में कटौती, नए बुनियादी ढांचे और बिजली स्रोतों की स्थापना पर कुछ कटौतियाँ, दुर्लभ स्थितियों में, ब्याज, पूंजीगत लाभ और लाभांश, और व्यावसायिक घाटे आगे बढ़ाना, आदि करना शामिल है।
देश के सभी नागरिकों पर उनकी संपत्ति की परवाह किए बिना लगाए जाने वाले कर को ‘अप्रत्यक्ष कर’ (Indirect Tax) कहा जाता है, जिसमें जीएसटी, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और पूर्व सेवा कर शामिल हैं। भारत में, अकेले अप्रत्यक्ष कर से ही कुल एकत्रित करों का लगभग आधा हिस्सा बन जाता है। अप्रत्यक्ष करों को किसी भी व्यक्ति की भुगतान करने की क्षमता की परवाह किए बिना लगाया जाता है। इसके विपरीत, प्रत्यक्ष करों (आयकर और कॉर्पोरेट कर) को केवल एक निश्चित स्तर से ऊपर आय या लाभ अर्जित करने वाले लोगों या कंपनियों पर लागू किया जाता है।
विकसित देश, कर राजस्व के लिए अधिकांशतः प्रत्यक्ष करों पर ही निर्भर रहते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), स्विट्जरलैंड (Switzerland) और फ्रांस (France) जैसे देशों में, वैट और जीएसटी (VAT And GST) जैसे अप्रत्यक्ष कर, कुल कर राजस्व का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं। इन देशों में सरकार की आय का अधिकांश हिस्सा (लगभग 66%) आयकर, कॉर्पोरेट कर, संपत्ति कर और पेरोल (Payroll) कर जैसे प्रत्यक्ष करों से आता है।
भारत में आजादी के समय, कंपनियों और व्यक्तिगत करदाताओं की सीमित संख्या के कारण राजस्व उत्पन्न करना चुनौतीपूर्ण माना जाता था। 1990 के दशक तक, 80% तक राजस्व अप्रत्यक्ष करों से आता था। 2009-10 में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा, घटकर अपने न्यूनतम बिंदु (41%) पर आ गया, लेकिन उसके बाद इस कर में निरंतर वृद्धि हो रही है। जून 2022 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की कुल आबादी का केवल 41.6% हिस्सा, अर्थात लगभग 560 मिलियन लोग ही कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं। इसका मतलब यह है कि केवल लगभग 11% कामकाजी आबादी ही वास्तव में आयकर रिटर्न दाखिल करती है। इसका मुख्य कारण यह है कि अधिकांश लोग अपनी नौकरियों से बहुत कम पैसा कमाते हैं। खराब गुणवत्ता और कम वेतन वाले रोजगार के साथ, प्रति वर्ष 2.5 लाख रुपये से अधिक या लगभग 21,000 रुपये प्रति माह कमाने वालों का अनुपात, जिस स्तर से ऊपर आयकर लागू होता है, बहुत छोटा है। आकलन वर्ष 2018-19 में, आयकर रिटर्न दाखिल करने वाले 40% से अधिक व्यक्तियों, अर्थात लगभग 55 मिलियन लोगों पर शून्य कर देनदारी थी। तो, केवल लगभग 33 मिलियन (कामकाजी आबादी के 6% से भी कम) लोगों ने वास्तव में किसी भी आयकर का भुगतान किया। हो सकता है कि कुछ लोग कर चोरी कर रहे हों, लेकिन भारत में अधिकांश आबादी कर दायरे में आने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं करती है।
कृपया ध्यान दें कि कर कानून और विनियम समय के साथ बदल सकते हैं, इसलिए अपनी विशिष्ट स्थिति के संबंध में नवीनतम जानकारी और व्यक्तिगत सलाह के लिए कर पेशेवर या चार्टर्ड एकाउंटेंट (Chartered Accountant (CA) से परामर्श करना हमेशा उचित होता है।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Mwsmw92y
Https://Tinyurl.Com/63yuewz7
Https://Tinyurl.Com/293ny6uw
चित्र संदर्भ
1. ऑफिस में बैठे कर्मचारी को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (Goods And Services Tax (GST) को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. धन के लेनदेन को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
4. 1951 से 2013 तक प्रत्येक वर्ष में कुल सकल घरेलू उत्पाद में सेक्टर हिस्सेदारी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. भारत के आयकर विभाग के लोगो को दर्शाता चित्रण (Collections - GetArchive)
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