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जिज्ञासा, शानदार कलाबाजी, कौशल और तेज बुद्धि के कारण डॉल्फिन (Dolphin) को दुनिया के सबसे आकर्षक और लोकप्रिय समुद्री जीवो में से एक माना जाता है। फरवरी 2019 में, 150 किलोग्राम की एक भारी-भरकम डॉल्फिन (गंगा नदी डॉल्फिन) जौनपुर की शारदा नहर में भी देखी गयी थी, जिसे देखने के बाद लोग हैरान रह गए थे। गंगा नदी डॉल्फिन (Ganges River Dolphin) की भांति ही सिंधु नदी डॉल्फिन (Indus River Dolphin) ने भी हाल के दिनों में खूब चर्चा बटोरी है।
माना जाता है कि सिंधु नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन की उत्पत्ति प्राचीन टेथिस सागर (Ancient Tethys Sea) में हुई थी। किंतु लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले जब समुद्र सूखने लगा, तो इस डॉल्फ़िन को अपने शेष बचे दूसरे निवास स्थान, अर्थात नदियों के अनुकूल होने पर मजबूर होना पड़ा। आज, यह केवल भारत में सिंधु नदी की एक सहायक नदी, ब्यास और पाकिस्तान में सिंधु नदी के निचले हिस्सों में पाई जा सकती हैं। पहले, सिंधु नदी की डॉल्फ़िन (प्लैटानिस्टा गैंगेटिका माइनर (Platanista Gangetica Minor) को गंगा डॉल्फ़िन की ही एक उप-प्रजाति प्लैटानिस्टा गैंगेटिका (platanista gangetica) माना जाता था। हालाँकि, हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों ने सत्यापित किया है कि सिंधु नदी डॉल्फ़िन "प्लैटनिस्टा माइनर (Platanista Minor)" नाम की एक अलग प्रजाति है।
डॉल्फिन कम से कम पांच से आठ फीट गहरे पानी को पसंद करती हैं। वे आमतौर पर अशांत पानी में पाई जाती हैं, जहां उनके खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में मछलियां होती हैं। वे झींगे, कैटफ़िश और कार्प (Catfish & Carp) सहित अपने अन्य शिकारों का पता लगाने, संवाद करने और शिकार करने के लिए प्रतिध्वनि निर्धारण क्षमता (Echolocation) पर भरोसा करती हैं। प्रतिध्वनि निर्धारण क्षमता का परावर्तित ध्वनि द्वारा अपने शिकार के स्थान का पता लगाने के लिए , विशेष रूप से डॉल्फ़िन और चमगादड़ जैसे जानवरों द्वारा उपयोग किया जाता है। अन्य मीठे पानी की डॉल्फिन की भांति, सिंधु नदी की डॉल्फिन भी नदी के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक होती है। हालांकि, 1930 के दशक के बाद कुछ प्रमुख कारणों से उनकी संख्या में नाटकीय रूप से गिरावट आई है, और अधिकांश डॉल्फिन नदी के 750 मील के क्षेत्रफल तक ही सीमित हो गई हैं।
सिंधु नदी डॉल्फ़िन की आबादी में शुरुआती गिरावट का मुख्य कारण 1930 के दशक में शुरू हुए कई बांधों और बैराजों का निर्माण था। इस निर्माण ने इनकी आबादी को छोटे समूहों में विभाजित कर दिया, उनके निवास स्थान को छीन लिया और प्रवासन को भी बाधित कर दिया। बैराज के निर्माण के परिणामस्वरूप, इनका आवास विखंडन हुआ है। पानी कम होने के कारण डॉल्फ़िन सिंधु नदी के निचले हिस्सों में अब नहीं पाई जाती हैं। आज इनके प्रमुख खतरों में मछली पकड़ने के जाल में आकस्मिक फंसना शामिल है। साथ ही मांस, तेल और पारंपरिक दवाओं में उपयोग के लिए भी बड़ी मात्रा में इनका शिकार किया जाता है।
37,000 मील से अधिक लंबी सिंचाई नहरों के कारण भी यह डॉल्फ़िन सिंचाई नहरों में फंस जाती हैं और चूंकि इन घटनाओं की आमतौर पर रिपोर्ट भी नहीं की जाती है, अतः सिंधु नदी की कई डॉल्फ़िन, बचाए बिना ही मर जाती हैं। सिंचाई नहरों और सिंधु नदी के किनारों पर रहने वाले समुदायों द्वारा अनुपचारित सीवेज नदी के साफ़ पानी को प्रदूषित करता है। इसके अलावा नदी में कपड़े और बर्तन धोने से भी जल प्रदूषण होता है। औद्योगिक प्रदूषण भी कथित तौर पर शहरी क्षेत्रों में भारी मात्रा में मछलियों की मौत का कारण बना है, जिसने सिंधु नदी डॉल्फ़िन की खाद्य आपूर्ति को प्रभावित किया है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India (WWF India) के साथ साझेदारी में वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग (The Department of Forest and Wildlife Preservation) द्वारा किए गए एक व्यापक सर्वेक्षण और जनसंख्या अनुमान ने सिंधु डॉल्फ़िन की संख्या सात से नौ बताई गई । डॉल्फ़िन की आबादी की कम संख्या प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
सिंधु डॉल्फ़िन को पंजाब का राजकीय जलीय जीव भी घोषित किया गया है, और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया (WWF-India) इसके संरक्षण की दिशा में काम भी कर रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ उन मछुआरों को भी शिक्षित करता है जो सिंधु नदी डॉल्फिन की रक्षा के महत्व से जुड़ी ईकोटूरिज्म गतिविधियों (Ecotourism Activities), विशेष रूप से डॉल्फ़िन के संरक्षण को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल होने से भी संकटग्रस्त सिंधु नदी डॉल्फिन की रक्षा और संरक्षण के प्रयासों को जरूरी बढ़ावा मिला है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया और स्थानीय विशेषज्ञों के मिले-जुले प्रयासों से डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी की अच्छी खबर भी मिली है। वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट (Wildlife Conservation Trust (WCT) और स्थानीय विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा इस वर्ष किए गए नवीनतम सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि पटना के भागलपुर जिले में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य (“Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary) जो कि भारत में राष्ट्रीय जलीय जानवर के लिए एकमात्र अभयारण्य है, में लुप्तप्राय गंगा नदी डॉल्फ़िन की आबादी में वृद्धि दर्ज की गई है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे की पृष्ठभूमि में यह खबर आशा की एक किरण के रूप में आई है।
डब्ल्यूसीटी के सर्वेक्षण के अनुसार, अभयारण्य में डॉल्फिन की आबादी 188 से बढ़कर 208 हो गई है। जबकि 2018 में, अभयारण्य में डॉल्फिन की संख्या 171 थी। इसके अलावा, सर्वेक्षण के दौरान कई नन्हें डॉल्फ़िन भी दर्ज किये गए। हाल के वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है कि अभ्यारण्य में डॉल्फिन की आबादी तेजी से बढ़ी है।
वन विभाग से संबंधित अधिकारियों के अनुसार अभयारण्य में डॉल्फ़िन की बढ़ती संख्या दर्शाती है कि वे सुरक्षित रूप से प्रजनन कर रही हैं और उनका आवास भी सुरक्षित है। विभाग के अधिकारियों ने पिछले साल 30 क्विंटल जालियां जब्त की हैं और अभयारण्य में डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए सुरक्षा अमला तैनात किया है। इस वर्ष मानसून के दौरान, गंगा नदी पर न्यूनतम मानव गतिविधि के कारण अभयारण्य में डॉल्फ़िन कथित तौर पर अधिक दिखाई देने लगीं। देश में अनुमानित 3,000 गंगा डॉल्फ़िन में से पचास प्रतिशत अकेले बिहार में रहती हैं। जीवविज्ञानी और पर्यावरणविद् आर के सिन्हा (RK Sinha), जिन्हें 'डॉल्फिन मैन (Dolphin Man)' के नाम से भी जाना जाता है, के अनुसार डॉल्फ़िन की उपस्थिति एक स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत है।
संदर्भ
https://bit.ly/3IC9j6r
https://wwf.to/3Ilc9N0
https://bit.ly/3ig6hcZ
चित्र संदर्भ
1. डॉल्फिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सिंधु नदी डॉल्फिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मृत सिंधु नदी डॉल्फिन को जमीन पर दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फ़िन के वितरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. इस खोपड़ी की ढलाई से सिंधु नदी की डॉल्फ़िन के लंबे जबड़े और गहरे ब्रेन पैन दिखाई दे रहे हैं। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पानी के भीतर सिंधु नदी डॉल्फिन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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