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क्या आप जानते हैं कि भारत में तीस लाख से अधिक पंजीकृत उपचारिकाएं अर्थात नर्स (Nurses) कार्यरत हैं! पहली नजर में यह संख्या आपको भी बहुत अधिक लग सकती है, लेकिन अब जब देश की कुल जनसँख्या ही 1.4 बिलियन से अधिक हो गई है, तब तीस लाख (30,000,00) नर्सों की संख्या भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही लगती है। इसके अलावा, जब देश में बढ़ती जनसंख्या के साथ बीमारियों की संख्या और चिकित्सा देखभाल की जरूरत और भी बढ़ रही हो, ऐसे हालातों में, नर्सों की कमी से जुड़े यह आंकड़े सबकी चिंता बढ़ा देते हैं।
वर्तमान में भारत प्रशिक्षित नर्सों की भारी कमी का सामना कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जान भी जा रही है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization (WHO) की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, “भारत को 2024 तक 1.44 अरब से अधिक की अनुमानित आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त 4.2 मिलियन प्रशिक्षित नर्सों की आवश्यकता होगी।”
वर्तमान में, भारत में जनसंख्या के अनुपात में नर्सों का अनुपात काफी कम (प्रति 10,00 लोगों पर केवल 1.7 नर्सें) है। हालांकि, भारत में चिकित्सकों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद नर्सिंग स्टाफ (Nursing Staff) की भारी कमी है। औसतन आठ चिकित्सकों की तुलना में देश में केवल एक ही प्रशिक्षित नर्स उपलब्ध है। यह कमी स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीर रूप से बाधित करती है, क्योंकि एक नर्स को 20 से 30 रोगियों की देखभाल अकेले करनी पड़ती है। विडंबना तो यह है कि एक तरफ जहां भारत नर्सों की कमी का सामना कर रहा है, वहीं दुनिया के विभिन्न देशों में सबसे अधिक भारतीय नर्सें ही कार्यरत हैं। वर्तमान में लगभग 6.4 मिलियन भारतीय नर्सें, विदेशों (मुख्य रूप से मध्य पूर्व और पश्चिमी देशों में) में काम कर रही हैं।
भारत में प्रशिक्षित नर्सों की कमी के कई कारण हैं। सबसे पहले, भारत में नर्सिंग पेशेवरों के लिए सामाजिक सम्मान की कमी नजर आती है। नर्सिंग (Nursing) को अक्सर एक सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता है, और नर्सों की तुलना कभी-कभी वेट्रेस (Waitress) से भी कर दी जाती है। इसके ऊपर वेतन में कमी आग में घी का काम करती है। सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सें प्रति माह औसतन लगभग 25,000 रुपए कमाती हैं, जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वाली नर्सें इससे बहुत कम, मात्र 8,000 रुपए से 16,000 रुपए के बीच ही कमाती हैं। ऊपर से काम में निहित दबाव और करियर (Career) में उन्नति के सीमित अवसर नर्सों को और भी अधिक हतोत्साहित कर देते हैं।
भारत में नर्स-रोगी अनुपात राज्यों के अनुसार अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, गोवा में प्रत्येक 10,000 लोगों के लिए केवल 0.5 नर्सें उपलब्ध हैं, जबकि देश में सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश में भी इतनी ही आबादी के लिए केवल 0.8 नर्सें उपलब्ध हैं। हालांकि, केरल ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां प्रति 10,000 लोगों पर 96 नर्स (सबसे अधिक) उपलब्ध हैं, इसके अतिरिक्त केरल से प्रशिक्षित नर्स देश एवं दुनिया के अन्य हिस्सों में भी कार्यरत हैं। वहां की नर्सों की देश और विदेश दोनों में अत्यधिक मांग है। हालांकि, इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 2047 तक इस क्षमता में कम से कम आठ गुना वृद्धि की आवश्यकता है।
नर्सें स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ मानी जाती हैं। वे चौबीसों घंटे मरीजों की देखभाल करती हैं, परिवार के सदस्यों की भांति उनकी सेवा करती हैं, और उन्हें चिकित्सा विशेषज्ञता तथा भावनात्मक समर्थन दोनों प्रदान करती हैं। दुर्भाग्य से, इसके बावजूद भी भारत में नर्सों के योगदान को अक्सर कम आंका जाता है और उन्हें वेतन भी कम दिया जाता है। इंटेंसिव केयर (Intensive Care), कार्डियोलॉजी (Cardiology), न्यूरोसर्जरी (Neurosurgery) या ऑन्कोलॉजी (Oncology) जैसे क्षेत्रों में एक कुशल नर्स बनने के लिए कई वर्षों के प्रशिक्षण, कड़ी मेहनत, धन और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। लेकिन इतना सब कुछ करके, जब ये नर्सें वास्तव में कार्यबल में शामिल होती हैं तो उन्हें दिन रात मेहनत करने के बावजूद नपा तुला मानदेय ही प्राप्त होता है।
कम वेतन, काम करने की चुनौतीपूर्ण स्थिति और भारतीय अस्पतालों में सम्मान की कमी के परिणामस्वरूप, आज कई नर्सें विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश में भारत छोड़ने का विकल्प चुन रही हैं। जबकि भारत में इस परिस्थिति के विपरीत, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) और आयरलैंड (Ireland) जैसे देश, नर्सों के लिए आकर्षक अवसर प्रदान करते हैं। इन देशों में बेहतर वेतन, उचित काम के घंटे और इस पेशे के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। इसी कारण ज्यादातर देशों में कोरोना महामारी के बाद, प्रशिक्षित नर्सों की वैश्विक मांग में हुई वृद्धि की आपूर्ति भारतीय नर्सें कर रही हैं।
‘फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry (FICCI) और केपीएमजी इंटरनेशनल लिमिटेड (KPMG International Limited) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सालाना 300,000 से अधिक नर्सिंग सीटें प्रदान करने की क्षमता है। हालांकि, पिछले 12 वर्षों में, डिप्लोमा नर्सिंग पाठ्यक्रम (Diploma Nursing Course) प्रदान करने वाले संस्थानों में नौ गुना वृद्धि हुई है। 2021 तक भारत के विभिन्न महाविद्यालयों में लगभग 2,828 नर्सिंग पाठ्यक्रम उपलब्ध थे, इन पाठ्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (87%) सरकारी संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाता है, बाकी निजी संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाता है। कुल मिलाकर भारत में 1,200 संस्थान स्वास्थ्य के क्षेत्र में विभिन्न स्तर की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जिनमें प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, डिप्लोमा, स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शामिल हैं, जिनकी अवधि कुछ डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए 1 वर्ष से लेकर नियमित स्नातक पाठ्यक्रम के लिए 5 वर्ष तक है।
हालांकि इसके बावजूद भारत में नर्सों की अत्यधिक कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रयास भी किए जा रहे हैं, जिनके तहत केन्द्रीय क्षेत्र की योजना,-नर्सिंग सेवाओं के विकास के तहत प्रत्येक नर्सिंग स्कूल और कॉलेज (Nursing Schools And Colleges) को 7 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। इन संस्थानों से सालाना लगभग 22,500 डॉक्टर और 2,000 नर्स तैयार होने की उम्मीद है।
भारत में नर्सिंग संकट को दूर करने और प्रतिभाशाली नर्सों को देश में ही रखने के लिए कई बदलाव आवश्यक हैं। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, नर्सों के पेशे को सम्मानजनक नजरिये से देखा जाना चाहिए और स्वास्थ्य सेवा में उनके योगदान को बढ़ चढ़ कर स्वीकार किया जाना चाहिए। उनके कौशल, विशेषज्ञता और समर्पण को दर्शाने के लिए उनके वेतन में सुधार करना भी महत्वपूर्ण है। कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने वाला अनुकूल कार्य वातावरण बनाना, कार्य के घंटों को सीमित करना और पेशेवर विकास के अवसर प्रदान करना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, भारत में नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की भी जरूरत है।
आज 12 मई के दिन को पूरी दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ (International Nurses Day) के तौर पर मनाया जाता है, आज का दिन विशेष तौर पर समाज में नर्सों (उपचारिकाओं) की अहमियत और उनके द्वारा किये गए सामाजिक योगदान को चिह्नित करता है। आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक, फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) की जयंती 12 मई को पड़ती है। जनवरी 1974 में इसी दिन को हर वर्ष, ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ मनाने के लिए चुना गया था। यह दिन नर्सिंग के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने की चाह रखने वाले युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत के रूप में भी काम करता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3nNzmPV
https://bit.ly/3HVmVZ1
https://bit.ly/44Hbb6m
चित्र संदर्भ
1. एक बुजुर्ग महिला की सेवा करती नर्स को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. एक छात्रा को टीका लगाती नर्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक मरीज के हाथों में लगे प्लास्टर को काटती नर्स को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. प्रयोगशाला में रक्त की जांच करती नर्सों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. एक सर्जन के साथ नर्सों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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