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कदंब वृक्ष का पौराणिक महत्‍व और वृक्ष द्वारा प्राप्त प्राकृतिक लाभ

जौनपुर

 01-11-2022 12:16 PM
शारीरिक

कदंब भगवान कृष्ण से जुड़ा एक वृक्ष है। इसके फूलों को मंदिरों में चढ़ाया जाता है और आदिवासी त्योहारों में इस्तेमाल किया जाता है। कर्नाटक का पहला शासक राज्य,कदंब राजवंश का नाम इसी के नाम पर पड़ा था, जिसकी राजधानी बनवासी थी। इस राजवंश द्वारा इसे एक पवित्र वृक्ष माना गया।
कदंब का उल्लेख अधिकांश भारतीय पौराणिक और ऐतिहासिक साहित्य में मिलता है। कदंब का उल्लेख भागवत पुराण में मिलता है। उत्तर भारत में, यह श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है जबकि दक्षिण में इसे "पार्वती के पेड़" के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि राधा और कृष्ण ने कदम्ब की मधुर-सुगंधित छाया में अपनी प्रेम लीला रचाई थी। श्री कृष्ण ने अपनी अधिकांश प्रसिद्ध 'रास-लीला' का प्रदर्शन इसी वृक्ष के नीचे किया था, साथ ही इसके नीचे अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली बांसुरी (बांसुरी) भी बजायी थी। श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े एक प्रसंग में कहा गया है कि एक बार उन्होंने वृंदावन के पास एक तालाब में स्नान करते समय गोपियों के वस्त्र चुरा लिए थे। समुद्र-देवता वरुण ने नदियों, तालाबों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर नग्न स्नान करने से मना किया था, लेकिन गोपियां फिर भी अक्सर ऐसा करती थीं। एक दिन कृष्ण उन्हें सबक सिखाने के लिए तालाब के किनारे पहुंचे जहां वे नहा रहीं थीं और उन्‍होंने कपड़े उतार कर पास के कदंब के पेड़ की डालियों पर फैला रखे थे। कृष्‍ण पेड़ पर चढ़ गए और एक शाखा के पीछे छिप गए।
गोपियां स्‍नान करने के बाद जैसे ही तालाब से बाहर आयी तो उन्‍होंने पाया की उनके वस्‍त्र वहां पर नहीं थे। अचानक उनका ध्यान पास के कदंब के पेड़ की शाखाओं की हलचल से आकर्षित हुआ। जब उन्होंने ऊपर देखा, तो देखा कि श्री कृष्ण वहीं छिपे हुए हैं और उनके वस्त्र पेड़ की शाखाओं पर बिखरे हुए हैं। कृष्ण ने जोर से कहा कि वे अपने वस्त्र प्राप्त करने के लिए नग्न बाहर आएं। इस प्रकरण को कदम्ब वृक्ष की पृष्ठभूमि में गीत, कहानी, पेंटिंग और कलाकृतियों में चित्रित किया गया है। करम-कदंबा एक लोकप्रिय फसल उत्सव है, जो भाद्र महीने के ग्यारहवें चंद्र दिवस पर मनाया जाता है। घर के आंगन में पेड़ की एक टहनी लाकर उसकी पूजा की जाती है। बाद में, नयी परिपक्‍व फसल को दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच वितरित किया जाता है। इस उत्सव के रिवाज को तुलु लोगों द्वारा अपनाया गया है। ओणम (केरल) और हुत्तारी (कोडागु) इस त्योहार के क्षेत्रीय रूप हैं। कदंबोत्सव हर साल कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक के पहले शासक राज्य कदंब राज्य के सम्मान में बनवासी में मनाया जाता है, क्योंकि यहीं पर कदंब राजाओं ने हर साल वसंत उत्सव का आयोजन किया था।
तमिलनाडु के संगम काल में मदुरै के तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी के मुरुगन को प्रकृति पूजा का केंद्र माना जाता था, जो कि कदंब वृक्ष के नीचे भाले के रूप में था।थेरवाद बौद्ध धर्म में , कदंब वृक्ष के नीचे सुमेधा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। प्रतीकों के रूप में कदंब के फूल:
ब्रिटिश राज की अवधि के दौरान कदंब फूल भारत की रियासतों में से एक, अथमलिक राज्य का प्रतीक था। हिंदू परंपरा के अनुसार 27 नक्षत्र, 12 राशि और नौ ग्रहों का गठन करते हैं;27 कदंब के वृक्ष - प्रत्येक तारे के लिए एक, इन नक्षत्रों का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। कहा जाता है कि कदंब वृक्ष शतभिषा (नक्षत्रों में 24वाँ नक्षत्र है) का प्रतिनिधित्व करता है, जो लगभग एक्वेरी(Aquarium) के अनुरूप है।
कदंब वृक्ष के उपयोग:
इसके फल और पुष्पक्रम कथित तौर पर खाद्य हैं। फूलों का उपयोग चंदन आधारित इत्र 'अत्तर' में किया जाता है। ताजे पत्ते मवेशियों को खिलाए जाते हैं। बड़ी मात्रा में इसकी पत्तियां गिरती हैं जो अपघटित होकर मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों (जैविक कार्बन, पौधों के पोषक तत्व और आयन विनिमय क्षमता) में सुधार करती है। जड़ की छाल से एक पीला रंग भी प्राप्त होता है। एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, सतह-वर्धित रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman spectroscopy) के लिए चांदी के नैनो कणों के उत्पादन में पत्ती का अर्क उपयोगी है। कदम्‍ब में औषधीय और जैविक गुणों वाले फाइटोकेमिकल्स (phytochemicals) और द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (secondary metabolites) (कैडैम्बेजेनिकएसिड (cadambagenic acid), कैडामिन (codamin), क्विनोविकएसिड (quinovic acid), β-सिटोस्टेरॉल (β- sitosterol), कैडाम्बाइन (cadambine), आदि) की सबसे अधिक मात्रा पायी जाती है। माना जाता है कि पौधे के हिस्सों में पाचन संबंधी गड़बड़ी, परजीवी संक्रमण, उच्च कोलेस्ट्रॉल (high cholesterol) और ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides), जीवाणुरोधी गतिविधि, मस्कुलोस्केलेटल (musculoskeletal) रोग, फंगल संक्रमण, कैंसर और मधुमेह विरोधी गतिविधि को ठीक करने में औषधीय महत्व है। लीफ एक्सट्रेक्ट (Leaf extract) माउथ गार्गल (mouth gargle) का काम करता है।
# आयुर्वेद में इस पेड़ का उपयोग औषधीय पौधे के रूप में किया जाता है। यह कई बीमारियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है। मुख्य रूप से, छाल और पत्तियों से तैयार अर्क महत्वपूर्ण हैं।
# इसे सदाबहार सजावटी पेड़ के रूप में लगाया जाता है।
# यह छोटे उद्यानों में नक्षत्र वृक्षों में से एक है।
# उद्यानों में रोपण के अलावा, पेड़ का उपयोग लकड़ी और कागज बनाने के लिए भी किया जाता है। कदंब के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम नीलोमारकिया कैडम्बा(nilomarkia cadamba) है। यह काफी खूबसूरत और सदाबहार वृक्षों में से एक है। , वृक्ष की ऊंचाई लगभग 10 से 20 फीट होती है। कदम के पेड़ का फल गोल आकार का होता है, इसके फूल गुच्‍छेदार होते हैं जिसका वृत्त 20-30 मिलीमीटर तक होता है। आमतौर पर इनका रंग पीला होता है, कभी- कभी गुलाबी रंग के छींटे फूल भी दिखाई देते हैं। ज्यादातर जाड़ों के सूखे मौसम में यह फूल खिलते हैं। इस पेड़ की छाल कीटाणु रोधी (antiseptic) होती है। लंबे, सीधे, साफ तने का व्यास 150 सेंटीमीटर होता है जो काफी मजबूत होता है।

संदर्भ:
https://bit।ly/3eZpRc7
https://bit।ly/2I0F1eK
https://bit।ly/3ssdvw1

चित्र संदर्भ

1. कदंब वृक्ष के पौराणिक महत्‍व को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
2. कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत में कदंब वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कहा जाता है कि राधा और कृष्ण ने कदम्ब की मधुर-सुगंधित छाया में अपनी प्रेम लीला रचाई थी। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नाग नथैया उत्सव में कदंब के पेड़ पर खड़े हुए श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कदंब फल के दो टुकड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. कदंब वृक्ष के निचले तने को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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