भारत में अपनी लोकप्रियता एवं भारी खपत के कारण चना बन गया, दालों का राजा

जौनपुर

 10-02-2023 10:31 AM
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क्या आप जानते हैं कि जैसे पक्षियों का राजा मोर और जानवरों का राजा शेर होता है, ठीक वैसे ही “चने" को दालों का राजा माना जाता है। भारत में चने की दाल व्यापक रूप से पसंद की जाती है। इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि भारत हर साल लगभग 10 से 11 मिलियन टन चने का उत्पादन करता है, और चने के कुल विश्व उत्पादन में अकेले ही लगभग 70 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत वैश्विक स्तर पर दालों का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है, जहां दुनिया के कुल उत्पादन की 27-28% दालें उगाई जाती हैं। भारत की जलवायु रबी और खरीफ दोनों मौसमों में दालों को अच्छी तरह से उगाने के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। हालांकि, यहां पर रबी फसलें (जो अप्रैल से जून तक काटी जाती हैं) व्यापक रूप से उगाई जाती हैं। भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक प्रमुख दलहन (दाल) उत्पादक राज्य हैं।
वित्त वर्ष 2020-21 में भारत के 5 सबसे बड़े दलहन उत्पादक राज्यों की सूची निम्नवत दी गई है-: 1. राजस्थान: राजस्थान भारत में दालों का अग्रणी उत्पादक राज्य बन गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य का वार्षिक दाल उत्पादन 4821.84 टन था। राजस्थान में रबी मौसम में मूंग, मोठ, और चने जैसी दालों तथा खरीफ सीजन में अरहर दाल का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इससे पता चलता है कि राज्य ज्यादातर प्रकार की दालों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। 2. मध्य प्रदेश: वित्त वर्ष 2020-21 में भारत के मध्य प्रदेश राज्य का वार्षिक दलहन उत्पादन 4364.74 टन था। राज्य में उत्पादित दालों की सूची में चना, अरहर और उड़द सबसे ऊपर है। 3. महाराष्ट्र: महाराष्ट्र भारत में दालों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य का वार्षिक दलहन उत्पादन 4224.87 टन था। महाराष्ट्र में लगभग 20 लाख हेक्टेयर भूमि में अधिकांशतः अरहर की खेती की जाती है। 4. उत्तर प्रदेश: भारत में दालों के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का चौथा स्थान है। वित्त वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश से भारत में दालों के वार्षिक उत्पादन में 2621.15 टन का योगदान दिया गया था । राज्य में उत्पादित दालों की सूची में चना सबसे ऊपर है। 5. कर्नाटक: कर्नाटक भारत में दालों का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान राज्य का वार्षिक उत्पादन 2170.89 टन रहा था। यह राज्य चना, अरहर, कुल्थी, काला चना और हरे चने जैसी कई प्रकार की दालों के लिए जाना जाता है।
3 वर्षों (2018 से 2021) में दालों का उत्पादन काफी हद तक बढ़ा है। इसके अलावा, भारत में इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए एवं विभिन्न प्रकार की दालों के उत्पादन का समर्थन करने के लिए, भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन - दाल कार्यक्रम’ (National Food Security Mission- Pulses Programme) भी शुरू किया है। यह कार्यक्रम 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) के लगभग 644 जिलों में शुरू किया जा रहा है।
चना, भारत में सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल मानी जाती है। दलहन फसलों के तहत क्षेत्र के लगभग 35-40% हिस्से पर चने की फसल उगाई जाती है और भारत के कुल दलहन उत्पादन में लगभग 50% योगदान चने का है। चने का उपयोग मानव उपभोग तथा पशु चारे दोनों के लिए किया जाता है। इस दाल में रक्त शोधन जैसे औषधीय गुण पाए जाते हैं। साथ ही यह 21% प्रोटीन (Protein), 61.5% कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate ) और 4.5% वसा (Fats) का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें कैल्शियम (Calcium), आयरन (Iron) और नायसिन (Niacin) की भी उच्च मात्रा होती है। बंगाल चना भारत में सबसे व्यापक रूप से उत्पादित दलहन फसल है, जो देश के कुल दलहन उत्पादन का 40% हिस्सा है। भारत में चने की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत, विश्व में बंगाल चने का शीर्ष उत्पादक राष्ट्र है, इसके बाद पाकिस्तान (Pakistan) , तुर्की (Turkey) और ईरान (Iran) का स्थान है। हालांकि, इसके बावजूद भारत कनाडा (Canada), ऑस्ट्रेलिया (Australia), ईरान और म्यांमार (Myanmar) से सालाना 8-9 लाख टन बंगाल चने का आयात करता है। 2018-19 के रबी के मौसम के दौरान, भारत में 95.59 लाख हेक्टेयर भूमि पर बंगाल चने की खेती की गई थी। सरकारी अनुमान के मुताबिक, 2018-19 में बंगाल चने का उत्पादन 10.09 मिलियन टन था, जबकि 2020-21 में यह उत्पादन 10.65 मिलियन टन था । भारत में सभी प्रमुख बंगाल चना बाजार एकीकृत हैं और कीमतें वर्तमान में लगभग 4200-4500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कारोबार कर रही हैं। चने का वैज्ञानिक नाम ‘सिसर एराइटिनम’ (Cicer Arietinum) है और यह पौधों के फैबेसिआइ परिवार (Fabaceae) के उप परिवार फैबोइडे (Faboideae) की एक वार्षिक फली है। चने को ‘गरबांजो’ या ‘गरबांजो बीन’ (Garbanzo Bean) और ‘मिस्र की मटर’ (Egyptian pea) के नाम से भी जाना जाता है। भारत में चने की दो मुख्य किस्में (देसी चना और काबुली चना) खाई जाती हैं। देसी चना छोटा, खुरदरा और काले, हरे या धब्बेदार रंगों में उपलब्ध होता है। इसका इस्तेमाल चना दाल बनाने में किया जाता है। वहीँ काबुली चना हलके रंग का, थोड़ा और बड़ा और चिकना होता है। चने की खेती के लिए एक ऐसे स्थान का चयन किया जाता हैं, जहां दिन में कम से कम 6-8 घंटे सूरज की रौशनी उपलब्ध हो, मिट्टी पोषक तत्वों से भरपूर हो तथा जल निकासी की भी अच्छी व्यवस्था हो । नमी को और अधिक संरक्षित करने और खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए देशी हल से उथली खेती की जाती है। चना उत्तरी भारत में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में और प्रायद्वीपीय भारत में अक्टूबर के पहले पखवाड़े में बोया जाता है। बीज बोने से पहले मिट्टी को फफूंदनाशकों (खाद और उर्वरक) से उपचारित किया जाता है। यदि सर्दी के मौसम के कारण अपर्याप्त वर्षा होती है, तो फूल आने से पहले और फली की विकास अवस्था में सिंचाई की जाती है, लेकिन अत्यधिक सिंचाई फसल के लिए हानिकारक होती है।
7 सितंबर, 2020 तक देसी चने का कारोबार लगभग 4900 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा था। किसान आमतौर पर प्रति एकड़ में चने की औसतन 8 क्विंटल उपज देते हैं। इसके परिणामस्वरूप 8 क्विंटल की बिक्री से करीब 39,200 रुपये का शुद्ध राजस्व प्राप्त होता है । उत्पादन लागत घटाने के बाद, एक एकड़ भूमि से लगभग 27,500 रुपये का कुल लाभ होने का अनुमान है। दालों के महत्व और पोषण संबंधी लाभों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा 2018 से प्रत्येक वर्ष 10 फरवरी को ‘विश्व दलहन दिवस’ (World Pulses Day ) के रूप में मनाया जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य फसलों के महत्व का सम्मान करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र की महासभा (General Assembly) ने 20 दिसंबर, 2013 में एक विशेष संकल्प को अपनाया और 2016 को ‘दलहन के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ (International Year of Pulses (I.Y.P.) के रूप में घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization (F.A.O.) ने 2016 में इस आयोजन का नेतृत्व किया। इस आयोजन ने दालों के पोषण और पर्यावरणीय लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता को सफलतापूर्वक बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गरीबी, खाद्य सुरक्षा और पोषण, मानव स्वास्थ्य और मिट्टी के स्वास्थ्य जैसी वैश्विक चुनौतियों को कम करने में दालें प्रभावशाली भूमिका निभाती हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/40syfng
https://bit.ly/3HXEbxn
https://bit.ly/3wXYyUU
https://bit.ly/3HDIlsK
https://bit.ly/3YiPZzL

चित्र संदर्भ

1. हरे चने को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 2020 में चने के उत्पादन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सफेद और हरे चने (सिसर एरीटिनम) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सिसर एरीटिनम नोयर - MHNT को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चने में फूल आने और फल लगने की प्रक्रिया को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
6. चने की खेती करती महिला को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
7. चने के खेत को दर्शाता करता एक चित्रण (flickr)
8. चने की बालियों को दर्शाता करता एक चित्रण (flickr)
9. अल्जीरियाई व्यंजनों में चखचौखा को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
10. ‘दलहन के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष को दर्शाता करता एक चित्रण (stomaeduj)



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