पान का प्रयोग समाज में प्राचीनकाल से होता आ रहा है चाहे वह औषधि के रूप में हो या चबाने के लिये। पान की लाली हमेशा से नवाबों और राजाओं के खाने में प्रयोग की जाती रही है, आम जनता भी इसका प्रयोग करती थी। कई फिल्मी गाने भी पान के ऊपर आधारित हैं जिनमें ‘खाई के पान बनारस वाला’ सबसे लोकप्रिय हुआ। वैसे जब पान की बात की जाती है तो बनारस का नाम शिखर पर आता है, परन्तु जौनपुर में भी पान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जिसका प्रमुख कारण है यहाँ की भौगोलिक स्थिति जो बनारस से काफी मिलती जुलती है। यहाँ का पान उत्तर प्रदेश की विभिन्न मंडियों में जाता है। जौनपुर में एक बाज़ार का नाम भी पान के ऊपर ही पड़ा है जो कि मछलीशहर क्षेत्र में है। बरईपार ही वह बाज़ार है। बरईपार और पान का रिश्ता अत्यन्त महत्वपूर्ण है जैसा कि बरई का शाब्दिक अर्थ होता है पान बेचने या बोने वाला।
अब यदि बरई पार का भौगोलिक समीकरण देखा जाये तो कन्धी से लेकर बरई पार की मिट्टी पान के उत्पादन के लिये अत्यन्त सही है तथा बरई पार के बाज़ार को पार कर लेने के बाद की भूमि ऊसर है तथा पान के उत्पादन के लिये सही नही है। यही कारण है कि सई नदी के दक्षिण दिशा अर्थात कन्धी से लेकर बरईपार बाज़ार तक के क्षेत्र का नाम बरईपार पड़ा। जौनपुर में बक्शा विकास खंड के मयंदीपुर, बेदौली, सरायत्रिलोकी, महराजगंज ब्लाक के इब्राहिमपुर, कोल्हुआ, उदयभानपुर आदि गांवों में चौरसिया बिरादरी के लोग पान की खेती करते हैं। औषधि के गुणों का होने के कारण और खाने के लिये अत्यन्त मशहूर होने के कारण पान की खेती बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करने की क्षमता रखती है।
पान को ज्यादातर भीटा पर बोया जाता है पर कहीं-कहीं पर इसे समतल ज़मीन पर भी बोया जाता है। पान की खेती में पटर, परवल व कुनरू की भी खेती की जाती है जो पान की खेती में दोहरे फायदे के रूप में देखी जाती है। पान की फसल अत्यन्त नाजुक होती है जो मौसम की मार नहीं झेल सकती। यही कारण है कि इनको सरपत व बाँस के बनाये बाड़ों में उगाया जाता है जिससे इनपर मौसम का ज़्यादा असर ना पड़े।
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