Post Viewership from Post Date to 19-Jan-2023
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1660 926 2586

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

वर्षों पहले प्रतिबंधित बंधुआ मजदूरी आज भी है सक्रिय

जौनपुर

 13-01-2023 11:00 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

‘बंधुआ मजदूरी’ भारत में अवैध और प्रतिबंधित है। बंधुआ मजदूरों की सुरक्षा के लिए एक सख्त कानून है, लेकिन आज भी लाखों पुरुष, महिलाएं और बच्चे गुलाम जैसी स्थितियों -बंधुआ मजदूरी, यौन तस्करी, बाल श्रम, घरेलू दासता और कई अन्य रूपों में रहकर काम कर रहे हैं । एक वैश्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 18 मिलियन लोग, जो भारत की आबादी का 1.4 प्रतिशत है, ईंट भट्टों, कालीन उद्योगों, कांच के बने पदार्थ और चूड़ी उद्योगों में दास के रूप में काम करते हैं, इसके अलावा बच्चे घरेलू मदद के रूप में या सड़क के किनारे बने होटलों में भीकाम करते हैं। हालाँकि, भारत में कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि यह संख्या हिमशैल का सिरा मात्र है। विदेशी संबंधों पर अमेरिकी सीनेट समिति (American Senate Committee on Foreign Relations) ने 2016 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में 12 से 14 मिलियन बंधुआ मजदूर हैं, जो दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा हैं, जबकि पूरी दुनिया में 27 मिलियन बंधुआ मजदूर हैं।
1976 की बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम बच्चों सहित सभी ऋण बंधनों को गैर-कानूनी बनाता है। इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, बलात्कार, जबरन वसूली, गंभीर चोट पहुंचाना, हमला, अपहरण, गलत तरीके से बंधक बनाना, गुलामों के रूप में लोगों को खरीदना या बेचना , और गैरकानूनी अनिवार्य श्रम आपराधिक कार्य हैं, जिसमें 10 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। मानवाधिकार आयोग से प्राप्‍त नवीनतम आंकड़े गुलामी के तहत रहने वाले 14 मिलियन से अधिक बच्चों को दर्शाते हैं। यदि वास्‍तविक रूप से देखा जाए तो निश्चित रूप से यह संख्‍या दोगुनी हो जाएगी। गैरसरकारी संगठन 'सेव द चिल्ड्रन' (save the children) के सुरोजीत चटर्जी के अनुसार “उत्तर प्रदेश में पांच से 14 साल के बीच काम करने वाले बच्चों की संख्या 21 लाख है। "यह वह संख्या है जिसके बारे में हम जानते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में या उन क्षेत्रों में काम करने वाले बच्चों की संख्या जहां नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की पहुंच लगभग नगण्य है, और भी अधिक हो सकती है । कानून कहता है कि बच्चों को स्कूल जाना चाहिए और खेलने के लिए समय मिलना चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है,”।
इन बंधुआ मजदूरों में अधिकांश प्रवासी श्रमिक हैं जो काम की तलाश में बुंदेलखंड, बिहार और झारखंड जैसे गरीब क्षेत्रों से आते हैं। ईंट भट्ठों में पूरा परिवार एक दल की तरह काम करता है। वॉइस ऑफ पीपल (Voice of People) की संयोजक, श्रुति नागवंशी कहती हैंकि “इन प्रवासी श्रमिकों को मालिक द्वारा भूमि का एक टुकड़ा आवंटित किया जाता है जहाँ श्रमिकों को मिट्टी खोदनी होती है और फिर मिट्टी को मोल्डिंग प्रक्रिया के लिए गीला करना होता है। आम तौर पर, मोल्डिंग के लिए छोटे बच्चों सहित पूरा परिवार लगा होता है,”। मजदूरों को 1,000 ईंटें बनाने के लिए 200 रुपये का भुगतान किया जाता है, जो बाद में 7,000 रुपये में बाजार में बेची जाती हैं। इन मजदूरों को एजेंटों द्वारा भर्ती किया जाता है, जो उन्हें अपने परिवार को साथ ले जाने के लिए कहते हैं। हालांकि किसी को अपने परिवार को अपने साथ ले जाने की अनुमति मिल जाना आकर्षक लग सकता है । मजदूर को आवास का वादा किया जाता है और अक्सर उसे ऋण रूपी अग्रिम भुगतान भी किया जाता है - इस ऋण के लिए एक छिपी हुई अवधि होती है। एक बार जब वह अग्रिम स्वीकार कर लेता है, तो वह जाल में फंस जाता है,"। ईंट भट्ठों में कार्यरत श्रमिक ज्यादातर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अल्पसंख्यक वर्ग के होते हैं, जो आमतौर पर निरक्षर और संख्‍या के ज्ञान से अनभिज्ञ होते हैं। वे आसानी से ऋण /अग्रिम के अंकगणित को नहीं समझते हैं, और साथ ही दस्तावेजी साक्ष्य लेनदार के पास रहते हैं, जिसका विवरण उन्हें कभी भी ज्ञात नहीं होता है। विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए अध्ययन ईंट भट्ठों में महिलाओं के कथित यौन शोषण की ओर भी इशारा करते हैं। एक महिला को झारखंड में उसके गांव से एक अन्य महिला ने नौकरी का झांसा देकर बहला-फुसलाकर जौनपुर के एक ईंट भट्ठे में बंधुआ मजदूर के रूप में बेच दिया था। उसने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बताया कि ईंट भट्ठा मालिक द्वारा उसके साथ प्रतिदिन बलात्कार किया जाता था और विरोध करने पर उसे पीटा जाता था।
हालांकि, सबसे ज्यादा पीड़ित छोटे बच्चे होते हैं। वे स्कूलों में नहीं जाते हैं ।इसके बजाय अपने माता-पिता की, ईंटों को सुखाने के लिए व्यवस्थित करने में मदद करते हैं, और टूटी हुई और अनुचित तरीके से ढाली गई ईंटों को इकट्ठा करते हैं । जब वे थोड़े से ही बड़े होते हैं, तो उन्हें कम उम्र से ही इस व्यवसाय में प्रशिक्षित किया जाता है।
ईंट भट्टे में काम करने वाली पांच बच्चों की मां कमला ने बताया कि कैसे उनके दो सबसे छोटे बच्चे मेधु (5) और रानी (3) खाने के लिए रोते थे। उसने 1,000 ईंटें बनाने के बमुश्किल 200 रुपये कमाए, उसके पास अपने परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था, और उसकी बेटी चार साल की होने से पहले ही कुपोषण के कारण मर गई।
चेन्नई के उत्तर में स्थित तिरुवल्लुर जिला लंबे समय से बंधुआ मजदूरी के प्रचलन के लिए बदनाम है। जिला प्रशासन द्वारा तीन महीने पहले शुरू किए गए एक ईंट भट्ठे का सह-स्वामित्व और संचालन करने के कारण अब, लगभग सौ मुक्ति प्राप्त मजदूर और उनके परिवार अपने भविष्य को आकार दे रहे हैं। श्रमिक मुख्य रूप से इरुला समुदाय के सदस्य हैं जो अनुसूचित जनजाति श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। जिला कलेक्टर डॉ.एल्बी जॉन वर्गीज (Dr Alby John Varghese) ने सबसे पहले यह विचार रखा था। ईंट भट्ठे का उद्घाटन अप्रैल में हुआ था । जून में भट्ठे की पहली शुरुआत हुयी। जुलाई के अंत तक, उन्होंने 82,000 ईंटों का निर्माण किया था, जिसकी कीमत लगभग 7 लाख रुपये थी। कुल उत्पादन का लगभग आधा - 41,000 ईंटें - प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई (PMAY)) योजना के तहत परियोजनाओं को बेच दिया गया था। डॉ.वर्गीज के मुताबिक, पीएमएवाई योजना के लिए राजस्व विभाग नियमित रूप से इस भट्ठे से ईंटें खरीदता है। चूंकि भट्ठे की ईंटों की सुनिश्चित मांग है, इसलिए निश्चित है कि भट्ठे की उपज को बाजार मिलेगा। चूंकि बाजार बंधा हुआ है, श्रमिकों को रिटर्न भी सुनिश्चित है। वे अब खोखली ईंटों में भी विविधता लाने पर काम कर रहे हैं। यह एक सफल परियोजना के रूप में विकसित हो रहा है - एक आत्मनिर्भर सामुदायिक उद्यम - क्योंकि श्रमिक इसे विभिन्न सरकारी एजेंसियों के समर्थन और मार्गदर्शन के साथ स्वयं प्रबंधित करते हैं।
वर्तमान में शैक्षिक और संचार केंद्र (सीईसी) (Educational and Communication Center (CEC) भारत के ईंट भट्ठा उद्योग में बंधुआ मजदूरी और जबरन मजदूरी की निगरानी कर रहा है। इस अभ्यास का उद्देश्य ईंट भट्ठों में श्रमिकों की गरीबी और भेद्यता को कम करने की दिशा में काम करना है। इसके साथ ही इसका उद्देश्य कानूनी प्रावधानों और न्यायिक अदालतों की मदद से मजदूरों को अत्यधिक बंधन से मुक्त करना और साथ ही साथ श्रमिकों को उनके संगठनों की सुविधा देकर सशक्त बनाना भी है। यह कार्य हकदारी और लाभों तक पहुंच को सुगम बनाकर, प्रासंगिक कानून के कार्यान्वयन की मांग करके भट्ठा मालिकों और स्थानीय अधिकारियों के साथ निरंतर जुड़ाव के माध्यम से काम करने की स्थिति में सुधार करके किया जा रहा है । सीईसी ने एक समग्र ढाँचा विकसित किया है जिसमें प्रभावी परिणामों के लिए विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाकर श्रम बंधन, महिला श्रमिकों की अदृश्यता, बाल श्रम, प्रौद्योगिकी और पर्यावरणीय गिरावट के सवालों पर व्यापक रूप से विचार किया जाता है। 2016 के बाद से, सीईसी यूरोपीय संघ के वित्तीय समर्थन के साथ एक परियोजना को लागू कर रहा है। इसने विभिन्न हितधारकों को श्रम स्थितियों में सुधार लाने, समानता बढ़ाने और ईंट भट्ठा क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए एक साथ लाया है। हितधारक ईंट भट्ठा मालिक, श्रमिक, स्थानीय प्राधिकरण, हरित प्रौद्योगिकी पर काम करने वाले ज्ञान भागीदार और मानव अधिकारों, श्रम अधिकारों, महिला अधिकारों और बाल अधिकारों के मुद्दों पर सक्रिय केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office(CSO) हैं। उत्तर प्रदेशराज्य के भदोही जिले के कालीन निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले ‘सेंटर फॉर रूरल एजुकेशन एंड डेवलपमेंट एक्शन’ (Center for Rural Education and Development Action (CREDA)) के सचिव शमशाद खान ने कहा कि बाल श्रम भले ही सतह पर दिखाई न दे, लेकिन गुप्त रूप से यह अभी भी हो रहा है। खान बताते हैं “बिहार और झारखंड के प्रवासी श्रमिक कालीन निर्माताओं द्वारा संचालित बंद शेड में रहने को मजबूर हैं। वे अपने परिवारों के साथ आते हैं और उन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने की अनुमति नहीं होती है,”। लेकिन चूड़ी उद्योग में गुलामी को वैध रूप दे दिया गया है। राष्ट्रीय महिला एवं बाल अधिकार अभियान के संयोजक दिलीप सेवार्थी कहते हैं “एक व्यक्ति को अपने घर पर कांच की चूड़ियां बनाने की अनुमति है और 350 चूड़ियों के लिए 6 रुपये का भुगतान किया जाता है। ऐसे 30 लॉट तैयार करने के लिए पूरा परिवार दिन में 12-14 घंटे काम करता है। तो एक दिन की मेहनत के बाद उस व्यक्ति को केवल 180 रुपये मिलते हैं। वह अपने बच्चों को भी इस कार्य में लगाता है ताकि वह अधिक कमाई कर सके। धीरे-धीरे, जिस बच्चे को स्कूल जाना चाहिए, उसे चूड़ी बनाने के इस कार्य में खींच लिया जाता है,”।उन्होंने कहा कि बंधुआ मजदूरी मानव अधिकारों के उल्लंघन का सबसे खराब रूप है और गुलामी का एक समकालीन रूप है। यह जीवन के अधिकार, समानता के अधिकार और व्यक्तिगत गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3GgRHKs
https://bit.ly/3Z8BHTn
https://bit.ly/3vxGH6x

चित्र संदर्भ
1. ईंटे ढोती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. होटल कर्मचारी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. नेपाल में बाल श्रम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ईंट भट्ठों में महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मांस की दुकान में काम करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बधुआ मजदूरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए, नज़र डालें, अमेरिकी ड्रामा फ़िल्म, ‘लॉलेस’ पर
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     24-11-2024 09:12 AM


  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id