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दुग्ध उत्पादन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रमुख व्यवसाय माना जाता है। ‘खाद्य और कृषि संगठन कॉरपोरेट स्टैटिस्टिकल डेटाबेस’ (Food And Agriculture Organization Corporate Statistical Database (FAOSTAT) के आंकड़ों के अनुसार, “भारत, पूरी दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राष्ट्र है।” बढ़ती जनसंख्या के साथ भारत में दूध की मांग भी काफी बढ़ गई है , जिस कारण व्यावसायिक स्तर पर दुधारू गायें पालना एक लाभदायक सौदा साबित हो रहा है। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से भारत में विदेशी और संकर गायों का प्रतिशत भी कई गुना बढ़ चुका है।
पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairying (DAHD) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2020-21 के दौरान 209 मिलियन टन दूध का सर्वकालिक उच्च उत्पादन दर्ज किया गया है, जिसमें से आधे से अधिक दूध गायों से आया है। कई वर्षों के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब देश में दूध उत्पादन के मामले में गायों ने भैंसों को पीछे छोड़ दिया है। गायों की इतनी दूध उत्पादकता बढ़ने का श्रेय पशु संकरण (Crossbreeding) को भी दिया जा रहा है। पशु संकरण के तहत दो अलग-अलग नस्लों या किस्मों के जानवरों के बीच प्रजनन कराया जाता है। ऐसा दोनों नस्लों के जानवरों के वांछनीय गुणों को आपस में जोड़कर पशु आबादी के आनुवंशिकी में सुधार करने के लिए किया जाता है। पशु संकरण ने डेयरी किसानों के लिए गाय पालन को अधिक आकर्षक विकल्प बना दिया है। अब डेयरी किसानों का रुझान विदेशी एवं संकरित गाय पालन की तरफ बढ़ रहा है। आज हमें कुल दूध का 31% उत्पादन विदेशी और संकरित गायों से ही प्राप्त हो रहा है। जबकि 2016-17 में यह उत्पादन 26.5% के करीब था।
2012 से 2019 के बीच विदेशी और संकरित (Hybrid) गायों की आबादी में 26% की वृद्धि हुई है, और इसी के परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ डेयरी व्यवसाय में भी वृद्धि दर्ज की गई है। लेकिन इसके विपरीत दूध उत्पादन में देशी गायों की हिस्सेदारी लगातार कम बनी हुई है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई), करनाल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में विदेशी एवं संकरित गायों की आबादी कुल दुधारू पशु आबादी का लगभग 20.5% है किंतु इस की तुलना में उनके द्वारा दूध उत्पादन 28% है। वही दूसरी ओर देसी गायों की आबादी 38% है जबकि उनके द्वारा दूध उत्पादन केवल 20% ही है।
इसी कारण भारत सरकार द्वारा स्वदेशी मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसानों को जानवरों के पात्रे निषेचन या ‘इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन’ (In Vitro Fertilization (IVF) हेतु 5,000 रुपये की सब्सिडी (Subsidy) देकर 2014 में ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ (Rashtriya Gokul Mission) शुरू किया गया । यह निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया होती है, जिसमें किसी मादा के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से (शरीर के बाहर किसी अन्य पात्र में) कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को मादा के गर्भाशय में रख दिया जाता है। इन तरीकों को अपनाकर रेड सिंधी (Red Sindhi), थारपारकर (Tharparkar), साहीवाल (Sahiwal) और गिर (Gir) जैसी देसी गायों की नस्लें बेहतर पैदावार देती हैं।
भारत में मवेशियों की आबादी पर आधारित सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नए आंकड़ों से पता चलता है कि देश में 20 करोड़ की कुल दुधारू मवेशियों की आबादी में लगभग 26.5% जानवर, विदेशी और संकरित हैं, जबकि शेष 73.5% जानवर स्वदेशी और गैर-वर्गीकृत श्रेणियों से संबंधित हैं। देश में पाले जाने वाले सबसे आम संकरित मवेशियों में 55% ‘जर्सी’ (Jersey) और 43% ‘होल्स्टाइन फ्रीज़ियन’ (Holstein Friesian) नस्लें हैं। स्वदेशी मवेशियों की आबादी को 41 मान्यता प्राप्त नस्लों में विभाजित किया जा सकता है जिनमें ‘गिर', ‘लखीमी' और ‘साहीवाल' सबसे लोकप्रिय हैं।
आमतौर पर विदेशी या संकरित जानवरों के दूध को अधिक पौष्टिक नहीं माना जाता था लेकिन हाल ही में, वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक आनुवंशिक रूप से ऐसी संशोधित गायों (Transgenic) की ब्रीडिंग (Breeding) की है, जिनके दूध की पौष्टिकता मानवीय दूध के समान ही होती हैं। इन गायों के दूध में उच्च स्तर के प्रमुख पोषक तत्व होते हैं जो शिशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन ट्रांसजेनिक गायों का दूध, मानवीय दूध और संसाधित दूध (Formula Milk) दोनों का विकल्प प्रदान कर सकता है।
एक शोध के तहत तकरीबन 300 डेयरी गायों में मानव जीन को शामिल करके, इन्हें आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया । ट्रांसजेनिक गायें (Transgenic Cows) आनुवंशिक रूप से संशोधित गायें होती हैं, जिनके डीएनए (DNA) में एक अतिरिक्त जीन (Gene) डाला जाता है, जिससे उनके दूध में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
वैज्ञानिक किसी भी जानवर में विदेशी जीन डालकर ट्रांसजेनिक जानवर पैदा कर सकते हैं। आज तक, वैज्ञानिकों द्वारा ट्रांसजेनिक जानवरों के उत्पादन की तीन बुनियादी विधियाँ (डीएनए माइक्रो इंजेक्शन (DNA Microinjection), रेट्रोवायरस-मध्यस्थता जीन स्थानांतरण (Retrovirus-Mediated Gene Transfer) और भ्रूण स्टेम सेल-मध्यस्थता जीन स्थानांतरण (Embryonic Stem Cell-Mediated Gene Transfer) खोजी गई हैं। डीएनए माइक्रो इंजेक्शन, ट्रांसजेनिक फार्म जानवरों के उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे प्रमुख विधि होती है।
ट्रांसजेनिक जानवरों के दूध का उपयोग दवाओं, प्रोटीन, कैल्शियम जैसे पोषक तत्वों की खुराक और फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals) बनाने के लिए किया जा सकता है। ट्रांसजेनिक जानवरों से प्राप्त दूध में इंसुलिन (Insulin), वृद्धि हार्मोन (growth hormone) और रक्त के थक्का रोधी कारक (Anticoagulant Factors Of The Blood) भी शामिल होते हैं।
हालांकि, ट्रांसजेनिक जानवरों के कार्यान्वयन से पहले जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के विभिन्न नैतिक, कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस बात पर भी बहस चल रही है कि मानव लाभ के लिए जानवरों को आनुवंशिक रूप से संशोधित करना वास्तव में नैतिक है भी या नहीं। हालांकि इन विवादों के बावजूद, वैज्ञानिकों का मानना है कि ट्रांसजेनिक जानवरों का दूध मानवीय दूध और गाय के दूध का संभावित विकल्प प्रदान कर शिशुओं और बुजुर्गों को पोषण प्रदान करने में हमारी काफी मदद कर सकता है ।
संदर्भ
https://bit.ly/3TM0gD9
https://bit.ly/3ZxBUyB
https://bit.ly/3nrTBSs
चित्र संदर्भ
1. दूध दुहते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. प्रजातियों के आधार पर दूध के अनुपात (2017-18) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रेनिगुंटा जंक्शन पर ऑपरेशन फ्लड नामक दूध ले जाने वाली एक रेल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गाय का दूध दुहती युवती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. डीएनए माइक्रो इंजेक्शन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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