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आमतौर पर जब भी हम किसी पार्क में घूमने के लिए निकलते हैं, तो हमें सरपट भागती और पेड़ों पर चढ़ती चंचल गिलहरियां दिख ही जाती हैं। हालांकि ये गिलहरियां कभी-कभी नन्हे चूहों के समान प्रतीत होती हैं । किंतु आज हम आपको एक ऐसी सुंदर गिलहरी से मिलाने जा रहे हैं, जिसे अपने अनोखे रंग और बड़े आकार के कारण ही विशाल भारतीय गिलहरी (Indian Giant Squirrel) या विशाल मालाबार गिलहरी (Malabar Giant Squirrel) के नाम से जाना जाता है।
भारतीय विशाल गिलहरी (रतुफा इंडिका (Ratufa Indica) गिलहरियों की एक बड़ी बहुरंगी, वृक्ष प्रजाति है, जो भारत में जंगलों और वुडलैंड्स (Woodlands) में पाई जाती है। यह दैनिक रूप से शाकाहारी और मुख्य रूप से वृक्षीय गिलहरी होती है। गिलहरी की यह प्रजाति भारत के लिए स्थानिक है, और भारत में यह मुख्य रूप से पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और सतपुड़ा रेंज में मध्य प्रदेश के उत्तर तक पाई जाती हैं। मुख्य रूप से यह 180-2,300 मीटर (590-7,550 फीट) की ऊंचाई पर उष्णकटिबंधीय पर्णपाती, अर्ध-पर्णपाती (मुख्यतः सघन नदी तट), और नम सदाबहार जंगलों में पाई जाती है। सामान्य तौर पर, इसका वितरण विखंडित है, क्योंकि यह आवास अवक्रमण के प्रति असहिष्णु होती है।
शिकारियों से बचने के लिए भारतीय विशाल गिलहरी मुख्यतः 11 मीटर (36 फीट) की औसत ऊंचाई वाले ऊंचे पेड़ों में ही अपना घोंसला बनाती है। यह अनोखी और विशाल गिलहरी विश्व में सबसे बड़ी गिलहरियों में से एक है, जिसके सिर और शरीर की लंबाई 25 से 50 सेमी (10 इंच - 1 फीट, 8 इंच) तक होती है, और वजन सामान्यतः 1.5 से 2 किग्रा (3.3–4.4 पाउंड) तक होता है। इसमें एक, दो, या तीन योजना विशिष्ट रंग होते है। यह स्तनपायी बैंगनी रंग के भी होते हैं। बड़ी और बैंगनी होने के अलावा, भारतीय विशाल गिलहरी अन्य गिलहरियों से लगभग सभी दूसरे तरीकों से भी भिन्न होती हैं। उदाहरण स्वरूप अखरोट(Nut) और बीजों को भूमिगत (जमीन के भीतर) रखने के बजाय, भारतीय विशाल गिलहरियाँ उन्हें ऊँचे पेड़ों के ऊपर संचित करके भोजन के ढेर बनाती हैं। इसके अलावा जहां बाकी गिलहरियों का रंग फीका-फीका होता है, वहीँ भारतीय विशाल गिलहरियां अपने जीवंत पर्यंत चटकीले रंगों के कारण सबसे अलग नज़र आती हैं ।
यह गिलहरी फलों के बीजों के फैलाव में सहायता करके, वन की पारिस्थितिक प्रणालियों को संतुलित करने में भी एक आवश्यक भूमिका निभाती है। यह एक संकेतक प्रजाति भी है, अर्थात इस शानदार गिलहरी की उपस्थिति एक स्वस्थ जंगल का संकेत होती है।
दुर्भाग्य से कई अन्य जानवरों की भांति, इस नटखट जीव की संख्या में भी निरंतर गिरावट आ रही है । यही कारण है कि आज इसे भी संरक्षण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसकी रक्षा करने के लिए, आवास संरक्षण, पहचान और इनके द्वारा पसंद किए जाने वाले विशिष्ट पेड़ों की सुरक्षा, निवास स्थान के विखंडन की रोकथाम और मानव हस्तक्षेप में कमी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। वनों की कटाई और गिरावट, शिकार और आवास के नुकसान के कारण यह प्रजातियां कुछ क्षेत्रों में स्थानीय रूप से विलुप्त होने लगी हैं। दुनिया की चार वैश्विक विशाल गिलहरियों में से तीन (भारतीय विशाल गिलहरी (रतुफा इंडिका, Ratufa Indica), काली विशाल गिलहरी (रतुफा बाइकलर,Ratufa Bicolor) और भूरी विशाल गिलहरी (रतुफा मैक्रोरा,Ratufa Macroura)” भारत में पाई जाती हैं। हालांकि इनमें से केवल रतुफा इंडिका (मालाबार विशाल गिलहरी) ही भारत के लिए स्थानिक है। इस गिलहरी को पश्चिमी घाटों, पूर्वी घाटों के कुछ हिस्सों और सतपुड़ा पर्वतमाला में देखा जा सकता है। यह गिलहरी महाराष्ट्र की राजकीय पशु भी है, जहां इसे मराठी में “शेकरू” कहा जाता है।
यह भी दिलचस्प है कि इस गिलहरी का फर इसके निवास स्थान के अनुसार भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, जो गिलहरियां भारत के सबसे दक्षिणी भागों में पाई जाती है, वे गहरे रंग की होतीहैं, और उनकी पीठ पर बहुत सारे काले फर होते हैं। किंतु महाराष्ट्र में, एक ही स्थान पर दो गिलहरियों के अलग-अलग रंग हो सकते हैं।
इसके बड़े पंजे काफी शक्तिशाली होते हैं जिनका उपयोग यह छालों और शाखाओं को पकड़ने के लिए करती है। एक एक्रोबेटिक पर्वतारोही (Acrobatic Climber), के रूप में यह अक्सर भोजन करते समय अपने पिछले पैरों से लटकती हुई पाई जा सकती है, और संतुलन के लिए अपनी पूंछ का उपयोग करती है।
स्वाभाविक रूप से बेहद शर्मीली और सावधान रहने वाली गिलहरी की यह प्रजाति शायद ही कभी वन चंदवा (Canopy) से उतरती है। इसलिए, निकटवर्ती वन क्षेत्र, ऊंचे पेड़ और चंदवा जुड़ाव वाले आवास इसका पसंदीदा स्थान होते हैं, जो इसे शिकारियों से बचाते हैं और भोजन की पर्याप्त आपूर्ति प्रदान करते हैं। फिर भी, उच्च स्थान पर रहने के बावजूद, यह शानदार गिलहरी कभी-कभी बड़े मांसाहारी जैसे तेंदुए और शिकारियों का शिकार बन जाती है।
विशाल गिलहरी दो समान सामने वाले दांतों से संपन्न होती है, जो जीवन भर बढ़ते रहते हैं। यह मुख्य रूप से फलों, फूलों, बीजों, पत्तियों, छाल और कभी-कभी कीड़ों और पक्षियों के अंडों को खाती है। यह पेड़ की छाल और मेवों की सख्त गुठली को भी चबाती हैं। “इसे पनपने के लिए घने जंगल की छतरी और ऊंचे पेड़ों की जरूरत है। लेकिन स्टेट्स ऑफ़ फ़ॉरेस्ट रिपोर्ट (States of Forest Report 2021) के अनुसार, भले ही समय के साथ वनावरण में वृद्धि हुई हो, लेकिन वनों की गुणवत्ता में कमी आई है। उदाहरण के लिए घने जंगल कम घने हो गए हैं। अशांत या खंडित जंगल इस विशेष प्रजाति की संख्या पर तत्काल और बुरा प्रभाव डालते हैं। वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट (Wildlife conservation trust) के अध्यक्ष अनीश अंधेरिया (Anish Andheria) के अनुसार, अब इस शानदार जीव को आमतौर पर केवल प्रजनन के मौसम के दौरान ही जोड़े में देखा जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ilhGYZ
https://bit.ly/3XBxw1B
https://on.natgeo.com/3OERPqX
चित्र संदर्भ
1. पेड़ से चिपकी हुई विशाल भारतीय गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. छलांग लगाने की तैयारी करती विशाल गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. अपने पिछले पैरों के सहारे लटकी विशाल भारतीय गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. (रतुफा मैक्रोरा, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कर्नाटक के नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान में एक पके कटहल को खाते हुए मालाबार विशाल गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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