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हमारे देश भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा के तटीय शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, जो श्री कृष्ण के हजारों नामों में से एक है, को समर्पित है, जो हिंदू धर्म के सर्वोच्च देवत्व की त्रिमूर्ति में से एक, विष्णु भगवान का एक रूप हैं। वास्तव में, जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ ब्रह्मांड के स्वामी होता है। मंदिर में मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ भी मौजूद हैं। अवंती राज्य के सोमवंश के राजा इंद्रद्युम्न द्वारा पुरी में भगवान जगन्नाथ का मुख्य मंदिर बनवाया गया था। जबकि, वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण दसवीं शताब्दी के बाद से किया गया है। मुख्य जगन्नाथ मंदिर को छोड़कर परिसर में पहले से मौजूद मंदिरों के स्थान पर शेष मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। पुनर्निर्माण का यह कार्य पूर्वी गंगा वंश के पहले राजा अनंत वर्मन चोडगंगा द्वारा शुरू किया गया था। पुरी का जगन्नाथ मंदिर अपनी वार्षिक रथ यात्रा या रथ उत्सव के लिए प्रसिद्ध है।
इस रथ यात्रा में मंदिर के तीन प्रमुख देवताओं को विशाल और सुंदर रूप से सजाए गए रथों पर खींचा जाता है। जगन्नाथ मंदिर की एक खास बात यह है कि, अधिकांश हिंदू मंदिरों में पाई जाने वाली पत्थर या धातु की मूर्तियों के विपरीत, इस मंदिर में जगन्नाथ भगवान की मूर्ति लकड़ी से बनी है। और प्रत्येक बारह वर्षों में इस प्रतिमा को एक सटीक प्रतिकृति द्वारा औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है। कुछ दंतकथाओं के अनुसार, पुरी के मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर भगवान श्रीकृष्ण का हृदय वास करता है। और जिस सामग्री से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को बनाया जाता है, वह कृष्ण के हृदय को नुकसान पहुंचाती है, इसलिए हर बारह वर्षों में इस प्रतिमा को श्रद्धा पूर्वक बदलना पड़ता है।
भगवान जगन्नाथ का यह प्रसिद्ध मंदिर भारत के चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर सभी हिंदुओं और विशेष रूप से वैष्णव परंपराओं में विश्वास रखने वाले भक्तों के लिए पवित्र धार्मिक स्थल है। कई महान वैष्णव संत, जैसे रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य और रामानंद इस मंदिर से जुड़े हुए थे। रामानुजाचार्य ने मंदिर के पास एमार मठ की स्थापना की थी। साथ ही, आदिशंकराचार्य ने मंदिर के पास गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। यह मंदिर गौड़ीय वैष्णववाद के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि गौड़ीय वैष्णववाद के संस्थापक ‘चैतन्य महाप्रभु’ भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति से परिपूर्ण थे, और कई वर्षों तक पुरी में रहे थे।
वैसे तो भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर में साल के 12 महीने दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती है किंतु कुछ विशिष्ट अवसरों पर विशेष रुप से नववर्ष के दिन पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए लाखों भक्तों की कतार लगी रहती है। धार्मिक स्थलों पर कोविड–19 महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों को पिछले साल हटा दिया गया है, जिसके बाद इस मंदिर के साथ-साथ भारत के सभी प्रमुख मंदिरों में भारी भीड़ देखी जा रही है। इस वर्ष उत्तराखंड में भी चार धाम यात्रा के लिए बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है। पिछले साल 47 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने चार धाम मंदिरों की यात्रा की थी और इस साल यह संख्या और भी अधिक बढ़ने की संभावना है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि अधिक संख्या में किसी स्थान, विशेष रूप से मंदिरों में तीर्थयात्री आने से भगदड़ का खतरा बढ़ जाता है। अधिकांश बड़े मंदिरों में धार्मिक समारोह और विशिष्ट आयोजनों के दौरान भगदड़ की ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। मंदिर परिसर के छोटे होने पर या मंदिरों के प्रवेश द्वार और निकास द्वार के छोटे होने के कारण अत्यधिक भीड़ जमा होने पर इस प्रकार की घटनाएं घटित हो जाती हैं। भगदड़ होने की स्थिति में लोगों में डर व्याप्त हो जाता है कुछ लोग गिर जाते हैं या वही बेहोश हो जाते हैं और कभी-कभी तो गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं। कभी-कभी स्थिति इतनी भयंकर हो जाती है कि भगदड़ के कारण कुछ श्रद्धालुओं की दबकर मृत्यु भी हो जाती है ।
पुरी मंदिर में भी 1993, 2006, 2013 आदि वर्षों में भगदड़ की ऐसी ही घटनाएं हुई हैं।
इसी वजह से पुरी मंदिर में तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या को प्रबंधित करने के लिए हाल ही में कई उपाय भी किए गए हैं। इनमें, मंदिर के अन्य द्वारों से बाहर निकलने की अनुमति देते हुए सिंह द्वार से बैरिकेड प्रवेश (Barricade Entry); मंदिर के मुख्य द्वार पर विनियमित प्रवेश; सीसीटीवी (CCTV) कैमरों के माध्यम से निगरानी; मंदिर के अंदर और बाहर अतिरिक्त सुरक्षा कर्मियों की तैनाती आदि उपाय शामिल हैं।
हालांकि सवाल यह है कि क्या ये उपाय देश के दूरस्थ हिस्सों से यात्रा करके मंदिर आने वाले उपासकों के लिए शांतिपूर्ण दर्शन सुनिश्चित करने में सक्षम हैं? साथ ही, मंदिर में तीर्थयात्रियों की अत्यधिक भीड़ की अवधि के दौरान संभावित भगदड़ के जोखिम को कम करने के लिए किन अन्य उपायों की आवश्यकता है? यह पहलू महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि भक्तों के लिए, भगवान के दर्शन महत्वपूर्ण है। इसलिए, उचित तरीकों से दर्शन सुनिश्चित करने हेतु कोई भी कसर नहीं होनी चाहिए। दैनिक आधार पर आगंतुकों की संख्या का अनुमान न होने के कारण यह प्रबंधन को और भी चुनौतीपूर्ण बना देता है। अतः यह मंदिर प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह व्यावहारिक प्रबंधन आवश्यकता के साथ सुलभ दर्शन के लिए सामान्य प्राथमिकताओं को और अधिक रचनात्मक रूप से मिश्रित करे।
पवित्र पुरी शहर के पुनर्विकास के लिए ओडिशा सरकार के प्रयास सराहना के पात्र हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में जगन्नाथ दर्शन यात्रा, तीर्थयात्रियों के लिए पूरी तरह से एक अलग अनुभव होगा । सरकार ने संरचनात्मक विकास के साथ ही तीर्थ यात्रा के प्रबंधन की ओर भी ध्यान दिया है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर ओडिशा में सबसे प्रसिद्ध है; अतः भीड़ प्रबंधन के लिए मंदिर प्रशासन एवं सरकार द्वारा उठाए गए कदम राज्य एवं देश के अन्य मंदिरों के लिए उदाहरण स्थापित करेंगे।
संदर्भ
https://bit.ly/3Bexx1C
https://bit.ly/3LRLB67
https://bit.ly/3LRaL4K
चित्र संदर्भ
1. जगन्नाथ पुरी मंदिर में उमड़ी भीड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. पुरी में भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पुरी में रथयात्रा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बैजनाथ यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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