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भारत में प्रत्येक वर्ष किसान बारिश की राह देखते हैं, परंतु, वर्तमान समय में पश्चिम और उत्तर भारत में चल रही बेमौसम बारिश एक अभिशाप के रूप में उभरी है। इस बेमौसम बारिश ने रबी की फसलों को नुकसान पहुंचाया है और फसल के कटाई के मौसम को प्रभावित किया है। बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं के कारण गेहूं, सरसों और आम की फ़सल को अत्यधिक नुकसान हुआ है। इसके अलावा, गेहूं की फसल को अस्वाभाविक रूप से उच्च तापमान का अतिरिक्त खामियाजा भी भुगतना पड़ा है, जो इस बारिश से पहले फरवरी महीने में अचानक हुई तेज गर्मी के कारण हुआ था। इस महीने बेमौसम बारिश की शुरूआत से पहले, इस साल भारत वर्ष 1901 के बाद पहली बार सबसे गर्म फरवरी महीने का साक्षीदार बना था। इस वर्ष मार्च महीने में बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवाएं आम बात हो गई थी।
वर्तमान बेमौसम बारिश से ककड़ी और कद्दू जैसी फसलें भी प्रभावित हुई हैं। इस समय किसान खेत के सूखने का इंतजार करता है, ताकि फसल काटी जा सके। परंतु, आज फसल खेत में खुली पड़ी है और अगर क्षेत्र में ओलावृष्टि होती है तो और अधिक नुकसान होगा। अगर मौसम का यही हाल रहा, तो टमाटर की फसल में भी झुलसा लग सकता है।
हमारे उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी इलाकों में भी बेमौसम बारिश ने रबी फसलों को नुकसान पहुंचाया है और कटाई के मौसम को बाधित किया है। यहां इस साल मार्च और अप्रैल के महीने में बारिश क्रमश: 130.6 मिमी और 114.3 मिमी दर्ज की गई है, जिसमें क्रमशः 56.4 और 69.5 मिमी की वृद्धि दर्ज हुई है। राज्य के केवल कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, अधिकांश क्षेत्रों में बारिश में समान वृद्धि देखी गई है।
पर्यावरण से संबंधित एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि 1971-1980 से 2011-2020 के दशकों में पश्चिमी विक्षोभ और संबंधित वर्षा की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। 1971-1980 के दौरान पश्चिमी विक्षोभ की संख्या 100 थी, जो 2011-2020 के दौरान बढ़कर 231 हो गई है। डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni) के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. सतीश भारद्वाज का कहना है कि “पश्चिमी विक्षोभ के कारण इन महीनों के दौरान खराब मौसम, तेज हवाओं और ओलावृष्टि के कारण किसानों को उपज और फसल की गुणवत्ता में गिरावट का अनुभव होगा।”
मार्च और अप्रैल में पश्चिमी विक्षोभ की संख्या में वृद्धि से फसलों के प्रजनन चरणों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मार्च और अप्रैल में तेज़ हवाएँ, भारी वर्षा और ओलावृष्टि के कारण फसलों, विशेष रूप से गेहूँ की खड़ी फसल गिर जाती है जिससे फसलों के नुकसान के साथ-साथ किसान को नुकसान होता है।भारी वर्षा के कारण, पूरी तरह से परिपक्व गेहूं की फसल भीग जाती है और जब यह धूप में सूखती है, तो इसकी बालियां भुरभुरी हो जाती हैं और तने से अलग हो जाती हैं जिससे इनकी गुणवत्ता में गिरावट आती है, यह अपना रंग और चमक खो सकती है। इन महीनों के दौरान बारिश गेहूं के भूसे की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है, जिसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। ओलावृष्टि फलों की फसलों को भी प्रभावित करती है क्योंकि इस समय फलों की फसलें अपने विकास के चरण में होती हैं। मार्च और अप्रैल की शुरुआत के दौरान तापमान में कमी के साथ लगातार बारिश सेब के पौधों को उनके फूल आने के महत्वपूर्ण समय पर प्रभावित करती है। फूल आने के समय, अधिक बारिश फूलों के वर्तिकाग्र से परागकणों को धो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप फल खराब हो सकते हैं।
राज्य के अकेले हमीरपुर जिले में ही बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को लगभग 30 करोड़ रुपये का व्यापक नुकसान हुआ है। यहां भी गेहूं की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है, जबकि फलों और सब्जियों सहित अन्य मौसमी फसलें भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। आम की फसल का भी लगभग 18 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
आइए, अब इस बेमौसम बारिश के कारण जानते है। ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में प्रकट हो रहा है, हालांकि हाल ही में हुई बेमौसम बारिश के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। जबकि, बेमौसम बारिश या गर्मी की लहरों को मौसम में बदलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण भारी वर्षा की आवृत्ति बढ़ रही है जबकि हल्की से मध्यम वर्षा की आवृत्ति घट रही है। दूसरी ओर चक्रवातों की कुल संख्या घट रही है, लेकिन तीव्र चक्रवातों की घटनाएं बढ़ रही हैं।
भारत में सूखे से जुड़े अल नीनो (El Niño) जलवायु पैटर्न का अनुमान लगाना एक जटिल कार्य है। अल नीनो, जो मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के सामान्य से अधिक गर्म तापमान से जुड़ा है, भारतीय उपमहाद्वीप में गर्मियों में शुष्क, अपर्याप्त मानसून और सर्दियों में हल्के मौसम का कारण बन सकता है। नतीजतन, यह कृषि को प्रभावित करता है और सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न कर देता है। मूंगफली, मक्का, ग्वार, अरंडी, मूंग, अरहर सहित कई अन्य फसलें अल नीनो की स्थिति से बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। इसके प्रभाव का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है; क्योंकि अतीत में कुछ अल नीनो मौसमों में अच्छे मानसून देखे गए हैं। जबकि आज हम चरम मौसम पैटर्न देख रहे हैं।
जहाँ तक देश में मानसून के मौसम का संबंध है, पश्चिमी राजस्थान और सौराष्ट्र में अधिक वर्षा होती है, जबकि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में वर्षा कम हो रही है। देश के कुछ क्षेत्रों में वर्षा बढ़ रही है और अन्य भागों में कम हो रही है। मध्य और दक्षिण भारत में भारी वर्षा की आवृत्ति बढ़ रही है। मौसम प्रणाली के कारण दैनिक जीवन में भी विविधताएँ आती हैं। बेमौसम बारिश और गर्मी की लहरें मौसम की परिवर्तनशीलता के कारण हैं और इसे जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
आमतौर पर, मार्च-अप्रैल के महीने में पूर्व, पूर्वोत्तर भारत और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में तेज हवाओं और गरज के साथ मूसलाधार बारिश होती है। किंतु इस साल मार्च के महीने में, पश्चिमी विक्षोभ के कारण पूरे भारत में भारी बारिश और आंधी देखी गई है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ, परिसंचरण और नमी के कारण वर्षा की गतिविधियाँ बढ़ रही हैं। पश्चिमी विक्षोभ एक ऐसी स्थिति है जो भूमध्य सागर के ऊपर विकसित होती है, और यह ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और फिर भारत की ओर बढ़ती है। पश्चिमी विक्षोभ हर साल बनता है, लेकिन इस साल इसकी आवृत्ति अधिक है।
एक अनुसंधान से पता चला है कि 1970 के दशक के बाद से विश्व में गर्मी की लहरें बढ़ी हैं; और अगले 50 वर्षों में ये लहरे और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। इसके अलावा, पिछले 20 वर्षों में, भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा जैसे नए क्षेत्रों में भी गर्मी की लहरों को बढ़ते हुए देखा गया है, जहां पहले गर्मी की लहरें नहीं थीं। ये क्षेत्र अब एक नए हीटवेव हॉटस्पॉट (Heatwave Hotspot) के रूप में उभरे हैं। जबकि इस साल मार्च महीने में सौराष्ट्र, कच्छ और तटीय महाराष्ट्र में एक-दो दिन छोड़कर कहीं भी लू नहीं चली। साथ ही, इस साल उत्तरी और मध्य भारत में लू की कोई स्थिति नहीं रही है, जहां यह आमतौर पर होती है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों में वृद्धि देखी गई है, लेकिन रात के दौरान होने वाले न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की तुलना में तेजी से वृद्धि हुई है। इसी तरह, सर्दियों का तापमान भी गर्मियों के तापमान की तुलना में तेजी से बढ़ा है।
बेमौसम बारिश के कारण फसल खराब होना किसान के लिए अपने बच्चे की मृत्यु के समान है। किसान फसल को बच्चे की तरह बोता और पालता है। और उम्मीद करता है कि एक बच्चे की तरह फसल उनके माता-पिता अर्थात किसान को बुढ़ापे में पालेगी। इसलिए, जब यह फसल बर्बाद होती है तो किसानों को पूरी तरह तोड़कर कड़ी चोट पहुँचाती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3LrPJJO
https://bit.ly/44ieMHN
https://bit.ly/44iePTZ
चित्र संदर्भ
1. अपने खेत और सड़क को बहते हुए देखते किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. बारिश के कारण झुक चुकी फसल को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. भारत के वार्षिक वर्षा मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पानी में डूबे खेतों को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
5. खेत में काम करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
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