4 फरवरी यानी आज के दिन को पूरी दुनिया में “विश्व कैंसर दिवस" के तौर पर मनाया जाता है। ‘पूरी दुनिया में कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाना और आम जनता को इसकी वर्तमान स्थिति से अवगत कराना’, इस पहल का प्रमुख उद्देश्य है। हमारे देश भारत के संदर्भ में कैंसर दिवस की अहमियत और भी ज्यादा हो जाती है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है, जहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में रहती हैं, एवं जहाँ पर कैंसर संबधी जानकारी मुश्किल से पहुंच पाती है।
अमेरिका (America) में ‘कैंसर जर्नल फॉर क्लिनिशियन’ (Cancer Journal for Clinicians) में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2019 के बीच अमेरिका में 20 साल की उम्र की महिलाओं में ग्रीवा कैंसर (Cervical Cancer) की दर 65% तक कम हो गई। लेकिन भारत में कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर में आज भी वृद्धि जारी है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research (ICMR) के ‘राष्ट्रीय कैंसर पंजीकरण’ (National Cancer Registry) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में अनुमानित 14.6 लाख नए कैंसर के मामले सामने आए, जो 2021 में 14.2 लाख और 2020 में 13.9 लाख थे। वहीं कैंसर के कारण होने वाली मौतों की संख्या 2022 में बढ़कर अनुमानित 8.08 लाख हो गई, जो 2021 में 7.9 लाख और 2020 में तकरीबन 7.7 लाख के निकट आंकी गई थी। 2025 तक कैंसर के मामलों की संख्या 15.7 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। आईसीएमआर (ICMR) के अध्ययन का अनुमान है कि 2025 तक प्रत्येक नौ में से एक भारतीय को अपने जीवनकाल के दौरान कैंसर का सामना करना पड़ सकता है ।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। महिलाओं में कैंसर के सबसे आम प्रकार स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, अंडाशय, गर्भाशय और फेफड़ों का कैंसर हैं। पुरुषों में फेफड़े, मुंह, जीभ और पेट का कैंसर सबसे आम होता हैं। हालांकि, देरी से विवाह, कम बच्चे, बेहतर स्वच्छता और टीकाकरण के कारण पिछले 50 वर्षों में भारत में ग्रीवा कैंसर के मामलों में कमी आई है, वहीं स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसके प्रमुख कारणों में संभवतः बहुत देरी से विवाह होना, अधिक उम्र में पहला बच्चा होना , स्तनपान न कराना और उच्च प्रोटीन आहार शामिल है।
2016 में, भारत के दक्षिणी, उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों के पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर की दर सबसे अधिक दर्ज की गई थी, जबकि पश्चिमी, मध्य और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में पुरुषों में मुंह और ग्रासनली का कैंसर सबसे आम था । कैंसर के अधिकांश मामले भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में दर्ज किए गए थे , इसके बाद भारत के दक्षिणी और मध्य क्षेत्रों का स्थान था।
हालांकि, अच्छी खबर यह है कि समय के साथ कैंसर के उपचार में सुधार और इलाज की दर में वृद्धि भी दर्ज हुई है। समग्र मृत्यु दर को कम करने के लिए, जागरूकता और शुरुआती पहचान महत्वपूर्ण हैं। सरकार ने उन्नत स्वास्थ्य, कल्याण केंद्रों और अन्य सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से तीन सबसे सामान्य प्रकार के कैंसर - स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मुंह के कैंसर - के लिए स्क्रीनिंग (Screening) शुरू कर दी है। हालांकि, कैंसर पंजीकरण और रिपोर्टिंग सिस्टम (Reporting System) की सीमाओं के कारण सरकार द्वारा आंकड़ों को समय पर अद्यतन करने में चुनौतियां भी सामने आती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, आज विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज की दर बढ़ रही है। और आज कई ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने कैंसर को पूरी तरह से मात दे दी है। अग्नाशय के कैंसर के इलाज की दर 50 साल पहले के 3% की तुलना में दोगुनी होकर 6% हो गई है। पौरुष ग्रंथि के कैंसर (Prostate Cancer) के लिए यह दर 60% से बढ़कर 100% हो गई है। वहीँ, स्तन कैंसर के लिए नए उपचारों के साथ इसमें 50% से 90% तक सुधार हुआ है। लेकिन इसके बावजूद मृत्यु दर को कम करने के लिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बीमारी का यथासंभव जल्दी निदान हो और लोगों को समय पर उपचार मिले।
इस आधार पर देखें तो भारत में स्तन कैंसर का पता लगाने की दर मात्र 29% ,फेफड़े की 15% और गर्भाशय ग्रीवा की मात्र 33% है, जो कि चीन (China) , ब्रिटेन (Britain) और अमेरिका की तुलना में काफी कम है। कैंसर के कई मामलों को रोका जा सकता है । अगर इस बीमारी का जल्दी पता चल जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है और कईयों को ठीक भी किया जा सकता है। रोकथाम, शीघ्र पहचान और उपचार के लिए सही तरीकों का उपयोग करके हम कई लोगों की जान बचा सकते हैं। हम अब कैंसर के बारे में बहुत कुछ जानते हैं और अनुसंधान और नवाचारों के साथ, हम जोखिम को कम करने, कैंसर को रोकने और उपचार और देखभाल में सुधार करने में और भी अधिक प्रगति कर सकते हैं।
अनुमान बताते हैं कि 2020 में कैंसर के कारण लगभग 8 से 9 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। भारत में कैंसर रोग के बढ़ते बोझ और परिणामों की उप-इष्टतम गुणवत्ता की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, वर्तमान चुनौतियों को समझने और रोग प्रबंधन के विभिन्न चरणों में हस्तक्षेप करने पर गहन ध्यान देने की आवश्यकता है ।पिछले एक दशक में भारत में कैंसर से होने वाली मौतों के शीर्ष 5 कारण रहे हैं:
1. जागरूकता और रोकथाम की कमी: भारत में कैंसर के कारणों और निदान से जुड़ी जागरूकता का बड़ा अभाव नज़र आता है। यहाँ तक कि ग्रीवा कैंसर जैसे सामान्य कैंसर के बारे में भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। जागरूकता के मध्यम स्तर के साथ साथ, स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, और मुंह के कैंसर की पर्याप्त स्क्रीनिंग का भी अभाव नज़र आता है। कैंसर की प्राथमिक रोकथाम में कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) जोखिम कारकों के संपर्क को सीमित करना शामिल है। यद्यपि भारत ने जोखिम कारकों को कम करने के लिए कई नीतिगत उपाय किए हैं, फिर भी देश को इस संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रगति की आवश्यकता है।
2. पहचान और निदान की कमी: कैंसर की रोकथाम और शीघ्र निदान के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इसे समाज, सरकारों और स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा प्राथमिकता दी जाए। बीमारी को कम करने के साथ-साथ मृत्यु दर और रुग्णता में कमी लाने के लिए शुरुआती पहचान के सिद्ध लाभों के बावजूद, भारत में कैंसर की स्क्रीनिंग दर बहुत कम है। भौतिक बुनियादी ढाँचे और कार्यबल के संदर्भ में क्षमता की कमी, स्वास्थ्य कर्मियों के बीच कैंसर स्क्रीनिंग के तरीकों के प्रशिक्षण की कमी और परामर्श तंत्र में कमियाँ भी रोकथाम और शीघ्र निदान की सफलता के लिए प्रमुख बाधाएं हैं।
3.उपशामक देखभाल सहित उपचार की कमी: देश में व्यापक कैंसर केंद्रों की उपस्थिति में महत्वपूर्ण भौगोलिक विषमता नज़र आती है। 40-45% आबादी को शामिल करने वाले देश के केवल 175 जिलों में व्यापक कैंसर केंद्र स्थापित किये गए हैं। वहीं देश में उपलब्ध 470 से 480 कैंसर केन्द्रों में से 40% महानगरों और राज्यों की राजधानियों में केंद्रित हैं। देश में रेडियोथेरेपी (Radiotherapy) उपचार तक आम लोगों की पहुंच भी बड़ी समस्या है, जिसमें प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 0.4 रेडियोथेरेपी उपचारक मौजूद हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) द्वारा प्रति मिलियन जनसंख्या पर 1 रेडियोथेरेपी उपचारक की सिफारिश की जाती है।
4. उपचार के लिए सामर्थ्य की कमी: भारत में कैंसर की देखभाल के लिए उपचार लागत आर्थिक रूप से अवहनीय मानी जा रही है, और यह अन्य गैर-संचारी रोगों की तुलना में लगभग 3 गुना अधिक है। भारत में सक्रिय कैंसर की रोकथाम और उपचार के उद्देश्य से अधिक प्रभावी नीतिगत उपायों की महत्वपूर्ण आवश्यकता है, और यदि हम ऊपर दिए गए उपायों को लागू करने में सफल हो पाते हैं, तो भारत की बड़ी आबादी को कैंसर के अनावश्यक और पीड़ादायक बोझ से मुक्त किया जा सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3XJLBK9
https://bit.ly/3XMhSQz
https://go.ey.com/409hRb2
चित्र संदर्भ
1. अस्पताल में भर्ती बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 2016 में तंबाकू के कैंसर से होने वाली मौतों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. घातक ट्यूमर (दाएं) अनियंत्रित रूप से फैलता है और आसपास के ऊतकों पर आक्रमण करता है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4 . लैब रिसर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (hospimedica)
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