महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस’ (Charles Darwin day) मनाया जाता है। चार्ल्स डार्विन, जिन्हें “प्राकृतिक चयन” (Natural Selection) या 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (Survival of the fittest) के सिद्धांत के जनक के रूप में जाना जाता है, का जन्म 12 फरवरी, 1809 को हुआ था। 1859 में डार्विन ने अपनी पुस्तक "ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) प्रकाशित की, जिसमें प्राकृतिक चयन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय जीवों के विकास और चयन को समझने तथा इस विषय पर कार्य करने में व्यतीत किया। जैसा कि हम इस माह 12 फरवरी को चार्ल्स डार्विन दिवस के करीब आ रहे हैं, तो आइए, इस मौके पर उनके प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के बारे में जानकारी प्राप्त करें तथा यह भी जानें कि क्या हमारी तकनीकी प्रगति मानव को प्राकृतिक चयन से मुक्त कर रही है?
चार्ल्स डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के अनुसार, प्रकृति में केवल वही सजीव अपने अस्तित्व को बनाए रख पाता है, जो प्रकृति के अनुरूप अनुकूलन दर्शाता है। जो सजीव ऐसा नहीं कर पाते हैं, वे सजीव नष्ट हो जाते हैं। किंतु वर्तमान समय में कुछ वैज्ञानिकों और विज्ञान संचारकों ने यह दावा किया है कि मनुष्य अब प्राकृतिक चयन के अधीन नहीं हैं और मानव विकास प्रभावी रूप से समाप्त हो गया है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक स्टीवन जोन्स (Steven Jones of University College London) और सम्मानित विज्ञान संचारक डेविड एटनबरो (David Attenborough) ने भी घोषित किया है कि मानव विकास अब रुक गया है। किंतु वास्तव में, मनुष्य पिछले 30,000 वर्षों में तेजी से और उल्लेखनीय रूप से विकसित हुआ है। सीधे एवं काले बाल, नीली आँखें और दुग्ध शर्करा (Lactose) सहिष्णुता सभी अपेक्षाकृत हाल के विकास के उदाहरण हैं। इस तरह का तीव्र विकास कई कारणों से संभव हुआ है, उदाहरण के लिए पहले जहां मानव भोजन के लिए शिकार करने पर निर्भर था, वहीं बाद में उसने कृषि को अपना आधार बनाया, जिसके कारण मानव आबादी पहले की तुलना में अधिक विकसित हुई ।
एक आबादी के भीतर जितने अधिक लोग प्रजनन करते हैं, नए लाभप्रद उत्परिवर्तनों की संभावना उतनी ही अधिक होती है। आजकल, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, भोजन, ताप और स्वच्छता की उपलब्धता के कारण मनुष्य जीवन में आने वाले खतरों की संख्या नाटकीय रूप से कम हो गई है। वैज्ञानिक शब्दों में, इन खतरों को ‘चयन दबाव’ कहा जाता है। वातावरण के अनुकूल बनने एवं उसमें जीवित रहने के लिए ये खतरे हम पर दबाव डालते हैं। यह चयन दबाव है जो ‘प्राकृतिक चयन’ अर्थात 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (survival of the fittest) को संचालित करता है एवं जिसके कारण हम आज की प्रजातियों में विकसित हुए हैं। आज के वैज्ञानिक युग में अब हमारे पास चयन का दबाव कम है क्योंकि प्रौद्योगिकी और विज्ञान के कारण हमें वातावरण के अनुकूल होने की ज्यादा आवश्यकता नहीं है। तो अब सवाल यह है कि क्या इन सब कारकों की वजह से इंसानों का विकास पूरी तरह से रुक जाएगा ?
आनुवंशिक अध्ययनों से पता चला है कि मनुष्य अभी भी विकसित हो रहे हैं। यह जांचने के लिए कि कौन से जीन (Genes) प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, शोधकर्ताओं ने ‘इंटरनेशनल हैपमैप प्रोजेक्ट’ (International HapMap Project) और ‘1000 जीनोम प्रोजेक्ट’ (1000 Genomes Project) द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित किया है। ‘इंटरनेशनल हैपमैप’ और ‘1000 जीनोम’ दोनों ही परियोजनाओं का उद्देश्य दुनिया भर के अलग-अलग मनुष्यों से लिए गए डीएनए (DNA) नमूनों में आनुवंशिक भिन्नता को सूचीबद्ध करना है।
अधिकांश सूचीबद्ध मानव आनुवंशिक भिन्नता एकल आधार परिवर्तनों के कारण होती है, जिसे ‘एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता’ (Single Nucleotide Polymorphisms (SNP) कहा जाता है। इन परिवर्तनों की आवृत्ति हमें मानव जीनोम के उन घटकों की सूची प्रदान करती है जहां आनुवंशिक भिन्नता एक जैसी है। न्यूनतम भिन्नता वाली आवृत्तियां वैज्ञानिकों को उन जीनों की पहचान करने में मदद करती है, जिन्हें हाल ही में प्राकृतिक चयन द्वारा सकारात्मक रूप से चुना गया हो। वैज्ञानिकों ने पाया है कि अधिकांश जीन जो हाल ही में विकसित हुए हैं वे गंध, प्रजनन, मस्तिष्क के विकास, त्वचा रंजकता और रोगजनकों के खिलाफ प्रतिरक्षा से जुड़े हैं। मनुष्यों में, हाल में प्राकृतिक चयन द्वारा विकास के एक उदाहरण में, ‘दूध में शर्करा’ (लैक्टोज) को सहन करने की क्षमता शामिल है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में, वयस्क मनुष्य दूध पीने में असमर्थ है, क्योंकि उनके शरीर ने लैक्टेस (Lactase) के आंत्रिक उत्पादन को बंद कर दिया है। लैक्टेस एक ऐसा एंजाइम है,जो दूध में मौजूद शर्करा को पचाने में मदद करता है। चूंकि ये लोग लैक्टोज शर्करा को पचा नहीं पाते, इसलिए उन्हें सूजन, पेट में ऐंठन, पेट फूलना, दस्त, मतली या उल्टी जैसे लक्षण महसूस होते हैं। किंतु 70 प्रतिशत से अधिक यूरोपीय (European) वयस्क आसानी से दूध पी सकते हैं, क्योंकि उनके डीएनए में एक नियामक परिवर्तन होता है, जो लैक्टेज को अभिव्यक्त करने वाले जीन को नियंत्रित करता है। यह डीएनए परिवर्तन लैक्टेज जीन को संचालित रहने और लैक्टेज उत्पादन जारी रखने में सक्षम बनाता है। अध्ययन से प्रतीत होता है कि यह आनुवंशिक परिवर्तन 5,000 से 10,000 साल पहले लगभग उसी समय हुआ था, जब यूरोप में दुग्ध उत्पादक कृषि पशुओं, जैसे कि गायों, बकरियों आदि को पालतू बनाया गया था।
वयस्कों का दूध पीने में सक्षम होना यूरोप में विकास का एक चरण था, जो यूरोप के प्राकृतिक परिवेश के अनुरूप लाभदायक भी सिद्ध हुआ, क्योंकि यूरोप में धूप के कम मात्रा में उपलब्ध होने के कारण लोगों को गाय के दूध में पाए जाने वाले विटामिन डी की अधिक आवश्यकता थी। इसके अतिरिक्त गाय के दूध ने पीने के पानी की तुलना में अधिक सुरक्षित और स्वच्छ विकल्प प्रदान किया जिससे बीमारियां होने का खतरा भी कम हो गया । हो सकता है कि दूध ने फसल के खराब होने और भोजन की कमी होने पर भुखमरी से होने वाली मौत को भी रोका हो। जो लोग लैक्टोज को सहन नहीं कर सकते थे, उनके भूखे मरने की संभावना अधिक थी, जबकि जो लैक्टोज को सहन कर सकते थे, वे अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल हुए ।
सबसे मजबूत विकासवादी दबाव संक्रामक रोगों से आता है। हर साल लाखों लोग, खासकर दुनिया के गरीब क्षेत्रों में, संक्रामक रोगों से मरते हैं।जो लोग संक्रमण से बचे रहने में सक्षम होते हैं, उनके जीन की उनकी संतानों में संचरण की संभावना अधिक होती है। हालांकि, यह आवश्यक नहीं है कि एक बीमारी के खिलाफ लड़ने में सक्षम जीन दूसरी बीमारी का सामना करने में भी सक्षम हो । आबादी का आकार बढ़ने और रोगजनकों के अधिक तेजी से फैलने के कारण जब मानव आबादी में संक्रामक रोग अधिक आम होने लगे, तब उन लोगों के जीवित रहने और पुनरुत्पादन की संभावना अधिक थी, जिनके पास आनुवंशिक लाभ था। नतीजतन, ऐसे आनुवंशिक लाभों का चयन किया गया था,जिससे अधिक लोग जीवित रह सकें और बीमारियोंसे लड़ सकें।
उपरोक्त अध्ययन से पता चलता है कि हम अपने हाल के अतीत में पर्याप्त रूप में विकसित हुए हैं, और हम ऐसा करना जारी रखेंगे। मानव विकास कभी नहीं रुका है बल्कि यह तेज ही हुआ है। निस्संदेह ही मनुष्य भविष्य में विकसित होता रहेगा।
चार्ल्स डार्विन,
संदर्भ:
https://bit.ly/3YrHZfD
https://bit.ly/3YovbGJ
चित्र संदर्भ
1. इंसान और तकनीकी संयोजन को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रोबोट के विकास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जीनोम प्रोजेक्ट को दर्शाता करता एक चित्रण (Needpix)
5. इंसानों के संभावित भविष्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.