Post Viewership from Post Date to 15-Dec-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
176 176

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

बाल दिवस विशेष: देश के सभी बच्चों के लिए सुरक्षित व् स्वस्थ भविष्य का प्रण

जौनपुर

 14-11-2022 10:24 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

भारत में युवा बेरोजगारी की व्यापकता से हम सभी भली-भांति परिचित हैं। किंतु क्या आपने कभी सोचा है की, न केवल बेरोज़गारी बल्कि कुछ परिस्थितियों में रोजगार प्रदान करना भी देश के भविष्य को धूमिल कर सकता है।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों (मजदूरी करने वाले बच्चों) की संख्या 10.1 मिलियन है, जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम की दर में गिरावट के बावजूद, अभी भी बच्चों का उपयोग बाल श्रम के कुछ गंभीर रूपों जैसे बंधुआ मजदूरी, बाल सैनिकों और तस्करी में किया जा रहा है।
भारत भर में बाल मजदूर विभिन्न प्रकार के उद्योगों जैसे ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, घरेलू सेवा, भोजन और जलपान सेवाओं (जैसे चाय की दुकान), कृषि, मत्स्य पालन और खनन में देखे जा सकते हैं। बाल श्रम और शोषण कई कारकों का परिणाम है, अर्थात ऐसे कई कारण है जिनकी वहज से बच्चे मजदूरी करते हैं या उनसे कराई जाती है, जिसमें गरीबी, सामाजिक मानदंड, वयस्कों और किशोरों के लिए अच्छे काम के अवसरों की कमी, प्रवास और आपात स्थिति शामिल हैं। ये कारक भेदभाव द्वारा प्रबलित सामाजिक असमानताओं का भी परिणाम हैं।
बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी के अंतर-पीढ़ी चक्र को मजबूत करता है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो उनकी स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है। बाल श्रम और शोषण की निरंतरता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरा बन गई है, और बच्चों में इसके शिक्षा का आभाव तथा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर होने जैसे गंभीर नकारात्मक लघु और दीर्घकालिक परिणाम हैं। बाल तस्करी को भी बाल श्रम से जोड़ा जाता है। अवैध व्यापार किए गए बच्चे सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक, यौन और भावनात्मक उत्पीड़न जैसे दुर्व्यवहार का सामना करते हैं। अवैध व्यापार किए गए बच्चों को वेश्यावृत्ति के अधीन किया जाता है, शादी के लिए मजबूर किया जाता है या अवैध रूप से गोद लिया जाता है। वे सस्ते या अवैतनिक श्रम प्रदान करते हैं, उन्हें गृह सेवक या भिखारी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें सशस्त्र समूहों में भर्ती किया जा सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 16% की वृद्धि के साथ देश में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,49,404 मामले सामने आए, जिनमें से 982 मामले बाल श्रम अधिनियम के तहत औपचारिक शिकायतों के रूप में दर्ज किए गए।
पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के बोझ और समुदाय में बाल श्रम प्रथा की स्वीकृति के कारण हजारों बच्चे अभी भी खतरनाक प्रक्रियाओं में चुपचाप काम कर रहे हैं। दशकों के प्रयासों और कई पहलों के बावजूद, कम लागत वाले देशों में श्रमिक अधिकारों का उल्लंघन अभी भी जारी है। इस तरह की घटनाओं को संबोधित करने के लिए वकालत समूहों, वित्तीय विश्लेषकों और मीडिया के बढ़ते दबाव ने पश्चिमी उत्पादों, गैर सरकारी संगठनों और तीसरे पक्ष के प्रमाणन निकायों को विविध प्रयासों तथा मार्गों को विकसित करने के लिए प्रेरित किया है। बच्चे समाज के सबसे हाशिए पर और कमजोर सदस्यों में से हैं। सामुदायिक विकास और निर्णय लेने में उन्हें भी शायद ही कभी शामिल किया जाता है। हालांकि, भाग लेने का मौका देने पर वे महत्वपूर्ण वैकल्पिक विचारों की पेशकश कर सकते हैं और महत्वपूर्ण योगदान भी दे सकते हैं। इस संदर्भ में सेव द चिल्ड्रन (Save The Children) भारत के 18 राज्यों और 120 अन्य देशों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मानवीय आवश्यकताओं से संबंधित मुद्दों पर काम करता है। भारत के साथ सेव द चिल्ड्रन का जुड़ाव 80 साल से अधिक पुराना है।
बाल तस्‍करी भी बाल मजदूरी से ही जुड़ी है जिसमें हमेशा ही बच्‍चों का शोषण होता है। ऐसे बच्‍चों को शारीरिक, मानसिक, यौन तथा भावनात्मक सभी प्रकार के उत्पीड़न सहने पड़ते हैं , इनसे कम और बिना पैसे के मजदूरी कराना, घरों में नौकर या भिखारी बनाने पर मजबूर किया जाता है और कई मामलों में तो इनके हाथों में हथियार भी थमा दिए जाते हैं। बाल मजदूरी तथा शोषण, एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से रोके जा सकते हैं जो बाल सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के साथ-साथ गरीबी तथा असमानता जैसे मुद्दों, गुणात्‍मक शिक्षा के बेहतर अवसरों, और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जन सहयोग जुटाने में मदद करते हैं। अध्यापक तथा शिक्षा व्यवसाय से जुड़े अन्‍य लोग भी बच्‍चों के हितों की रक्षा के लिए आगे आ सकते हैं, और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे समाज के हितधारकों को बच्‍चों की दयनीय स्थिति से अवगत करा सकते हैं।
बच्‍चों को काम से बाहर निकाल कर उन्‍हें स्‍कूल भेजने के लिए इच्छुक परिवारों को जागरूक करने के लिए सरकारी नीतियों में व्यापक बदलाव करने की जरूरत है। हम सभी बाल मजदूरी की सांस्कृतिक स्‍वीकृति को बदलने में समुदायों का सहयोग सकते हैं, वहीं दूसरी ओर परिवारों को वैकल्पिक आमदनी, प्री स्‍कूल, गुणात्‍मक शिक्षा तथा संरक्षण सेवाओं की पहुंच का भी ध्‍यान रख सकते हैं। बाल मजदूरी समाप्‍त करने में बच्‍चों की बात सुनना सफलता के लिए बेहद जरूरी है।

संदर्भ

https://uni.cf/3Abu0kl
https://bit.ly/3g07hks
https://bit.ly/3WUVh4n

चित्र संदर्भ
1. बाल मजदूरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2003 में 10-14 आयु वर्ग में बाल श्रम के लिए मानचित्र।
रंग कोड इस प्रकार है: पीला (<10% काम करने वाले बच्चे),
हरा (10-20%),
नारंगी (20-30%),
लाल (30-40%),
काला (>40%) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दुकान में काम करते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सर पर बोझा ढोती बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पढाई करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id