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अक्सर ‘मछली की रानी’ के रूप में वर्णित हिल्सा मछ्ली उसके स्वाद और गंध के लिए पसंद की जाती है। इसे तलने या पिसी हुई सरसों में पकाने पर इसका स्वाद लिया जा सकता है। एक किलोग्राम वजन की एक बड़ी हिल्सा लगभग 2,700-2,800 रुपये में बिकती है। इसलिए, एक बड़ी हिल्सा को पकड़ना वास्तव में एक बड़ी बात है। हिल्सा की कीमत, इसकी मांग और उपलब्धता के आधार पर तय की जाती है। हालांकि, उच्च दरों के बावजूद भी लोग इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण इस मछली को खरीदते हैं।
हिल्सा एक प्रवासी मछली है, जो अत्यंत तीव्र गति से तैरती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) के दौरान और जनवरी से अप्रैल के महीने में हिलसा तटीय जल में रहती है और अप्रैल के बाद प्रजनन के लिए यह नदियों के पानी में प्रवास करती है। यह मछली 11 देशों में पाई जाती है। प्रवास से पहले, हिल्सा मछली उत्तर प्रदेश में प्रयागराज तक आ जाती थी। लेकिन, पश्चिम बंगाल में 1975 में गंगा नदी पर बने फरक्का बैराज के निर्माण के बाद, हिल्सा का प्रवास बाधित हो गया है । प्रवास नहीं कर सकने के कारण भारत में उनकी संख्या कम हो गई। वैश्विक स्तर पर भी, अत्यधिक चलनशील हिल्सा अब केवल बांग्लादेश-भारत-म्यांमार के तटीय हिस्सों में अत्यंत संकीर्ण क्षेत्र में ही पाई जाती हैं। प्रदूषण मछली जैसे जलीय जीवों के लिए तनाव का कारण बनता है। हिल्सा की संख्या में गिरावट के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेदार है। जबकि, हिल्सा के लिए पांच प्रमुख खतरों में प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ना, बांधों और बैराजों द्वारा बाधा, नदी की गाद एवं जलवायु परिवर्तन शामिल है। ‘केंद्रीय अंतर्देशीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान’ (Central Inland Fisheries Research Institute) ने बताया है कि भारत सरकार ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’, जिसे ‘नमामि गंगे परियोजना’ का नाम दिया गया है के तहत नदी में हिल्सा की संख्या सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है। मछुआरे इसमें महत्वपूर्ण हितधारक हैं।
गंगा नदी में 190 प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं । फरक्का और फ्रेजरगंज के बीच गंगा के किनारे रहने वाले मछुआरों के सामाजिक-आर्थिक आकलन से पता चला है कि हिल्सा जैसी मछलियों की किस्में उनकी आय में 38.84% का योगदान करती हैं। किंतु अब फरक्का और प्रयागराज-कानपुर के बीच गंगा के किनारे रहने वाले मछुआरे हिल्सा से वंचित हैं। हालांकि, एक समय हिल्सा दिल्ली और आगरा की यमुना नदी में भी पाई जाती थी।
‘केंद्रीय अंतर्देशीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान’ के अनुसार, “गंगा नदी पर बना फरक्का बैराज हिलसा मछली के प्रवास के लिए प्राथमिक बाधा है। इसलिए, यदि हिल्सा को बैराज के नीचे की धारा में पकड़ा जाता है और ऊपर की धारा में छोड़ा जाता है, तो हिल्सा के प्रवास के दृष्टिकोण से यह सुविधाजनक होगा।”
अतः अब हिल्सा मछली के प्रवास और प्रजनन के उद्देश्य से ‘केंद्रीय अंतर्देशीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान’ ने फरक्का बैराज से 74,962 किशोर हिल्सा मछलियों को ऊपरी धारा में छोड़ा है। राजमहल, भागलपुर और बलिया के मछुआरों ने इस क्षेत्र में हिल्सा होने की पुष्टि की है। इसके अलावा हिल्सा के 10.82 लाख निषेचित अंडे भी गंगा नदी में छोड़े गए हैं और फरक्का में ऊपर की ओर एक स्फुटनशाला (Hatchery) भी बनाई गई है। स्फुटनशाला से यहां अभिप्राय मछली पालने के स्थान से है। हाल ही में, मिर्जापुर की नदी में भी हिल्सा मछलियों को देखा गया। हिल्सा का मिर्जापुर पहुंचना इस बात का संकेत है कि गंगा धीरे-धीरे साफ हो रही है। नदी के पानी में ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ गया है क्योंकि हिल्सा बहुत तेजी से तैरती है और इसे बहुत अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
हिल्सा के संरक्षण के उपायों के रूप में, इसके बारे में जागरूकता पैदा करना, प्रजनन के मौसम में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाना, मछली पकड़ने के लिए नायलॉन (Nylon) के जाल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और मछली पकड़ने के लिए नदियों को जहरीला बनाने पर प्रतिबंध लगाना आदि को अपनाया जा सकता है। 2020 और 2022 के बीच, संस्थान ने हिल्सा के संरक्षण के लिए फरक्का और प्रयागराज के बीच 440 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें कुल 18,326 मछुआरों ने भाग लिया था। पश्चिम बंगाल सरकार भी कुछ नदी क्षेत्रों को अभयारण्य घोषित करके हिल्सा के संरक्षण के लिए कदम उठा रही है।
हिल्सा इंडो-पैसिफिक (Indo Pacific) क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक मछलियों में से एक है। बांग्लादेश, भारत और म्यांमार द्वारा दुनिया में कुल हिल्सा मछली उत्पादन में 96% से अधिक योगदान दिया जाता है । बांग्लादेश हिल्सा का शीर्ष उत्पादक देश है इसके बाद म्यांमार और फिर भारत का स्थान है। हिल्सा के कुल उत्पादन का लगभग 86% अकेले बांग्लादेश में होता है। 2010 और 2015 के बीच, हिल्सा का बांग्लादेश में 86.7%, भारत में 8% और म्यांमार में 4% उत्पादन किया गया था। हिल्सा की मांग भारत में बहुत अधिक है जिसके कारण पर्याप्त आपूर्ति के लिए भारत बांग्लादेश पर निर्भर है। क्योंकि दोनों देश मैत्रीपूर्ण संबंध साझा करते हैं, अतः बांग्लादेश द्वारा भारत की हिल्सा मांग की आपूर्ति की जाती है । बांग्लादेश सरकार ने 2022 में भारत को 2,450 मीट्रिक टन हिल्सा के निर्यात की अनुमति दी थी। हालांकि, आमतौर पर वर्तमान में किसी भी देश को हिल्सा का निर्यात नहीं किया जा रहा है।
बांग्लादेश में हिलसा संरक्षण के लिए चार महत्वपूर्ण रणनीतिक उपायों पर जोर दिया जा रहा है । इसमें अभयारण्यों की स्थापना करके किशोर हिल्सा मछलियों की सुरक्षा करना; उनके प्रजनन के मौसम और संरक्षण के दौरान प्रजनन या अंडे देने वाली जगहों के आसपास की स्थितियों को सुविधाजनक बनाना; हर साल 65 दिन (20 मई से 23 जुलाई) तक समुद्र में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध; और हिल्सा के प्रजनन और देखभाल के समय गरीब मछुआरा समुदाय को सब्सिडी देना शामिल हैं। इन्हीं उपायों के कारण बांग्लादेश में 2008-09 के 2.98 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर हिलसा का उत्पादन 2019-20 में लगभग दोगुना होकर 5.65 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
हिल्सा मछली की लोकप्रियता न केवल बांग्लादेश में, बल्कि इसके भारतीय जातीय-सांस्कृतिक समकक्ष, पश्चिम बंगाल में भी अत्यधिक है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत को पद्मा और मेघना नदियों से हिल्सा के निर्यात की अनुमति दी है, जिसमें पश्चिम बंगाल सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता है। खरीदारों की लंबी कतारें न केवल कलकत्ता के बाजारों में बल्कि उपनगरीय कस्बों में भी बांग्लादेश से आई हिल्सा का स्वागत करती हैं। पद्मा नदी की हिल्सा को लेकर लोगों के बीच खरीदारी के लिए उत्साह मुख्यतः दो कारणों से है। पहला, यह पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए स्वाद की दृष्टि से अनोखी है । जबकि दूसरा कारण, पश्चिम बंगाल की नदियों में घटती हुई हिल्सा की संख्या है।
हिल्सा बांग्लादेश में बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक और पोषण संबंधी खाद्य सामग्री है। इसलिए, जब हिल्सा भंडार की स्थिति और इसकी दीर्घकालिक स्थिरता के बारे में चिंताएँ सामने आईं, तो बांग्लादेश सरकार ने पूरी गंभीरता के साथ इस मामले पर ध्यान दिया ।
यदि हिल्सा भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली में प्रवास करना बंद कर देती हैं, तो इससे पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में मानव प्रवासन को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि बंगाल की आबादी का एक बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से मछली पर निर्भर है। पश्चिम बंगाल के दक्षिणी जिलों के मछुआरे पहले से ही बेहतर संभावनाओं के लिए पश्चिमी तट की ओर पलायन कर रहे हैं, क्योंकि हिलसा की घटती पकड़ ने उनकी आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस स्थिति में, पश्चिम बंगाल को पद्मा नदी से आयातित हिल्सा पर ही निर्भर होना पड़ेगा । अधिक निर्यात की स्थिति में बांग्लादेश द्वारा तीस्ता नदी के पानी के लिए सौदेबाजी की भी संभावना बढ़ जाती है जो अभी पश्चिम बंगाल के विरोध के कारण उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3JYt479
https://bit.ly/3JPYBYO
https://bit.ly/3JTzyUF
चित्र संदर्भ
1. मृत हिल्सा मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. इलिश या हिल्सा मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बाजार में बिक रही हिल्सा मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बर्फ में ढकी हिल्सा मछली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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