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अत्यंत आवश्यक है तेजी से बढ़ते हुए भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोकना

जौनपुर

 26-05-2023 09:57 AM
मरुस्थल

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। कहा जाता है कि यहां की उपजाऊ मिट्टी सोना उपजाती है। उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ हमारा देश थार जैसे विशाल रेगिस्तान का घर भी है। किंतु अब लाखों वर्षों से, जलवायु परिवर्तन के कारण देश भर की उपजाऊ मिट्टी भी रेगिस्तानी मिट्टी में परिवर्तित होती जा रही है। तेजी से बढ़ती गर्मी की लहरें, अनियमित वर्षा और जल संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग मरुस्थलीकरण में वृद्धि कामुख्य कारणहैं।
‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’(Indian Space Research Organisation (ISRO), अहमदाबाद द्वारा पिछले साल भारत के मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण के संदर्भ में आंकड़े प्रकाशित किए गए थे।इन आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश में भूमि क्षरण 2011-13 में 96.32 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2018-19 में 97.84 मिलियन हेक्टेयर हो गया है।भूमि क्षरण के अलावा, भूमि मरुस्थलीकरण भी बढ़ गया है, क्योंकि इसी अवधि में 83.69 मिलियन हेक्टेयर भूमि मरुस्थलीकरण से गुजरी थी। वर्ष 2018-19 में, राजस्थान अधिकतम मरुस्थलीकरण वाला राज्य था।इसके बाद महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान था।देश के 28 राज्यों में से 26 राज्यों में भूमि मरुस्थलीकरण में वृद्धि देखी गई है।केवल इन तीन राज्यों में ही लगभग 45 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर हो गईहै। हालांकि सरकार द्वारा मरुस्थलीय भूमि को बहाल करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय भी किए जा रहे हैं।इन उपायों को सूचीबद्ध करते हुए, पर्यावरण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में बताया कि ‘राष्ट्रीय वनीकरण और पारिस्थितिकी-विकास समिति’(National Afforestation and Eco-development Board (NAEB) द्वारा लोगों की भागीदारी के साथ उजड़े हुए जंगलों और आसपास के क्षेत्रों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिए ‘राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम’ (National Afforestation Programme) लागू किया जा रहा है।इस कार्यक्रम के तहत, पिछले चार वर्षों के दौरान 37,110 हेक्टेयर क्षेत्र के प्रबंधन के लिए राज्यों को 203.95 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी। ‘हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Himalayan Studies (NMHS) के तहत भूमिक्षरण को रोकने हेतु समुदाय आधारित वृक्षारोपण के जरिए भूमिसुधार, वनीकरण के जरिए भूमि को हरा-भरा करने,और जल प्रबंधन के लिए वृक्षारोपण परियोजनाएं लाई गई हैं। ‘ग्रीन इंडिया मिशन’ (Green India Mission) के तहत, जिसका लक्ष्य भारत के वन और गैर-वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण के माध्यम से वन क्षेत्र में वृद्धि, पुर्नस्थापना और रक्षा करना है, 2015-16 से अब तक 15 राज्यों को 594.28 करोड़ रुपये जारी किए जा चुकेहैं। आज इन उपायों की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि भारत कृषि योग्य, उपजाऊ और जंगलों की भूमि के मरुस्थलीकरण में परिवर्तन का सामना कर रहा है।आज देश में लगभग 30% भूमि क्षेत्र का क्षरण हुआ है; और विडंबना यह है कि जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति सबसे सफल रही है, वे क्षेत्र ही अत्यधिक भूमि क्षरण के लिए सबसे ज्यादा प्रवण हैं। हालांकि, भूमि का मरुस्थलीकरण एक प्राकृतिक भूवैज्ञानिक प्रक्रिया है, लेकिन इसे मानव गतिविधियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दिया है। इसलिए, वर्तमान में भूमि मरुस्थलीकरण में तेजी से वृद्धि हो रही है।
अधिकांश मानवीय गतिविधियाँ भूमि मरुस्थलीकरण का कारण बन सकती हैं, खासकर बड़े क्षेत्रों में। भारत में भूमि का दुरुपयोग और अतिचारणबढ़ते मरुस्थलीकरण के दो प्राथमिक कारण हैं। कुछ कृषि पद्धतियाँ, गलत भूमि उपयोग प्रथाएं और वनों की कटाई मरुस्थलीकरण के कुछ सहायक कारक हैं। साथ ही,औद्योगीकरण और शहरीकरण पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर भूमिक्षरण का कारण बनते जा रहे हैं। इसके अलावा वर्तमान में भूमि को जलवायु परिवर्तन से दीर्घकालिक और यहां तक कि अपरिवर्तनीय खतरा उत्पन्न हो रहा है। भूमि क्षरण मिट्टी से पोषण करने की क्षमता को कम कर देता है, क्योंकि इससे मिट्टी में पानी को बनाए रखने की क्षमता समाप्त होजाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, मरुस्थलीकरण और गर्मी की लहरें एक दूसरे की पूरक हैं। गर्मी की लहरें और विशेष रूप से सूखे जैसी स्थितियों में मरुस्थलीकरण में वृद्धि होती है। भारत में 11% मरुस्थलीकरण कम वर्षा के कारण और 9% वनस्पति क्षरण के कारण हुआ है। भारत में लगभग 5% मरुस्थलीकरण तो केवल हवा के कटाव के कारण हुआहै।
क्या आप जानते है कि देश में भूमिक्षरण और मरुस्थलीकरण की आर्थिक लागत 2014 में ही लगभग 3 लाख करोड़ रुपये अर्थातहमारे सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% होने का अनुमान लगाया गया था।साथ ही बताया गया था कि भविष्य में यह लागत बढ़ती रहेगी। तो अनुमान लगाइए कि भारत में आज जिस दर से मरुस्थलीकरण बढ़ रहा है उस दर से यह लागत कितनी होगी? मरुस्थलीकरण में वृद्धि न केवल पर्यावरण बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए, ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (Centre for Science and Environment (CSE) द्वारा भूमि क्षरण पर किए गए एक अध्ययन में पता चला कि झारखंड में भूमि की उत्पादकता तेजी से घट रही है। इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, फिलीपींस (International Rice Research Institute, Philippines) और जापान इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल साइंसेज (Japan International Research Centre for Agricultural Sciences) द्वारा 2006 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि गंभीर सूखे के कारण, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में किसानों को लगभग 400 मिलियन अमरीकी डालर का नुकसान उठाना पड़ा और इन्हीं तीन राज्यों में लगभग 13 मिलियन लोग, जो गरीबी रेखा के ठीक ऊपर रहते थे, सूखे से होने वाली आय हानि के कारण इसके नीचे आ गए।
देश में मरुस्थलीकरण को रोकने के प्रयास दशकों सेचल रहे हैं।हालांकि, इसके कारकों ने भी गति प्राप्त की है। भारत 2030 तक भूमि क्षरणऔर मरुस्थलीकरणसे निपटने के लिए प्रतिबद्ध है, जो एक सतत विकास लक्ष्यभी है। भारतने1994 में ‘मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’(UN Convention to Combat Desertification (UNCCD) परहस्ताक्षर भी किए है, जिसे 1996में मंजूर किया गया था। इसका 14वां सम्मेलन2019 में दिल्ली में आयोजित किया गया था, जहाँ भारत ने 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुर्नस्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई थी। जबकि, 2015 में‘पेरिस जलवायु सम्मेलन’ (Paris Climate Conference) में देश ने 21 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुर्नस्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई थी। साथ ही,हमारादेशकमांड क्षेत्र विकास योजना(1970)(Command Area Development Plan),रेगिस्तान विकास कार्यक्रम(1995), राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम(2000),और भारत के राष्ट्रीय हरित मिशन(2014)जैसे कार्यक्रमों को भी लागू कर रहा है, जो जलवायु कार्य योजना का एक हिस्सा है। भारत के प्रयासों के कारण‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ के ही एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2018-19 में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण में कमी आई थी।शायद, यहएक अच्छी खबर है।किंतु दुर्भाग्य से, मरुस्थलीकरण की गति इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की गति से तेज है।इसलिए ,हमें आज मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए आगे बढ़ना है।

संदर्भ
https://bit.ly/42SRPK1
https://bit.ly/3IrUGRW
https://bit.ly/3IueBjq

 चित्र संदर्भ
1. सूखे रेगिस्तान में हरियाली को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. अफ्रीका में माली राज्य के रेगिस्तानी साहेल क्षेत्र को दर्शाता चित्रण (flickr)
3. रेगिस्तान में पानी भरकर ले जाती महिला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. बढ़ते मरुस्थलीकरण की उपग्रह छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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