Post Viewership from Post Date to 22-Jul-2023
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3239 646 3885

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जौनपुर की वनस्पति विविधता के लिए शुभ संकेत है, संकटग्रस्त फ्लेम लिली का पाया जाना

जौनपुर

 20-06-2023 10:32 AM
बागवानी के पौधे (बागान)

ग्लोरियोसा सुपरबा (Gloriosa Superba), जिसे फ्लेम लिली (Flame lily) या ग्लोरी लिली (Glory lily) या शानदार लिली भी कहते हैं, एक उष्णकटिबंधीय बेल वाला पौधा है जिसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं।दिलचस्प बात यह है कि कुछ साल पहले जौनपुर जिले के खपराहा नामक गांव में यह संकटग्रस्त प्रजाति अचानक से पाई गई थी।तो आइए आज इस प्रजाति की भौतिक विशेषताओं, आवास आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करें, तथा जानें कि इसे घर पर उगाना क्यों फायदेमंद है!
ग्लोरी लिली हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, अफ्रीका (Africa) और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) में पाई जाती है। इस फूल के महत्व को उजागर करने के लिए भारतीय डाक विभाग द्वारा एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। यह एक बारहमासी, कंदमय तथा सीधा, ऊपर की ओर बढ़नेवाली बेल है, जिसका तना मुलायम, पत्तियां डण्ठल रहित और सर्पिल रूप से व्यवस्थित होती हैं। इस पौधे पर लगने वाले फूल अक्षीय, एकान्त, बड़े, उभयलिंगी होते हैं। यह पौधा आमतौर पर धूप की उचित मात्रा में मिश्रित पर्णपाती जंगलों में रेतीली-दोमट मिट्टी में उगता है।यह 2530 मीटर की ऊंचाई तक गर्म देशों में झाड़ियों, जंगल के किनारों और खेती वाले क्षेत्रों की सीमाओं में आसानी से पनपता है।ठंडे समशीतोष्ण देशों में यह व्यापक रूप से ग्लास हाउस (Glass House) में एक सजावटी पौधे के रूप में उगाया जाता है। भारत में इसे विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है, जैसे कलिहारी, कथारी, कुल्हारी, लांगुली, बिशालंगुली, उलटचंदल, दुधियो, वच्छोनग, इंदाई, करियानाग, खाद्यनाग, कराडी, कन्नीनागड्डे,अदावी-नाभी, कलप्पागड्डा, गंजेरी,मेट्टोनी, किथोन्नी,कलाप्पई-किझंगु, कन्नोरू,ओग्निसिखा, गर्भघोघाटोनो, पंजांगुलिया आदि।जीनस लिलियम की अनेक वास्तविक लिली प्रजातियां हैं, जिनमें से कुछ प्रजातियों में एशियाई लिली(लिलियम हाइब्रिड) (Asiatic Lilies - Lillium Hybrids),मार्टागन हाइब्रिड (Martagon Hybrids),कैंडिडम लिली (Candidum Lilies) (लिलियम हाइब्रिड्स), अमेरिकी हाइब्रिड (American Hybrids),लोंगिफ्लोरम हाइब्रिड (Longiflorum Hybrids) आदि शामिल है।
फ्लेम लिली की पत्तियों की नोक से निकलने वाले रस का उपयोग चेहरे के पिंपल्स और त्वचा में खिंचाव आने पर किया जाता है। झारखण्ड के आदिवासी इसके प्रकंद के चूर्ण को नारियल के तेल के साथ मिलाकर 5 दिनों तक त्वचा के फोड़े-फुंसियों और संबंधित रोगों में लगाते हैं। इस मिश्रण को सांप और बिच्छू के काटने पर भी कारगर बताया गया है। आदिवासी लोग इस पौधे की जड़ों को पानी में पीसकर इसका लेप सिर पर लगाते हैं, ताकि गंजापन दूर हो जाए।दर्दनाक प्रसव से राहत के लिए, झारखंड की बिरहोर जनजाति की महिलाएं, प्रकंद के अर्क को नाभि और योनि पर लगाती हैं, जिससे पीड़ा या दर्द उत्पन्न हों और सामान्य प्रसव हो सके ।पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में इस पौधे के कंद का उपयोग खरोंच और मोच के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग शूल, जीर्ण अल्सर, बवासीर, कैंसर, नपुंसकता,कुष्ठ रोग आदि के उपचार के लिए भी किया जाता है।
"वास्तविक लिली" के रूप में वर्गीकृत पौधों को प्रायः जीनस लिलियम(Lilium)में वर्गीकृत किया गया है और यह वास्तविक कंदों से बढ़ता है, प्रकंदों से नहीं। सभी वास्तविक लिली के पौधों के फूलों में छह परागकोष और छह पंखुड़ियाँ होती हैं। बगीचे में उगने वाले सामान्य पौधे लिली नहीं होते हैं, भले ही उनके सामान्य नाम में "लिली" शब्द लगा हो।लिलियम, कंदों से उगने वाले शाकीय फूल वाले पौधों की एक प्रजाति है तथा इनमें लिली परिवार लिलिएसी (Liliaceae) की लगभग 110 प्रजातियां शामिल हैं, जो मिलकर एक वंश बनाती हैं।अधिकांश प्रजातियां समशीतोष्ण उत्तरी गोलार्ध के मूल निवासी हैं, हालांकि यह उत्तरी उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी फैले हुए हैं। लिली की कुछ प्रजातियों को कभी-कभी खाद्य कंदों के लिए उगाया या काटा जाता है। समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बगीचे में कई प्रजातियां व्यापक रूप से उगाई जाती हैं।कभी-कभी इन्हें गमले में लगे पौधों के रूप में भी उगाया जा सकता है। इन फूलों के द्वारा बड़ी संख्या में सजावटी संकर विकसित किए गए हैं। इनका उपयोग शाकीय सीमाओं, वुडलैंड (Woodland) और झाड़ीदार पौधों और आँगन के पौधे के रूप में किया जा सकता है।
लिली के पौधे को बगीचों में उगाने से जहां बगीजे की सुंदरता बढ़ जाती है, वहीं इसके अनेकों और भी फायदें हैं।उदाहरण के लिए यह हवा को शुद्ध करता है, इसे कम रखरखाव की आवश्यकता होती है, यह एसीटोन वाष्प (Acetone vapors) को अवशोषित करता है,आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है,घर की सजावट को बढ़ाने के लिए उपयोगी है,फफूंदी बनने से रोकता है तथा हवा से फफूंदी के बीजाणुओं को हटाता है।नासा (NASA) के एक प्रयोग के अनुसार बेंजीन (Benzene), ज़ाइलीन (Xylene), कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon monoxide) और फॉर्मलडिहाइड (Formaldehyde) जैसे प्रदूषकों को लिली का पौधा अवशोषित कर सकता है, जिससे यह 60% प्रदूषकों को खत्म कर बदले में हवा में नमी मिलाकर उसे सांस लेने लायक बनाता है। वॉशरूम, बाथरूम और किचन में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण इन स्थानों पर फफूंदी बनना संभव है। लिली का पौधा आसपास से अतिरिक्त नमी को अवशोषित करके फफूंदी बनने से रोकने में सहायक है।


संदर्भ:
https://t.ly/pGfP
https://t.ly/T9bnc
https://t.ly/ixml
https://t.ly/Tzvb
https://rb.gy/iinic

चित्र संदर्भ
1. ग्लोरियोसा सुपरबा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. घर में उगाई जा रही ग्लोरियोसा सुपरबा को दर्शाता चित्रण (flickr)
3. इंडोनेशिया की स्टैम्प में ग्लोरियोसा सुपरबा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. ग्लोरियोसा सुपरबा के बीजों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सिंकुड़ी हुई ग्लोरियोसा सुपरबा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • जौनपुर शहर की नींव, गोमती और शारदा जैसी नदियों पर टिकी हुई है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:14 AM


  • रंग वर्णकों से मिलता है फूलों को अपने विकास एवं अस्तित्व के लिए, विशिष्ट रंग
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:11 AM


  • क्या हैं हमारे पड़ोसी लाल ग्रह, मंगल पर, जीवन की संभावनाएँ और इससे जुड़ी चुनौतियाँ ?
    मरुस्थल

     16-09-2024 09:30 AM


  • आइए, जानें महासागरों के बारे में कुछ रोचक बातें
    समुद्र

     15-09-2024 09:22 AM


  • इस हिंदी दिवस पर, जानें हिंदी पर आधारित पहली प्रोग्रामिंग भाषा, कलाम के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:17 AM


  • जौनपुर में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है बी आई एस
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:05 AM


  • जानें कैसे, अम्लीय वर्षा, ताज महल की सुंदरता को कम कर रही है
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:10 AM


  • सुगंध नोट्स, इनके उपपरिवारों और सुगंध चक्र के बारे में जानकर, सही परफ़्यूम का चयन करें
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:12 AM


  • मध्यकाल में, जौनपुर ज़िले में स्थित, ज़फ़राबाद के कागज़ ने हासिल की अपार प्रसिद्धि
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:27 AM


  • पृथ्वी पर सबसे दुर्लभ खनिजों में से एक है ब्लू जॉन
    खनिज

     09-09-2024 09:34 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id