पूरे विश्व में कई संस्कृतियों में फूलों से बनी मालाओं का उपयोग सम्मान, शुद्धता, सौंदर्य, शांति, प्रेम और जुनून के प्रतीक के रूप में किया जाता है। माला में पिरोए गए फूल और पत्ते, अनादि काल से ही श्रृंगार के रूप में पहने जाने के साथ-साथ सजावट के रूप में भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
हिन्दू समाज में प्रारंभ से ही अलौकिक रूप में फूलों का प्रयोग किया जाता रहा है । भारतीय संस्कृति में आनंदमय समारोह सदैव फूलों की सुगंध के साथ ही मनाए जाते हैं । फूलों की मालाओं को आज भी उनकी आभा और सुगन्ध के लिए पसंद किया जाता है। फूल, पुरुषों और महिलाओं द्वारा देवताओं की आराधना के लिए एक माला के रूप में उपयोग किए जाते हैं । धार्मिक अनुष्ठानों में फूलों का और भी अधिक महत्व है। भव्य मंदिरों में, घरेलू अनुष्ठानों में, और भक्तिमय सार्वजनिक समारोहों में फूलों की मालाएँ देवताओं को अर्पित की जाती हैं। हिंदू आराधना अनुष्ठान का एक अन्य नाम ‘पूजा’ भी, जिसका अर्थ “फूलों की विधि” होता है, धार्मिक संदर्भ में फूलों के महत्व पर जोर देता है।
पहले ब्राह्मणों में स्नान के बाद भगवान को अर्पण करने के लिए फूल इकट्ठा करने की प्रथा भी प्रचलित थी। बस यूं मान लीजिये कि फूल आत्मा के भोजन समान है!
फूलों का व्यापार आज भी भारत में एक फलता-फूलता उद्योग है। माला बनाने के लिए सुगंधित फूलों को अन्य फूलों की तुलना में अधिक पसंद किया जाता है। भारत में, फुलों की माला बनाने के लिए सबसे पसंदीदा फूल लाल गुलाब, चंपा, पारस, चमेली और गेंदा हैं। हालाँकि, धार्मिक संदर्भ में फूलों के उपयोग के संबंध में अधिक सार निहित है। विशेष फूलों को विशेष देवताओं से जोड़ा जाता है; और यह हमने कभी न कभी तो देखा ही है। मालाओं का उपयोग केवल देवताओं और व्यक्तियों के लिए ही नहीं बल्कि सड़कों, घरों, महलों और यहां तक कि शहरों को भी सजाने के लिए किया जाता है।
शुभ अवसरों के दौरान, प्रवेश द्वार की चौखट, जो एक घर की दहलीज को चिन्हित करती है, को तोरण से सजाया जाता है। तोरण फूलों और पत्तों से बनी एक माला होती है, जिसे स्वागत का प्रतीक माना जाता है। भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार, एक नई गतिविधि की शुरुआत, चाहे वह संस्कार का मार्ग हो, या नई संपत्ति जैसे वाहन या घर आदि का अधिग्रहण हो, माला के उपयोग से शोभित किया जाता है। दशहरे के त्यौहार पर, लोग अपने उस उपकरण या वाहन को सजाने के लिए माला का उपयोग करते हैं, जिस पर वे अपनी आजीविका के लिए निर्भर होते हैं। लंबी यात्रा पर जाने वाले या लौटने वाले परिवार के सदस्यों को भी, क्रमशः सौभाग्य और स्वागत के संकेत के रूप में मालाओं से विभूषित किया जाता है। उच्च स्तर के आतिथ्य के साथ मेहमानों का स्वागत करना भारतीय संस्कृति में शामिल है। यह देखते हुए कि मेहमानों के स्वागत की परंपरा प्राचीन भारतीय उक्ति ‘अतिथि देवो भव:’ पर आधारित है; देवताओं की तरह ही, मेहमानों का भी सद्भावना और सम्मान के प्रतीक के रूप में मालाओं से स्वागत किया जाता है।
फूलों की मालाओं में चंदन की माला काफी पसंद की जाती है। चेन्नई के चिंताद्रिपेट इलाके में आज भी तंजावुर से आए चंदन की लकड़ी और सूरत से आए मोतियों को एक साथ जोड़कर, चंदन की मालाएं बनाई जाती हैं। गणमान्य लोगों के लिए इन मालाओं में सिक्के, इलायची, बादाम और कपूर भी गूंथे जाते हैं। और तो और इन मालाओं को बनाने वाले कामगार इसे बहुत गर्व और सम्मान का प्रतीक मानते है।
भारत में फूलों के इस महत्व एवं उनकी बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में फूलों के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए प्रयास भी कर रही है। हमारी सरकार केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘राष्ट्रीय फ्लोरीकल्चर मिशन’ (National Floriculture Mission) के तहत राज्य में फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना तैयार करने हेतू ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific & Industrial Research (CSIR) द्वारा संचालित ‘राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान’ (National Botanical Research Institute (NBRI) के साथ हाथ मिलाने पर सहमत हो गई है। सरकार फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए चल रही कुछ योजनाओं में बदलाव पर भी विचार कर सकती है।
मार्च 2021 में स्थापित ‘सीएसआईआर फ्लोरीकल्चर मिशन’ का उद्देश्य वाणिज्यिक फूलों की फसलों और मधुमक्खी पालन के लिए फूलों की खेती तथा जंगली सजावटी पौधों पर ध्यान केंद्रित करना है; ताकि किसानों और फूलों के उद्योग को निर्यात आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर होने में मदद मिल सके। यहां फ्लोरीकल्चर का अर्थ फूलों की खेती से है। सीएसआईआर फ्लोरीकल्चर मिशन एक कृषि आधारित आय सृजन उद्यम है जिसमें विदेशी मुद्रा अर्जित करने और ग्रामीण और शहरी युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की उच्च क्षमता होती है।
हालांकि आज भी हमारा राज्य उत्तर प्रदेश अपनी फूलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य राज्यों से अधिकांश फूलों का आयात करता है, किंतु हमारे उत्तर प्रदेश में फूलों की खेती को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारे राज्य में, वाराणसी जैसे धार्मिक एवं प्राचीन स्थलों पर साल भर फूलों की मांग बनी रहती है । फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत लखनऊ के बंथरा और कन्नौज जिलों में दो डिस्टिलेशन यूनिट(Distillation units) लगाने का काम पहले से ही चल रहा है। सीएसआईआर-एनबीआरआई की प्रस्तुति के अनुसार, हमारे जौनपुर शहर के साथ-साथ वाराणसी, इलाहाबाद, आजमगढ़, चंदौली, सुल्तानपुर और गाजीपुर आदि उत्तर प्रदेश में फूलों की खेती करने वाले प्रमुख जिले हैं। कन्नौज गुलाब के उप-उत्पादों जैसे गुलकंद, गुलाब जल और गुलाब अर्क के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। जबकि गुलाब, रजनीगंधा, ग्लेडियोलाय (Gladiolus), गेंदा और चमेली मुख्य व्यावसायिक फूलों की खेती वाली फसलें हैं।
मालाओं की नाशवान प्रकृति मानवीय भावनाओं की नाजुकता का परिचायक है। बहरहाल, उनके अल्पायु जीवनकाल के बावजूद, माला पवित्रता, सम्मान, सद्भावना, प्रेम और सुंदरता की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनी हुई है। भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण राष्ट्र में, मालाओं के उपयोग के संबंध में कई मतभेद होते हैं; कुछ अंतर स्थानीय हैं, जबकि अन्य अंतर, क्षेत्रीय हैं। हालाँकि, प्राचीन भारतीय संस्कृति में फूलों की मालाओं द्वारा प्रदान किया गया प्रतीकवाद आज भी सही है।
संदर्भ
https://bit.ly/404Na6b
https://bit.ly/3ZZ0p8i
https://bit.ly/3JJzNDb
चित्र संदर्भ
1. श्रीनिवास पेरुमल की प्रतिमाओं में फूलों की माला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नारायण के गले में फूलों के हार को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. फूलों से निर्मित इंडिया गेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. फूल विक्रेता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. विविध प्रकार के फूलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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