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विकासशील देशों में सड़कों का निर्माण अक्सर विकास का एक पर्याय बन जाता है। जब विकास के लिए सड़कों एवं राजमार्गों का निर्माण किया जाता है तो इससे सभी को लाभ होता है जैसे कि, इससे राजनीतिक दलों को प्रचार के रूप में कई लाभ मिलते हैं; वाहन चालकों को वाहन की गति के रोमांच का आनंद मिलता है; कुशल और अकुशल मजदूरों को रोजगार मिलता है, दूरियां कम हो जाती हैं और कहीं भी जाने में समय की बचत भी होती है । रास्तें क्षेत्रों को जोड़ते हैं और उन क्षेत्रों की संयोजकता में सुधार करते हैं, लेकिन इनके निर्माण के कारण कई प्रकार की मानवीय, पर्यावरणीय और सामाजिक क्षति भी होती है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आइए इस विषय को समझते हैं।
एक तरफ़, हमारे जौनपुर जिले की कई प्रमुख सड़कों की हालत खस्ता है। गड्ढों के कारण राहगीरों को चलना भी मुश्किल हो रहा है। इनकी मरम्मत के लिए लगातार मांग की जा रही थी। पिछले दिनों जिले के लोक निर्माण विभाग की ओर से कई सड़कों की मरम्मत का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। और अब हमारे लिए एक खुश खबर यह है, कि जिले की बदहाल हो चुकी कई सड़कों की दशा शीघ्र सुधारी जाएगी। इसके लिए शासन की ओर से 14 करोड़ 64 लाख रुपए की स्वीकृति मिल गई है। इसमें 110 सड़कों, जिनकी लंबाई 28.52 किलोमीटर है, की मरम्मत के साथ नवीनीकरण करने के लिए स्वीकृति मिल गई हैं। पहली 1 करोड़ 64 लाख रुपये की किस्त आवंटित भी हो गई है। इस धनराशि से बक्शा, सिकरारा, सिरकोनी, जलालपुर, केराकत, डोभी, मुक्तीगंज आदि क्षेत्रों की बदहाल सड़कों की मरम्मत के साथ नवीनीकरण कराया जाएगा। प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद इन सड़कों पर कार्य शुरू हो जाएगा।
और एक अच्छी बात यह है कि, इन सड़कों की जर्जर हालत को सुधारने से करीब एक लाख लोगों को लाभ मिलेगा। बक्शा, सिकरारा, सिरकोनी, जलालपुर आदि क्षेत्रों में सड़कों के नवीनीकरण होने से इन सड़कों से आवागमन करने वाले स्कूली छात्रों, मरीजों और आम आदमी को लाभ मिलेगा।
सड़क निर्माण को लेकर एक और विषय चर्चा में है। क्या आपकों, इन सड़क निर्माण परियोजनाओं के चलते हमारे जिले को जिन कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है, उसके बारे में पता है? सड़क हादसों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद भी वाहनों की गति नियंत्रण पर बातचीत आज भी अधूरी है। हालांकि खुली और चौड़ी सड़कें कई लोगों को राहत देती हैं और जौनपुर में कुछ भू-स्वामियों को उनके खेतों की भूमि पर बनने वाली कुछ किलोमीटर सड़क के लिए लगभग 100 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया गया था। एक व्यक्ति को 20 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये के बीच तक का भुगतान किया गया था। हालांकि यह राशि आश्चर्यजनक रूप से अधिक थी। किंतु उन्हें उनके खेतों में लगाए गए आम के पेड़ों के लिए भी भुगतान किया गया था, जिन्हें सड़क निर्माण हेतु काटा गया। ऐसा लगता है कि आगे चलकर हमारी पीढ़ियों को पेड़ों के बिना ही रहना पड़ेगा। और अगर इन काटे गए पेड़ों के स्थान पर नया वृक्षारोपण होता भी है, तो मात्र रास्तों की शोभा बढ़ाने के लिए बिना सोचे समझें ऐसे पेड़ लगा दिए जाते हैं, जिनका स्थानीय जलवायु एवं पारिस्थितिकी तंत्र से दूर–दूर तक संबंध नहीं होता है।
किसानों को जो भुगतान किया गया था, उसमें से 70% से ज्यादा पैसा किसान तीन सालों के पहले ही खत्म कर चुके है और शराब की खपत कई गुना बढ़ गई है। बेवजह पैसा खर्च करना आम हो गया है। जबकि, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच निराशाजनक ही है। पेड़ चले गए हैं, और साथ ही पेड़ों से बहने वाली स्वच्छ, ठंडी हवा भी चली गई है। अब लोगों को गर्मियों में ठंडक के लिए एयर कंडीशनर (Air conditioner) के अधिक इस्तेमाल की आवश्यकता होगी। गेहूँ और चावल की फ़सलों द्वारा गन्ने के खेतों का स्थान लेने के कारण ग्रामीण परिदृश्य पहले से ही संरचनात्मक रूप से खराब हो गया है । साथ ही, जौनपुर के अलावा देश के कई हिस्सों में, खासकर हिमालय क्षेत्र में राजमार्ग निर्माण के दौरान पर्यावरण को गंभीर नुकसान होने की चौंकाने वाली खबरें आ रही हैं। जो लोग निर्माण की प्रक्रिया में जान–माल खो रहे हैं उनके लिए मुआवजे पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। 297 किलोमीटर लंबी बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजना, जिसके द्वारा उत्तर प्रदेश में चित्रकूट और इटावा जिलों को जोड़ा जा रहा है, के लिए 1.89 लाख से अधिक पेड़ काटे गए थे।
पेड़ों की कटाई के साथ-साथ अवैज्ञानिक तरीकों से पहाड़ियों को काटकर निर्माण खर्च बचाने की प्रवृत्ति से भी गंभीर नुकसान हुआ है। पहाड़ी इलाकों में पहाड़ियों को तोड़ने के लिए विस्फोटकों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। । यदि एक राजमार्ग परियोजना यातायात अवरोधों, विलंबों और दुर्घटनाओं की आवृत्ति को बढ़ा देती है, तो समय के साथ-साथ सड़कों का विस्तार और चौड़ीकरण का उद्देश्य विफल हो जाता है। जम्मू और कश्मीर में उधमपुर से बनिहाल तक राजमार्ग को चौड़ा करने की परियोजना ने जम्मू क्षेत्र में जल स्रोतों, विशेष रूप से तवी नदी को तबाह कर दिया है। क्योंकि, निर्माण कार्य का पूरा मलबा तवी नदी में फेंका गया था। साथ ही रामबन शहर में जहां यह मलबा जमा है वहां लोगों ने सांस लेने में गंभीर समस्या की शिकायत भी की है।
इसके साथ ही यह भी एक तथ्य है कि भारत में कोई भी एजेंसी मेगा-निर्माण परियोजनाओं के दौरान जान गंवाने वाले लोगों की लागत की गणना नहीं करती है। जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग को चौड़ा (चार लेन) करने की परियोजना के हिस्से के रूप में चल रही सुरंग निर्माण परियोजना के स्थल पर 21 मई को रामबन में हुए एक भूस्खलन में खुदाई कर रहे दस मजदूरों की मौत हो गई।
आज भी हमारे देश में ऐसे कई गांव और कस्बे हैं जहां पहुंच के लिए सड़के नहीं है। हालांकि दूरस्थ स्थानों पर पहुंच के लिए सड़कों का निर्माण आवश्यक है किंतु आज हमें राजमार्ग विकास के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की गणना करने और फिर उन्हें कम करने के उपायों की आवश्यकता है। निर्माण गतिविधियों को पर्यावरण के साथ एकीकृत किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हमारे योजनाकारों और ठेकेदारों में सतत विकास की अधिक समझ की आवश्यकता है । लोगों को यह एहसास नहीं है कि पारिस्थितिक का नुकसान जितना अधिक होगा, सामाजिक लागत उतनी ही अधिक बढ़ेगी। भारी निर्माण कार्य के दौरान कई लोगों ने अपने घरों, आजीविका साधनों, रास्तों और खेतों को खो दिया है । अतः राजमार्ग निर्माण को पिछली गलतियों से सीख लेनी चाहिए। इस प्रक्रिया के लिए निष्पक्ष पूर्व-परियोजना आकलन और सामुदायिक परामर्श महत्वपूर्ण हैं। स्थानीय समुदाय का अच्छा उपयोग करना और शर्तों को समझना भी आवश्यक है। अन्यथा हमारा भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3K7RyME
https://bit.ly/40c7tyJ
https://bit.ly/3JI5BHh
चित्र संदर्भ
1. सड़क पर बने गड्ढे को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. सड़क पर बहते पानी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. सड़क किनारे कटे पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सड़क निर्माण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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