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इस्तांबुल में दुनिया के सबसे पुराने ग्रैंड बाजार व् दिल्ली में मीना बाजार की सांस्कृतिक संपदा की खोज

जौनपुर

 23-01-2023 03:01 PM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

यदि आप किसी भी देश अथवा राज्य की सांस्कृतिक एवं आर्थिक समृद्धि और संपन्नता को बारीकी से समझना चाहते हैं, तो आप उस क्षेत्र के बाजारों का भ्रमण कर सकते हैं। आज हम आपको विश्व के कुछ सबसे पुराने एवं आकर्षक ढके हुए बाज़ारों से अवगत कराने जा रहे हैं, जो अपने यहां बिकने वाले सुंदर साजो सामान के साथ-साथ अपने रोचक इतिहास और अद्वितीय वास्तुकला के लिए भी अति लोकप्रिय हैं।
टर्की देश की राजधानी इस्तांबुल के ‘बुयुक कारसी’ (Büyük Çarşı) नाम से विख्यात बाजार, जिसे ग्रैंड बाजार ऑफ इस्तांबुल (Grand Bazaar of Istanbul) के नाम से भी जाना जाता है, को दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने ढके हुए बाज़ारो (Covered Bazar) में से एक माना जाता है, जिसमें 61 ढकी हुई सड़कें और 4,000 से अधिक दुकानें मौजूद हैं। यह अनोखा बाजार प्रतिदिन 250,000 से 400,000 आगंतुकों को आकर्षित करता है।
2014 में, 91,250,000 वार्षिक आगंतुकों के आगमन से यह बाजार, दुनिया के सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटक आकर्षणों की सूची में पहली श्रेणी पर आ गया था। इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार को अक्सर दुनिया के सबसे पुराने शॉपिंग मॉल (Oldest Shopping Mall) में से एक माना जाता है। इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार का निर्माण 1455/56 में कॉन्स्टेंटिनोपल (Constantinople) पर ओटोमन साम्राज्य ( Ottoman Empire) की विजय के तुरंत बाद शुरू हो गया था। दरसल सुल्तान मेहमद द्वितीय (Sultan Mehmed II) ने कांस्टेंटिनोपल में अपने महल के पास एक इमारत खड़ी की थी। इसका नाम केवाहिर बेडेस्टन (Cevahir Bedesten) रखा गया था और इसे ओटोमन साम्राज्य के दौरान तुर्की भाषा में में बेज़ाज़िस्तान-I सीडिड (न्यू बेडेस्टन (Bezzâzistan-ı Cedid (New Bedesten) के रूप में भी जाना जाता था। यह स्थान विशेष रूप से वस्त्रों और गहनों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। बेडेस्टन शब्द फ़ारसी शब्द बेज़ेस्तान से लिया गया है, जो ‘बेज़’ (कपड़ा) से लिया गया है, और इसका अर्थ ‘कपड़ा विक्रेताओं का बाज़ार’ होता है। बाद के वर्षों में, सुल्तान सुलेमान I ने कपड़ा व्यापार के लिए सैंडल बेडेस्टन (Sandal Bedesten) नामक एक और ढके हुए बाज़ार का निर्माण कराया।
ग्रैंड बाजार ने अंततः 17 वीं शताब्दी में अपना अंतिम आकार हासिल किया, जो ओटोमन साम्राज्य की विशाल पहुंच और व्यापार मार्गों के नियंत्रण के कारण भूमध्यसागरीय व्यापार का केंद्र बन गया। बिक्री के लिए सामानों की प्रचुरता, विविधता और गुणवत्ता के कारण उस समय के यूरोपीय यात्रियों को यह बाज़ार बहुत पसंद आ रहा था। 1638 के आसपास तुर्की यात्री ‘एवलिया सेलेबी’ (Evliya Çelebi) द्वारा दिए गए बाज़ार के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विवरण के अनुसार , “बाजार में बड़ी दुकाने दो या तीन मंजिल की होती है जिनमें एक बरामदा या प्रांगण भी होता था जहां सामान संग्रहीत किया जा सकता था और व्यापारियों को भी ठहराया जाता था।”हालांकि, समय के साथ- साथ ग्रैंड बाजार में कई आपदाएं एवं आग और भूकंप जैसी दुर्घटनाएं भी घटित होती रही हैं। यहां आग की पहली बड़ी दुर्घटना 1515 में और दूसरी बड़ी दुर्घटना 1548 में घटित हुई थी। इसके बाद 1701 की आग विशेष रूप से भयंकर मानी जाती है, जिसके कारण 1730-1731 में ‘ग्रैंड विज़ियर’ नेवसेहिर्लेी दमद इब्राहिम पाशा (Grand Vizier Nevsirli Damad Ibrahim Pasha) को इस परिसर के कई हिस्सों का निर्माण फिर से करना पड़ा था। इस बाजार ने आखिरी बड़ी तबाही 1894 में देखी जब एक शक्तिशाली भूकंप ने पूरे इस्तांबुल को हिला दिया था। 1890 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस बाज़ार में 4,399 सक्रिय दुकानें, 2195 कमरे, 1 हमाम, एक मस्जिद, 10 मदरसा, 19 फव्वारे, एक मकबरा और 24 हान शामिल थे। बेडेस्टन में छत के नीचे स्थित आयताकार खिड़कियां प्रकाश का एकमात्र स्रोत थी । सीमित प्रकाश व्यवस्था के कारण, इमारत प्रत्येक दिन केवल कुछ घंटों के लिए खुली रहती थी और मुख्य रूप से विलासिता के सामानों , विशेष रूप से वस्त्रों के व्यापार के लिए उपयोग की जाती थी।
मूल रूप से, ग्रैंड बाजार की संरचनाएं लकड़ी से बनाई गई थीं, लेकिन बाद में 1700 में आग लगने के बाद, पत्थर और ईंट से इनका पुनः निर्माण किया गया। हालांकि, आज हमें ग्रैंड बाजार में खाने-पीने के कई विकल्प मिलते हैं, किंतु ओटोमन समाज के दौरान , यहाँ पर रेस्तरां पूरी तरह से प्रतिबंधित थे, जिसका कारण अक्सर इस क्षेत्र में सामाजिक स्थितियों, नौकरियों और पारंपरिक मान्यताओं में महिलाओं की अनुपस्थिति और तुर्की समाज की खानाबदोश परंपराओं को माना जाता है। आज ग्रैंड बाजार एक अविश्वसनीय रूप से अनूठी संरचना है जिसमें तुर्की के इतिहास और संस्कृति की झलकियां मिलती हैं। यदि हम भारत के संदर्भ में देखें, तो यहाँ दिल्ली का मीना बाजार न केवल भारत में बल्कि दुनिया के सबसे पुराने कार्यात्मक बाजारों में से एक माना जाता है। यहां से आभूषण, पारंपरिक चीनी मिट्टी के बर्तन (Traditional Crockery), कला के नमूने, कालीन, और घर की सजावट के कई अन्य सामान आदि खरीदे जा सकते हैं। पहले के समय में यह शाही परिवार के लिए एक विलासिता भरा बाजार था जिसमें बिक्री के लिए दुर्लभ वस्तुएं जैसे कालीन,केसर, मसाले, कीमती पत्थर, तांबे के बर्तन, पीतल, बढ़िया लकड़ी, हाथी दांत की बनी वस्तुएं और गहने आदि आसानी से उपलब्ध थे। कई बॉलीवुड फिल्मों में गीतों और संवादों में भी मीना बाजार का जिक्र किया गया है। मीना बाजार को शाहजहाँ के शासन के दौरान ‘मुकरमत खान’ द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था। यह 17वीं शताब्दी के पहले कवर्ड अर्थात ढके हुए बाजारों में से एक है और इसे दिल्ली की चरम जलवायु के अनुरूप डिजाइन किया गया था। 17वीं शताब्दी के दौरान इसे 'बाजार-ए-मुसक्काफ ('Bazar-e-Musakkaf')' के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ 'छत वाला बाजार' या छत्ता-बाजार होता है। लाल किले के लाहौर गेट से होते हुए मीना बाजार तक पहुंचा जा सकता है। बाजार में रेखीय रास्ता 'नौबत खाना' और दीवान-ए-आम की ओर जाता है। इसके केंद्र में एक अष्टकोणीय दरबार है, जिसे 'छत्तर मंजिल' कहा जाता है। बाजार में सुंदर और व्यापक मेहराब भी हैं जो समान रूप से छत्ते के रूपांकनों से बने हैं। मीना बाजार के गलियारों में टहलते हुए आप इसकी जटिल मुगलकालीन नक्काशी को भी निहार सकते हैं। मीना बाजार, मूल रूप से, महिलाओं का मनोरंजन केंद्र माना जाता था। शुरुआती मुगल काल के दौरान सप्ताह के कुछ विशेष दिनों पर केवल महिलाओं के लिए खास बाजार लगाए जाते थे, जिन्हें भी मीना बाजार कहा जाता था, एवं इन्हें‘कुह्स रूज’ (Kuhs Ruz), जिसका अर्थ ‘आनंद का दिन’ होता है, के रूप में भी जाना जाता था। सम्राट हुमायूँ इन बाज़ारों को शुरू करने वाले पहले मुग़ल सम्राट थे, जहाँ विशेष रूप से महिलाओं के लिए बनी वस्तुएँ बेची जाती थीं। बाद मेंसम्राट अकबर और उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल के दौरान इन बाजारों ने अपना विस्तार करना शुरू कर दिया था। शुरुआती मीना बाजार मूल रूप से आम जनता के लिए बंद थे और केवल हरेम की महिलाओं, राजपूत महिलाओं और रईसों की पत्नियों और महिलाओं को यहाँ आने की अनुमति थी। ये महिलाएँ अपनी खुद की दुकानें लगाती थीं और यहां कपड़े, दुपट्टे, शिफॉन, कृत्रिम आभूषण, लहंगे , पारंपरिक रेशम और सूती शाही साड़ियाँ, आदि बेचीं जाती थी।
शाही वस्तुओं की सूची में कालीन, जाजम, शतरंजी, टीका-नमदा, शाहतुस, पश्मीना शॉल, मखमली परदा, चिक, कढ़ाई और ज़री वाले ब्रोकेड के कपड़े, चांदी के बर्तन, विदेशी और स्वदेशी आभूषण, कीमती पत्थर, हाथी दांत की बनी वस्तुएं एवं गहने एवं उच्च किस्म के हथियार आदि भी शामिल थे। आज मीना बाजार पहले की तुलना में काफी हद तक बदल गया है, लेकिन पुराने किले के पास स्थित इस बाज़ार में आज भी सैकड़ों लोग- पुरुष, महिलाएं और बच्चे , सभी अपने पसंदीदा वस्त्र एवं वस्तुएं खरीदने के लिए आते है। ढंके हुए बाज़ारों की इस्लामी परंपरा से प्रेरित होकर, अंग्रेजों ने मुंबई में क्रॉफर्ड मार्केट का निर्माण किया, जो अभी भी मुंबई शहर में एक प्रमुख खुदरा केंद्र बना हुआ है। मुंबई में छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के उत्तर की ओर स्थित क्रॉफर्ड मार्केट सभी घरेलू सामान खरीदने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। 1871 में स्थापित, बाजार को शुरू में 'महात्मा ज्योतिराव फुले मार्केट' के रूप में जाना जाता था। बाद में शहर के नगर आयुक्त आर्थर क्रॉफर्ड (Arthur Crawford) के नाम पर इसका नाम ‘क्रॉफोर्ड मार्केट' रखा गया । लगभग 72000 वर्ग गज में फैला यह बाजार अपनी शानदार वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। क्रॉफर्ड मार्केट की वास्तुकला में नॉर्मन (Norman) और फ्लेमिश (Flemish) शैलियों को देखा जा सकता है, जो एक आधुनिक शहर में पुरानी दुनिया के आकर्षण तत्वों को दर्शाती है। इस बाजार की एक मुख्य विशेषता क्लॉक टॉवर (Clock Tower) है, जो जटिल विक्टोरियन नक्काशियों से सजी है। इस बाजार के विषय में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि बाजार को पहली बार 1882 में बिजली मिली, और बिजली प्राप्त करने वाला भारत का यह पहला बाजार बन गया।

संदर्भ
https://bit.ly/3ktOhN9
https://bit.ly/3kiwHvk
https://bit.ly/3WqU5UO
https://bit.ly/3iNbLfB
https://bit.ly/3XJ4oog
https://bit.ly/3QRSwya

चित्र संदर्भ

1. ग्रैंड बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भूतलीय ग्रैंड बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सुल्तान मेहमद द्वितीय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ग्रैंड बाजार गेट को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. दिल्ली के मीना बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. क्रॉफोर्ड मार्केट को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)



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