इंसानों की भाँति ही चीटियां भी रचती है षडियंत्र और बनाई जाती है गुलाम

जौनपुर

 15-02-2023 11:15 AM
तितलियाँ व कीड़े

अभी तक आपने यही सुना होगा कि हम भारतीय 100 वर्षों तक गुलाम रहे, परतुं क्या आप ये जानते है कि चींटियां भी गुलाम बनाई जाती हैं ? कई मामलों में चींटियां हमारे जैसी ही होती है।ये भी दुश्मन के आक्रमण से बचने के लिए युद्ध करने से लेकर अन्य चीटियों को गुलाम बनाने तक, खाना जुटाने से लेकर खेती करने तक, हर काम मनुष्यों की तरह ही करती हैं, बल्कि और बेहतर ढंग से करती हैं। जिस प्रकार हम मनुष्य अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए एवं अपने कार्यों के लिए दूसरे लोगों को गुलाम बनाने की कोशिश करते रहते हैं उसी प्रकार चीटियों की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जो अन्य चीटियों को अपने काम कराने के लिए गुलाम बनाती हैं। तो चलिये जानते है अन्य चीटियों को गुलाम बनाने वाली इन षड्यंत्रकारी चीटियों के बारे में और भी रोचक जानकारी।
भले ही देखने में चींटियां छोटी होती हैं, परन्तु पर्यावरण पर उनका प्रभाव बहुत बड़ा होता है और वे एक दूसरे के सहयोग के माध्यम से अविश्वासी रूप से कठिन कार्यों को भी बड़ी आसानी से पूरा कर लेती हैं। इनकी कुछ प्रजातियां अपने कुल वजन का 100 गुना अधिक भार उठा सकती हैं। वैज्ञानिकों द्वारा चींटियों के बारे में अनेकों तथ्य खोजे गए हैं, जैसे बिना पंखों वाली चींटी मादा होती है, और ये मादा चींटियां ही बाम्बी (anthill) के सभी कार्यों को निष्ठापूर्ण तरीके से करती हैं, और साथ ही भोजन इकट्ठा भी करती हैं, बाम्बी के निर्माण के लिए सुरंग भी खोदती है और दुश्मन से लड़ाई में सहयोग भी करती है। जिस तरह से चींटियाँ अपने लिए जमीन के नीचे एक घर बनाती हैं और उनमे बदलाव कर मिट्टी को केंचुओं से भी अधिक उपजाऊ बनाती है यही कारण है कि चींटियों को हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की इंजीनियर के नाम से भी जाना जाता है । इसके अलावा चींटियाँ अपघटन में भी बहुत सहयोगी होती हैं। कुछ चींटियां अत्यंत मेहनतकश होती हैं जो पत्तियों तथा बीजों को इकट्ठा करती हैं, जबकि कुछ चींटियां तेज आवाज करती हैं, और कुछ मुंह में पत्ती दबाकर बाम्बी बनाने में मदद करती हैं। ये हर जगह पाई जाती हैं, और ये उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना जानती हैं। इन्हें पक्षियों की भांति ही पारिस्थितिक संकेतक के रूप में पहचाना जाने लगा है। उदाहरण के लिए, यदि आप चींटियों को पत्तों से बाम्बी बनाते हुए देखते हैं, तो यह उस जंगल की प्राचीन और अबाधित प्रकृति को इंगित करता है। सदियों से, चींटियों ने पौधों और जानवरों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किया है। पौधों और जानवरों की भांति चीटियां भी परागण करती हैं और बीजों को भी बिखेरती हैं ।
लेकिन कीड़ों की दुनिया की सभी चींटियां संत नहीं होती। प्रत्येक गर्मी के मौसम में, लाल चींटियों की प्रजाति ‘फॉर्मिका सेंगुनिया’ (Formica Sanguinea) अन्य चीटियों के झुंडों पर हमला करती हैं, उनके अंडों और लारवा को पकड़ती हैं, उन्हें अपनी बाम्बियों में लाती हैं और उन्हें अपने झुंडों के श्रमिक बल को बढ़ाने के लिए गुलाम के रूप में पालती हैं। ये लाल चीटियां अन्य प्रजातियों की बाम्बियों में घुस जाती हैं और उनकी रानी की हत्या कर देती हैं, तथा गुलामों के रूप में पालने के लिए निष्क्रिय अपरिपक्व चीटियों ‘प्यूपा’ (pupae) का अपहरण कर लेती हैं। गुलाम बनने वाली चीटियां बाम्बियों में आने के बाद, गुलाम श्रमिक की भांति इस तरह से काम करती हैं जैसे कि वे अपनी बाम्बियों में हों। गुलाम बनाने वाली चींटियों की बाम्बियों में ये मजदूर, कामगारों को पालते हैं , उन्हें काम पर रखते हैं और भोजन देते हैं। शत्रुओं से बाम्बियों की रक्षा करते हैं और यहां तक कि हमलों में शामिल होते हैं , जिसमें उनके मूल पर हमला झुंड भी शामिल होता है।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक इस पर शोध किया है कि इस तरह के गुलाम बनाने का व्यवहार इन चीटियों में कैसे विकसित हुआ। जब फॉर्मिका रानी चींटी के बच्चे युवा होते हैं, तो उनका उद्देश्य अन्य रानी चीटियों पर आक्रमण करना और उनके अंडों को उठाकर लाना होता है, ताकि कामगार गुलामों की कमी पूरी होती रहे। इस प्रकार ये चींटियाँ अपने पूरे जीवन भर गुलाम बनाई हुई चींटियों पर निर्भर रहती हैं और उनके बिना काम करने में असमर्थ हो जाती हैं, इस वजह से इन्हें बाध्य दास-निर्माता (Slave Maker) भी कहा जाता है। प्रयोगशाला में कई परीक्षणों के बाद देखा गया कि पकड़ी गई दास चींटियों को यदि लाल चींटियों के पास से हटा दिया जाए, तो उनके निष्कासन के 30 से 35 दिनों के भीतर ही ये लाल चीटियां मरने लगती हैं क्योंकि ये पूरी तरह से श्रमिक चींटियों पर निर्भर रहती है, यहां तक कि ये अपने बच्चों की देखभाल करने में भी असमर्थ होती है। कई वैज्ञानिकों ने इस गुलामी की व्यवस्था को समझने की कोशिश की, लेकिन किसी को कुछ खास हाथ नहीं लगा। तब शोधकर्ता जोनाथन रोमीगुएर (Jonathan Romiguier)और उनके कुछ सहयोगियों ने व्यवस्थित रूप से 15 ‘फॉर्मिक’ चींटी प्रजातियों के आनुवंशिक संबंधों का अध्ययन किया, जिसमें चींटी की अन्य प्रजातियों को एक पेड़ की विभिन्न शाखाओं पर रखा । इस अध्ययन के द्वारा उन्होंने अब तक की सबसे शानदार रिपोर्ट तैयार की जिसमे शाखाओं के क्रम के द्वारा उन्होंने बताया कि गुलामी का विकास कैसे हुआ।
लाल चीटियों को अपनी बाम्बियों को समय-समय पर मेजबान श्रमिकों से भरने की आवश्यकता होती है। जिसके लिए ये चीटियां दो प्रक्रियाओं के तहत अन्य चीटियों के झुंडों पर हमला करने की प्रक्रिया को अंजाम देती हैं, जिसमे सबसे पहले बाम्बियों के गुप्तचर सदस्य व्यक्तिगत रूप से ऐसी बाम्बियों की खोज करते हैं जिनसे उनको मेजबान श्रमिक मिल सके और इस खोज में सफल होने पर वे अपनी बाम्बियों में वापस लौटते हैं और मेजबानों की बाम्बियों पर हमला करने के लिए अपनी बाम्बियों में हमलावर साथियों की भर्ती करते हैं और मेजबान चींटियों की बाम्बियों में प्रवेश कर उनकी रानी की हत्या कर देते हैं और अलग अलग बाम्बियों पर हमला कर मेजबान श्रमिकों का हरण करते हैं। यह ज्यादातर केवल युवा श्रमिकों को पकड़ते हैं। यह एक बार में लगभग 14,000 प्यूपा पकड़ सकते है। हमले केवल विशेष रूप से नए श्रमिकों को पकड़ने के लिए ही नहीं, बल्कि कभी-कभी तो शिकार करने के लिए भी किए जाते हैं। अधिकांश परजीवी प्रजातियों में, श्रमिक अपनी बाम्बियों के रास्ते में फेरोमोन (pheromones) नामक हार्मोन को छोड़ते हुए जाते है, और बाद में इसी रास्ते की ओर इसके अन्य साथी कुछ सेकंड के भीतर आकर्षित हो जाते हैं, फिर वे जल्दी से लक्षित मेज़बान बाम्बी में घुस कर उस पर हमला करते हैं, और जितना संभव हो उतने लार्वा (Larva) और प्यूपा ले जाते हैं।अंत में फेरोमोन द्वारा चिह्नित उसी निशान का अनुसरण करते हुए अपनी बाम्बियों में लौट आते हैं। यदि हमले के दौरान बाम्बी का कोई भी सदस्य मारा जाता है, तो वह उस शव को वापस बाम्बी में ले जाते हैं ताकि बाद में वह उसका प्रयोग भोजन के लिए कर सकें। बारिश वाले दिनों में कभी भी हमले नहीं किए जाते है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बरसात के कारण इनके कार्य की प्रभावशीलता पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3S6WWSB
https://bit.ly/3RVqBhd
https://bit.ly/3K5cLHr

चित्र संदर्भ
1. गुस्सैल चींटियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. विभिन्न जातियों के साथ पत्ते काटने वाले चींटी कार्यकर्ता (बाएं) और दो रानियां (दाएं) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. चींटियों के पुल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ‘बाध्य दास-निर्माता चींटी को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ‘चींटियों की कॉलोनी को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)



RECENT POST

  • पूर्वांचल का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व करती है, जौनपुर में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:22 AM


  • जानिए, भारत में मोती पालन उद्योग और इससे जुड़े व्यावसायिक अवसरों के बारे में
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:24 AM


  • ज्ञान, साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों पर ज़ोर देता है ग्रीक दर्शन - ‘स्टोइसिज़्म’
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:28 AM


  • इस क्रिसमस पर, भारत में सेंट थॉमस द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार पर नज़र डालें
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:23 AM


  • जौनपुर के निकट स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के गहरे अध्यात्मिक महत्व को जानिए
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:21 AM


  • आइए समझें, भवन निर्माण में, मृदा परिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:26 AM


  • आइए देखें, क्रिकेट से संबंधित कुछ मज़ेदार क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:19 AM


  • जौनपुर के पास स्थित सोनभद्र जीवाश्म पार्क, पृथ्वी के प्रागैतिहासिक जीवन काल का है गवाह
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:22 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के फूलों के बाज़ारों में बिखरी खुशबू और अद्भुत सुंदरता को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:15 AM


  • जानिए, भारत के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में, कौन सी कंपनियां, गढ़ रही हैं नए कीर्तिमान
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:20 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id