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छत्रपति शिवाजी और उनकी सेना के सबसे बहादुर योद्धा, सेनापति तानाजी मालुसरे की वीरगाथाएं हम सभी ने सुनी हैं। सन 1670 के फ़रवरी माह में शिवाजी का आदेश पाकर अपने साम्राज्य को औरंगजेब के उत्पीड़न से मुक्त कराने के लिए, तानाजी ने औरंगजेब के किले पर ही धावा बोल दिया था। किले के ऊपर भारी पहरा था, और दीवारों पर चढ़ना असंभव प्रतीत हो रहा था। माना जाता है, तब बुद्धिमान तानाजी ने एक गज़ब की चाल चली, और एक मोटी रस्सी को किले की दिवार पर चिपकी एक विशाल छिपकली के पेट पर बांध दिया और उसकी सहायता से किले के भीतर, सही सलामत प्रवेश कर दिया! लेकिन दुर्भाग्य से यशवंती नामक, जिस विशाल छिपकली ने तानाजी की चढ़ाई में मदद करके उनकी जान बचाई, आज वही मॉनिटर छिपकली (Monitor Lizard) अपनी जान बचाते-बचाते फिर रही है।
मॉनिटर छिपकली अपने बड़े आकार और मजबूत पकड़ के लिए जानी जाती हैं। हालांकि लोग इन्हें देखकर डरते हैं, किंतु वास्तव में इनसे डरने का कोई भी ठोस कारण नहीं है। देखा जाए तो सरीसृपों के बजाय, मनुष्यों ने इन्हें अधिक नुकसान पहुँचाया है। मॉनिटर छिपकलियों से संबंधित कई मिथकों और अंधविश्वासों ने इनके और मनुष्यों के बीच संघर्ष तथा अवैध तस्करी को बढ़ावा दिया है।
भारत में मॉनिटर छिपकलियों की चार प्रजातियां पाई जाती हैं:
१. बंगाल मॉनिटर: बंगाल मॉनिटर चारों छिपकलियों में सबसे आम प्रजाति मानी जाती है। इसे पूरे भारत में विभिन्न आवासों जैसे रेगिस्तान से लेकर गीले सदाबहार पैच और यहां तक कि घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। बंगाल मॉनिटर, निपुण पर्वतारोही होती हैं, जो पेड़ों और सीधी सतह पर आसानी से चढ़ जाती है।
२. एशियाई जल मॉनिटर (Asian Water Monitor): एशियाई जल मॉनिटर छिपकलियों की चार प्रजातियों में सबसे बड़ी होती है, जिसकी •लंबाई 2 मीटर तक हो सकती है। भारत में, इसकी दो उप-प्रजातियां पाई जाती हैं-
•अंडमान मॉनिटर (Andaman Monitor) जो अंडमान द्वीप समूह में पाई जाती है।
दक्षिण पूर्व एशियाई जल मॉनिटर (Southeast Asian Water Monitor), जो पूर्वोत्तर भारत और निकोबार द्वीप समूह में रहती हैं।
३. डेजर्ट मॉनिटर (Desert Monitor): डेजर्ट मॉनिटर की तीन ज्ञात उप-प्रजातियां होती हैं-
•ग्रे मॉनिटर (Gray Monitor)
•कैस्पियन मॉनिटर (Caspian Monitor)
•इंडियन डेजर्ट मॉनिटर (Indian Desert Monitor.)
•इंडियन डेजर्ट मॉनिटर, राजस्थान में थार रेगिस्तान में गर्म क्षेत्र के हिसाब से अनुकूलित होती है। यह भारत की सबसे छोटी मॉनिटर छिपकली है, जिसकी लंबाई एक मीटर से भी कम होती है। ये मुख्य रूप से अकशेरुकी जीवों (Invertebrates) का भोजन करती हैं, लेकिन इन्हे छोटी छिपकलियों और स्तनधारियों का सेवन करना भी पसंद होता हैं।
४. येलो मॉनिटर (Yellow Monitor): येलो मॉनिटर मुख्य रूप से पूर्वी भारत (खासकर पश्चिम बंगाल की आर्द्रभूमि और कृषि क्षेत्रों के पास) में पाई जाती है। बंगाल मॉनिटर के विपरीत, यह अपने छोटे पंजों के कारण पेड़ों पर नहीं चढ़ पाती है। दुर्भाग्य से, मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में पाई जाने वाली येलो मॉनिटर, सबसे कम देखी जाने वाली प्रजाति है। यह गीले क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि क्षेत्रों और आर्द्रभूमि में निवास करती है। जागरूकता और अध्ययन की कमी के कारण, इस प्रजाति को मनुष्यों द्वारा भारी नुकसान पहुँचाया जाता है।
अधिकांश सरीसृप आमतौर पर एकान्त प्रिय होते हैं और केवल भोजन तथा पानी की तलाश में ही शहरी क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। साथ ही ये कृंतक और कीट आबादी को नियंत्रित करने में भी लाभकारी भूमिका निभाते हैं। छिपकलियों की इन सभी चार प्रजातियों में बंगाल मॉनिटर सबसे व्यापक रूप से देखी जा सकती है। लगभग 1.75 मीटर लंबी, बंगाल मॉनिटर, भारत के विभिन्न हिस्सों में पाई जा सकती है, जिसमें रेगिस्तान, गीले सदाबहार क्षेत्र और यहां तक कि आगरा तथा दिल्ली-एनसीआर (Delhi-Ncr) जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्र भी शामिल हैं।
अपनी विविधता के बावजूद, मॉनिटर छिपकलियों को कई गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उनकी खाल और शरीर के अंगों का शिकार भी शामिल है। उनकी खाल का उपयोग ड्रम (Drum) बनाने के लिए किया जाता है, और उनके जननांगों को समृद्धि लाने वाला बताया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनका अवैध व्यापार होता है। लोग इसके मांस और अंडों को स्वादिष्ट तथा कामोत्तेजक मानते हैं। हालांकि वन्यजीव एसओएस (Wildlife SOS) जैसे कुछ संगठन, मॉनिटर छिपकलियों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। वन्यजीव एसओएस ने विभिन्न स्थानों जैसे घरों, कारखानों, आवासीय क्षेत्रों, वाणिज्यिक भवनों और सार्वजनिक स्थानों से कई मॉनिटर छिपकलियों को सफलतापूर्वक बचाया है। उनकी तीव्र प्रतिक्रिया इकाई (Rapid Response Unit) ने विभिन्न निर्माण स्थलों, बाजारों, दुकानों, पानी की टंकियों और यहां तक कि, एक कार निर्माण इकाई (Car Manufacturing Unit) जैसी जगहों से भी इनका बचाव कार्य किया है। वाइल्डलाइफ एसओएस ने अन्य संगठनों के सहयोग से, मॉनिटर छिपकली के जननांगों को जब्त करने और वन्यजीवों की तस्करी के जाल को खत्म करने के लिए कई छापे भी मारे हैं।
मॉनिटर छिपकलियों पर कुछ चुनिंदा अध्ययनों के अलावा, भारत में उनके व्यवहार और पारिस्थितिकी से जुड़ी जानकारी अभी भी सीमित है। जानकारी की कमी के कारण, आंशिक रूप से उनका अध्ययन और संरक्षण करने में कठिनाई होती है। इसके अतिरिक्त, इन छिपकलियों के लिए अनुसंधान और संरक्षण कार्रवाई की भी कमी है। इस प्रकार अवैध शिकार के कारण, कुछ क्षेत्रों में यह स्थानीय रूप से विलुप्त हो चुकी है। शहरीकरण और कृषि पद्धतियों में परिवर्तन ने भी कुछ क्षेत्रों में मॉनिटर छिपकलियों की संख्या में कमी लाने में योगदान दिया है। मॉनिटर छिपकलियों को बचाने के लिए उनके व्यवहार, पारिस्थितिकी और जनसंख्या आनुवंशिकी को समझना महत्वपूर्ण है। यह छिपकलियां पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे कृन्तकों और सांपों का शिकार करते हैं और आम तौर पर मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं होते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/456i4OS
https://bit.ly/42tAjMn
चित्र संदर्भ
1. तानाजी की सहायता करने वाली मॉनिटर छिपकली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. समुद्र तट पर पालावान जल मॉनिटर छिपकली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बंगाल मॉनिटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एशियाई जल मॉनिटर को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. डेजर्ट मॉनिटर को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
6. येलो मॉनिटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. विभिन्न प्रकार की मॉनिटर छिपकलियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. पालतू छिपकली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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