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जब भी किसी शहर की विरासत के बारे में बात की जाती है तो अक्सर हम विरासत के संदर्भ में आमतौर पर ऐतिहासिक स्मारकों, प्रसिद्ध लोगों की मूर्तियों या विशिष्ट स्थापत्य कला से संबंधित इमारतों के बारे में सोचते हैं। लेकिन, शहरी विरासत में एक और ऐसी महत्त्वपूर्ण सजीव विरासत है, जिसमें हमारे कस्बों और शहरों के वे पेड़ शामिल होते हैं, जो सदियों से हमारे बीच मौजूद हैं। ये विरासत के पेड़ विभिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं, जैसे कि सड़कों के किनारे, उद्यानों में, जल निकायों के किनारे, जंगली पेड़ों के बीच, धार्मिक स्थानों पर और यहां तक कि निजी संपत्ति में भी, यह सजीव विरासत हो सकती है। विरासत के पेड़ अपने जैविक मूल्य के लिए तो महत्वपूर्ण होते ही हैं, लेकिन अपने सांस्कृतिक मूल्य के लिए भी ये महत्वपूर्ण हैं। विरासत के पेड़ ऐतिहासिक स्मृतियों और कलाकृतियों के रूप में, निवासियों को अपने अतीत से रूबरू कराते हैं और शहरों में अपनेपन की भावना प्रदान करते है।
हालांकि, एक पेड़ को विरासत वृक्ष के रूप में नामित करने के लिए कुछ मापदंड होते हैं। ‘सीपीआर पर्यावरण शिक्षा केंद्र’ (CPR Environmental Education Centre) के अनुसार, लगभग सोलह इंच या उससे अधिक इंच व्यास वाले किसी पेड़ को उसके ऐतिहासिक, पर्यावरणीय और सौंदर्यवादी मूल्य के आधार पर एक विरासत वृक्ष के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि, किसी भी विरासत वृक्ष के लिए आवश्यक मापदंड वाले गुण भौतिक और अभौतिक दोनों हो सकते हैं। भौतिक विशेषताओं में वृक्ष की आयु, रूप या आकार शामिल हैं। इसके अलावा, एक विरासत वृक्ष कोई दुर्लभ प्रजाति का पेड़ अथवा कोई विलुप्त होने वाली प्रजाति का पेड़ भी हो सकता है। जबकि, अभौतिक मानदंड, सांस्कृतिक और सौंदर्य संबंधी पहलुओं से संबंधित होते हैं।
किसी पेड़ का किसी व्यक्ति, घटना या स्थान के साथ ऐतिहासिक या सांस्कृतिक संबंध भी एक वृक्ष को एक विरासत वृक्ष बना सकता है। यह किसी मिथक या लोककथा से जुड़ा पेड़ भी हो सकता है।
भारत में विरासत वृक्षों की घटती संख्या से निपटने के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे कई राज्यों ने दुर्गम वृक्षों को विरासत वृक्ष के रूप में घोषित करने की पहल को अपनाया है। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में भी सरकार के, 100 साल से अधिक उम्र वाले पेड़ों को विरासत वृक्ष घोषित किये जाने के आदेश के बाद, प्रभागीय वन अधिकारियों द्वारा हमारे जौनपुर जिले में 26 वृद्ध पेड़ों को चिन्हित कर इनकी सूची तैयार की गई है। इन पेड़ों में 12 बरगद, 12 पीपल और 2 खीरनी के वृक्ष शामिल हैं। जिले में मछलीशहर, मड़ियाहूं और जलालपुर तहसील में सर्वाधिक पांच वृक्ष शतायु से अधिक हैं। हमारे जिले में दो वृक्ष तो दो सौ वर्ष से अधिक आयु के हैं। सुजानगंज क्षेत्र के चांदपुर और मछलीशहर के ब्रह्म स्थान पर स्थित बरगद दो सौ साल पुराने हैं। साथ ही, जिले के केराकत में मां चंडी स्थल पर एक बरगद का पेड़ 13 मीटर गोलाई वाला है। जिले में अधिकांश विरासत के पेड़ धार्मिक स्थलों पर स्थित हैं।
हालांकि यदि सूत्रों की माने तो वन विभाग ने जिले के विरासत वृक्षों का ठीक से चिन्हीकरण नहीं किया है, अन्यथा जिले में ऐसे कई पेड़ हैं जिनकी उम्र सौ साल से अधिक है। अगर वन विभाग फिर से इन पेड़ों की गणना करे तो इनकी संख्या बढ़ सकती है। आज इन वृक्षों के संरक्षण की बहुत आवश्यकता है। देश के पर्यावरण मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2016-2019 की अवधि में 1.07 मिलियन से अधिक पेड़ काटे गए थे, और राज्य काटे गए पेड़ों की संख्या में देश में दूसरे स्थान पर है। इसी अवधि में तेलंगाना राज्य में लगभग 1.2 मिलियन पेड़ काटे गए थे। किसी पेड़ को विरासत वृक्ष के रूप में घोषित करना, पेड़ों के संरक्षण, प्रलेखन और सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है। इस पहल का लक्ष्य वृक्षों को बचाने के साथ–साथ उन वृक्षों पर आश्रित जीवों, कीड़ों, तितलियों और पक्षियों की रक्षा करने का भी है। उम्मीद है कि भविष्य में, यह पहल आम नागरिकों को वृक्षों के संरक्षण आंदोलन से जोड़ने में भी मदद करेगी।
शहरी क्षेत्रों में, विरासत के पेड़ प्रदूषणकारी गैसों को अवशोषित करते हैं, जल निकायों के साथ मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और जीव जंतुओं को आवास प्रदान करते हैं। पेड़ मिट्टी को स्थिर करते हुए मरुस्थलीकरण को रोकते हैं तथा हवा के बहाव को नियंत्रित करते है। ये पेड़ हमें छाया प्रदान करते हैं। साथ ही, सांस्कृतिक और पवित्र होने के साथ ही, वे हमारे लिए भोजन, दवा और कच्चे माल का स्रोत भी हैं।
विरासत वृक्ष, पर्यटन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। कई प्रकृति प्रेमी शहरों में अक्सर विरासत वृक्षों को देखने और समझने के लिए आते है। विरासत वृक्ष शहरी परिदृश्य में अन्य पेड़ों के महत्व के बारे में भी जागरूकता पैदा करने में भूमिका निभाते हैं।
सरकार का मानना है कि ऐसी परियोजनाओं में लोगों की भागीदारी महत्वपूर्ण है; क्योंकि इससे लोगों में जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना पैदा होती है। साथ ही, पुराने और देशी पेड़ों के रोपण और संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विदेशी पेड़ तेज तूफान और बारिश के दौरान नष्ट हो जाते है।
हालांकि आज चिंता का विषय कुछ और ही है। हाल ही में, हमारे जिले जौनपुर में फोरलेन सड़क (Four lane Road) के निर्माण के दौरान काटे गए वृक्षों के अनुपात में वृक्षारोपण की योजना असफल हो गई है। दरअसल जौनपुर से भदोही के बीच फोरलेन सड़क की लंबाई 38.23 किलोमीटर हो रही है। जिसके लिए हमारे जिले से होकर जाने वाले लखनऊ-वाराणसी फोरलेन राजमार्ग के निर्माण के दौरान वन विभाग द्वारा लगभग 5280 पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी, किंतु अब बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई होने से राजमार्ग वीरान हो गए हैं। हालांकि, इस नुकसान से निपटने के लिए 70000 पौधे लगाए जाने थे। परंतु अब वन विभाग इस नुकसान की भरपाई नहीं कर पा रहा है। वैसे भी, नई लगाई गई पौध और हर पहलू में सकारात्मक प्रभाव देते विरासत वृक्षों के बीच ज़मीन आसमान का फ़रक है।
अतः राज्य सरकार को इस परियोजना के लिए एक समिति नियुक्त करनी चाहिए जिसमें प्रत्येक पेड़ की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा करने के लिए वन अधिकारी, पर्यावरणविद्, वनस्पति विज्ञानी और पक्षी–प्राणी विज्ञानी शामिल हों।
संदर्भ
https://bit.ly/3BwYqh8
https://bit.ly/3pN618W
https://bit.ly/432OHej
https://bit.ly/3BBYNHv
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के शाही किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. चंडीगढ़ के विरासत वृक्ष को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. बीच सड़क में विरासत वृक्ष को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. संयुक्त राज्य अमेरिका के ओरेगन गार्डन में विरासत वृक्ष को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सड़क किनारे काटे गए पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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