मानव द्वारा की जाने वाली सैन्य गतिविधियों के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति में नाटकीय परिवर्तन देखे जाते हैं। मिट्टी के गुणों में युद्ध के कारण मूल रूप से तीन प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं - भौतिक, रासायनिक और जैविक । युद्ध के द्वारा शत्रु देश की मिट्टी में इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करने का उद्देश्य दुश्मनों के लिए प्रत्यक्ष समस्याएँ पैदा करने के साथ-साथ कई बार अप्रत्यक्ष एवं अवांछित प्रभाव डालना होता है।
नवंबर, 2022 में यूक्रेन (Ukraine) द्वारा खेरसॉन (Kherson) पर कब्जा करने के बाद, जब एंड्री पोवोड (Andrii Povod) अपने अनाज के खेत का ध्वस्त हिस्सा देखने के लिए वापस लौटे, तो उन्होंने पाया कि उनके दो ट्रैक्टर और अधिकांश अनाज गायब हो चुका था और फसलों और मशीनरी को स्टोर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सभी 11 इमारतों को या तो बम से उड़ा दिया गया था या फिर जला दिया गया था। इस खेत का परिदृश्य रूसी गोलाबारी और अस्पष्टीकृत आयुध के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दिखाता है हालांकि यह तो सिर्फ युद्ध के एक वर्ष के बाद यूक्रेन की प्रसिद्ध उपजाऊ मिट्टी पर कम दिखाई देने वाला नुकसान है जिस को ठीक करना भी अपने आप में एक कठिन कार्य है। जबकि असली नुकसान तो बाद में परिलक्षित होगा।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स (Reuters) की एक रिपोर्ट के अनुसार, " जब यूक्रेन के वैज्ञानिकों ने खार्किव (Kharkiv) क्षेत्र से मिट्टी के नमूने पर शोध किया तो उन्होंने पाया कि गोला बारूद आदि जैसी युद्ध सामग्री के कारण मिट्टी में पारा और आर्सेनिक जैसे विषाक्त पदार्थों की सांद्रता का स्तर बहुत उच्च हो गया है जो मिट्टी को प्रदूषित कर रहा है। ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (International Food Policy Research Institute (IFPRI) के अनुसार, इस वर्ष यूक्रेन में कम उत्पादक मूल्य और उच्च निवेश लागत के कारण अनाज का उत्पादन कम होने की संभावना है जिससे अनाज की कमी हो सकती है। आईएफपीआरआई के वरिष्ठ शोधकर्ता ‘जो ग्लॉबर’ (Joe Glauber) के अनुसार, "यूक्रेन में कम रोपण का मतलब है कि दुनिया को अनाज को एकत्र करने और मध्यम मूल्य स्तरों के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए अतिरिक्त अनाज और तिलहन का उत्पादन करने की आवश्यकता होगी।"
मिट्टी के नमूने और उपग्रह से भेजी गई तस्वीरों का उपयोग करते हुए, यूक्रेन के ‘मृदा विज्ञान और कृषि रसायन अनुसंधान संस्थान’ (Institute for Soil Science and Agrochemistry Research) के वैज्ञानिकों के द्वारा अनुमान लगाया गया है कि युद्ध के कारण अब तक पूरे यूक्रेन में कम से कम 10.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि बर्बाद हो चुकी है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि युद्ध में हुई गोलाबारी ने सूक्ष्मजीवों के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को भी प्रभावित किया है जो मिट्टी में विद्यमान विभिन्न तत्वों को नाइट्रोजन जैसे फसल पोषक तत्वों में बदल देते हैं , जबकि टैंकों के भारी वजन के कारण मिट्टी संकुचित होकर धस गई है, जिसके कारण जड़ों को पनपने में मुश्किल होगी ।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ क्षेत्रों में गोलाबारी के कारण इतने गहरे गड्ढे और खाईयां बन गई हैं कि विश्व युद्ध के युद्धक्षेत्रों की तरह, इन क्षेत्रों में कभी भी दोबारा खेती नहीं की जा सकती है ।
इसके अलावा यूक्रेन की सबसे उपजाऊ मिट्टी - जिसे चर्नोज़म (Chernozem) कहा जाता है - को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। चेर्नोज़म अन्य मिट्टी की तुलना में ह्यूमस, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती है और जमीन की ऊपरी सतह को 1.5 मीटर की गहराई तक ढकती है। युद्ध के कारण इस मिट्टी की प्रजनन क्षमता का अत्यधिक नुकसान हुआ है। मृदा संस्थान के निदेशक, सिवातोस्लाव बालियुक (Svyatoslav Baliuk) ने रॉयटर्स को बताया कि युद्ध के कारण हुई क्षति से यूक्रेन की संभावित अनाज की फसल में प्रति वर्ष 10 से 20 मिलियन टन की कमी हो सकती है जो 60 से 89 मिलियन टन के युद्ध-पूर्व उत्पादन के आधार पर एक तिहाई तक की कटौती हो सकती है।
मिट्टी को हुए नुकसान के अलावा, यूक्रेनी किसान कई क्षेत्रों में सिंचाई नहरों, फसल कोष्ठागारों और बंदरगाह टर्मिनलों के विनाश से भी जूझ रहे हैं। यूक्रेन की सबसे बड़ी अनाज उत्पादक कंपनियों में से एक, निबुलोन (Nibulon) के मुख्य कार्यकारी एंड्री वदातुरस्की (Andrey Vdatursky) के अनुसार, जमीन को गड्ढों एवं खाईयों से मुक्त करने में ही 30 साल लग जाएंगे। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के किसानों को व्यापार में बनाए रखने के लिए तत्काल वित्तीय मदद की जरूरत है। यूक्रेनी सरकार द्वारा बनाए गए मृदा वैज्ञानिकों के एक कार्य समूह का अनुमान है कि सभी खानों एवं गड्ढों को हटाने और यूक्रेन की मिट्टी को उसके पूर्व स्वास्थ्य में बहाल करने के लिए तकरीबन 15 अरब डॉलर का खर्चा होगा। और इसे ठीक करने में 3 साल से लेकर 200 साल से अधिक का समय भी लग सकता है जो नुकसान के प्रकार पर निर्भर करता है।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद मिट्टी के प्रदूषण का अध्ययन करने वाले कैंटरबरी क्राइस्ट चर्च यूनिवर्सिटी (Canterbury Christ Church University) में मिट्टी विज्ञान और पर्यावरण प्रबंधन में वरिष्ठ व्याख्याता नाओमी रिंटौल-हाइन्स (Naomi Rintoul-Hynes) के अनुसार, युद्ध सामग्री के कारण यूक्रेन में अपरिवर्तनीय क्षति हुई है। युद्ध सामग्री में इस्तेमाल किए जाने वाले विषाक्त रासायनिक पदार्थ वहां की मिट्टी में इस तरह मिल गए हैं कि वे वर्षों तक अपना दुष्प्रभाव छोड़ेंगे।
यूक्रेन के कृषि क्षेत्र, जो युद्ध से पहले इसके सकल घरेलू उत्पाद का 10% था, के लिए युद्ध के कारण एक और दीर्घकालिक समस्या उत्पन्न हो गई है। ‘कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ (Kyiv School of Economics) के अनुसार युद्ध के कारण यूक्रेन में सड़कों, रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे को $35.3 बिलियन तक का नुकसान हुआ है। वाशिंगटन (Washington) में स्थित ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ (Center for Strategic and International Studies) में वैश्विक खाद्य सुरक्षा के निदेशक केटलिन वेल्श (Caitlin Welsh) ने कहा, "लोग सोचते हैं कि जैसे ही शांति हासिल होगी, खाद्य संकट हल हो जाएगा। किंतु वास्तव में यूक्रेन में, बुनियादी ढांचे की मरम्मत में लंबा समय लगने वाला है।" यूक्रेन की प्रमुख कृषि कंपनी हार्वेईस्ट (Harvest) के मुख्य कार्यकारी दमित्री स्कोर्न्याकोव (Dmitry Skornyakov) ने कहा कि किसानों की आर्थिक स्थिति भी चरमरा गई है। किसान युद्ध से ठीक पहले वर्ष की आय से इस वर्ष तो अपना जीवन यापन कर सकते हैं , लेकिन यदि यह संघर्ष 2024 तक चलता है तो ज्यादातर किसानों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ।
संदर्भ:
https://bit.ly/3IPnljm
https://reut.rs/3kPX7VS
चित्र संदर्भ
1. युद्ध के मैदान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. खेत में चल रहे टेंकों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. यूक्रेनी सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. खेत में दबे हथियार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.