Post Viewership from Post Date to 06-Jun-2023
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
4069 605 4674

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

दक्षिण अयोध्या कहलाता है, तेलंगाना के भद्राचलम शहर का श्री सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर

जौनपुर

 08-05-2023 09:35 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

श्री सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर को गोदावरी नदी के दिव्य क्षेत्रों में से एक माना जाता है और इस मंदिर को दक्षिण अयोध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर में मुख्य प्रतिमा चार भुजाओं वाले श्री वैकुंठ राम की है, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। मान्यता है कि भगवान राम भद्र की भक्ति से प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए थे। यह मंदिर भारत के उन मंदिरों में से एक है, जिसका सम्बंध महाकाव्य रामायण से है। तो आइए, आज श्री सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर के इतिहास और इससे सम्बंधित किंवदंतियों के विषय में जानकारी प्राप्त करें।
यह मंदिर भारत के पूर्वी तेलंगाना में भद्राचलम शहर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को अक्सर भद्राचलम या भद्राद्री के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। भगवान राम के साथ यहां उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण की भी पूजा की जातीहै। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास महान भक्ति संत कंचेरला गोपन्ना (Kancherla Gopanna) के इतिहास से सम्बंधित है, जिनका जन्म तेलंगाना के नेलकोंडापल्ली गांव में हुआ था। गोपन्ना के चाचा गोलकुंडा सल्तनत के लिए काम करते थे। एक बार जब पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा, तो उनके चाचा ने सुल्तान से अपने भतीजे को नौकरी देने की अपील की। गोपन्ना को भद्राचलम के तहसीलदार (राजस्व अधिकारी) के रूप में नियुक्त किया गया। गोलकुंडा के अंतिम सुल्तान (1672-1686) अबुल हसन कुतुब शाह के शासनकाल के दौरान, सुल्तान के आदेशों के तहत, गोपन्ना द्वारा जज़िया नामक धार्मिक कर लागू किया गया, जो हिंदुओं को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करने के लिए बनाया गया था। इसके लिए गोपन्ना को स्थानीय हिंदुओं से कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। माना जाता है कि इससे निराश होकर गोपन्ना ने अपने द्वारा एकत्रित किए गए करों का उपयोग करके मंदिर का निर्माण करवाया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, गोपन्ना ने मंदिर की जीर्ण-शीर्ण अवस्था को देखते हुए, एकत्रित किए गए कर से श्री राम के मंदिर की मरम्मत करवाई थी।
मंदिर लगभग छह लाख वराहों की लागत से 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बनकर तैयार हुआ। सच्चाई जानने के बाद, हसन कुतुब शाह क्रोधित हो गया और उसने गोपन्ना को अदालत में बुलवाया। गोपन्ना ने स्पष्ट किया कि उनका कभी भी राजकोष के धन का दुरुपयोग करने का इरादा नहीं था और उन्होंने भविष्य में मंदिर में प्राप्त होने वाले दान का उपयोग करके कर की प्रतिपूर्ति करने की योजना बनाई थी। शाह ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि यदि अगले बारह साल के भीतर कर की राशि नहीं चुकाई गई, तो गोपन्ना को फांसी दे दी जाए और उन्हें कैद कर लिया गया, जहां उन्होंने इस मंदिर में आज भी गाए जाने वाले भक्ति गीतों की रचना की। ऐसा माना जाता है कि बारहवें वर्ष के अंतिम दिन भगवान राम और लक्ष्मण शाह के सपने में आए और उन्होंने पूरी राशि को राम मदस (श्री राम के अभिलेखों वाले सोने के सिक्के) के रूप में चुका दिया। जब शाह जागा, तो उसने असली सोने के सिक्के पाए और गोपन्ना को रिहा कर दिया। एक अन्य किंवदंती के अनुसार शाह ने गोपन्ना को आजीवन पेंशन भी दी और भद्राचलम के आसपास के क्षेत्र को मंदिर के लिए दान कर दिया। भारतीय समाचार पत्र “द हिंदू” (The Hindu) के अनुसार, कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान राम द्वारा उस राशि की पूर्ति नहीं की गई थी। गोपन्ना को उनके ईर्ष्यालु शत्रुओं ने कैद कर लिया था तथा शाह ने निष्पक्ष पूछताछ के बाद गोपन्ना को मुक्त कर दिया था तथा उन्हें सम्मान के साथ वापस भद्राचलम भेज दिया था। हालांकि, इन सभी किंवदंतियों के ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, 15वीं शताब्दी के मुस्लिम संत कबीरदास ने राम के भक्ति गीत गाते हुए तेलंगाना का दौरा किया। 17वीं शताब्दी के गोपन्ना के समर्पण और दानशीलता ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने उन्हें रामदास (राम के सेवक) की उपाधि दे दी। मंदिर के इतिहास के अनुसार, गोपन्ना की मृत्यु के बाद गुंटूर के तुमु लक्ष्मी नरसिम्हा दासु और कांचीपुरम के उनके मित्र वरदा रामदासु, भद्राचलम में प्रतिदिन पूजा करते थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन वहीं व्यतीत किया।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, भगवान राम वनवास काल के दौरान अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ दंडक वन में रुके थे। मेरु पर्वत और अप्सरा मेनका के पुत्र भद्र ने कई वर्षों तक गोदावरी नदी के तट पर श्री राम की तपस्या की। भद्र की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान राम ने उसे वचन दिया था कि वे राक्षस राजा रावण द्वारा अपहरण की गई सीता की खोज के बाद उनसे मिलेंगे। हालाँकि, राम अपने जीवनकाल में यह वचन निभा नसके। लेकिन भद्र ने अपनी तपस्या जारी रखी। लंबे समय के बाद, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु राम के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। उनके साथ उनकी पत्नी देवी सीता और भाई लक्ष्मण भी थे। एक अन्य किवदंती के अनुसार , पोकला धम्मक्का नाम की भद्रारेड्डीपालम में रहने वाली एक आदिवासी महिला को एक बांबी में राम की केंद्रीय प्रतिमा मिली थी। पोकला धम्मक्का को सबरी का वंशज माना जाता है। माना जाता है कि धम्मक्का को सपने में भगवान राम की मूर्ति जंगल में दिखाई देती है। अगले दिन वह जंगल में गोदावरी नदी के पानी से मूर्तियों को बाहर निकालती है। तथा ग्रामीणों की मदद से मूर्तियों की स्थापना कर पूजा अर्चना की जाती है। जिस पहाड़ी स्थान पर मूर्तियों को विराजमान किया गया था, वह भद्र-अचलम (पहाड़ी) का प्रमुख स्थान था, और इस प्रकार यह मंदिर भद्राचलम में परिवर्तित हो गया।
मंदिर को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है। पहले भाग को भद्र का सिर माना जाता है, जहां एक मंदिर उन्हें समर्पित है। अंदर, एक चट्टान से बनी संरचना के अंदर, भगवान राम के कथित पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। थिरुनामम (एक सफेद मिट्टी) को चट्टान पर लगाया जाता है ताकि आगंतुक इसे भद्र के सिर के रूप में पहचान सकें। मंदिर का दूसरा भाग गर्भगृह है। इस भाग को भद्र के हृदय के समकक्ष माना जाता है। तीसरा भाग राजगोपुरम (मुख्य मीनार) है, जो भद्र के चरणों में स्थित है। मंदिर के चार प्रवेश द्वार हैं तथा मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुँचने के लिए 50 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। आने वाले भक्तों के उचित प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए, यहां 1974 में वैकुंठ द्वारम नामक एक विशाल द्वार का निर्माण किया गया था। गर्भगृह के ठीक सामने सोने की परत से लेपित एक ध्वजस्तंभ है। यह ध्वजस्तंभ पंचलोहा अर्थात पांच धातुओं से बने मिश्र धातु से बना है, जिस पर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की नक्काशीदार छवियां बनी हैं। गर्भगृह के विमान के शीर्ष पर एक हजार कोनों वाला आठ मुखी सुदर्शन चक्र है, जिसे गोपन्ना ने उकेरा था तथा यह गोदावरी नदी के पानी में पाया गया था। विमान पर, मंदिर के देवता की लघु छवियां देखी जा सकती हैं। विशेष यात्रा टिकट खरीदने वाले भक्तों के लिए प्रवेश द्वार गर्भगृह के बाईं ओर स्थित है। नियमित आगंतुकों को एक कतार में सीढ़ियों पर प्रतीक्षा करनी पड़ती है जो सीधे गर्भगृह में जाती हैं। गर्भगृह के दाहिनी ओर एक क्षेत्र में भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण की मूर्तियां मौजूद हैं, जिनकी प्रतिदिन पूजा की जाती है। माना जाता है कि गर्भगृह में स्थित केंद्रीय छवि स्वयं प्रकट हुई है। श्री राम पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं, तथा माता सीता उनकी गोद में बैठी हैं। भगवान राम के चार हाथों में शंख, चक्र, धनुष और बाण हैं तथा उनके बाईं ओर लक्ष्मण खड़े हैं।
एक ऊंची पहाड़ी पर दक्षिण की ओर मुख किए हुए भगवान विष्णु के लेटे हुए रूप रंगनाथ की प्रतिमा भी है जिसको गोपन्ना द्वारा स्थापित और प्रतिष्ठित किया गया था। यह स्थान रंगनायकुला गुट्टा (रंगनाथ की पहाड़ी) के नाम से प्रसिद्ध है। रंगनाथ गर्भगृह के सामने उनकी पत्नी माता लक्ष्मी थायर को समर्पित एक मंदिर है। मंदिर में कई अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जिनमें भगवान हनुमान और भगवान नरसिंह का मंदिर भी शामिल है।

संदर्भ:
https://bit.ly/41U5EHg
https://bit.ly/3n3PpbQ

चित्र संदर्भ
1. भद्राचलम शहर के श्री सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भगवान योगानंद नरसिम्हा मंदिर से भद्राचलम मंदिर के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भद्राचलम में भद्राचलम रामदासु (कंचेरला गोपन्ना) की एक मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भद्राचलम मंदिर के प्रवेश द्वार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भद्राचलम मंदिर के भीतर के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • जौनपुर शहर की नींव, गोमती और शारदा जैसी नदियों पर टिकी हुई है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:14 AM


  • रंग वर्णकों से मिलता है फूलों को अपने विकास एवं अस्तित्व के लिए, विशिष्ट रंग
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:11 AM


  • क्या हैं हमारे पड़ोसी लाल ग्रह, मंगल पर, जीवन की संभावनाएँ और इससे जुड़ी चुनौतियाँ ?
    मरुस्थल

     16-09-2024 09:30 AM


  • आइए, जानें महासागरों के बारे में कुछ रोचक बातें
    समुद्र

     15-09-2024 09:22 AM


  • इस हिंदी दिवस पर, जानें हिंदी पर आधारित पहली प्रोग्रामिंग भाषा, कलाम के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:17 AM


  • जौनपुर में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है बी आई एस
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:05 AM


  • जानें कैसे, अम्लीय वर्षा, ताज महल की सुंदरता को कम कर रही है
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:10 AM


  • सुगंध नोट्स, इनके उपपरिवारों और सुगंध चक्र के बारे में जानकर, सही परफ़्यूम का चयन करें
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:12 AM


  • मध्यकाल में, जौनपुर ज़िले में स्थित, ज़फ़राबाद के कागज़ ने हासिल की अपार प्रसिद्धि
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:27 AM


  • पृथ्वी पर सबसे दुर्लभ खनिजों में से एक है ब्लू जॉन
    खनिज

     09-09-2024 09:34 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id