City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2491 | 492 | 2983 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
मूर्खों और अंधविश्वासी लोगों को धर्मोपदेश देकर धार्मिक व्यक्ति बनना फिर भी आसान काम होता है। लेकिन विचारों से भरे, बुद्धिवादी, चिंतनशील और मननशील व्यक्ति को भी प्रभावित कर देने और अपना अनुयायी बना लेने की अद्वितीय क्षमता, मानव इतिहास में "गौतम बुद्ध" नामक केवल एक ही परम चैतन्य के पास हुई है! एक भारतीय विचारक ने कहा है कि, “गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे और परम भगवत्ता को प्राप्त हुए, उतने लोग मानव इतिहास में किसी और के माध्यम से नहीं हुए।” बुद्ध का न केवल, जीवन प्रेरणादायक रहा है, बल्कि उनकी मृत्यु ("पूर्ण निर्वाण") भी सम्पूर्ण मानवता के लिए दर्शनीय है। आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर हम उनके निर्वाण और निर्वाण स्थल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।
आम जनों के विपरीत, भगवान बुद्ध के अंतिम दिनों की कहानी अति सुंदर और शांतिपूर्ण है। आत्मज्ञान (निर्वाण) प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने दर्द तथा पीड़ा से मुक्त जीवन व्यतीत किया था। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका अंत निकट है, तो उन्होंने अपने अनुयायी “आनंद” से दो शाल वृक्षों (Shorea Robusta) के नीचे उनके लिए एक बिस्तर तैयार करने के लिए कहा। उन्होंने आनंद को दिलासा देते हुए कहा कि “जो कुछ भी पैदा होता है, उसका अंत भी होता है, और मैं भी अब 80 साल का बूढ़ा हो ही गया हूँ।
हिरण्यवती नदी के उस पार कुशीनगर (कुसीनारा) नामक जिस गाँव में वे ठहरे हुए थे, वहां के मल्लों को उनकी आसन्न (आने वाली) मृत्यु के बारे में सूचित किया गया, जिसके बाद वे लोग उनके दर्शन करने हेतु वहां पहुचे। उनमें 120 साल के सुभद्र नामक एक ब्राह्मण भी थे। वह बुद्ध की आसन्न मृत्यु से बहुत विचलित हो गए थे। जिसके बाद बुद्ध ने उन्हें अपने पास बुलाया, उन्हें संघ (बौद्ध आदेश) में भर्ती कराया । (उनके धर्म परिवर्तन के कुछ समय बाद ही उनका निधन हो गया था!
जब रात का तीसरा पहर आया, तो बुद्ध ने अपने शिष्यों से तीन बार पूछा कि “क्या उन्हें उनकी शिक्षाओं या अनुशासनों के बारे में कोई संदेह है?” सभी भिक्षु चुप खड़े थे। आनंद, ने कहा: “किसी को भी संदेह नहीं है।“ इसके पश्चात बुद्ध ने अपने अंतिम शब्द कहे, "सुनो, भिक्षुओं, मैं यह कहता हूँ: सभी सशर्त चीजें क्षय के अधीन हैं, अपनी मुक्ति के लिए परिश्रम करो"। बुद्ध का अंतिम उपदेश 'अप्प दीपो भव' (अपने दीपक स्वयं बनो)- था, जिसका आशय यह है कि स्वयं को निर्लिप्त बनाकर आत्मा की पूर्ण ईमानदारी से कर्म करें, तो आनंद की प्राप्ति के साथ परम तत्व की सहज ही उपलब्धि हो जाती है।
इसके बाद उन्होंने महापरिनिर्वाण में प्रवेश किया और उन्होंने शांतिपूर्वक अपना शरीर त्याग दिया। उनके शरीर को छह दिनों के लिए मल्लों के राज्य में रखा गया था, और उनके चचेरे भाई अनिरुद्ध के निर्देशन में उनके अंतिम संस्कार की तैयारी की गई थी। सातवें दिन, उनके शरीर को मल्लों के पवित्र मंदिर मुकुट बंधन चैत्य में ले जाया गया। महा कस्पा ने अंतिम समारोह किया, और उनके शरीर का उचित सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
वर्तमान में गौतम बुद्ध का निर्वाण स्थल कुशीनगर, प्राचीन काल में मल्ल वंश की राजधानी तथा 16 महाजनपदों में से एक हुआ करता था। इस प्राचीन नगर का वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान (Hiuen Tsang And Fa Hien) के यात्रा वृत्तांत में भी मिलता है। माना जाता है कि त्रेता युग में यह स्थान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे 'कुशावती' नाम से जाना गया। एक अन्य परंपरा के अनुसार इसका कुशवती नाम क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में कुश घास पाए जाने के कारण पड़ा। प्राचीन काल में कुशीनगर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, हर्ष और पाल राजवंशों सहित कई साम्राज्यों का हिस्सा रहा है।
मृत्यु के पश्चात बुद्ध की अस्थियों पर काफ़ी विवाद छिड़ा था, दरअसल उनकी अस्थियों को विभिन्न वंशों के राजा अपने साथ ले जाना चाहते थे। विवाद को शांत करने के लिए द्रोण नाम के एक ब्राह्मण द्वारा उनकी राख को आठ भागों में विभाजित किया गया और उन्हें विभिन्न समूहों में बांट दिया गया।
राख के इन भागों को निम्नवत् बाँटा गया:
1.मगध के राजा अजातशत्रु को
2.वैशाली के लिच्चावियों को
3.कपिलवस्तु के शाक्यों को
4.अल्लकप्पा के बुलियों को
5.रामगाम के कोलियों को
6.वेठदीप के ब्राह्मण को
7.पावा के मल्लों को
8.कुशीनगर के मल्लों को
इन आठ भागों के अलावा, उस समय दो अन्य महत्वपूर्ण अवशेष भी वितरित किए गए थे:
द्रोण (अवशेषों को वितरित करने वाले ब्राह्मण) को वह बर्तन मिला था, जिससे शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था।
वहीं पिप्पलिवन के मोरिय(मौर्य) को अंतिम संस्कार की चिता की शेष राख प्राप्त हुई थी।
राख के इन सभी दस भागों में से प्रत्येक को विभिन्न स्तूपों में दफनाया गया था। इनमें से नेपाल में रामग्राम स्तूप आज भी बरकरार है।
पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक कुशीनगर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल था। यहां पर लेटे हुए बुद्ध की एक विशाल मूर्ति को गुप्त काल के दौरान लाल बलुआ पत्थर के एक खंड से बनाया गया था गुप्त साम्राज्य द्वारा इस स्थल का जीर्णोद्धार और विस्तार किया गया था, तथा बुद्ध की एक विशाल मूर्ति के साथ-साथ एक मंदिर का भी निर्माण किया गया था। हालांकि, आक्रान्ताओं के हमलों के बाद 12वीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा इस स्थान को छोड़ दिया गया था।
लेकिन 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) द्वारा कुशीनगर को फिर से खोजा गया था, और उनके सहयोगी आर्चीबाल्ड कार्लाइल (Archibald Carlyle) ने 1,500 साल पुरानी बुद्ध प्रतिमा का पता लगाया था, और इसे 1876 में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खोजा गया था। मूर्ति टूटी हुई और टुकड़ों में बिखरी हुई पाई गई थी, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसका पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया। इस स्थान पर अन्य महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारक (जैसे महापरिनिर्वाण स्तूप और मठ कुआर श्राइन (Matha Kuar Shrine) भी हैं। कुशीनगर में जिस परिनिर्वाण मंदिर में बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग किया था, उस मंदिर का पुनर्निर्माण 1956 में भारत सरकार द्वारा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 2,500वें वर्ष के उपलक्ष्य पर किया गया था। इस मंदिर के अंदर, आप लेटे हुए बुद्ध की मूर्ति को देख सकते हैं, जो 6.1 मीटर लंबी है! इस प्रतिमा में बुद्ध अपने सिर को उत्तर की ओर कर, अपनी दाहिनी तरफ लेटे हुए हैं, और एक पत्थर के दीवानपर आराम कर रहे है। यह शानदार मूर्ति वास्तव में देखने में बेहद प्रभावशाली है और दुनिया भर के बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक मानी जाती है। कुशीनगर दुनिया भर के बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
आज कुशीनगर उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है और इसकी आबादी लगभग 22,000 है। यहां कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है, और यह शहर हवाई, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है ।
संदर्भ
https://bit.ly/2U55EWq
https://bit.ly/3njObJT
https://bit.ly/3np2dK2
चित्र संदर्भ
1. कुशीनगर में बुद्ध के निर्वाण स्थल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. दीक्षा प्रदान करते बुद्ध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. अंतिम क्षणों में बुद्ध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रामभार स्तूप का निर्माण बुद्ध की राख के एक हिस्से पर उस स्थान पर किया गया था जहाँ प्राचीन मल्ल लोगों द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया था। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुशीनगर में बुद्ध परिनिर्वाण की छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कुशीनगर में बुद्ध के निर्वाण स्थल के वृहनगम दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.