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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की आवश्यकता क्यों पड़ी?

जौनपुर

 12-06-2023 09:36 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

जौनपुर से तकरीबन 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ को देश में उच्च शिक्षा के अध्ययन के लिए सबसे अग्रणी संस्थानों में से एक माना जाता है। भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रगति में इस विद्यापीठ का योगदान अतुलनीय रहा है। चन्द्रशेखर आजाद, लालबहादुर शास्त्री, कमलापति त्रिपाठी, राजा राम शास्त्री और बी. वी. केस्कर (B.V. Keskar) जैसी महान विभूतियों ने इसी विश्वविद्यालय में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की थी। इस विश्वविद्यालय ने आधुनिक भारत की राजनीतिक रूपरेखा तय में भी अहम भूमिका निभाई है! चलिए जानते हैं कैसे?
‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,’ वाराणसी, एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 10 फरवरी, 1921 के दिन, बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास जी द्वारा की गई थी। पहले इसे केवल काशी विद्यापीठ के नाम से ही जाना जाता था, किन्तु 11 जुलाई 1995 के दिन गांधीजी के सम्मान में इसका नाम बदलकर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रख दिया गया। महात्मा गांधी ने खुद विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया था। शुरुआत में इस विश्वविद्यालय को सरकारी मान्यता या अनुदान के बिना स्थापित किया गया था। किंतु अब यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य विधायिका द्वारा शासित है। 1974 में इसने एक मानित विश्वविद्यालय और 2009 में एक वैधानिक राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल किया । वर्तमान में, इसका नेतृत्व कुलपति प्रो. आनंद के. त्यागी कर रहे हैं। इस विश्वविद्यालय के छह जिलों में 400 से अधिक संबद्ध कॉलेज हैं। यहां पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के कई छात्र अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं, और इसे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है। यह विश्वविद्यालय कला, विज्ञान, वाणिज्य, कृषि विज्ञान, कानून, कंप्यूटिंग (computing) और प्रबंधन से जुड़े विभिन्न पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
शैक्षिक पाठ्यक्रमों से परे जाकर काशी विद्यापीठ ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और समाजवादियों का निर्माण किया। इस विद्यापीठ को ब्रिटिश (British) शासित भारत में भारतीयों द्वारा स्थापित पहला आधुनिक विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है। यह विश्वविद्यालय ब्रिटिश अधिकारियों के अधिकार में नहीं था, और इसका प्रबंधन भारतीय राष्ट्रवादियों और शिक्षाविदों द्वारा किया जाता था। इस विश्वविद्यालय ने पूरे देश में उच्च शिक्षा की तलाश कर रहे छात्रों का ध्यान अपनी ओर खींचा और यहाँ से एक से बढ़कर एक राष्ट्रवादी और विद्वान निकलकर आये। महात्मा गांधी और कई अन्य भारतीय नेताओं ने भारतीयों को ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित संस्थानों का बहिष्कार करने, और काशी विद्यापीठ जैसे भारतीय-प्रबंधित संस्थानों से जुड़ने या शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की एक समृद्ध सांस्कृतिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस विद्यापीठ ने भारतीय समाजवाद की अवधारणा में अहम् योगदान दिया। यहां का माहौल महात्मा गांधी के आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम के आह्वान से प्रभावित नजर आता था।
भारत की आजादी से पहले, भारत की शिक्षा प्रणाली पश्चिमी पाठ्यक्रम का अनुसरण करती थी। उस समय भारत के कई जाने माने लोग, जैसे महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना, इन्स ऑफ कोर्ट (Inns of Court) में कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए थे। 1890 तक, लगभग 60,000 भारतीयों ने अपनी माध्यमिक शिक्षा ( ज्यादातर उदार कला और कानून में) पूरी कर ली थी। उनमें से लगभग एक-तिहाई ने लोक प्रशासन में प्रवेश किया, और एक तिहाई वकील बन गए। इसके बाद भारत में शिक्षित पेशेवर प्रशासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
ब्रिटिश राज के दौरान ब्रिटिश शासन ने स्थानीय परोपकारी लोगों के साथ मिलकर भारत में 186 महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की। भारत में 1882 में 4 विश्वविद्यालयों और 67 महाविद्यालयों में 600 छात्रों के साथ शिक्षा प्रणाली की शुरुआत हुई, जो अत्यंत तेजी से विस्तारित हुई। 1901 तक, लगभग 18,000 पुरुष छात्रों के साथ 5 विश्वविद्यालय और 145 महाविद्यालय स्थापित हो गए थे, जहां पर पाठ्यक्रम को पश्चिमी दृष्टिकोण के अनुरूप पढ़ाया जाता था। 1922 तक, अधिकांश स्कूलों को निर्वाचित प्रांतीय अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किया जाने लगा था। साल 1922 तक देश में 46,000 छात्रों के साथ 14 विश्वविद्यालय और 167 महाविद्यालय स्थापित हो गए थे। 1947 में, स्वतंत्रता के समय, भारत में 21 विश्वविद्यालय और 496 महाविद्यालय स्थापित किये जा चुके थे। प्रारंभ में, विश्वविद्यालय केवल परीक्षाएं आयोजित करने और उपाधियाँ प्रदान करने का कार्य करते थे। शिक्षण और अनुसंधान उनकी प्राथमिकता नहीं थी।
चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में, 1835 में मद्रास मेडिकल कॉलेज (Madras Medical College) खोला गया, जहाँ महिलाओं को भी नामांकन करने की अनुमति दी गई। 19वीं शताब्दी के अंत तक चिकित्सा पेशे में शिक्षित महिलाओं के विचार को लोकप्रियता मिलने लगी। 1864 में अंग्रेजों ने लाहौर में गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी (Government College University) की भी स्थापना की। प्रारंभ में, यहाँ की परीक्षाएं कलकत्ता विश्वविद्यालय में कराई जाती थी। 1875 में स्थापित ‘मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज’ (Muhammadan Anglo-Oriental College), भारत में मुसलमानों के लिए पहला आधुनिक उच्च शिक्षा संस्थान बना। यह बाद में ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ बन गया।
इस अवधि के दौरान, कई अन्य विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित विश्वविद्यालय शामिल हैं
बॉम्बे विश्वविद्यालय (1857),
कलकत्ता विश्वविद्यालय (1857),
मद्रास विश्वविद्यालय (1857),
पंजाब विश्वविद्यालय (1882),
इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887),
मैसूर विश्वविद्यालय (1857)
पटना विश्वविद्यालय (1917),
उस्मानिया विश्वविद्यालय (1918),
रंगून विश्वविद्यालय (1920),
लखनऊ विश्वविद्यालय (1921),
ढाका विश्वविद्यालय (1921),
दिल्ली विश्वविद्यालय (1922),
नागपुर विश्वविद्यालय (1923),
आंध्र विश्वविद्यालय (1926),
आगरा विश्वविद्यालय (1927),
अन्नामलाई विश्वविद्यालय (1929),
केरल विश्वविद्यालय (1937),
उत्कल विश्वविद्यालय (1943),
पंजाब विश्वविद्यालय (1947),
राजपूताना विश्वविद्यालय (1947)
गांधी जी के अंग्रेजी बहिष्कार के विचार का समर्थन करने वाले कई छात्रों ने इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया। शिक्षा के ये केंद्र आज भी किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सभी लोगों के लिए खुले हैं। हालांकि, यहां अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के छात्रों के प्रवेश हेतु विशिष्ट प्रावधान हो सकते हैं।
जामिया मिलिया इस्लामिया, गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ विश्वविद्यालयों की स्थापना ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली से अलग, भारतीय सिद्धांतों और पाठ्यक्रम पर आधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी।1920 में, जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’(boycott movement) का आह्वान किया, जिसमें शिक्षा की औपनिवेशिक व्यवस्था को खारिज करने का विचार भी शामिल था। भारत की अपनी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय विद्यापीठ बनाए गए थे। गांधी जी चाहते थे कि भारतीय, अंग्रेजी शिक्षा का पालन करने वाले स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करें। उस समय, भारतीय छात्रों ने औपनिवेशिक व्यवस्था का पालन करने वाले प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों को छोड़ना शुरू कर दिया, और इसके बजाय जामिया मिलिया इस्लामिया, गुजरात विद्यापीठ और काशी विद्यापीठ जैसे राष्ट्रिय विद्यापीठों में दाखिला लिया। ऐसे ही एक प्रमुख विश्वविद्यालय ‘विश्व-भारती’ की स्थापना रवींद्रनाथ टैगोर ने 1921 में, भारत की अपनी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए की थी।
इनमें से प्रत्येक विद्यापीठ की अपनी अनूठी कहानी थी। जैसे जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना उन राष्ट्रवादी शिक्षकों और छात्रों द्वारा की गई थी, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को इसकी ब्रिटिश समर्थक विचारधारा के कारण छोड़ दिया था। गुजरात विद्यापीठ की स्थापना गांधी जी ने स्वयं, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए युवाओं को तैयार करने, और ‘हिंद स्वराज' को प्राप्त करने के लिए की थी। गांधी जी के ही आत्मनिर्भरता और स्वशासन के आह्वान से प्रेरित होकर बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास द्वारा वाराणसी में काशी विद्यापीठ की स्थापना की गई थी। तब से लेकर आज तक इन राष्ट्रीय विद्यापीठों ने भारतीय शिक्षा को बढ़ावा देने और भारतीय मूल्यों और सिद्धांतों के आधार पर ज्ञान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संदर्भ

https://shorturl.at/eovA8
https://shorturl.at/qsLQ1
https://shorturl.at/jqrtB
https://shorturl.at/coxHM

 चित्र संदर्भ
1. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विश्वविद्यालय परिसर में भारत माता मंदिर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के लोगो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मद्रास मेडिकल कॉलेज को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)



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