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खरीफ ऋतु की शुरुआत होते ही, हमारे जौनपुर जिले के कई किसान धान की खेती की तैयारी में जुट गए हैं। ज्यादातर किसानों के खेत भी तैयार हो चुके हैं, और अब किसान पानी की आस लगाकर बैठे हैं। लेकिन, सिंचाई वाली नहरों में अभी तक पानी नहीं छोड़ा गया है। इससे किसान चिंतित हैं। यदि नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया, तो किसान समय पर धान का बीज नहीं डाल पाएंगे और समय पर धान की रोपाई नहीं हो पाएगी। इससे धान की पैदावार में भी कमी आ सकती है।
हमारे जौनपुर जिले में सिंचाई के लिए कुल 343 छोटी-बड़ी नहरें हैं। ये नहरें रबी और खरीफ ऋतु की फसलों के लिए कुल 2 लाख 4 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है। सुइथाकलां क्षेत्र, सुरेरी थाना क्षेत्र तथा सिंगरामऊ क्षेत्र के विभिन्न गांवों सहित अन्य गांवों के हजारों एकड़ खेतों की सिंचाई नहरों के पानी से की जाती है। अतः नहरों में पानी ना छोड़े जाने की वजह से यहां के किसान चिंतित हैं। हालांकि, इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि जून के अंत तक नहरों में पानी आने की उम्मीद है। नहरों में बराबर पानी पहुंच जाए, इसलिए प्रति वर्ष नवंबर महीने में नहरों की सफाई कराई जाती है, जिसके लिए ऊपर से पानी को बंद किया जाता है। अब हमें और हमारे किसान भाइयों को भी पानी की आशा है, जिससे धान की रोपाई समय पर हो सके।
ऐसी खबरों के बीच, हमारा ध्यान कुछ सफल नहर परियोजनाओं पर पड़ता हैं। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में ऊपरी गंगा नहर, अब तक की सबसे सफल परियोजनाओं में से एक है। आइए गंगा नहर के बारे में पढ़ते हैं।
• ऊपरी गंगा नहर:
ऊपरी गंगा नहर का निर्माण वर्ष 1842 में कर्नल सर पी. टी. कातले (Colonel Sir P.T.Kaatle) की देखरेख में हुआ था। वर्ष 1854 में पहली बार इस नहर में पानी छोड़ा गया था। यह नहर हरिद्वार में भीमगौड़ा से गंगा नदी के दाहिने किनारे से निकलती है। शुरुआत में इस नहर पर एक अस्थायी बाँध बनाकर पानी की आपूर्ति की जाती थी और साल के शुरू होते ही यह बाँध टूट जाता है और इसी कारण इस नहर से केवल रबी फसल की सिंचाई हो पाती थी। फिर 1917 से 1922 के दौरान इस नहर पर भीमगौड़ा बांध का निर्माण किया गया था। इसके निर्माण के पश्चात, ऊपरी गंगा नहर से खरीफ फसलों को भी पानी की आपूर्ति की जाने लगी। किंतु बाँध के गेटों (Gates) का संचालन में कठिनाई के 1978 से 1984 के दौरान यहां भीमगौड़ा बैराज का निर्माण किया गया था। इस नहर प्रणाली के माध्यम से हरिद्वार, सहारनपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, ग़ाज़ियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ, एटा, मथुरा, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी और आगरा जिलों को सिंचाई सुविधा प्रदान की जाती है।
ऊपरी गंगा नहर की तीन प्रमुख शाखाएँ हैं-
१. देवबंद शाखा
२. अनूपशहर शाखा
३. मठ शाखा
सिंचाई के अलावा, इस नहर से पेयजल के लिए दिल्ली को 200 क्यूसेक (Cusec) और थर्मल पावर प्लांट (Thermal power plant) के लिए हरदुवागंज को 100 क्यूसेक पानी की आपूर्ति की जाती है। मुख्य गंगा नहर में बने झरनों से जल विद्युत का उत्पादन भी किया जाता है। ऊपरी गंगा नहर की लंबाई 298 किलोमीटर है जिससे 8.85 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को सिंचित किया जाता है ।
• निचली गंगा नहर:
गंगा-यमुना दोआब के निचले हिस्से में ऊपरी गंगा नहर प्रणाली और कानपुर जल शाखा के बीवर द्वारा सिंचाई की जाती है। कृषि के विकास के कारण ऊपरी गंगा नहर के निचले हिस्से में पानी की कमी हो गई थी, इसलिए वहां एक बांध का निर्माण किया गया था, जिसे बाद में बैराज में बदल दिया गया। गंगा नदी के दाहिने किनारे से निर्मित निचली गंगा नहर का निर्माण वर्ष 1878 में पूरा हुआ और इसी वर्ष इस नहर में पानी भी छोड़ दिया गया था।
इस नहर की 5 मुख्य शाखाएँ है।
१. फर्रुखाबाद जल शाखा
२. बीवर जल शाखा
३. कानपुर जल शाखा
४. इटावा जल शाखा
५. भोगनीपुर जल शाखा
वर्ष 1974 में रामगंगा बांध के निर्माण के बाद, निचली गंगा नहर में पानी की आपूर्ति बढ़ा दी गई थी। इसके बाद एक समानांतर निचली गंगा नहर का निर्माण किया गया और खरीफ फसलों के लिए अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराया गया। इस नहर के माध्यम से अलीगढ, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, इटावा, कानपुर देहात, कानपुर नगर, फ़तेहपुर तथा प्रयागराज जिलों को सिंचाई सुविधा प्रदान की जाती है। निचली गंगा नहर की लंबाई 98.8 किलोमीटर है और इसके समानांतर दूसरी निचली गंगा नहर की लंबाई 89 किलोमीटर है जिससे 11.64 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को सिंचित किया जाता है।
• मध्य गंगा परियोजना (चरण I):
बिजनौर से 10 किलोमीटर उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के दोनों किनारों पर बैराज बनाकर नहरों का निर्माण प्रस्तावित है। इस परियोजना के पहले चरण में, 115.45 किलोमीटर लंबी और 8280 क्यूसेक क्षमता की एक मुख्य नहर नदी के दाहिने किनारे से निकाली गई है। इस प्रणाली में कई अन्य शाखाओं का प्रस्ताव है। 239.20 किमी लंबी ऊपरी गंगा नहर से 2750 क्यूसेक क्षमता की 47.70 किमी लंबी नहर का निर्माण पूरा हो चुका है, जो तुरंत ऊपरी गंगा नहर की मांट शाखा के ऊपरी हिस्से से जोड़ी जा चुकी है। मांट नहर से 306 किमी लंबी नहर निकाली गई है।
• मध्य गंगा परियोजना (चरण II):
मध्य गंगा नहर परियोजना के दूसरे चरण के तहत, वर्षा के मौसम में गंगा नदी के अतिरिक्त पानी का उपयोग खरीफ फसल की सिंचाई के लिए किया जाना प्रस्तावित है। इसलिए, बिजनौर स्थित मध्य गंगा बैराज के बायीं ओर से एक मुख्य नहर का निर्माण किया गया है। इस परियोजना में 66.20 किलोमीटर लंबी एवं 4306 क्यूसेक क्षमता की मुख्य नहर का निर्माण किया जाएगा। इस प्रणाली में भी कई अन्य शाखाओं का प्रस्ताव है।
• पूर्वी गंगा नहर
पूर्वी गंगा नहर परियोजना बिजनौर एवं मुरादाबाद के 105 हजार हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में अनाज की सिंचाई हेतु प्रस्तावित है। इस परियोजना के अंतर्गत हरिद्वार के पास भीमगौडा बैराज के बायीं ओर से 48.55 किमी लंबी तथा 4650 क्यूसेक क्षमता की एक मुख्य नहर प्रस्तावित की गई है।
• पूर्वी यमुना नहर:
पूर्वी यमुना नहर, ताजेवाला से यमुना नदी के बाएँ तट से निकलती है। इस नहर प्रणाली के माध्यम से हिंडौन-यमुना दोआब के सहारनपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ और ग़ाज़ियाबाद जिलों को सिंचाई सुविधा प्रदान की जाती है। जुलाई के महीने में इस नहर प्रणाली में पानी की कमी देखी जाती है और अक्टूबर की शुरुआत तक इस नहर में पानी की आपूर्ति शून्य हो जाती है। इस समस्या को दूर करने के लिए ताजेवाला से 3 किलोमीटर ऊपर हथिनीकुंड बैराज का निर्माण किया गया है। मुख्य नहर की कुल लंबाई 197 किलोमीटर है जिससे 2.21 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र सिंचित किया जाता है ।
• शारदा सहायक परियोजना:
शारदा नहर प्रणाली के निचले भाग में स्थित जनपदों यथा लखनऊ, रायबरेली, बाराबंकी, अयोध्या, अम्बेडकर नगर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, भदोही, वाराणसी, जौनपुर, आज़मगढ़, मऊ, ग़ाज़ीपुर तथा बलिया में जल की कमी की पूर्ति हेतु एवं घाघरा नदी के जल का उपयोग करते हुए इन जिलों के शेष क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु 1968-69 में शारदा शायक परियोजना प्रारम्भ की गई थी। इस परियोजना के तहत पहली बार जल आपूर्ति वर्ष 1974 में शुरू की गई थी।
भारत में नहर सिंचाई का उद्देश्य परंपरागत रूप से केवल कृषि सेवा के लिए बनाई गई नहरों तक ही सीमित रहकर ग्रामीण-केंद्रित रहा है। इसके विपरीत, शहरों से अपशिष्ट जल को बाहर निकालने और पेयजल उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई नहरों की गतिशीलता भी गतिहीन बनी हुई है।
हालांकि, ये नहरें कुछ आयामों में हमारे लिए लाभदायक भी है। ,नहरें विकास को बढ़ावा देकर, किसी नगर को शहर में विकसित करने की क्षमता रखती है। भूमि की भौगोलिक स्थितियों, सामाजिक संबंधों और प्रौद्योगिकियों के संबंध में नहरों की संरचना किसानों के लिए अलग-अलग जोखिम और अवसर पैदा करती है और जटिल वितरणात्मक प्रभाव पैदा करती है। यह प्रभाव भूमि के मूल्यों में वृद्धि से भी चिह्नित है, जो ग्रामीण अभिजात वर्ग के लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचाता है। अतः आज, उपनगरीय निवासियों पर पड़ने वाले नहर रुपी बुनियादी ढांचे के स्थान–विशिष्ट प्रभावों को उनकी लागत एवं लाभ गणना के साथ, कारकों के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है। साथ ही, इन क्षेत्रों में शासन संस्थानों को, संसाधन के मामलों पर केंद्रीय शहर और नहर प्रबंधन के साथ बातचीत करने के लिए भी मजबूत किया जाना चाहिए।
संदर्भ
https://rb.gy/4pi1f
https://rb.gy/c0lao
https://rb.gy/m9ztu
चित्र संदर्भ
1. एक नहर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. जौनपुर के शाही पुल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. गंगा नहर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. गंगा नहर एक पुराने चित्र को दर्शाता चित्रण (Collections - GetArchive)
5. रूड़की के पास गंगा नहर पर ईस्ट इंडिया कंपनी-युग (1854) के पुल की तस्वीर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. गंगा नहर पर एक पुराने पुल की तस्वीर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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