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उचित रखरखाव के अभाव में क्षीण होते जा रहे हैं जौनपुर के शाही पुल जैसे ऐतिहासिक स्मारक

जौनपुर

 09-06-2023 09:37 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

एक किंवदंती के अनुसार, नौकायन के शौकीन रहे मुगल सम्राट बादशाह अकबर एक बार जौनपुर की गोमती नदी में नौका विहार कर रहे थे। तभी उनकी नजर नदी किनारे खड़ी एक गरीब महिला पर पड़ी, जो गोमती नदी को पार करना चाहती थी, किंतु उस समय इस नदी को पार करने के लिए उसके पास कोई साधन उपलब्ध नहीं था। इस महिला की लाचारी को समझते हुए, बादशाह अकबर ने न केवल उस गरीब महिला को नदी पार करवाई; साथ ही उन्होंने अपने दरबारियों एवं सेवादारों को फटकार भी लगाई कि वे मस्जिदों के निर्माण पर तो इतना अधिक धन खर्च करते हैं किंतु सार्वजनिक सुविधाओं पर क्यों नहीं करते! माना जाता है कि इस जोरदार फटकार के बाद, जौनपुर के मुगल गवर्नर (Governor) रहे मुनीम खान को गोमती पर पुल बनाने का निर्देश दिया गया, जिनके द्वारा केवल चार वर्षों के भीतर ही जौनपुर के शाही पुल का निर्माण कार्य पूरा कर दिया गया। 1564 में पूरा हुआ यह शाही पुल आज की तारीख में जौनपुर की पहचान बन गया है। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत बेहद संपन्न मानी जाती है। राज्य में कई प्राचीन कलाकृतियां और पुरावशेष मिलते हैं, जो इसके इतिहास को पाषाण युग और हड़प्पा युग से जोड़ते हैं। मिर्जापुर जिले की विंध्य पर्वतमाला में आदिमानवों द्वारा बनाए गए चॉक चित्र (Chalk Drawings) और गहरे लाल रंग के चित्र मिलते हैं। कानपुर, उन्नाव, मिर्जापुर, मथुरा में तांबे के लेख भी पाए गए हैं, जो राज्य में आर्यों की उपस्थिति का प्रमाण देते हैं। यह भी संभव है कि उत्तर प्रदेश के प्राचीन स्थलों में सिंधु घाटी और वैदिक सभ्यताओं के बीच संबंधों के अवशेष भी दबे हुए हों।br> इसके अलावा उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति और विरासत के कई पहलुओं का जन्म स्थान माना जाता है। यह स्थान भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण की जन्मस्थली, भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल, ताजमहल और त्रिवेणी संगम जैसे प्रतिष्ठित स्थलों का घर है। इस राज्य में विभिन्न मान्यताओं और परंपराओं की विविधता कला, वास्तुकला, साहित्य और कलाओं के रूप में परिलक्षित होती है। गुप्त काल को भारतीय कला का स्वर्ण युग माना जाता है, और इस दौर में हमारे राज्य के प्रतीकात्मक रूपों और सजावटी उद्देश्यों में अभूतपूर्व प्रगति देखी गई। इस अवधि के दौरान बनाई गई पत्थर और टेराकोटा (Terracotta) की मूर्तियां विभिन्न स्थानों पर पाई गई हैं, जो गुप्त वास्तुकला की सुंदरता और संतुलन तथा मूर्तियों में परिलक्षित शारीरिक आकर्षण तथा मानसिक शांति को दर्शाती हैं।br> मुगल काल के दौरान, भारतीय और मुस्लिम शैली की मिश्रित वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई। ताजमहल इस शैली का एक प्रमुख एवं उत्कृष्ट उदाहरण है। इस अवधि के दौरान कई किलों, महलों, मस्जिदों, मकबरों, स्नानागारों और पुलों का निर्माण किया गया। माना जाता कि जौनपुर का शाही पुल भी मुग़ल शासन के दौरान 1564 में बनकर तैयार हुआ था। इसका उपयोग आज भी किया जाता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस पुल के निर्माण के बाद, किसी भी शासक का ध्यान, दोबारा जौनपुर के विकास पर कभी नहीं गया। तब से लेकर आज तक हमारा जौनपुर उपेक्षित ही रह गया। जौनपुर को “शिराज-ए-हिंद” के नाम से जाना जाता था! कई मुगल स्मारकों का निर्माण, इस शहर से प्रेरणा लेकर किया गया। ताजमहल बनाने वाले, शाहजहाँ ने भी इसकी सुंदरता की प्रशंसा की थी। जौनपुर की स्थापना 1359 ईसवी में, फिरोज शाह तुगलक द्वारा की गई थी, जिन्होंने यहां एक किले, एक स्नानागार और एक मस्जिद का निर्माण करवाया था। 1394 में, जौनपुर के गवर्नर ने स्वतंत्रता की घोषणा के साथ शर्की वंश की स्थापना कर दी। शर्की राजवंश के वास्तुकारों द्वारा भारतीय और इस्लामी स्थापत्य शैली को मिश्रित कर बेहद खूबसूरत इमारतों एवं स्मारकों का निर्माण किया गया, जिनसे मुगल भी अत्यंत प्रभावित हुए, । अटाला मस्जिद इस मिश्रित स्थापत्य शैली का एक प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा जौनपुर में मकबरे और महलों सहित एक दर्जन से अधिक शानदार स्मारक मौजूद हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि इन स्मारकों पर अब अतिक्रमण होने लगा है और इनकी उपेक्षा की जा रही है। ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम, 2010’ (Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains (Amendment and Validation) Act, 2010) किसी भी स्मारक के 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक लगाता है, जबकि 200 मीटर के अतिरिक्त क्षेत्र को विनियमित करता है। इसलिए, किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य के लिए स्मारकों से कम से कम 300 मीटर की दूरी बनाए रखने की आवश्यकता होती है। लेकिन जौनपुर में इस नियम की खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है हैं। राज्य प्रशासन द्वारा अब तक इसे लागू करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है। इन स्मारकों के आस-पास रहने वाली आबादी निर्माण के लिए इन जर्जर स्मारकों से पत्थर चुरा लेती है। इसके अतिरिक्त, यहां एकमात्र स्मारक ‘शाही किला’ को देखने के लिए टिकट की व्यवस्था है। जबकि शहर में कई अन्य स्मारक सुंदरता और विशिष्टता के मामले में किले से कहीं आगे हैं और बहुत अधिक राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं, जिसका उपयोग उनके रखरखाव के लिए किया जा सकता है। किंतु राज्य द्वारा इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जिसके कारण इन स्मारकों के रखरखाव एवं प्रतिरक्षण के लिए धन की कमी होना सरकार के लिए बहाना बन जाता है। टिकट की व्यवस्था से उत्पन्न हुए इस राजस्व का उपयोग जौनपुर में स्मारकों के रखरखाव, रोजगार सृजित करने, और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया जा सकता है। अच्छी सड़कों, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण, जौनपुर की प्रगति दिन-प्रतिदिन एक सपना बनती जा रही है। 2016 में, अखिलेश यादव की सरकार ने विरासत संरक्षण योजना में हमारे जौनपुर को भी शामिल किया था, लेकिन इस योजना पर शायद ही कभी अमल किया गया हो। अगर वर्तमान सरकार भी जौनपुर की संरक्षण जरूरतों को नजरअंदाज करती रही, तो यह निश्चित रूप से भारतीय विरासत के लिए एक बड़ी क्षति होगी।br> हालांकि, ऐतिहासिक स्थलो की अनदेखी या उपेक्षा, केवल हमारे जौनपुर की समस्या नहीं है, बल्कि यह दीमक तो पूरे देश के स्मारकों को खा रही है। सरकार द्वारा संस्कृति मंत्रालय को बहुत कम धन आवंटित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप स्मारकों और ऐतिहासिक स्थलों की देखभाल और रखरखाव ठीक से नहीं हो पाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ प्राचीन स्मारक तो सरकारी एजेंसियों की निगरानी के बावजूद गायब हो गए हैं। ‘हॉल ऑफ नेशंस’ (Hall Of Nations) जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त ऐतिहासिक इमारतों को कन्वेंशन सेंटर (convention centre) और पार्किंग स्थल बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया गया। यह सब इसलिए होता है क्योंकि भारत में विरासत भवनों को बहुत कम सुरक्षा दी जाती है। हालाँकि, इस सरकारी लापरवाही का एक फायदा यह मिला है कि अब इन ऐतिहासिक धरोहरों, कला और कलाकृतियों की रक्षा करने के लिए, भारत के आम नागरिक जागरुक होकर आगे कदम बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, भारत की परम्पराओं और इतिहास पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई निजी संग्रहालय भी सामने आए हैं। लेकिन इन सकारात्मक पहलुओं के बावजूद जमीनी स्तर पर अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं।

संदर्भ
https://shorturl.at/uEHOR
https://shorturl.at/boAJR
https://shorturl.at/gnBN3
https://rb.gy/5liq4

 चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के शाही पुल को दर्शाता एक चित्रण (prarang, wikimedia)
2. शाही पुल की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
3. मिर्जापुर जिले की विंध्य पर्वतमाला में आदिमानवों द्वारा बनाए गए चॉक चित्र (Chalk Drawings) और गहरे लाल रंग के चित्र मिलते हैं। को दर्शाता चित्रण (Quora)
4. ताजमहल को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. जौनपुर की अटाला मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
6. जौनपुर की संरक्षित ईमारत के बाहर टिकट काटते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
7. हॉल ऑफ नेशंस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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