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जौनपुर के बालूघाट बाईपास रोड पर स्थित माणिक चौक के बावनवीर हनुमान मंदिर के बारे में यह माना जाता है कि इस मंदिर में मनोकामना लेकर आया कोई भी भक्त, हनुमानजी की परम कृपा से इस दरबार से कभी भी खाली हाथ नही जाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित हनुमानजी की 28 फुट की विशाल प्रतिमा, पवनपुत्र के कई भक्तों को आकर्षित करती है, विशेष रुप से हनुमान जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर, जब शहर भर से भक्त हनुमानजी के प्रति अपनी भक्ति एवं समर्पण भाव के साथ मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मंदिर में विशाल वटवृक्ष की छांव में विद्यमान माँ दुर्गा, बाबा भोलेनाथ, एवं श्री बावन वीर हनुमानजी की प्रतिमा का अनुपम संग्रह बड़ा ही मनोरम लगता है। आज हनुमान जन्मोत्सव के इस शुभ अवसर पर यहां आकर मंदिर में बजरंगबली के दर्शन करना तथा रामचरितमानस के सुंदरकांड का श्रवण एवं पाठ करना विशेषतौर पर फलदायी साबित होता है। आज, हनुमान जन्मोत्सव के इस शुभ अवसर पर हम पवित्र सुंदरकांड की व्यापक समझ प्राप्त करेंगे।
सुंदरकांड, प्राचीन हिंदू महाकाव्य रामायण का एक महत्वपूर्ण अध्याय या भाग है। इसे "सुंदर अध्याय" के रूप में जाना जाता है। मूल सुंदर कांड को महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखा गया था, जो मूल रामायण के रचयिता माने जाते हैं। माना जाता है कि हनुमान जी को उनकी मां अंजना प्यार से सुंदरा बुलाती थी जिसके कारण ऋषि वाल्मीकि ने अपने इस पाठ का नाम सुंदरकांड रखा, क्योंकि सुंदरकांड मूलतः हनुमान जी के जीवन दर्शन पर केंद्रित है। संपूर्ण रामायण में सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो मुख्य पात्र के रूप में रामजी पर नहीं, बल्कि हनुमानजी पर केंद्रित है। हनुमान जी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक लोकप्रिय चरित्र हैं, जो अपनी निःस्वार्थता, शक्ति और प्रभु श्री राम के प्रति अपने समर्पण एवं भक्ति के लिए जाने जाते हैं। सुंदर कांड में, हनुमान जी माता सीता को खोजने के लिए लंका की यात्रा पर जाते हैं, जिनका राक्षस राजा रावण द्वारा अपहरण कर लिया जाता है।
सुंदरकांड में घटित होने वाली प्रमुख घटनाएं निम्नवत दी गई हैं:
➼जब हनुमान जी को पता चलता है कि माता सीता का अपहरण कर लिया गया है, तो वह उन्हें खोजने के लिए लंका की यात्रा करने का फैसला करते हैं।
➼जामवंत द्वारा अपनी विस्मृत शक्तियों का पुनः ध्यान दिलाने पर, हनुमान जी अपना विशाल रूप धारण करते हैं, और देवताओं द्वारा भेजी गई, नागों की माता सुरसा तथा सिंहिका को पराजित करने के बाद, सौ योजन समुद्र को एक ही छलांग में लांघ कर लंका पहुंच जाते हैं। लंका पहुंचकर, हनुमान जी, माता सीता की खोज करते हैं और अंत में उन्हें अशोक वाटिका में पाते हैं।
➼यहां पर माता सीता को राक्षसी रक्षिकाओं द्वारा, रावण से विवाह करने के लिए लुभाया और धमकाया जाता है।
➼अशोक वाटिका में हनुमान जी माता सीता को आश्वस्त करने के लिए उन्हें प्रभु राम की मुहर वाली अंगूठी सद्भावना के संकेत के रूप में देते हैं।
➼वह माता सीता से वापस राम के पास चलने का आग्रह भी करते हैं, हालांकि, सीता जी मना कर देती हैं और कहती हैं कि वह केवल अपने पति प्रभु श्री राम के साथ ही अयोध्या वापस लौटेंगी।
➼इसके बाद हनुमान जी लंका में कहर बरपाते हैं और रावण के योद्धाओं को मार डालते हैं। वह जानबूझकर खुद को रावण के सामने बंदी बनकर आ खड़े हो जाते हैं।
➼वह माता सीता को छुड़ाने के लिए रावण से वाद विवाद भी करते हैं। किन्तु इसके बाद उनकी भारी निंदा की जाती है और उनकी पूंछ में आग लगा दी जाती है।
➼लेकिन इसके तुरंत बाद वह खुद को आज़ाद करते हुए रावण की पूरी लंका में आग लगा देते हैं और एक विशाल छलांग लगाकर पुनः माता सीता की खोज की सुखद खबर के साथ किष्किंधा लौट आते हैं।
पवित्र सुंदर कांड को पारंपरिक रूप से हिंदुओं द्वारा रामायण का पाठ शुरू करने से पहले पढ़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सुंदर कांड का पाठ करने से घर में सद्भाव और समृद्धि आती है। कई हिंदुओं का यह भी मानना है कि अगर किसी के पास पूरी रामायण पढ़ने का समय नहीं है, तो उसे केवल सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। इसे अक्सर मंगलवार या शनिवार को पढ़ा जाता है, जिन्हें हनुमान जी की प्रार्थना करने के लिए विशेष दिन माना गया है। सूर्य और छाया के पुत्र, शनि के कोप के प्रभाव को कम करने के लिए सुंदरकांड के पाठ का विशेष महत्व है। रामायण में वर्णित एक कथा के अनुसार हनुमान जी ने रावण के महल में कैद शनि देव को मुक्त कराया था, जिसके लिए धन्यवाद के प्रतीक के रूप में शनि देव ने हनुमान जी के सभी भक्तों को राहत प्रदान करने का वचन दिया। एक अन्य कथा के अनुसार, हनुमान जी ने शनिदेव को अपने सितारों को प्रभावित करने के लिए अपने कंधों पर चढ़ाया था जिस का आभार व्यक्त करने के लिए भी शनिदेव हनुमान जी के भक्तों पर विशेष कृपा रखते हैं।
सुंदर कांड के कई भाषाओं में अलग-अलग संस्करण हैं । इनमें से एक संस्करण संत तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया है, जिसे हम सभी श्री रामचरितमानस के नाम से जानते हैं । श्री रामचरितमानस 16वीं शताब्दी में बहुत बाद में लिखा गया था। हालांकि, तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के सुंदर कांड की घटनाएं वाल्मीकि के सुंदर कांड से काफी विस्तृत है। इस संस्करण में सुंदर कांड से परे की घटनाएँ जैसे प्रभु श्री राम की अपनी सेना के साथ यात्रा, शिव से उनकी प्रार्थनाएँ, और विभिन्न अन्य पात्रों के साथ उनकी बातचीत आदि भी शामिल हैं।
अगर संपूर्ण रामायण की बात की जाए तो इस पवित्र ग्रन्थ के विभिन्न भाषाओं में अन्य संस्करण भी हैं। उदाहरण के लिए, कंबर द्वारा लिखित ‘रामावतारम’ एक लोकप्रिय तमिल संस्करण है, जबकि गोना बुद्ध रेड्डी द्वारा लिखित ‘रंगनाथ रामायणम’ एक तेलुगु संस्करण है। एम. एस. रामाराव ने हनुमान चालीसा और सुंदर कांड का तेलुगु संस्करण ‘सुंदरकांडमु’ भी लिखा है।
इन संस्करणों के अलावा, सुंदरकांड का ‘अध्यात्म रामायणम किलिपट्टु’ के नाम से एक स्वतंत्र मलयालम अनुवाद है जिसे थुंचथथु रामानुजन एझुथचन द्वारा लिखा गया था। थुंचथथु रामानुजन एझुथचन जी को आधुनिक मलयालम भाषा का जनक माना जाता है। उन्होंने रामानंदी संप्रदाय से जुड़े संस्कृत ग्रंथ अध्यात्म रामायण का भी अनुवाद किया है ।
संदर्भ
https://bit.ly/40RON89
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के बावनवीर हनुमान मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (Facebook "Shri Bavanveer Hanuman Trust")
2. सामने से देखने पर बावनवीर हनुमान मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. अशोक वाटिका में माता सीता एवं हनुमान जी की भेंट को संदर्भित करता एक चित्रण (Creazilla)
4. सुंदरकांड पठन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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