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कड़वा है तो क्या हुआ, गर्मियों में करेले के सेवन से होते हैं अनेकों स्वास्थ्य लाभ

जौनपुर

 01-07-2023 09:30 AM
साग-सब्जियाँ

जैसे-जैसे देश भर में तापमान बढ़ रहा है, गर्मी को मात देने के लिए तरह-तरह के ताजे फल और सब्ज़ियाँ बाजारों में उपलब्ध होने लगी हैं।गर्मियों की इन सब्जियों में कुंदरू, लौकी, तोरी, करेले आदि शामिल है। करेला गर्मियों की एक लोकप्रिय सब्जी है तथा यह उत्तर प्रदेश की जलवायु के अनुकूल है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और नियमित पानी की आवश्यकता होती है। तो आइए आज करेले की खेती और इसके सेवन से होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। करेला, जिसे वैज्ञानिक तौर पर मोमोर्डिका कैरंशिया (Momordica Charantia) कहा जाता है, को अपने अनोखे कड़वे स्वाद के लिए जाना जाता है।यह एक बेल के रूप में उगने वाली सब्जी है, जिसकी विशेष बात यह है कि यदि इसे काटकर हल्दी और नमक के साथ मिलाकर धूप में सुखाया जाए, तो इसे महीनों तक संग्रहीत किया जा सकता है।भारत में करेला उगाने वाले महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश,पश्चिम बंगाल,उड़ीसा, असम, उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। यह मुख्य रूप से उपोष्णकटिबंधीय और गर्म-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली गर्म मौसम की फसल है, जो कि हल्की ओंस के प्रति अतिसंवेदनशील होती है।सर्दियों के महीनों के दौरान उगाए जाने पर उन्हें आंशिक सुरक्षा प्रदान की जाती है। करेले की बेल के विकास के लिए 24 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त माना जाता है। फसल के विकास के समय उच्च आर्द्रता फसल को विभिन्न कवक रोगों के लिए अतिसंवेदनशील बना देती है।करेले को अच्छे जल निकास वाली रेतीली से रेतीली दोमट मिट्टी तथा कार्बनिक पदार्थ से भरपूर मध्यम काली मिट्टी में उगाया जा सकता है। नदी तल के किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी करेले के उत्पादन के लिए अच्छी होती है। 6.0-7.0 की पीएच रेंज (PH Range) करेले की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई के लिए करेले के लगभग 4-5 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। करेले का मूल उष्णकटिबंधीय एशिया (Tropical Asia),विशेष रूप से इंडो बर्मा (Indo-Burma) क्षेत्र है। यह व्यापक रूप से भारत, इंडोनेशिया (Indonesia), मलेशिया (Malaysia), चीन (China) और उष्णकटिबंधीय अफ्रीका (Tropical Africa) में उगाया जाता है। करेला एक उभयलिंगी वार्षिक बेल वाला पौधा है, जिसकी अवधि 100-120 दिनों की होती है। इसकी पत्तियाँ ताड़ के आकार की 5-9 पालियों वाली होती हैं तथा फूल प्रायःलंबे डंठल वाले और पार्श्विक होते हैं। इनके फूलों में मुक्त तंतु और संयुक्त परागकोषों के साथ पुंकेसर की संख्या 5 होती है। करेले के कड़वे होने का मुख्य कारण इसमें उपस्थित मोमोर्डिसिन (Momordicin) नामक अल्कलॉइड(Alkaloid) है। फूलों के खिलने की प्रक्रिया प्रायः सुबह 4.00 बजे से शाम 7.00 बजे तक होती है। विभिन्न स्थानों पर करेले के आकार, रंग, कड़वाहट आदि के आधार पर करेले की मांग अलग-अलग होती है, इसलिए भारत में करेले की कई किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें से मुख्य किस्में अर्का हरित (Arka Harit), पूसा विशेष (Pusa Vishesh), पूसा दो मौसामी (Pusa DoMausami), पूसा हाईब्रिड 1 (Pusa Hybrid 1), प्रिया VK1 (PriyaVK1), प्रीथी MC4 (PreethiMC 4), प्रियंका (Priyanka), कल्यानपुर बारामासी (Kalyanpur Baramasi), हिर्कनी (Hirkani), फूले ग्रीन (Phule Green) आदि हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में करेले की फसल अप्रैल-मई माह के दौरान बोई जाती है, जबकि मैदानी इलाकों जैसे राजस्थान और बिहार राज्यों में यह जनवरी-मार्च माह के दौरान बोई जाती है। जिन राज्यों में सर्दियों का मौसम देर से आता है तथा लंबा चलता है, वहां करेले की बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है। जिन क्षेत्रों में सर्दियां हल्की होती हैं, वहां करेले की फसल साल भर बोई जाती है। केरल में जब करेले को सघन तरीके से उगाया जाता है,तो बीजों को गर्मियों की फसल के लिए जनवरी-फरवरी,खरीफ की फसल के लिए मई-जून और रबी की फसल के लिए सितंबर माह में बोया जाता है। करेले की पहली फसल बीज बोने के लगभग 55-60 दिन बाद प्राप्त की जा सकती है। इसके बाद की फसल को 2-3 दिनों के अंतराल पर निकाल लेना चाहिए क्योंकि करेले के फल बहुत तेजी से पकते हैं और लाल हो जाते हैं। करेले की सब्जी को विटामिन और खनिजों का एक समृद्ध स्रोत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रति 100 ग्राम में लगभग 88 मिलीग्राम विटामिन C होता है।करेले के फलों का औषधीय महत्व होता है और इसका उपयोग मधुमेह, अस्थमा, रक्त रोग और गठिया के इलाज के लिए किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सक ताजा करेले का जूस पीने की सलाह देते हैं, जो कि हमें कई बीमारियों से बचा सकता है। कई आयुर्वेदिक औषधियों में जंगली करेले की जड़ और तने का उपयोग किया जाता है।

संदर्भ:
https://rb.gy/qx8ir
https://rb.gy/2xcr2
https://rb.gy/064mb

चित्र संदर्भ
1. करेले की सब्जी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. पेड़ से लटके करेले को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. करेले की बेल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. करेले के बीजों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. करेले की लजीज सब्जी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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