हमारे जौनपुर की ‘सई’ नदी का कायाकल्प क्यों है जरूरी और यह कैसे संभव है?

जौनपुर

 18-01-2023 11:20 AM
नदियाँ

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ की दूसरी केंद्रीय बैठक के दौरान यह घोषणा की गई कि सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ के तहत प्रस्तावित धन का उपयोग करके, आने वाले वर्षों में देश की, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की लगभग 75 छोटी नदियों के कायाकल्प का प्रयास किया जायेगा। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि जिन प्रमुख छोटी नदियों का कायाकल्प किया जा रहा है, उनमें उत्तर प्रदेश राज्य की गोमती, मंदाकिनी, वरुणा नदियों के साथ-साथ हमारे जौनपुर शहर से होकर गुजरने वाली सई नदी भी शामिल हैं। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई वाली ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’, द्वारा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में लगभग 75 छोटी नदियों के कायाकल्प की पहल की गई।
2019 के बाद से परिषद की यह पहली बैठक थी जिसमें गंगा नदी की सफाई पर ध्यान केंद्रित किया गया और इसमेंउत्तर प्रदेश , उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे। अधिकारियों के अनुसार, इस बैठक द्वारा सरकार की ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को लागू करने वाली ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ (National Mission for Clean Ganga (NMCG) द्वारा तैयार एजेंडे को केंद्रीय मंत्रालयों और इसमें शामिल पांच राज्यों को परिचालित किया गया है। बैठक के एजेंडे में यह भी कहा गया कि “बैठक में सुझाए गए उपायों को लागू करने के लिए प्रत्येक जिले में दो छोटी नदियों की पहचान की गई है। मनरेगा के तहत राज्य में 2018-19 के दौरान छह नदियों, 2019-20 में उन्नीस और 2020 - 21 में छह तथा 2021-22 में चौदह नदियों का कायाकल्प किया गया था । पिछले चार वित्तीय वर्षों (2018-19 से 2022-23) के दौरान उत्तर प्रदेश के चार जिलों (पीलीभीत, सीतापुर, लखनऊ और शाहजहांपुर) में गोमती नदी पर काम किया गया था।
पीलीभीत जिले के जिलाधिकारी पुलकित खरे (Pulkit Khare) के अनुसार, इस साल की शुरुआत में गोमती नदी का कायाकल्प किया गया था। उन्होंने कहा कि “गोमती नदी पीलीभीत जिले से निकलती है और शाहजहांपुर जिले में प्रवेश करने से पहले लगभग 47 किमी की दूरी तय करती है। समय के साथ नदी की धारा की निरंतरता टूट गई थी, इसलिए हमने नदी को चौड़ा और गहरा करने का फैसला किया, जिसके लिए हमने ‘मनरेगा’ में उपलब्ध धन का उपयोग किया।” उन्होंने बताया कि इस अभ्यास का उद्देश्य केवल गाद द्वारा अवरुद्ध नदी की धारा का कायाकल्प करना नहीं था बल्कि लोगों को इस कार्यक्रम से जोड़ना भी था।
हमारे शहर जौनपुर की सई नदी भी, जिसे तुलसीदास के रामचरितमानस में “आदि गंगा" के रूप में उल्लिखित किया गया है, उत्तर प्रदेश में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। यह नदी, जो कभी स्थानीय किसानों के लिए पीने के पानी और सिंचाई का स्रोत हुआ करती थी, आज औद्योगिक अपशिष्टों और घरेलू कचरे के साथ-साथ, नदी के जलग्रहण क्षेत्र पर अतिक्रमण और नालों को अवरुद्ध करने के कारण वर्षों से सूख गई है। पर्यावरणविदों के अनुसार 2005-2006 तक, सई नदी का पानी मानव निर्मित गड्ढों की मदद से 500 मीटर तक और पंपों की मदद से एक किलोमीटर तक फसलों की सिंचाई करने में सक्षम था। लेकिन आज, नदी के पास के खेतों को भी सिंचाई के लिए डीजल पंपों का उपयोग करना पड़ता है। जैसे ही नदी लखनऊ की ओर आगे बहती है, अतिक्रमण नालों को बंद कर देता है और नदी के प्रदूषण में इजाफा करता है। जौनपुर में गोमती नदी में विलय होने से पहले सई छह जिलों से होकर बहते हुए 715 किलोमीटर की यात्रा तय करती है। विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि अतिक्रमण हटा दिया जाए और पारंपरिक भूजल स्रोतों को बहाल कर दिया जाए , तो सई नदी एक बार फिर आसपास के समुदायों के लिए जीवन रेखा बन सकती है। पिछले दशकों में, भारत के तेजी से औद्योगीकरण और आर्थिक उदारीकरण के बावजूद, देश मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जिसकी अनुमानित 65-70% आबादी, अपनी जीविका के लिए कृषि भूमि पर निर्भर है। इसका मतलब यह है कि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता का न केवल ग्रामीण भारत के अस्तित्व पर, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है।
1960 के दशक में हरित क्रांति ने कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार किया, लेकिन इससे बोरवेल का उपयोग करके भूजल के दोहन में भी भारी वृद्धि हुई। अकुशल और अरक्षणीय कृषि पद्धतियों के साथ-साथ कृषि भूमि के लिए वनों के नुकसान के परिणामस्वरूप, ग्रामीण भारत में कृषि और घरेलू उपयोग के लिए पानी की पहुंच में कमी आई है।
प्राकृतिक जल संसाधन प्रबंधन के एक भू-जलविज्ञानी डॉ. लिंगाराजू येल (Dr. Lingaraju Yale) और उनकी टीम ने पिछले चार वर्षों में, कर्नाटक राज्य की तीन प्रमुख नदियों - कुमुदवाती (Kumudavathi), वेदवती (Vedavathi), और पलार (Palar) को फिर से जीवंत करने के लिए अथक प्रयास किया है। येल का मानना है कि एक नदी बेसिन में भू-जलीय प्रक्रियाओं का कायाकल्प करने से कम समय में वितरित होने वाली अनियमित वर्षा की घटनाओं में संतुलन आता है। उनके अनुसार “हमें प्राकृतिक वनस्पति पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो वर्षा जल को आधार प्रवाह के रूप में धारा के साथ और उथले और गहरे जलभृतों के माध्यम से संरक्षित करता है। पहाड़ों, घाटियों और मैदानों में प्राकृतिक वनस्पति का ह्रास, भूजल का अत्यधिक दोहन, मृदा अपरदन, और विदेशी पेड़ों का बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण (जो जमीन में पानी बनाए रखने के बजाय अधिक पानी की खपत करते हैं) नदियों के सूखने के मुख्य कारण हैं। यह भारत भर में सिंचाई के लिए पानी की कमी के कारण उपयुक्त फसल न होने से किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं में वृद्धि की व्याख्या करता है, विशेष रूप से महाराष्ट्र में, जहाँ 2015 में 90% से अधिक आत्महत्या के मामले (लगभग 2000 मामले) दर्ज हुए । येल कहते हैं, “नदी स्रोतों में कृत्रिम रूप से पानी पंप करने के पारंपरिक तरीके वास्तव में सूखे के दीर्घकालिक समाधान की दिशा में काम नहीं करते हैं।"
मई 2013 में, येल ने कुमुदवती नदी के पुनरुद्धार पर अपनी पहली व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी टीम की मदद से एक व्यापक योजना तैयार की थी जिसमें प्राकृतिक वनस्पति को पुनर्जीवित करना, मिट्टी का संरक्षण करना और जल स्तर को बढ़ाना शामिल था, जिसके परिणाम आश्चर्यजनक रहे हैं। नदी अब बारहमासी बहती है और सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए पानी का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है।

संदर्भ
https://bit.ly/3IMhTPV
https://bit.ly/3GFtyx8
https://bit.ly/3vYLpKu

चित्र संदर्भ
1. सई नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गंगा नदी की सफाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जौनपुर स्थित सई नदी के तट को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
4. खेतों में सिचाई प्रणाली को दर्शाता एक चित्रण (Imaggeo)



RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id