सद्भावना पुल के पास स्थित चायनीज़ की दुकाने और उनके बोर्ड जिनपर चिकन से सम्बन्धित पचासों प्रकार के पकवान और उनके भाव लिखे हैं जौनपुर जिले के पहले मुर्गे पर आधारित नाश्ताघर थें। पहले जौनपुर में मुर्गा आदि का सेवन घरों आदि स्थानों पर ही किया जाता था तथा मुर्गा परोसने वाले होटल भी कम ही थें। 2007-8 के मध्य हुये इस क्रान्ति ने यहाँ पर मुर्गा पालन में बड़ी भूमिका का निर्वहन किया। वर्तमान काल में जौनपुर जिले भर में हजारों चायनीज, व मांसाहार नाश्ताघर व होटल बनाये जा चुके हैं। यहाँ पर बड़ी संख्या में मुर्गों के माँस की माँग है जिस कारण यहाँ पर मुर्गा पालन एक बड़े व्यापार के रूप में उभर कर सामने आया है। मुर्गों में मुख्य रूप से दो प्राकार की जातियाँ पायी जाती हैं 1- ब्वायलर तथा 2- देशी। ब्वायलर मुर्गा व्यापार के आधार पर ही उत्पादित किया जाता है तथा ये मात्र 40 दिन में काटने योग्य हो जाते हैं वहीं देशी मुर्गा पालने के लिये व छोटी मात्रा में व्यापार व खाने के लिये पाले जाते हैं। देशी मुर्गे तैयार होने में करीब 2.5 महीनों का समय लेते हैं। यदि यहाँ पर स्थित मुर्गों के संख्या में देखा जाये तो कुल 3,68,674 ब्वायलर मुर्गे पाये जाते हैं। जौनपुर में कुल 10,839 देशी मुर्गे पाये जाते हैं। यहाँ पर मुर्गा पालन में फायदा बड़ी संख्या में है परन्तु यहाँ पर मुर्गी पालन व्यापार के सीमित होने का प्रमुख कारण है प्रचार के प्रति उदासीनता। सही प्रचार के जरिये यहाँ पर मुर्गीपालन का व्यापार अर्श पर पहुँच सकता है तथा यह बड़ी संख्या में रोजगार भी उपलब्ध करा सकती है। 1. सी डैप जौनपुर 2. एन इकोनॉमिक एनालिसिस ऑफ ब्रायलर प्रोडक्शन इन जौनपुर डिस्ट्रिक्ट ऑफ उत्तर प्रदेश, इंडिया, मास्टर थीसिस, आलोक कुमार सिंह, बनारस हिंदू युनिवर्सिटी
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