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रोहू मछली कार्प (Carp) परिवार की एक प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की नदियों में पाई जाती है और जलीय कृषि में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती है। चांदी के रंग की बड़ी मछली ‘रोहू’ एक महत्वपूर्ण जलीय कृषि वाली मीठे पानी की प्रजाति है और भारत में इसका ज्यादातर सेवन किया जाता है ।मध्य प्रदेश के भोजपुर में इसे स्वादिष्ट व्यंजन माना जाता है। यह भारत में सबसे अधिक खपत की जाने वाली मछलियों में से एक है। पहली नज़र में कोई भी बता सकता है कि रोहू मछली बॉम्बे डक मछली से बहुत भिन्न हैं। दरसल 19वीं सदी के उपनिवेश काल में बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में बॉम्बे डक (Bombay duck) मछली काफी फली फुली। पारसी उद्यमियों ने अंग्रेजों की शोहबत में पश्चिमी शिक्षा और संवेदनाओं को अपनाया और भारतीय उद्योग और राजनीति में बड़े ओहदे हासिल किए। वे वाणिज्य-व्यापार की अहम शख्सियत बने और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके गरीबों के लिए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल बनवाए। 19वीं सदी में बॉम्बे में जोरोस्ट्रियन (Zoroastrians) प्रवासियों की संख्या बढ़ी।ये चतुर उद्यमी ईरानी (Iranians) थे, जिन्होंने बॉम्बे में ईरानी कैफे (Cafe) खोले, जहां पारंपरिक रूप से सभी जातियों, धर्मों और लिंग के लोगों को खाना खिलाया जाता है। भारत की तरह पारसी व्यंजनों पर उन सभी संस्कृतियों का प्रभाव पड़ा जिन्होंने इस उपमहाद्वीप में अपनी छाप छोड़ी है। इनका मूल संभवतः इस्लाम से पहले के ईरान में है, लेकिन इस पर गुजरात, गोवा और कोंकण तटों का भी असर है।भारतीय समुद्र तटों, खासकर गुजरात के तटीय इलाकों की पारसी बस्तियों द्वारा मछली को पारसी संस्कृति से जोड़ा गया है।आमतौर पर लोगों द्वारा अन्य मछलियों के साथ छामनो (Pomfret), बोई (Mullet), कोल्मी (Prawn), लेवटी (Mud hopper), भींग (Shad), रवास (Indian salmon), बांगड़ा (Mackerel) और बॉम्बे डक का सेवन किया जाता है।
बॉम्बे डक, वास्तव में, मुंबई और उसके आसपास के पानी की मूल निवासी मछली है। यह एक चिपचिपी गुलाबी रंग की आधे खुले मुंह वाली देखने में बदसूरत मछली है। इसके अलावा इसके विचित्र नाम के पीछे एक महान रहस्य जुड़ा हुआ है। वास्तव में, ऐसा माना जाता है कि यह शब्द महाराष्ट्री लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मछली, बॉम्बिल के लिए स्थानीय मराठी नाम का एक अंग्रेजीकरण हो सकता था, जिसे अंग्रेजों द्वारा गलत रूप से उच्चारित किया गया हो। लेकिन सबसे प्रसिद्ध स्पष्टीकरण भारत में जन्मे, ब्रिटिश-पारसी लेखक, फारुख धोंडी (Farrukh Dhondy) ने अपनी पुस्तक “बॉम्बे डक” में दिया है। उनका मानना है कि यह नाम ब्रिटिश डाक गाड़ी से आया है, जो मुंबई शहर से भारत के अंदरूनी हिस्सों में जाते समय सूखी मछलियों के गंधयुक्त पत्रों से भरी हुआ करती थी।
उन मालभार को "बॉम्बे डाक (Bombay Dak– डाक का मतलब संदेशों से है)" के रूप में जाना जाता हैं। मुंबई के मछुआरे सदियों से इसे नमक लगाकर धूप में सुखाते रहे हैं। वे इसके लिए बांस की कमानियों से बने बड़े-बड़े रैक का इस्तेमाल करते हैं जिनको वलैंडिस (Valandis) कहा जाता है। इन सूखी मछलियों से तीव्र गंध आती है। इसीलिए पहले अंग्रेजों ने इसे सेहत के लिए नुकसानदेह समझा था, किंतु बाद में वे इसे पसंद करने लगे। इन सूखी मछलियों को बरसात के दिनों में खाया जाता है। इसे करी में पकाया जाता है या तलकर दाल-चावल के साथ खाया जाता है।महाराष्ट्र के कुछ समुदाय इसे भाजी की तरह तलते हैं। दूसरे समुदाय सूखी मछली को हरी सब्जी के साथ मिलाकर प्याज इमली के मसाले के साथ पकाते हैं। यह बात तो स्पष्ट है कि बॉम्बे डक का संबंध सिर्फ पारसियों से नहीं है, लेकिन हमारे घरों में इसकी खास जगह है। इसने हमारी थाली तक और हमारे गीतों तक में जगह बनाई है। हमारी किताबों और हमारे नामों में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।1975 में पारसी संगीतकार मीना कावा (Mina Kava)ने इस मछली के प्रति समुदाय के प्यार को एक गाने का रूप दिया था।
वहीं एक ऐसा समय भी था जब ब्रिटेन में प्रत्येक वर्ष 13 टन बॉम्बे डक खाई जाती थी। लेकिन 1996 में साल्मोनेला (Salmonella) द्वारा आयातित समुद्री भोजन के दूषित पाए जाने के बाद, यूरोपीय आयोग (European Commission) ने अनुमोदित हिमीकरण और डिब्बाबंदी कारखानों के अतिरिक्त भारत से मछली के आयात पर रोक लगा दी थी। चूंकि बॉम्बे डक का उत्पादन किसी कारखाने में नहीं होता है, इसलिए बॉम्बे डक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के अनपेक्षित परिणाम स्वरूप "बॉम्बे डक बचाओ" एक अभियान प्रारंभ हुआ जिसके बाद, भारतीय उच्चायोग ने प्रतिबंध के बारे में यूरोपीय आयोग से संपर्क किया, और यूरोपीय आयोग ने अपने नियमों को समायोजित किया ताकि मछली खुली हवा में सुखाई जा सके, और बाद में इसे "यूरोपीय आयोग अनुमोदित" में पैकिंग स्टेशन (Packing station) में पैक किया जा सके । एक बर्मिंघम (Birmingham) थोक व्यापारी ने मुंबई में एक पैकिंग स्रोत को उपलब्ध करवाया और इसका उत्पादन फिर से उपलब्ध हो गया। बॉम्बे डक कनाडा (Canada) में टोरंटो (Toronto) और मॉन्ट्रियल (Montreal) जैसे बड़ी भारतीय आबादी वाले शहरों में ताजा उपलब्ध है, और आमतौर पर बुमला के रूप में जाना जाता है। हालांकि, यह मुख्य रूप से, बंगाल, दक्षिणी गुजरात, तटीय महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के भारतीयों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन यह अन्य दक्षिण एशियाई आबादी, विशेष रूप से श्रीलंकाई और बांग्लादेशियों द्वारा ज्यादा पसंद किया जाता है।
संदर्भ :-
https://bbc.in/3iAyWJP
https://bit.ly/3OU1pq0
चित्र संदर्भ
1. बॉम्बे डक (Bombay duck) मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रोहू मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia.)
3. एक कैफे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. खुली हवा में सूख रही बॉम्बे डक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फ्राई की गई बॉम्बे डक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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