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उत्तर प्रदेश में स्थित प्राचीन कन्नौज” शहर, एक समय में हिंदू साम्राज्य वर्धन वंश की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। लेकिन आज इस शहर को ‘भारत की इत्र राजधानी’ होने का गौरव प्राप्त है। कन्नौज की अनुकूल जलवायु और मिट्टी इस शहर को इत्र के उत्पादन हेतु चमेली और रजनीगंधा सहित आवश्यक फूलों को उगाने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है। लेकिन “गुलाब” यहां के इत्रों में प्रयोग होने वाले सबसे प्रमुख फूलों में से एक है।
पूरी दुनिया में इत्र बनाने में गुलाब का फूल व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला एक घटक है। इसे विशेष तौर पर इसकी ताजगी भरी सुगंध के लिए जाना जाता है। दुनिया भर में गुलाब विभिन्न रंग, गंध और आकार में उपलब्ध हैं किंतु इत्र बनाने के लिए गुलाब की कुछ विशिष्ट प्रजातियों का ही उपयोग किया जाता है।
गुलाब का अर्क (Rose Extracts) बनाने के लिए परफ्यूम निर्माता मुख्य रूप से ‘रोजा सेंटीफोलिया’ (Rosa Centifolia) का उपयोग करते हैं, जिसे फ्रांस (France) में गोभी गुलाब (Cabbage Rose) तथा तुर्की (Turkey) और बुल्गारिया (Bulgaria) में रोजा डेमसीना (Rosa Damascena) के रूप में भी जाना जाता है। गुलाब के अर्क के रासायनिक वक्र में सैकड़ों यौगिक होते हैं, जो इसकी खुशबू को समृद्ध और बहुआयामी बनाते है। इसके अर्क में सिट्रस (Citrus) से लेकर मीठे फलों और लौंग जैसे मसालों तक की सुगंध को मिलाया जा सकता है, जिससे यह परफ्यूम बनाने में एक बहुमुखी घटक बन जाता है।
गुलाब का अर्क विभिन्न अणुओं से मिलकर बना होता है, जिसमें गुलाब ऑक्साइड (Rose Oxide) एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला रासायनिक यौगिक होता है, जो धात्विक गुलाब की गंध के लिए जिम्मेदार होता है। इसके अलावा सिट्रोनेलोल (Citronellol), गेरानियोल (Geraniol) और फिनाइल इथाइल एल्कोहल (Phenyl Ethyl Alcohol) जैसे अन्य अणु भी गुलाब की गंध में योगदान करते हैं।
गुलाब की कटाई गर्मियों की शुरुआत में सुबह के समय की जाती है क्योंकि उस समय उनकी सुगंध सबसे अधिक शक्तिशाली होती है। गुलाब का तात्विक तेल (Essential Oil) निकालने के लिए फूलों को जिस दिन तोड़ा जाता है उन्हें उसी दिन भाप आसुत (Steam Distil) किया जाता है। इस प्रक्रिया में गुलाब से तेल निकाला जाता है जबकि बची हुई सामग्री का उपयोग गुलाब जल बनाने में किया जाता है जिसका उपयोग मिठाई या सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। इस तेल का अधिकतम इस्तेमाल अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) में किया जाता है।गुलाब से निकला शुद्ध तेल अत्यंत महंगा होता है, जिससे यह इत्र के मामले में एक विलासितापूर्ण सामग्री बन जाता है । गुलाब में पाए जाने वाले तेल की मात्रा बहुत कम होना ही गुलाब तात्विक तेल की ऊंची कीमत का एकमात्र कारण है। इसका आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि गुलाब के तात्विक तेल का एक लीटर प्राप्त करने के लिए आपको लगभग 5000 किलो गुलाब की पंखुड़ियों की आवश्यकता होगी।
मोरक्को (Morocco) में, ‘ कलातएम गौना (Kalaat M'Gauna)’ में, जो वैली ऑफ़ रोज़ेज़ (Valley Of Roses) के नाम से मशहूर है, हर साल मई में ‘रोज़ फेस्टिवल’ (Rose Festival) का आयोजन किया जाता है।
गुलाब के तात्विक तेल का उपयोग दुनिया भर के लोगों द्वारा कई सदियों से विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है। यहां तक कि जब यह ज्यादातर धनी एवं कुलीन समुदाय के लोगों के लिए उपलब्ध था, उस दौरान भी आम आदमी इसे पाने के लिए उत्सुक रहता था। पूरे इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों द्वारा गुलाब का उपयोग औषधीय रूप से भी किया जाता रहा है। साथ ही प्राचीन समय में गुलाब का इस्तेमाल चेहरे के लिए लेप तथा लालिमा (Blush), और खुशबू के लिए इत्र के रूप में किया जाता था।
भारत का भी आयुर्वेद और इत्र बनाने की कला में गुलाब जैसे प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करने का एक लंबा इतिहास रहा है। भारत में, धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों के लिए भी गुलाब का लोकप्रिय रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि आधुनिक दुनिया में, गुलाब का तात्विक तेल महंगा हो सकता है लेकिन आज यह कम से कम आम आदमी की पहुंच में तो है। प्राचीन काल से ही गुलाब इत्र, सौंदर्य और जुनून का प्रतीक रहा है। ग्रीक और रोमन सभ्यताओं (Greco-Roman Civilizations) में गुलाब प्रेम की देवी एफ्रोडाइट (Aphrodite) और वीनस (Venus) का प्रिय पुष्प माना जाता था। कहा जाता है कि गुलाब की खुशबू मन को शांत और स्थिर करती है।
गुलाब की सुगंध की सात अलग-अलग श्रेणियां होती हैं, जिनमें गहरे रंग के गुलाब अपनी मोटी और मखमली पंखुड़ियों तथा सबसे यादगार सुगंधों के लिए जाने जाते हैं।
भारत की इत्र राजधानी के रूप में प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के कन्नौज शहर को अपने पारंपरिक इत्र उद्योग के लिए जाना जाता है। इस शहर में पौधों, जानवरों और खनिजों से प्राप्त इत्र को शुद्ध करने के लिए विशुद्ध रूप से प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग किया जाता है। पहले के समय में कन्नौज से इत्र दूर-दूर (खासकर मध्य पूर्व) तक भेजा जाता था। हालांकि, इत्र बनाने के उद्योग में आधुनिक उपकरणों के साथ आई कई विदेशी कंपनियों के कारण यहां का पारंपरिक उद्योग आज संकट में है। कन्नौज में कभी इत्र बनाने की 700 से अधिक भट्टियां थीं, लेकिन अब यहाँ पर सौ से भी कम भट्टियां शेष बची हैं।
भारत में इत्र का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसका उल्लेख कामसूत्र, अर्थशास्त्र और मनसोल्लास जैसे ग्रंथों में भी मिलता है। भारत में इत्र बनाने के विज्ञान और कला का सबसे पहला विस्तृत संदर्भ गंधसार और गंधवाड़ा ग्रंथों में पाया जा सकता है, जो संभवतः 6ठी और 11वीं शताब्दी के बीच लिखे गए पहले के ग्रंथों पर आधारित थे।भारत में इत्र का उपयोग कई अलग-अलग तरीकों से किया जाता था, जिसमें इत्र के रूप में, शाही स्नान में तथा प्राकृतिक रूप से हवा को ताजा बनाने (Natural Air-Freshener) के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। समय के साथ ही यह इस्लामिक दुनिया में विशेष रूप से लोकप्रिय हो गया ।
इत्र मुगलों को बेहद प्रिय माना जाता था । इसे पहले मुगल सम्राट बाबर या सम्राट जहाँगीर या उसकी पत्नी नूरजहाँ द्वारा भारत लाया गया था। इत्र बनाने की संस्कृति, औद्योगिक क्रांति से पहले भी भारत में लंबे समय से मौजूद है। कन्नौज, बनारस, गाजीपुर, जौनपुर, अवध, बिहार और उड़ीसा के आसपास के क्षेत्रों को इस व्यापार से बहुत लाभ हुआ था । दरसल ये क्षेत्र रणनीतिक रूप से उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाले व्यापार मार्गों पर स्थित थे। भारत के ये शहर तब और भी महत्वपूर्ण हो गए जब उन्होंने रेशम मार्ग (Silk Route) के साथ संपर्क स्थापित किया। रेशम मार्ग प्राचीन व्यापार मार्गों का एक नेटवर्क था जो मध्य एशिया (Asia) को यूरोप (Europe) से जोड़ता था, और रेशम, मसालों और इत्र जैसे सामानों के आदान-प्रदान की अनुमति देता था। कन्नौज मध्ययुगीन काल से ही इत्र व्यापार का केंद्र रहा है और गुप्त साम्राज्य और वर्धन साम्राज्य के दौरान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक केंद्र था। यह मुगल और औपनिवेशिक काल के दौरान एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र भी था। इतिहास में बदलाव के बावजूद, कन्नौज आज भी दृढ़ बना हुआ है और अब भारत में इत्र बनाने वाला एकमात्र केंद्र बचा है।
हालांकि, सुगंध की कीमत को समझते हुए इत्र बनाने की शानदार पहल हमारे जौनपुर में भी शुरू हो गई है। दरअसल जिला प्रशासन द्वारा शुरू की गई एक पहल के बाद जौनपुर में ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ (National Rural Livelihoods Mission (NRLM) से जुड़ी महिलाएं अब इत्र बनाने का प्रशिक्षण भी प्राप्त करेंगी। फूलों की खेती करने के लिए समूह की महिलाओं का संपर्क किसानों के साथ कराया जाएगा, जिसके बाद महिलाएं इत्र बनाने के लिए फूल सीधे किसानों से लेंगी। शुरुआत में सौ महिलाओं को इत्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा, बाद में अन्य महिलाओं को भी इससे जोड़ा जाएगा। इन महिलाओं को विभिन्न प्रकार के फूलों की खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें गुलाब, चमेली, खस, मोगरा, हरसिंगार, गार्डेनिया (Gardenia) और गुलनार जैसे फूलों की खेती शामिल होगी।
इस पहल का लक्ष्य एनआरएलएम समूह की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। उन्हें मिलने वाला प्रशिक्षण उन्हें इत्र बनाने में सक्षम बनाएगा, जो एक मूल्यवान कौशल होगा जिसका उपयोग वे जीविकोपार्जन के लिए कर सकेंगी। कुल मिलाकर, यह पहल जौनपुर की महिलाओं के लिए नए कौशल सीखने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने का एक सुनहरा अवसर है। साथ ही इससे स्थानीय फूल किसानों को भी लाभ होगा।
संदर्भ
http://surl.li/gjvpv
http://surl.li/gjvqg
http://surl.li/gjvqm
http://surl.li/gjvqo
http://surl.li/gjvqs
चित्र संदर्भ
1. महिला गुलाब व्यापारी को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. गुलाब का अर्क बनाने के लिए परफ्यूम निर्माता मुख्य रूप से ‘रोजा सेंटीफोलिया’ का उपयोग करते हैंको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भाप आसु विधि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इत्र बनाने की डेग भपका विधि को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. समूह में बैठी महिलाओं को दर्शाता चित्रण (flickr)
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