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भारत में मंदिरों में सदियों से चली आ रही भोजन वितरण की प्राचीन परंपरा का क्या है महत्व ?

जौनपुर

 21-12-2022 12:59 PM
स्वाद- खाद्य का इतिहास

आज भी हमारे देश भारत में ज्यादातर मंदिरों में लोगों को भोजन कराने की एक पुरानी परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसमें प्रतिदिन तीर्थयात्रियों और यात्रियों को पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है। किसी भी विशिष्ट भारतीय मंदिर, चाहे वह किसी शहर या गाँव में हो, की अपनी रसोई होती है, जहाँ यह भोजन पकाया जाता है, और नि: शुल्क या एक छोटे से सांकेतिक मूल्य पर परोसा जाता है। बहुधा प्रसाद शाकाहारी भोजन होता है जो विशेष रूप से भगवान की स्तुति और धन्यवाद के बाद भक्तों के लिए पकाया जाता है। यह मंदिर के देवता या देवी को चढ़ाया जाने वाला पवित्र भोजन होता है जिसे बाद में सभी भक्तों को वितरित किया जाता है। प्रसाद में पका हुआ भोजन, फल और मिठाइयाँ शामिल हो सकती हैं। मंदिरों में आमतौर पर शाकाहारी भोजन चढ़ाया जाता है और बाद में मंदिर में मौजूद भक्तों को वितरित किया जाता है। कभी-कभी इस शाकाहारी प्रसाद में प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे लहसुन, प्याज, मशरूम आदि का उपयोग नहीं किया जाता है।कुछ मंदिरों में मांसाहार प्रतिबंधित होता है। चंडी, काली जैसी हिंदू देवी और भैरव, महाकाल जैसे हिंदू देवताओं को मुर्गे, बकरी, मछली, भैंस जैसे जानवरों का मांस चढ़ाया जाता है, जिनका वध मंदिर परिसर में किया जाता है। भगवान के भक्त प्यार से बनाए गए सात्विक सिद्धांतों पर आधारित विभिन्न प्रकार के भोजन को भगवान को अर्पित करते हैं। इस प्रकार अर्पित भोजन प्रसाद के नाम से जाना जाता है। सात्विक शब्‍द से तात्‍पर्य है वह भोजन जो हल्का हो, पचने में आसान हो, और कोशिकाओं के माध्यम से बिजली की भांति शरीर में फैलता हो जिससे वे खुशी से नाचने लगते हैं। वह भोजन जो आपकी तंत्रिका कोशिका (Neurons)को ऊर्जा देता है और आपकी मानसिक क्षमता को बढ़ाता है।वह भोजन जो आपको शांत करता है और आपको स्पष्ट रूप से सोचने देता है। हमारे पूर्वजों का भी मानना ​​था कि भोजन अत्यंत लाभदायक और गुणकारी होता है। दुनिया भर के मंदिरों और भक्तों के घरों में, भोजन करने से पहले भगवान को भोग लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है। श्रीमद्भागवतम् के अनुसार, “भगवान को चढ़ाया गया भोजन शुद्ध सत्त्व की श्रेणी का होता है, सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों या प्रकृति से परे होता है और इसमें एक अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा होती है।“ धर्म और क्षेत्र के आधार पर, भगवान को विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है। कई मंदिरों में भगवान को छह प्रकार के स्वाद वाले (मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा और कसैला) और चार प्रकार की बनावट (चर्व्या (चबाने वाला), चुश्या (चूसने वाला), लेह्य (चाटने वाला) और पेया- (पीने वाला) भोजन चढ़ाने की प्रथा का पालन किया जाता है । मंदिरों में बनने वाला भोजन कोई साधारण भोजन नहीं होता है। जो चीज मंदिर के व्यंजनों को सबसे अलग करती है, वह है इसका स्वाद । अलग-अलग क्षेत्रों में मंदिरों में बनने वाले भोजन का अपना एक विशेष स्‍वाद होता है और इसे फिर से किसी अन्‍य स्‍थान पर बनाना बहुत कठिन है। वास्तव में, कई प्रशिक्षित रसोइयों ने मंदिर के व्यंजनों को रेस्तरां में पेश करने की कोशिश की, लेकिन अंततः वे प्रसाद के स्वाद का जादू पैदा करने में विफल रहे।
नई दिल्ली के जे डब्ल्यू मैरियट होटल (JW Marriott Hotel) के कार्यकारी पाककर्मी (Chef) संदीप पांडे बताते हैं, "मंदिरों का खाना बहुत प्राचीन होता है और इसे विशेष रसोइयों द्वारा तैयार किया जाता है, जिन्हें महाराजा या खानशामा के नाम से जाना जाता है और जो सिर्फ एक ही परिवार के होते हैं। इसलिए, प्रशिक्षित रसोइयों द्वारा भी रेस्तरां में उसी स्वाद को फिर से बनाना असंभव है, ।"
भारत के मंदिरों में भोजन पारंपरिक खाना पकाने की पद्धति से तैयार किए जाते हैं, जिसमें लकड़ी और कोयले से जलने वाले चूल्हे - और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। केवल स्थानीय सामग्री से ही यह भोजन पकाया जाता है, जबकि व्यंजन आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित होते हैं। यह मंदिर के व्यंजनों को पारंपरिक फसलों और मसालों का जीवंत भंडार बनाता है। कुछ मंदिर परिसरों में झरने या कुएं के पानी का भी उपयोग होता है, जबकि पास में स्थित खेत पारंपरिक रूप से अपनी फसल का हिस्सा मंदिर के प्रमुख देवता को चढ़ाते हैं। मंदिर में भक्तों को भोजन कराने की परंपरा की भी एक अपनी अनोखी कहानी है। यह परंपरा एक प्राचीन भारतीय पौराणिक कथा में निहित है जिसमें भगवान विष्णु, एक लंबी तीर्थ यात्रा पर निकले थे । अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने दक्षिण भारत में समुद्र तटीय मंदिर रामेश्वरम के पानी में डुबकी लगाई, उत्तर में बद्रीनाथ मंदिर में ध्यान लगाया, पश्चिम में द्वारका मंदिर का दौरा किया और पूर्वी तट पर जगन्नाथ मंदिर में भोजन किया।
उन्‍होंने जो खाना खाया, वह उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी द्वारा पकाया गया था, और इस तरह यह दिव्य माना गया, किसी भी अनुष्‍ठान के लिए मंच तैयार करने की परंपरा यहीं से शुरू हुयी, जिसमें प्रसाद के रूप में जाना जाने वाला भोग मंदिर के प्रमुख देवता को चढ़ाया जाता है और भक्तों को वितरित किया जाता है। कुछ मंदिरों में एक ही दिन में हजारों आगंतुकों को भोजन कराया जाता है। उदाहरण के लिए, शिरडी में श्री साईंबाबा मंदिर में पूरे वर्ष भर में प्रतिदिन लगभग 40,000 लोगों को भोजन कराया जाता है।उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ मंदिर में प्रति दिन 25,000 भक्तों को भोजन खिलाया जाता है, लेकिन त्योहारों के दौरान यह आंकड़ा दस लाख तक बढ़ जाता है।12वीं शताब्दी के इस मंदिर में 56 प्रकार के खाद्य पदार्थ मिलते हैं जिनमें 40 अलग-अलग सब्जी और दाल (दाल) के व्यंजन, छह चावल के व्यंजन और 10 पारंपरिक मिठाइयाँ (जैसे पीठा, पायेश, रसगोला और मालपुआ आदि) शामिल है । इसे दिन में छह बार परोसा जाता है और दुनिया के सबसे बड़े रसोई परिसरों में से एक में इसे पकाया जाता है। प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति का पालन करते हुए, नौ के समूहों में एक दूसरे के ऊपर रखे मिट्टी के बर्तनों में भोजन धीमी गति से पकाया जाता है। किंवदंती है कि मंदिर का भोजन देवी लक्ष्मी द्वारा पकाया जाता है, और यह तब तक अपनी सुगंध नहीं छोड़ता जब तक कि इसे देवता को अर्पित नहीं किया जाता है । तिरुपतिबालाजी मंदिर - या वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर - दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित है। परंपरा के अनुसार, भगवान वेंकटेश्वर (विष्णु का एक रूप) हर दिन मंदिर में प्रकट होते हैं, इसलिए उन्हें भोजन कराना भक्तों का कर्तव्य है। तिरुपति एक संस्कृत शब्द "अन्नदानम" है जो हर दिन अनुमानित 80,000 तीर्थयात्रियों को भोजन परोसने के लिए संदर्भित किया जाता है।
200 से अधिक रसोइयों का एक दल प्रतिष्ठित तिरुपति लड्डू, (चने के आटे से बनी एक गोलाकार मिठाई) के साथ-साथ जलेबी, डोसा, वड़ा और अन्य नमकीन सहित 15 अन्य व्यंजन तैयार करता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर की पालक माता वकुला देवी आज भी भोजन की तैयारी की देखरेख करती हैं। वह मंदिर की रसोई में चीजों की देखरेख कर सके, इसके लिए दीवार में एक छोटा सा छेद बनाया गया है।
जैसे ही भक्त प्रार्थना करने के बाद मुख्य मंदिर से निकलते हैं, तो उन्‍हें प्रसाद वितरित किया जाता है। इसमें लड्डू और चावल के व्‍यंजन का एक छोटा संस्करण शामिल है, जिसे पत्ते के कटोरे में रखा जाता है। सिख धर्म में मुफ्त भोजन, जिसे लंगर के रूप में जाना जाता है, केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सभी सिख तीर्थस्थलों या गुरुद्वारों में परोसा जाता है। इस परंपरा को सिख धर्म के पहले गुरु द्वारा शुरू किया गया था, जो समुदाय के लिए निस्वार्थ सेवा की अवधारणा पर जोर देते हैं।
उत्तर भारतीय राज्य पंजाब में अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब (स्‍वर्ण मंदिर) के लंगर में प्रतिदिन 100,000 लोगों को भोजन खिलाया जाता है। अमीर या गरीब किसी भी धर्म के आगंतुक गर्म भोजन ग्रहण कर सकते हैं। 5,000 लोगों की संयुक्त बैठने की क्षमता के साथ दो सांप्रदायिक रसोई और दो भोजन कक्ष हैं। भोजन सरल और पौष्टिक होता है, जिसमें रोटी (गेहूं की रोटी), दाल (दाल), सब्जियां और खीर (दूध और चावल की खीर) शामिल होती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3FveDVV
https://bit.ly/3WhVmxT
https://cnn.it/3uR1Zvi
https://bit.ly/3uMCFGU

चित्र संदर्भ
1. मंदिर में भोजन का निवाला लेते एक छोटे बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भोजन की थाल को दर्शाता एक चित्रण (twitter)
3. सात्विक भोज निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हलवा पूरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. तिरुपति लड्डू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. सिख धर्म में मुफ्त भोजन, जिसे लंगर के रूप में जाना जाता है को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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