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इंसानों की भूख आज पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। उदाहरण के तौर पर, आज समुद्री भोजन दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहा है। परिणामस्वरूप भोजन के तौर पर मछलियों की मांग बढ़ रही है। नतीजतन छोटी से छोटी मछलियों से लेकर विशालकाय व्हेल (Whale) भी विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। लेकिन क्या वास्तव में भोजन के लिए इनका शिकार करना या मारना उचित है?
व्हेल स्तनधारी प्राणी हैं , जो कि अन्य स्तनधारियों की भांति केवल पानी की सतह पर आकर सांस ले सकते हैं । व्हेल हमेशा पानी में तैरती रहती हैं और उन्हें तैरते रहने के लिए बड़ी मात्रा में भोजन की जरूरत होती है। सौभाग्य से, महासागर उन्हें विभिन्न प्रकार के भोजन विकल्प प्रदान करते हैं। ब्लू व्हेल (Blue Whale) पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे बड़े जानवर हैं और मुख्य रूप से क्रिल (Krill) खाते हैं। उन्हें अत्यधिक भूख लगती है, और वे प्रतिदिन तकरीबन चार टन तक क्रिल की खपत कर सकते हैं।
आज महासागरों में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण व्हेल और अन्य समुद्री जीवों के लिए गंभीर खतरा बन गया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2050 तक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी, कि पानी में मछली की तुलना में प्लास्टिक अधिक होगा । प्लास्टिक अपचनीय होता है, और इसे निगलना व्हेल तथा अन्य प्राणियों के लिए बेहद घातक हो सकता है। लेकिन व्हेल के लिए इससे भी बड़ा खतरा उनके सामने खड़ा है।
दरअसल व्हेल, डॉल्फिन (Dolphins) और पॉपस (Porpoises) का मांस, कुछ संस्कृतियों में बेहद स्वादिष्ट माना जाता है जबकि अन्य संस्कृतियों में मीट की तुलना में इसकी मांग अपेक्षाकृत कम है। हालांकि, दशकों से वाणिज्यिक व्हेलिंग (Commercial Whaling) अर्थात भोजन हेतु व्हेल के शिकार का विरोध किया जा रहा है, लेकिन आइसलैंड (Iceland), जापान (Japan) और नॉर्वे (Norway) जैसे कुछ देशों में अभी भी व्हेल का मांस बड़ी मात्रा में भोजन के रूप में पसंद किया जाता है। कुछ अन्य स्थानों जैसे सेंट विंसेंट (St. Vincent) और ग्रेनेडाइंस (Grenadines), इंडोनेशिया (Indonesia) और कुछ दक्षिण प्रशांत द्वीपों में व्हेल के मांस का स्थानीय स्तर पर भी सेवन किया जाता है।
दुर्भाग्य से पूरे मध्य युग के दौरान यूरोप (Europe) में मांस और तेल के लिए व्हेल का शिकार किया गया था। जिससे अतिदोहन के कारण यहां के महासागरों में व्हेल की संख्या का तेजी से पतन हुआ और यूरोपीय व्हेलर्स (व्हेल के शिकारी) को व्हेल पकड़ने के लिए नए समुद्रों की तलाश करनी पड़ी। और आज स्थिति यह है, कि व्हेल की कुछ प्रजातियाँ पूर्णतः लुप्तप्राय हो चुकी हैं।
हालांकि, कुछ संस्कृतियाँ आज वन्यजीव संरक्षण और पशु अधिकारों के आधार पर इसकी खपत का विरोध करती हैं। वहीं कुछ स्वदेशी समूहों का तर्क है कि व्हेल का मांस उनके सांस्कृतिक अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है।
उदाहरण के तौर पर, जापान ‘अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग’ (International Whaling Commission (IWC) की सदस्यता छोड़ रहा है। दरसल ‘अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग’ (IWC) व्हेलिंग के नियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा 1946 में स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य व्हेल स्टॉक (Whale Stock) को उचित संरक्षण प्रदान करना और व्हेलिंग के नियमन के लिए सिफारिशें करना है।
जापान इस संगठन की सदस्यता अपने तटीय जल क्षेत्र में व्हेल का शिकार फिर से शुरू करने के लिए छोड़ रहा है, जिस कारण इन जीवों के संरक्षण को लेकर चिंता बढ़ गई है। वसा की मोटी परत के नीचे की परत से निकाले गए व्हेल के तेल का पहला उल्लेख 1059 ईसा पूर्व का है, जब आइबेरिया के बास्क (Basque of Iberia) देश के निवासियों द्वारा इसकी खोज की गई थी । उस दौरान व्हेल का तेल दुनिया भर में रोशनी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता था, और इसने औद्योगिक क्रांति की शुरुआत को बढ़ावा दिया। हालांकि, मिट्टी के तेल जैसे पेट्रोलियम आधारित उत्पादों के वैकल्पिक स्रोतों ने 1859 में व्हेल के तेल की जगह लेना शुरू कर दिया।
हालांकि पेट्रोलियम उत्पादों की तुलना में कम उपलब्धता और कम गुणवत्ता को देखते हुए तेल के लिए व्हेल का शिकार 1800 के दशक के अंत में काफी कम हो गया था, लेकिन व्हेल के पारंपरिक शिकारी समुदायों द्वारा मांस के लिए व्हेल का शिकार जारी रहा।
1931 और 1938 के व्हेलिंग के नियमन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (IWC) में व्हेल का शिकार करने वाले देश शामिल थे, जिसके कारण 1946 में आई डब्लू सी का पुनर्गठन हुआ। अब, जापान अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग से बाहर हो रहा है और अपने तटीय जल और विशेष आर्थिक क्षेत्र में व्हेल का शिकार फिर से शुरू कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान पर अमेरिका (America) के प्रतिबंधों का भारी दबाव था, इसलिए जापान ने व्हेल का मांस जापान में प्रोटीन का सबसे आसान स्रोत होने के बावजूद द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति समझौते में खलल डालने से परहेज किया। लेकिन आज जापान के इस कदम ने पशु-अधिकार कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों के बीच चिंता बढ़ा दी है।
इस्लाम की हनफ़ी विचारधारा में भी मछली खाना, हराम अर्थात अवैध माना जाता है। लेकिन शार्क (Shark) और व्हेल जो कि स्तनधारी जीव हैं, क्या इन्हें खाना उचित है?
एक हदीस (इस्लामिक पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कार्यों या आदतों का वर्णन करने वाले विवरण या रिपोर्ट) के अनुसार, अबू उबैदा इब्न अल-जर्राह अपने साथियों के साथ एक बार अपनी यात्रा के समय, जब उनके पास भोजन समाप्त हो गया तो 18 दिनों तक एक मछली को खाकर जीवित रहे। यह मछली व्हेल थी ।हालांकि आज जब यह सर्व विदित है कि व्हेल एक स्तनपायी है न कि मछली। तो अगर हनाफ़ियों के अनुसार केवल मछली हलाल है, तो क्या व्हेल हलाल है? हालांकि, इब्न आबेदीन ने पुष्टि की कि अगर शुरुआती अरबी लोग व्हेल को मछली मानते हैं, तो हम भी इसे मछली मानेंगे । इसलिए इसे हलाल होना चाहिए।
इस्लाम में एक फतवा (संख्या 1116/1138/L=09/1436) जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि प्राणी वैज्ञानिकों द्वारा दी गई मछली की परिभाषा को व्हेल पर भी लागू किया जाना चाहिए। यदि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई स्तनधारियों की परिभाषा व्हेल पर सटीक बैठती है, जो एक रीढ़ की हड्डी वाला प्राणी है जो केवल पानी में रहता है और गलफड़ों से सांस लेता है, तो उसे स्तनपायी होने के बावजूद इसे खाने की अनुमति दी जाती है। मुफ्ती किफायतुल्लाह साहब का मानना है कि व्हेल, जिसे वह अनबर मछली कहते हैं, इस परिभाषा के अंतर्गत आती है और इसलिए इसे खाना वास्तव में हलाल (अनुमेय) है।
संदर्भ
https://rb.gy/u6jlv
https://rb.gy/vkayg
https://rb.gy/5uvb8
https://rb.gy/xll2y
https://rb.gy/x9t14
चित्र संदर्भ
1. व्हेल मछली के मांस को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. ब्लू व्हेल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक जहाज और एक व्हेल मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग के सदस्यों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. फिन व्हेल को दर्शाता चित्रण (Flickr)
6. जोनाह और व्हेल को दर्शाता चित्रण (Picryl)
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