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क्या आप जानते हैं कि हमारे जौनपुर में अकेले ‘अमृत सरोवर परियोजना’ के तहत तालाबों के निर्माण कार्य में 10,200 श्रमिकों को रोजगार मिला है। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ, कि जौनपुर के करीब ही, महाराजगंज ब्लॉक मुख्यालय में मनरेगा श्रमिकों को विशाल प्रदर्शन करना पड़ा। इस घटना से यह स्पष्ट हो गया कि देश के करोड़ो परिवारों की रोजी-रोटी चलाने वाली सरकारी योजनाओं की भी अपनी खूबियां और खामियां दोनों हैं।
‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) या संक्षेप में मनरेगा (MGNREGA), 2006 में शुरु की गई एक सरकारी योजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण परिवारों की आजीविका में सुधार करना है। मनरेगा के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वर्ष 100 दिनों के अकुशल कार्य की गारंटी दी जाती है। इस सरकारी योजना का देश के ग्रामीण वर्ग की आय, कृषि उत्पादकता, और आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
द इकोनॉमिक सर्वे (The Economic Survey) के आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में मनरेगा के तहत 6.49 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की थी। इनमें से 6.48 करोड़ परिवारों को सरकार द्वारा रोजगार की पेशकश की गई, हालांकि जिसमें से 5.7 करोड़ परिवारों ने इसका लाभ उठाया। इस योजना के तहत वर्तमान में 15.51 करोड़ सक्रिय श्रमिक नामांकित हैं। हाल के वर्षों में मनरेगा के तहत काम की मांग में भारी वृद्धि देखी गई है। कोरोना महामारी के दौरान, इस योजना के कारण कई ग्रामीण श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिला, जिसकी उन्हें सख्त जरूरत थी। योजना के तहत अर्जित मजदूरी से लॉकडाउन (lockdown) के दौरान श्रमिकों और मजदूरों की आय के नुकसान के एक हिस्से की भरपाई में मदद भी मिली। महामारी के दौरान, मनरेगा ने रिकॉर्ड 11 करोड़ श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया और उनकी आय के नुकसान का 20-80% मुआवजा दिया।
सरकार द्वारा भी मनरेगा के लिए साल दर साल धन बढ़ाकर ही आवंटित किया जा रहा है, जो 2021-22 में 73,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। हालांकि, इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने में कई चुनौतियां भी आ रही हैं। एक बड़ी चुनौती यह है कि लगभग 10% से भी कम परिवार प्रति वर्ष पूरे 100 दिनों का काम पूरा कर पाते हैं। इसके अलावा वेतन भुगतान में भी देरी हो रही है, जिससे श्रमिकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
साथ ही फर्जी जॉब कार्ड (fake job card), भ्रष्टाचार, देर से भुगतान, और असंगत बेरोजगारी भत्ते जैसे कई अन्य मुद्दे भी गरम हैं। जिसके कारण कार्यकर्ता समूहों और संसदीय समितियों द्वारा समय-समय पर ग्रामीण आबादी के लिए प्रति परिवार 100 से 150 दिनों के गारंटीशुदा कार्यदिवस की संख्या बढ़ाने की सिफारिश भी की जा रही है।
हाल ही में मैसैचुसेट्स विश्वविद्यालय (University of Massachusetts) के सहायक प्रोफ़ेसर,कार्तिक मिश्रा, द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि मनरेगा का इच्छित लाभ उन लोगों तक ही नहीं पहुँच पाया है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी।
अध्ययन से पता चलता है कि उन क्षेत्रों में, जहां कुछ बड़े भू स्वामियों के पास अधिकांश भूमि है, जैसे कि मध्य और पूर्वी भारत के कुछ जिलों में, आज भी औपनिवेशिक युग की जमींदार प्रणाली के तहत काम कराया जा रहा है। मनरेगा के कार्यान्वयन के बाद भी ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि काफी धीमी रही है। दूसरी ओर, देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्सों में, जहां भूमि स्वामित्व अधिक समान रूप से वितरित है, वहां पर मनरेगा के बाद ग्रामीण मजदूरी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि शक्तिशाली ज़मींदार मनरेगा के कार्यान्वयन में बाधा डालने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का उपयोग कर रहे हैं, और वह चाहते हैं कि श्रमिक अपनी आजीविका के लिए उन पर निर्भर रहें। इसके अलावा, अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि भूमि का असमान वितरण मनरेगा अधिकारों की मांग करते समय श्रमिकों की सौदेबाजी की शक्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
इसके अलावा एक बड़ी समस्या यह भी है कि मनरेगा का हिस्सा रहे श्रमिकों को लंबी समय से उनकी मजदूरी नहीं मिली है। अकेले हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में ही वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान मनरेगा के तहत लंबित वेतन की कुल राशि 310 करोड़ रुपये है। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आजमगढ़ में 10.16 करोड़ रुपये, उसके बाद सीतापुर में 8.07 करोड़ रुपये, सोनभद्र में 6.08 करोड़ रुपये, और लखीमपुर में 3.85 करोड़ रुपये का बकाया है। मनरेगा योजना के तहत हापुड़, बागपत, गौतम बुद्ध नगर और गाजियाबाद में काम ही नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों सहित जौनपुर के मजदूरों को मनरेगा के तहत लंबित भुगतानों के कारण वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (Union Ministry of Rural Development) के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से श्रमिकों के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। जौनपुर में ही 5.18 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है।
आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 1.36 करोड़ पंजीकृत मनरेगा मजदूर हैं, जिनमें से प्रतिदिन दो से तीन लाख लोगों को ही काम मिल पा रहा है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022-23 में रोजगार योजना के तहत अनिवार्य रूप से केवल 4.98 लाख लोगों को 100 दिनों के लिए काम मिला था। इसके अलावा जिन मजदूरों को काम मिल भी गया, मजदूरी भुगतान में देरी ने उनकी और उनके परिवारों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। कई श्रमिक अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने में असमर्थ रहे हैं, और वैकल्पिक रोजगार की तलाश में खेती या शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हैं। आवश्यक सामग्री के लिए धन की कमी के कारण मनरेगा के तहत निर्माण परियोजनाओं जैसे कार्य ठप पड़े हैं। कुछ श्रमिकों ने अपने वेतन के भुगतान की प्रतीक्षा करते हुए कर्ज भी ले लिया है।
हालांकि, मनरेगा के तहत एक अप्रैल से मजदूरी को बढ़ाकर 230 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है। मजदूरी बढ़ने से प्रदेश के करीब 1 करोड़ 27 लाख से अधिक जॉब कार्ड धारक परिवारों और 3 करोड़ 2 लाख श्रमिकों को फायदा होगा। एक महीने तक लगातार काम करने पर श्रमिक को पहले की तुलना में 510 रुपये अधिक मजदूरी मिलेगी। लेकिन फ़िलहाल तो उन्हें पुरानी मजदूरी ही मिल जाए वही काफी है! हाल के दिनों में तीन माह से मजदूरी नहीं मिलने से नाराज मनरेगा मजदूरों ने जौनपुर के निकट ब्लाक मुख्यालय महराजगंज पर फावड़ा और तसला लेकर प्रदर्शन किया। मजदूरों ने आरोप लगाया कि गांव के ग्राम प्रधान के बेटे, मजदूरी का पैसा किसी दूसरे गांव के चहेते मजदूरों के खाते में भेजकर निकाल लेते हैं। मजदूरों का आरोप है कि केवल 15 से 20 लोगों द्वारा ही मजदूरी का कार्य कराया जाता है, लेकिन सरकार द्वारा आवंटित शेष धन को प्रधान पुत्र 40 से 50 बाहरी मजदूरों के खाते में पैसा भेजकर फर्जी तरीके से निकाल लेते हैं।
इन परिस्थितियों में प्रश्न यह है कि सरकार द्वारा श्रमिकों और मजदूरों के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं का लाभ उन्हें मिल भी रहा है या नहीं, यह सुनिश्चित करना आखिर किसकी जिम्मेदारी है।
संदर्भ
https://shorturl.at/ctCR7
https://shorturl.at/pDKLO
https://rb.gy/rz8sw
https://rb.gy/g0w60
https://rb.gy/fgrcr
https://rb.gy/mb75n
चित्र संदर्भ
1. एक नाली के निर्माण में लगे मनरेगा मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सूखे तालाब से मिट्टी निकालते मनरेगा मजदूरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सड़क बनाते मनरेगा मजदूरों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. पेड़ की छाँव में आराम करते मजदूरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. धरने पर बैठी महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
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