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हमारे शहर जौनपुर में स्थित त्रिलोचन महादेव मंदिर सभी शिवभक्तों के बीच विशेष महत्व रखता है। यद्यपि इस मंदिर में प्रत्येक सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन भगवान शिव को समर्पित सबसे बड़े उत्सव अर्थात महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर की रौनक और श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है।
भगवान शिव सभी बुराइयों का नाश करने वाले देव माने जाते हैं । महाशिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित सबसे लोकप्रिय त्यौहार है। महाशिवरात्रि पर्व माघ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है।
सनातन धर्म में महाशिवरात्रि से जुड़ी कई किवदंतियां प्रचलित हैं। जैसे:सबसे लोकप्रिय किंवदंति के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव को देवी सती ( दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी) से अगाध प्रेम था। किंतु देवी सती के आकस्मिक आत्मदाह के बाद भगवान शिव माता सती के वियोग में व्याकुल हो गए थे। इसके बाद माता सती ने पर्वतराज हिमावन और मेना की कन्या देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेकर घोर तपस्या की और भगवान शिव को पति रूप में पुनः प्राप्त किया । मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का शुभ विवाह हुआ था। इसलिए इस दिन अविवाहित महिलाएं शिव जैसे आदर्श पति की प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं। परंपरागत रूप से, इस पर्व को शिव और शक्ति के मिलन के रूप में जाता है। अध्यात्म की दृष्टि से यह पर्व ज्ञान और ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है।
शिवरात्रि की एक किवदंती इसे समुद्र मंथन से भी जोड़ती है। दरअसल, हम सभी जानते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान, समुद्र से अमृत के साथ-साथ विश्व का सबसे जहरीला विष भी निकला था जिसे “हलाहल” के रूप में जाना जाता है। इस विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव ही इसे पीकर इसे नष्ट कर सकते थे। विष इतना शक्तिशाली था कि इसने स्वयं भगवान शिव को अत्यधिक पीड़ा में डाल दिया और इसे पीने के बाद उनका कंठ भी नीला पड़ गया था। इसी कारण से भगवान शिव को ‘नीलकंठ' के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि ऐसे नाजुक समय में वैद्यों (चिकित्सकों) ने देवताओं को सलाह दी कि वे भगवान शिव को रातभर जगाए रखें।
अतः देवताओं ने शिव को खुश करने और उन्हें जगाए रखने के लिए एक जागरण रखा और बारी-बारी से विभिन्न नृत्य और संगीत प्रस्तुत किये। दिन निकलने के साथ ही भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन सभी को आशीर्वाद दिया। इस प्रकार शिवरात्रि उस घटना के उत्सव के रूप में मनाई जाती है, जब भगवान शिव ने पूरी श्रृष्टि की रक्षा की थी। तब से इस दिन, और यहां तक कि रात में भी भक्त उपवास करते हैं, जागते हैं, भगवान की महिमा गाते हैं और पूरी रात ध्यान करते हैं।
इसके अलावा कई लोग मानते हैं कि शिवरात्रि की पावन रात्रि में भगवान शिव ने सृष्टि के संरक्षण और विनाश से संबंधित ‘तांडव', नृत्य किया था। लिंग पुराण में वर्णित एक अन्य लोकप्रिय शिवरात्रि कथा के अनुसार, शिवरात्रि पर ही भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
भगवान शिव को श्रृष्टि का संहारक भी माना जाता है। मान्यता है कि संसार को नष्ट करने के लिए भगवान शिव “तांडव नामक” भयंकर नृत्य करते हैं। नाट्य शास्त्र में तांडव का व्यापक रूप से वर्णन किया गया है। तांडव नृत्य जीवन और ऊर्जा से भरपूर है। इसे आनंद के साथ किया जा सकता है, या नर्तक मनोदशा के आधार पर यह अधिक हिंसक भी हो सकता है। तांडव के कई अलग-अलग प्रकार हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना नाम है। प्रमुख रूप से इनमें आनंद तांडव, त्रिपुरा तांडव, संध्या तांडव, संहार तांडव, काली (कालिका) तांडव, उमा तांडव, शिव तांडव, कृष्ण तांडव और गौरी तांडव शामिल हैं।
तांडव का नाम शिव के परिचारक “तंदू” से लिया गया है, जिन्होंने भरत (नाट्य शास्त्र के लेखक) को शिव के आदेश पर तांडव के तरीकों ‘अंगहार और करण’ को अपने नाट्य शास्त्र में वर्णित करने का निर्देश दिया था। भरत ने 32 अंगहारों और 108 करणों की चर्चा नाट्य शास्त्र के चौथे अध्याय ‘तांडव लक्षण’ में की है। तांडव के 108 करण, नटराज की मूर्तियों में दर्शाए गए हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि तंदू स्वयं नाट्य कला पर लिखे गए सबसे पहले लेख के लेखक रहे होंगे।
तांडव नृत्य को शाश्वत ऊर्जा के पांच सिद्धांत अभिव्यक्तियों के चित्रात्मक रूप में वर्णित किया गया है:
१. सृष्टि - निर्माण, विकास
२. स्थिति - संरक्षण, समर्थन
३. संहार- विनाश४. तिरोधना - भ्रम
५. अनुग्रह – रिहाई, मुक्तिशिव के तांडव के जवाब में शिव की पत्नी माँ पार्वती द्वारा किए जाने वाले नृत्य को लास्य के रूप में जाना जाता है, जिसकी प्रकृति कोमल, सुंदर और कभी-कभी कामुक होती है। कुछ
विद्वान लास्य को तांडव का स्त्री रूप मानते हैं।
हिंदू शास्त्र ऐसे विभिन्न अवसरों का वर्णन करते हैं, जब शिव ने तांडव किया था। माना जाता है कि जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के घर आत्मदाह करके अपना जीवन त्याग दिया था, तब भगवान् शिव ने अपना दुख और क्रोध व्यक्त करने के लिए ‘रुद्र तांडव’ का प्रदर्शन किया। शिवप्रदोष स्तोत्र कहता है कि जब शिव ‘संध्या तांडव’ करते हैं, तो ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी और इंद्र जैसे अन्य देवता वाद्य यंत्र बजाते हैं और शिव की स्तुति गाते हैं। भगवान शिव के महान भक्त रावण द्वारा लिखित ‘शिव तांडव स्तोत्रम’ भी शिव की शक्ति और सुंदरता का वर्णन करता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3I92XcC
https://bit.ly/3lGkTUw
https://bit.ly/3IsNDZT
चित्र संदर्भ
1. भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वर के रूप में भगवान शिव को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. हलाहल पीते भगवान शिव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भगवान शिव के तांडव स्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लास्य नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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