स्वदेशी गायों की नस्लों के संरक्षण में पशु क्लोनिंग साबित होगा मील का पत्थर

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स्वदेशी गायों की नस्लों के संरक्षण में पशु क्लोनिंग साबित होगा मील का पत्थर

हरियाणा राज्य के करनाल शहर में स्थित ‘राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान’ (National Dairy Research Institute (NDRI) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक स्वदेशी गिर गाय की पूंछ की दैहिक कोशिका से एक मादा प्रतिरूपण अर्थात क्लोन (Clone) बछिया के जन्म को मुमकिन कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। दरअसल प्रतिरूपण या क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से अलैंगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है। उत्पादित 'क्लोन' अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णत: समरूप होता है, अर्थात क्लोन के डीएनए (DNA) का हर एक भाग मूल प्रति के बिलकुल समान होता है। गाय की गिर नस्ल मूल रूप से गुजरात राज्य में पाई जाती है। गाय की यह नस्ल अपनी विनम्र प्रकृति, रोग-प्रतिरोध क्षमता, गर्मी के प्रति सहनशीलता और उच्च दूध उत्पादन के लिए लोकप्रिय है। गाय की इस नस्ल की ब्राजील (Brazil), संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), मैक्सिको (Mexico) और वेनेजुएला (Venezuela) आदि देशों में भी उच्च मांग है। इस गाय की क्लोन की गई नवजात बछिया का नाम गंगा रखा गया है। गाय के द्वारा इस बछिया को जन्म देने के लिए वैज्ञानिकों ने दरअसल तीन जनकों का इस्तेमाल किया है। इसके लिए अंडाणु को सहिवाल नस्ल से लिया गया, दैहिक कोशिका गिर नस्ल से ली गई है, जबकि, सरोगेट पशु (Surrogate Mother) एक संकर नस्ल की गाय थी। वैज्ञानिकों का दावा है कि विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी स्वदेशी गायों की नस्लों के संरक्षण में, यह शोध मील का पत्थर साबित होगा। क्लोनिंग के माध्यम से गंगा का निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि क्लोनिंग (Cloning) से देशी गायों के प्रजनन को बढ़ावा मिलेगा, जिनकी संख्या संकरित (Cross–Breeding), उच्च उपज वाली विदेशी नस्लों को अपनाने और उनके उच्च निर्यात से घट गई है।
दुनिया में किसी भी जीव का जन्म, सदैव ही एक महत्वपूर्ण घटना होती है, चाहे फिर वह मनुष्य का हो या किसी पशु का! लेकिन, गंगा का जन्म वाकई में अत्यंत खास और एक मील का पत्थर है। इस वर्ष 16 मार्च को पैदा हुई यह गिर बछिया भारत में गाय का पहला क्लोन है। गंगा के जन्म के समय उसका वजन 32 किलो था और यह व्यवहारिक, शारीरिक, आनुवंशिक और अन्य सभी परीक्षणों में सफल और अनुकूल रही है। और अब इस सफल परीक्षण के पश्चात क्लोनिंग तकनीक में भारतीय दुग्ध किसानों के लिए, अधिक दूध देने वाली स्वदेशी मवेशियों की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता नजर आ रही है।
क्लोनिंग के लिए, वैज्ञानिक अंडाणु की डीएनए संरचना को बदलते हैं और फिर इसे किसी भ्रूण में परिपक्व करते हैं। यह प्रक्रिया वैज्ञानिकों को क्लोन किए गए जानवर में होने वाले गुण निर्धारित करने की अनुमति देती है। इस प्रकार की क्लोनिंग के द्वारा वैज्ञानिकों का उद्देश्य बछिया को कठिन जलवायु परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाना और अधिक दूध देने में सक्षम करना है। गंगा के लिए निषेचित अंडाणु को नौ दिनों तक एक भ्रूण में परिपक्व किया गया और फिर इसके विकास के लिए एक सरोगेट पशु के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस सफलता के बाद, अब वैज्ञानिक भारत में व्यावसायिक क्लोनिंग का मार्ग प्रशस्त करने के लिए नीतिगत योजना भी तैयार कर रहे हैं। यह उपलब्धि हमें भारत में मवेशियों के क्लोनिंग के लिए अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ाने और शुरू करने में सहायता करेगी। विकसित तकनीक, गुणवत्ता वाले स्वदेशी डेयरी पशुओं की नस्लों की बढ़ोतरी में हमारे वैज्ञानिक प्रयासों में नए आयाम लाएगी, और इससे अंततः किसानों को लाभ होगा। 25 अप्रैल को, गंगा की मुलाकात भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी करवाई गई थी। इस मौके पे राष्ट्रपति जी ने अधिक दूध देने वाली भैंसों और गायों के क्लोन बनाने की तकनीक को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान को बधाई भी दी। हालांकि गंगा के जन्म से पहले भी भारत में कई अन्य क्लोन बछड़े एवं बछियों को जन्म दिया गया है। 6 फरवरी 2009 को, इसी संस्थान के वैज्ञानिकों ने दुनिया को पहला क्लोन बछड़ा दिया था, लेकिन वह केवल पांच-छह दिन ही जीवित रह सका था। किंतु , वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी। उनका प्रयास 6 जून 2009 को फिर से फलीभूत हुआ, जब एक गरिमा नाम की मादा क्लोन बछिया पैदा हुई थी। वह दो साल से अधिक समय तक जीवित रही थी। बाद में वैज्ञानिकों ने 22 अगस्त 2010 को गरिमा-2 नाम की एक अन्य बछिया का जन्म मुमकिन किया था, जिससे अब तक सात सामान्य बछड़े पैदा हो चुके हैं। फिर, वैज्ञानिकों ने 26 अगस्त 2010 को श्रेष्ठ नामक पहला नर बछड़ा भी पैदा किया था, जिसके वीर्य का उपयोग आज अच्छे जननद्रव्य के गुणन के लिए किया जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर, सहायक प्रजनन तकनीकों (Assisted Reproductive Technology) के अनुप्रयोग को बेहतर जननद्रव्य के गुणन के लिए व्यावहारिक रूप से व्यवहार्य माना गया है। इस प्रौद्योगिकी के कारण, पशु क्लोनिंग अब जानवरों के व्यापक प्रजनन और लुप्तप्राय नस्लों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इसी वर्ष चीनी वैज्ञानिकों ने भी सफलतापूर्वक तीन “सुपर गायों (Super Cows)” का क्लोन तैयार किया है। ये गायें उच्च मात्रा में दूध का उत्पादन कर सकती हैं। इसे चीन के डेयरी उद्योग के लिए आयातित नस्लों पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए एक सफलता के रूप में देखा जा रहा है। ‘नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल एंड फॉरेस्ट्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Northwest University of Agricultural and Forestry Science and Technology) के वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रयोग किया गया है। सुपर गायों को नैदरलैंड्स (Netherlands) की मूल होल्स्टीन फ्रिज़ियन (Holstein Friesian) नस्ल की अत्यधिक उत्पादक गायों से क्लोन किया गया है जो प्रति वर्ष 18 टन दूध या अपने संपूर्ण जीवनकाल में 100 टन दूध का उत्पादन करने में सक्षम होती हैं। इन वैज्ञानिकों ने अत्यधिक उत्पादक गायों के कान की कोशिकाओं से 120 क्लोन भ्रूण बनाए और उन्हें सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया। चीन के ये वैज्ञानिक विदेशी डेयरी गायों पर चीन की निर्भरता से निपटने के लिए एक आधार के रूप में 1,000 से अधिक सुपर गायों का एक झुंड बनाने के लिए योजना बना रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) सहित कई देशों में, उच्च दूध उत्पादन या रोग प्रतिरोध जैसे वांछित लक्षणों को लाने के लिए किसान पारंपरिक जानवरों के साथ क्लोन पैदा करते हैं। चीन ने भी हाल के वर्षों में पशु क्लोनिंग में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और अब भारत भी इस राह पर अग्रसर है।

संदर्भ
https://bit.ly/3oOZhah
https://bit.ly/3WQCEiw
https://bit.ly/3qaZJzZ
https://bit.ly/3WZlEqt
https://bit.ly/3qjML3d

 चित्र संदर्भ
1. झुंड में गायों को दर्शाता एक चित्रण (PickPik)
2. गिर गाय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. दो गायों के नवजात बछड़ों को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. गाय का दूध दुहते भारतीय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)