Post Viewership from Post Date to 03-Jan-2023
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1945 685 2630

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

कर्मयोग का ज्ञान हमारे व्यक्तिगत जीवन और कार्यस्थलों में क्रांति घटित कर सकता है

जौनपुर

 03-12-2022 10:19 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के रूप में धरती पर जन्म लेकर, स्वयं भगवान विष्णु ने भी आम इंसानों की भांति ही कर्म किये हैं। बिना कुछ कर्म किये भी सबकुछ पा लेने की क्षमता होने केपश्चात भी , उन्होंने कर्म करने का चुनाव किया! आखिर क्यों?
'कर्म' शब्द संस्कृत शब्द 'कृ' से बना है, जिसका अर्थ है कार्य करना। मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले सभी क्रियाकलाप कर्म के अंतर्गत ही आते हैं। तकनीकी रूप से, इस शब्द का अर्थ क्रियाओं के प्रभाव से भी है। तत्वमीमांसा (Metaphysics) के संबंध में, यह शब्द (कर्म ) कभी-कभी हमारे पिछले कर्मों के प्रभावों को भी संदर्भित करता है।
कोई भी कार्य या कोई भी विचार, जो प्रभाव उत्पन्न करता है, कर्म कहलाता है। इस प्रकार, कर्म के नियम का अर्थ कार्य-कारण का नियम, अपरिहार्य कारण और अनुक्रम का नियम भी होता है। जहां कहीं कारण है, वहां कार्य अवश्य उत्पन्न होना चाहिए। इस आवश्यकता का विरोध नहीं किया जा सकता है, और कर्म का यह नियम, पूरे ब्रह्मांड में शाश्वत तौर पर सत्य है। वास्तव में “कर्म योग एक मानसिक अनुशासन है, जो एक व्यक्ति को ज्ञान के मार्ग में, पूरे विश्व की सेवा करते हुए, अपने कर्तव्यों को पूरा करने की अनुमति देता है।” परमाणु से लेकर आत्मा तक सभी चीजें हमेशा स्वतंत्रता (मुक्ति) प्राप्त करने की चेष्टा करती हैं।
कर्म-योग, नैतिकता और धर्म की एक प्रणाली है, जिसका उद्देश्य निःस्वार्थता और अच्छे कार्यों के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना है। कर्म-फल का त्याग कर धर्मनिरपेक्ष कार्यों का सम्पादन भी पूजा के समान ही होता है। संसार में कोई भी कार्य ब्रह्म (परमेश्वर) से अलग नहीं है। कर्मयोगी कर्मफल के चक्कर में ही नहीं पड़ता, अत: उसके भीतर वासनाओं का संचय भी नहीं होता है । इस प्रकार कर्मयोगी पुनर्जन्म के बन्धन से मुक्त हो जाता है। कर्म-योग से हम कर्म का रहस्य, कार्य की विधि, कार्य की संगठन शक्ति सीखते हैं। यदि हम इसका उपयोग करना नहीं जानते हैं, तो ऊर्जा का एक विशाल भंडार, व्यर्थ में खर्च हो सकता है।
माना जाता हैकि , स्वामी विवेकानंद को कर्म योग की सर्वोच्च समझ थी। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा था कि “वे लगातार कर्म करें तथापि अपने काम से जुड़ाव न रखें , ताकि हमारा मन मुक्त रह सके। उन्होंने कहा कि “कर्म करने में हमारा अधिकार है, पर उसके फल पर नहीं।" यदि आप किसी व्यक्ति की सहायता करना चाहते हैं तो, ऐसा कभी भी न सोचें कि उस व्यक्ति का व्यवहार आपके प्रति कैसा होना चाहिए। उन्होंने समझाया कि गरीबी, अमीरी और खुशी, सभी क्षणभंगुर (Evanescent) और अस्थायी हैं। वे हमारी आवश्यक प्रकृति नहीं हैं। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार कर्म योग निस्वार्थ और सत्कर्मों के द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का एक मार्ग है। कर्मयोगी को किसी भी सिद्धांत पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं होती है। वह ईश्वर में भी विश्वास करने के लिए बाध्य नहीं है। वास्तव में कर्मयोग वही योग है, जिसके माध्यम से हम अपनी जीवात्मा से जुड़ पाते हैं। कर्मयोग हमारे आत्मज्ञान को जागृत करता है, जिसे प्राप्त करने के बाद हम न केवल अपने वर्तमान जीवन के उद्देश्यों को, बल्कि जीवन के बाद की अपनी गति को भी नियंत्रित कर सकते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गृहस्थ और कर्मठ व्यक्ति के लिए यह योग अधिक उपयुक्त माना गया है। जीवन के लिए, समाज के लिए, देश के लिए, विश्व के लिए कर्म करना बेहद आवश्यक है। किन्तु यह भी एक सत्य है कि दु:ख की उत्पत्ति भी कर्म से ही होती है। गीता के अनुसार, सारे दु:ख और कष्ट आसक्ति (किसी व्यक्ति या वस्तु से जुड़ाव!) से ही उत्पन्न होते हैं। कर्मयोग सिखाता है कि “कर्म के लिए कर्म करो और आसक्तिरहित होकर कर्म करो।” कर्मयोगी इसीलिए भी कर्म करता है क्यों कि कर्म करना उसे अच्छा लगता है, इसलिए नहीं कि इसमें उसका कोई हित निहित होता है।
कर्मयोगी कर्म का त्याग नहीं करता, वह केवल कर्मफल का त्याग करता है, और कर्म जनित दुखों से मुक्त हो जाता है। उसकी स्थिति इस संसार में एक दाता के समान है, और वह कुछ पाने की कभी चिंता नहीं करता है । भारतीय दर्शन में कर्म, बंधन का भी कारण माना गया है। किंतु कर्मयोग में कर्म के उस स्वरूप का निरूपण किया गया है जो बंधन का कारण नहीं होता। गीता के अनुसार कर्मों से संन्यास लेने अथवा उनका परित्याग करने की अपेक्षा कर्मयोग अधिक श्रेयस्कर है। कर्मों का केवल परित्याग कर देने से मनुष्य सिद्धि अथवा परम पद नहीं प्राप्त कर सकता है । मनुष्य एक क्षण भी कर्म किए बिना नहीं रहता। सभी अज्ञानी जीव प्रकृति से उत्पन्न सत्व, रज और तम, इन तीन गुणों से नियंत्रित होकर, परवश हुए कर्मों में प्रवृत्त किए जाते हैं।
कर्म करना मनुष्य के लिए अनिवार्य है। उसके बिना शरीर का निर्वाह भी संभव नहीं है। भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि तीनों लोकों में उनका कोई भी कर्तव्य नहीं है, या उन्हें कोई भी अप्राप्त वस्तु प्राप्त नहीं करनी है ; तथापि वे कर्म में संलग्न रहते हैं। यदि वे कर्म नहीं करेंगे, तो मनुष्य भी उनके चलाए हुए मार्ग का अनुसरण नहीं करेंगे। अज्ञानी मनुष्य जिस प्रकार फल प्राप्ति की आकांक्षा से कर्म करता है उसी प्रकार आत्मज्ञानी को लोककल्याण के लिए आसक्तिरहित होकर कर्म करना चाहिए। गीता के अनुसार, इस प्रकार आत्मज्ञान से संपन्न व्यक्ति ही, वास्तविक रूप से कर्मयोगी हो सकता है।
स्वामी विवेकानंद का कर्म योग भी यही संदेश देता है। स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक “कर्म योग” उनके द्वारा अमेरिका में, दिसम्बर 1895 से जनवरी 1896 के बीच दिए गए व्याखानों का संकलन है। कर्म योग के आदर्श को प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं, "आदर्श पुरुष तो वे हैं, जो परम शान्ति एवं निस्तब्धता तथा प्रबल कर्मशीलता के बीच भी मरुस्थल के समान शान्ति एवं निस्तब्धता का अनुभव करते हैं। उन्होंने संयम का रहस्य जान लिया है और वह अपने ऊपर विजय प्राप्त कर चुके हैं।” वास्तव में, अध्यात्म और कर्मों का यह शानदार संयोजन धीरे-धीरे हमारे कार्यस्थलों (Workplaces) को भी सकारात्मक रूप से प्रभवित कर रहा है। हाल ही के दिनों में कार्यस्थलों में भी आध्यात्मिकता का आकर्षण बढ़ रहा है। तेज़ी से हो रहे बदलावों के बीच आज की दुनिया में, कर्मचारी अपने जीवन में अर्थ और उद्देश्य के कथित अभाव की समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिससे आध्यात्मिक कमी की भावना भी पैदा हो रही है। यही कारण है कि आज कार्यस्थलों में भी आध्यात्मिक खोज को बढ़ावा मिल रहा है। हालांकि युगों पुराने रहस्यवाद और पूंजीवाद का यह संगम, थोड़ा कालानुक्रमिक लग सकता है, परंतु ऐसेकार्यस्थल, आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से चिकित्सकों और शिक्षाविदों दोनों के लिए आकर्षण का विषय बन गए है। कार्यस्थल की आध्यात्मिकता तेजी से संगठनों के लिए रुचि का विषय बनती जा रही है, क्योंकि इसके कई लाभ हैं।
कार्यस्थल पर आध्यात्मिकता से दो स्तरों अर्थात ‘व्यक्ति और संगठन’ पर क्षमता का निर्माण किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर, यह मन की शांति, विश्वास और ईमानदारी को बढ़ावा देने के अतिरिक्त रचनात्मकता, कल्पना और अंतर्ज्ञान का पोषण प्रदान करती है। संगठन स्तर पर, कार्यस्थल पर आध्यात्मिकता संगठन के प्रदर्शन को उत्तम बनाने की क्षमता रखती है।

संदर्भ

https://bit.ly/3EYESUb
https://bit.ly/3gTIajH
https://bit.ly/3B5eYNs

चित्र संदर्भ
1. अर्जुन को उपदेश देते श्री कृष्ण एवं स्वामी विवेकांनद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. गौतम बुद्ध के कर्मचक्र को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
3. ध्यान मुद्रा में स्वामी विवेकानंद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गीता के कर्मश्लोक, को दर्शाता एक चित्रण ( TFIStore)
5. भागवत गीता की पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. स्वामी विवेकानंद की कर्मयोग पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • पूर्वांचल का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व करती है, जौनपुर में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:22 AM


  • जानिए, भारत में मोती पालन उद्योग और इससे जुड़े व्यावसायिक अवसरों के बारे में
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:24 AM


  • ज्ञान, साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों पर ज़ोर देता है ग्रीक दर्शन - ‘स्टोइसिज़्म’
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:28 AM


  • इस क्रिसमस पर, भारत में सेंट थॉमस द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार पर नज़र डालें
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:23 AM


  • जौनपुर के निकट स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के गहरे अध्यात्मिक महत्व को जानिए
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:21 AM


  • आइए समझें, भवन निर्माण में, मृदा परिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:26 AM


  • आइए देखें, क्रिकेट से संबंधित कुछ मज़ेदार क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:19 AM


  • जौनपुर के पास स्थित सोनभद्र जीवाश्म पार्क, पृथ्वी के प्रागैतिहासिक जीवन काल का है गवाह
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:22 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के फूलों के बाज़ारों में बिखरी खुशबू और अद्भुत सुंदरता को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:15 AM


  • जानिए, भारत के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में, कौन सी कंपनियां, गढ़ रही हैं नए कीर्तिमान
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:20 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id