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हमारा शहर जौनपुर अपने गौरवशाली अतीत के लिए प्रसिद्ध है। हमारे शहर तथा जिले को प्राचीन स्मारकों एवं शिलालेखों की ऐतिहासिक विरासत मिली है। और शहर का इतिहास इन शिलालेखों और पुरातात्विक अवशेषों में पाया जा सकता है, जो उत्तर वैदिक काल के हैं। यह शहर अपनी स्थापत्य कला की सुंदरता के लिए विख्यात है किंतु आज हमारे जौनपुर क्षेत्र में कई प्राचीन स्मारक, जिनमें कुछ महत्वपूर्ण मकबरे भी शामिल है, भुला दिए गए हैं। ये वास्तव में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक चिन्ह हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्राचीन शिलालेख हमारे जिले के खुथन गांव के निकट स्थित है।
आगरा और अवध संयुक्त प्रांत के समय के, जौनपुर में, दो प्राचीन शिलालेख स्थित है जोकि अभी भी अप्रकाशित है। पहला शिलालेख शाहम बेग का है, जिसमें पहले एक पृष्ठ पर हुमायूँका और बाद में अकबर के शासनकाल के दौरान जौनपुर के गवर्नर रहे खान ज़मान ‘अली कुली खान’, का भी विवरण मिलता है। दूसरा शिलालेख शाहम बेग के पिता ‘हैदर’ का है। जौनपुर के एक उपनगर में तहसील की सड़क पर एक बहुत बड़ा तालाब है। वहां , पश्चिमी टीले पर शाहम बेग की कब्र है, और पूर्वी टीले पर हैदर की कब्र है।
शाहम बेग की कब्र एक ईंट के चबूतरे पर बनी हुई है, जो उत्तर से दक्षिण तक लगभग 40 फीट लंबी, पूर्व से पश्चिम तक 35 फीट चौड़ी और लगभग 3 फीट ऊंची है। कब्र को ढंकने के लिए एक क्षैतिज पत्थर की पटिया लगाई गई है जिस पर नीचे फारसी शिलालेख दिया गया है। शिलालेख के बाहर, कब्र के ढलान वाले किनारियों पर, एक पंक्ति में कुछ फारसी वर्ण भी अंकित हैं , जो कब्र के दोनों ओर नीचे तक है। हालांकि, आज ये अक्षर धुंधले हो गए हैं, और बहुत मुश्किल से ही पढ़े जा सकते हैं।
इसके अलावा शहर से कुछ ही दूर कलीचाबाद के पास गोमती नदी के तट पर ऐतिहासिक कालिच खान का मकबरा भी स्थित है। कालिच खान का मकबरा बारादरी के नाम से भी मशहूर है। मकबरे की नक्काशी और वास्तु शैली मुगलकालीन है। इस मकबरे की बनावट काफी हद तक आगरा के ताजमहल से मेल खाती है। बादशाह अकबर अपनी फौज की ताकत बढ़ाने के लिए ईरान, इराक, सीरिया जैसे इलाकों से तमाम बहादुरों को लाए थे। कालिच खान भी उन्हीं में से एक थे।कालिच खान अकबर बादशाह के समय सूरत के किले के किलेदार थे, जिन्हें शाहजहां के समय जौनपुर का शासक बना दिया गया। कालिच खान की मृत्यु के बाद यहीं पर उनका मकबरा बनाया गया। कालिच खान के नाम पर ही कलीचाबाद बसा था।
आज इस मकबरे के गुंबद जर्जर हाल में हैं। दीवारों में मोटी-मोटी दरारें पड़ गई हैं। इससे बारिश में पानी अंदर तक आता है। छत और दीवारें भी कमजोर हो रही हैं। गुंबद पर घास उग आई है। लखौरिया ईंट से बनी दीवारें भी जर्जर हो गई हैं। वही कालिच खान के मकबरे के आसपास की जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण भी कर रखा है। वीरान में होने के कारण यह इमारत नशाखोरों का अड्ढा बनकर रह गई है।
हालांकि अब हमारे लिए एक खुशी की खबर भी है। पुरातत्व विभाग ने इस मुगलकालीन ऐतिहासिक इमारत को संरक्षित करने का काम शुरू कर दिया है। पहले चरण में मकबरे के सभी स्तंभों की मरम्मत हूबहू मूल आकार में ही कराई गई है। और अब मकबरे की छत, गुंबद और चाहरदीवारी के साथ पहुंच मार्ग के निर्माण का भी प्रस्ताव है। खास बात यह है कि मरम्मत के दौरान सिर्फ सुर्खी-चूने का ही इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि इसके स्वरूप में कोई बदलाव न आए। शहर के इतिहास को समेटने वाली इस इमारत का जीर्णोद्धार कराकर इसे पर्यटन के लिए विकसित करने की तैयारी चल रही है।
क्या आपको पता है कि इस मकबरे का इतिहास ताजमहल से भी पुराना है, और इस इमारत और ताजमहल में बहुत सी समानताएं हैं? ताजमहल के गुंबद, उसके अंदर की नक्काशी और गुंबद के नीचे बनी कब्र में काफी समानता देखने को मिलती है। इसके अलावा जिस तरह गोमती नदी के तट पर बारादरी का निर्माण हुआ है उसी तरह आगरा का ताजमहल भी यमुना नदी के तट पर स्थित है। दोनों ही इमारतें मुगलकालीन हैं, इसलिए दोनों के निर्माण में एक जैसी कला व नक्काशी की झलक दिखती है। अपने शासनकाल के दौरान ही कालिच खान ने कलीचाबाद के पास गोमती नदी के तट पर बारादरी निर्माण कराया था। इस इमारत में 12 दरवाजे और पांच कब्रें हैं। इनमें कालिच खान, उनके दो बेटे और दो रिश्तेदारों की कब्र हैं। 1628-35 के बीच बनी इस ऐतिहासिक इमारत की देखभाल आज पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है। और अब जीर्ण शीर्ण हो चुकी इस इमारत की मरम्मत का काम शुरू कराया गया है।
इसके इलावा जौनपुर में तुगलक के समय के शर्की साम्राज्य के लोगों का भी कब्रिस्तान है, जिसमें करीब सौ कब्रे है, पर इसके संदर्भ में एक दिलचस्प बात है, जब आप उनकी गिनती करोगे, तो यह गिनतीकभी भी १०० नहीं आएगी, बल्कि कुछ कम ही होगी।
इसी प्रकार जौनपुर के कन्हईपुर गांव में स्थित कब्रिस्तान में 1000 साल पुरानी कब्र भी मौजूद है; दुखद बात यह है कि उन कब्रिस्तानों की भी कोई देखभाल नहीं की जाती है।यदि इन ऐतिहासिक इमारतों की मरम्मत कराकर ठीक से देखभाल की जाए और यहां तक पहुंच मार्ग व सुरक्षा के इंतजाम किए जाएं, तो यहां पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3SjMdEn
https://bit.ly/3EtltLT
https://bit.ly/3ILA5J1
https://bit.ly/3XV0nN8
https://bit.ly/3kdc7gw
https://bit.ly/3Ze3CjX
चित्र संदर्भ
1. ताजमहल और जौनपुर की बारादरी को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. एक युद्ध के दौरान जौनपुर के गवर्नर रहे खान ज़मान ‘अली कुली खान’,
को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कालिच खान के मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. जर्जर स्थिति में कालिच खान के मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. कालिच खान के मकबरे के बाहर लगे नोटिस बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. ताजमहल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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