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आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां किसी जीव का विशेष होना उसके लिए अभिशाप बन गया है। ऐसा ही एक भाग्यशाली माना जाने वाला किंतु अपनी विशेषताओं के कारण स्वयं के लिए ही अभिशप्त बन चुका जीव ‘पैंगोलिन’ (Pangolin) बेहद शानदार और अनोखा जानवर होता है। गैंडे के सींग और हाथी के दांतों के समान ही, कवच या शल्क के रूप में इसके पास भी एक ऐसी बहुमूल्य चीज है, जिसने इस जानवर को शिकारियों का चहीता और प्रकृति में दुर्लभ बना दिया है।
पैंगोलिन, फोलीडोटा (Pholidota) गण के स्तनधारी जीव होते हैं। हालांकि, भारत में पैंगोलिन को ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’ (Wildlife Protection Act, 1972) की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित किया गया है। अतः भारत में, उनका शिकार, व्यापार या किसी अन्य प्रकार का उपयोग करना कानूनी रूप से दंडनीय माना गया है। प्रतिवर्ष फरवरी महीने के तीसरे शनिवार को ‘विश्व पैंगोलिन दिवस’ (World Pangolin Day) के रूप में मनाया जाता है और इस वर्ष यह 18 फरवरी को मनाया गया।
किंतु इसके बावजूद तस्करी के लिए इसका लगातार शिकार किया जाता है ।वन्यजीवों की अवैध तस्करी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए मुंबई पुलिस ने इसी साल फरवरी महीने में भी लगभग 30 किलोग्राम पैंगोलिन का कवच जब्त किया । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बाजार में इसकी कीमत लगभग 30 लाख रुपये बताई गई ।
प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) द्वारा प्रकाशित सबसे अधिक संकटग्रस्त जानवरों की लाल सूची में भी भारतीय पैंगोलिन को लुप्तप्राय श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। भारतीय पैंगोलिन जिसका वैज्ञानिक नाम ‘मैनिस क्रैसिकौडाटा’ (Manis Crassicaudata) है , को मोटी पूंछ वाला पैंगोलिन और पपड़ीदार चींटीखोर (Scaly Anteater) भी कहा जाता है एवं यह भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। दुर्भाग्य से, मांस और कवच के लिए वर्षों से हो रहे उनके शिकार तथा तस्करी ने पैंगोलिन को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया है। जानकारों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार में एक भारतीय पैंगोलिन की कीमत तकरीबन 10-12 लाख रुपये तक हो सकती है। पैंगोलिन को सबसे अधिक तस्करी किया जाने वाला जानवर माना जाता है। पैंगोलिन का सबसे अधिक शिकार चीन (China) और वियतनाम (Vietnam) में किया जाता है,
क्योंकि चीन और वियतनाम में पैंगोलिन का मांस एक स्वादिष्ट व्यंजन माना जाता है। इसके कवच या शल्क (Scales) का उपयोग कुछ पारंपरिक चीनी दवाओं में किया जाता है। चीन में औषधीय प्रयोजनों के लिए वार्षिक रूप से पैंगोलिन के लगभग 25 टन शल्क का प्रयोग किया जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह वजन तकरीबन 25,000 से 50,000 मृत पैंगोलिन के बराबर है। वियतनाम और कुछ अफ्रीकी देशों में, पैंगोलिन के शल्क को सौभाग्य के प्रतीक के रूप में माना जाता है और इसीलिए उसका उपयोग पारंपरिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।
एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच, भारत में 342 घटनाओं में तकरीबन 1,203 पैंगोलिन (जीवित और मृत दोनों मिलाकर) जब्त किए गए थे। बरामदगी की 342 घटनाओं में 880 किलोग्राम से अधिक पैंगोलिन उत्पाद और 199 जीवित पैंगोलिन मिलने की सूचना मिली थी। ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच भारत के चौबीस राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में पैंगोलिन और उनसे जुड़े उत्पादों की बरामदगी की सूचना मिली है। अवैध वन्यजीव व्यापार के तहत ओडिशा में सबसे ज्यादा 154 और इसके बाद, महाराष्ट्र में 135 पैंगोलिन जब्त किए गए । हालांकि, यह आंकड़े केवल अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए पैंगोलिन की संख्या पर आधारित हैं, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि पूरे भारत में तस्करी किए जाने वाले पैंगोलिन की वास्तविक संख्या इससे भी कहीं अधिक है।
हालांकि, कुछ राहत की बात यह है कि पैंगोलिन को कुछ अफ़्रीकी देशों में पारंपरिक मान्यताओं और मिथकों का संरक्षण भी प्राप्त है। उदारहण के तौर पर, मान्यताओं और मिथकों से जुड़े होने के कारण जिम्बाब्वे (Zimbabwe) में कुछ लोगपैंगोलिन को बचाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।
दरसल, ज़िम्बाब्वे में पैंगोलिन को दुर्लभ माना जाता है, और कुछ क्षेत्रों में सौभाग्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसलिए, यहां उन्हें मारना सांस्कृतिक स्तर पर भी वर्जित कार्य माना जाता है। यहां पर पैंगोलिन को पौराणिक शक्तियों वाले विशेष जीव के रूप में भी देखा जाता है। यहां तक कि यहां पर पैंगोलिन कुछ संस्कृतियों में अनुष्ठानों से भी जुड़े हुए हैं। अतः पैंगोलिन की रक्षा के संदर्भ में इस प्रकार के मिथकों का प्रयोग करना वाकई में एक रचनात्मक और सराहनीय कार्य है।
भारत में भी पैंगोलिन के संरक्षण से जुड़े सराहनीय कार्य किये जा रहे हैं। हाल ही के दिनों में आंध्र प्रदेश के जंगलों में बाघों की तस्वीरों को खींचने के लिए लगाए गए कैमरों से ली गई तस्वीरों में दुर्लभ भारतीय पैंगोलिन भी नज़र आए हैं। आंध्र प्रदेश में पैंगोलिन श्रीशैलम के जंगल और पूर्वी घाट के अन्य क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं। वन विभाग इन क्षेत्रों में पैंगोलिन के अवैध व्यापार और तस्करी रोकने के निरंतर प्रयास कर रहा है। यहां के जंगलों में पैंगोलिन का संरक्षण करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यहाँ के पूर्वी घाट को पैंगोलिन का अंतिम गढ़ माना जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3SukQHP
https://bit.ly/3SvHLT4
https://bit.ly/3IUr6W2
चित्र संदर्भ
1. एक पेंगोलिन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. फोलीडोटा (Pholidota) गण के स्तनधारी जीवों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पेंगोलिन के वितरण क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पेंगोलिन से जुड़े उत्पादों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फिलीपीन पैंगोलिन पिल्ले और उसकी माँ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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