जौनपुरी संगीत

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
31-05-2017 02:38 PM
जौनपुरी संगीत
जब भी संगीत का स्वर हमारे कर्णबिन्दुओं मे सुनाई देते है मानो प्रतीत होता है की समस्त मंडल की प्राकृतिक व सांस्कृतिक खूबसूरती हमारे सामने आ गयी हो। यही कारण रहा है की प्राचीन काल से ही मनुष्य ने संगीत को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ओहदा दिया। तानसेन, बैजू बावरा आदि संगीत के परम पराकाष्ठा को छूने वाले संत थे जिन्होने अपनी गायकी व संगीत से विश्व भर मे अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। गायकी व संगीत में वाद्ययंत्रों का एक बहोत उत्तम व महत्वपूर्ण स्थान होता है। बिना वाद्ययंत्रों के विभिन्न प्रकार की धुनो का आना सम्भव नही होता। भारत में कई प्रकार के वाद्ययंत्र पाए जाते हैं उनमे से एक है मृदंग जो की आकार में एक तरफ मोटा (चौड़ा) होता है तथा दूसरी तरफ पतला यह ढोलक की तरह ही दिखता है। परन्तु इन दोनों के आवाज व बजने की कला में कई अंतर होते हैं। जौनपुर प्राचीन काल से ही गायन का केंद्र रहा है। यहाँ पर कई मशहूर गीतकारों व गायकों ने जन्म लिया है जिनमें से एक थे गुरुबख्श राय। जब गुरु तेग़ बहादुर पटना में अपने परिवार को छोड़ के निकले तो उन्होंने जौनपुर में अपना पड़ाव डाला और यहीं पर उनकी मुलाकात गुरुबख्श राय से हुयी। गुरुबख्श की गायकी से प्रभावित होकर गुरु तेग़ बहादुर ने गुरुबख्श को एक मृदंग भेंट स्वरुप दिया, जो वो बंगाल से लाये थे। 1. गुरु तेग बहादुर- अ बायोग्राफी: सुरिंदर सिंह जोहर, अभिनव प्रकाशन, नई दिल्ली 1975