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आज पूरा विश्व,“विश्व खाद्य दिवस” मना रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया से भुखमरी
को खत्म करना तथा सभी तक भोजन की उचित मात्रा उपलब्ध कराना है। आज 2022 में
हम यह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, कि कोरोना महामारी और ग्लोबल वार्मिंग (Global
warming) के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं,जिससे अंतरराष्ट्रीय तनाव
भी बढ़ता जा रहा है।परिणामस्वरूप हमारी वैश्विक खाद्य सुरक्षा बहुत बुरी तरह से प्रभावित
हो रही है।
आज हमें एक ऐसी स्थायी दुनिया बनाने की जरूरत है जहां हर किसी को, हर
जगह पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो, तथा कोई भी इससे वंचित न रहे।हालांकि हमने
एक बेहतर दुनिया के निर्माण की दिशा में प्रगति की है, लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से लोग
हैं, जो पौष्टिक खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं तथा मानव विकास, नवाचार या आर्थिक विकास
का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। वास्तव में, दुनिया भर में ऐसे लाखों लोग हैं, जो स्वस्थ आहार
का खर्च नहीं उठा सकते हैं, और अक्सर खाद्य असुरक्षा और कुपोषण का सामना करते हैं।
भूख को खत्म करने के लिए केवल खाद्य आपूर्ति ही काफी नहीं है, बल्कि धरती पर सभी
को उचित खाद्य सुविधा प्रदान करने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन भी आवश्यक है।
वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2022 के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक कई
भारतीय अपर्याप्त भोजन की स्थिति का सामना कर सकते हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के
कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आई है तथा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ
है।
साक्ष्य बताते हैं, कि कृषि उत्पादन और चरम मौसम परिस्थितियों जैसे सूखा और बाढ़के
बीच एक मजबूत संबंध है।विश्व बैंक के अनुसार, घरेलू खाद्य कीमतों और वैश्विक खाद्य
कीमतों में वृद्धि हुई है, जो सूखे के कारण और भी बढ़गई है। भारत में जो खाद्य मूल्य
मुद्रास्फीति हुई है, वह बांग्लादेश (Bangladesh), भूटान (Bhutan), नेपाल (Nepal) और
श्रीलंका (Sri Lanka) सहित कई पड़ोसी देशों तक फैल गई है। भारत में घरेलू मांग 2008
के मुद्रास्फीति युग के दौरान बढ़ी और 2009 में अल नीनो (El Nino) मौसम के पैटर्न से
बढ़ गई, जिससे सूखे के परिणामस्वरूप भोजन की कमी आई।
खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के बीच हमें एक मजबूत सम्बंध देखने को मिलता है।
उदाहरण के लिए ग्रीनहाउस (Greenhouse) गैस के उत्सर्जन के कारण वायुमंडल की
ओजोन परत (Ozone Layer) का निरंतर हास्र हो रहा है, जिससे तापमान लगातार बढ़ता
जा रहा है।तापमान के लगातार बढ़ने से जहां सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है, वहीं
ग्लेशियरों (Glaciers) के पिघलने से बाढ़ जैसी स्थितियां पहले की तुलना में बहुत अधिक
सामने आने लगी हैं। जलवायु परिवर्तन से वर्षा के पैटर्न में निरंतर बदलाव की स्थिति बनी
हुई है। चूंकि कई महत्वपूर्ण फसलों की उत्पादकता तथा गुणवत्ता वर्षा की विभिन्न मात्रा पर
निर्भर है, इसलिए वर्षा के पैटर्न में बदलाव आना खाद्य उत्पादन से जुड़ा हुआ है। जहां
खाद्य उत्पादन अधिक होता है, सूखे के कारण ऐसे क्षेत्र में फसलें सूख रही हैं। समुद्र जल
स्तर के बढ़ने से समुद्रीय खाद्य जीवों की उपलब्धता में भी कमी आ रही है, जो पोषण
क्षमता को कम कर रही है।
जलवायु परिवर्तन की घटनाओं ने बाढ़ और सूखे के साथ-साथ भूस्खलन,चक्रवात जैसे
घटनाओं को भी प्रभावित किया है, जो मानव जीवन को अस्त-व्यस्त कर रहा है।
परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य कीमतें बढ़ रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन
के अनुसार, 2020 के मध्य से वैश्विक खाद्य कीमतों में 70% से अधिक की वृद्धि हुई है,
जो मार्च 2022 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंची। ऐसी स्थिति के कारण अफ्रीका
(Africa), एशिया (Asia), मध्य और दक्षिण अमेरिका (America) आदि क्षेत्रों के स्वदेशी
लोग विशेष रूप से महिलाएं और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। 2021 में मध्य
प्रदेश में जहां भारी बारिश, बाढ़ आदि के कारण अनेकों लोगों की जान गई वहीं इसके अगले
वर्ष सूखे ने चावल के उत्पादन को 2021 की तुलना में लगभग 10 मिलियन टन कम
किया। इसी तरह से 2022 में उत्तर प्रदेश में भी सूखे के कारण फसल उत्पादन अत्यधिक
प्रभावित हुआ। उत्तर प्रदेश चावल का उत्पादन करता है, लेकिन सूखे और बाढ़ के कारण हुई
बर्बादी ने करोड़ों लोगों की भोजन उपलब्धता को बुरी तरह प्रभावित किया।
वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2022 के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली खाद्य
असुरक्षा की वजह से लगभग 650 लाख लोग जोखिम में हैं, तथा 2030 तक लगभग 17
मिलियन लोगों को भूख का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि
यद्यपि वैश्विक खाद्य उत्पादन 2050 तक 60 प्रतिशत बढ़ता है, तो भी 50 करोड़ भारतीय
ऐसे होंगे जो तब भी खाद्य असुरक्षा का सामना करेंगे। इन 50 करोड़ में से सात करोड़ लोग
मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण भूख से पीड़ित होंगे।खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने
के लिए भारत ने अपनी गेहूं की विदेशी बिक्री को निलंबित भी किया, लेकिन यूक्रेन
(Ukraine) और रूस (Russia) के बीच चलते विवाद के कारण गेहूँ की कीमत पहले ही
453 डॉलर प्रति टन को छू गईं।
इसका असर विकासशील देशों पर सबसे अधिक पड़ा है, तथा खाद्य सुरक्षा पर खतरा मंडराने
लगा है। खाद्य असुरक्षा और असमानता वाले क्षेत्रों में सूखे और बाढ़ का अधिक प्रभाव
पड़ता है।महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त जालना जिले के नौ गांवों के आकलन में यह पाया गया था
कि 2012-13 के सूखे के दौरान स्थानीय कृषि उपज और किसानों की वार्षिक आय में
लगभग 60 प्रतिशत की कमी आई थी।ओडिशा का एक अध्ययन प्राकृतिक आपदाओं के
कारण कुपोषण में वृद्धि को दर्शाता है।ओडिशा के तटीय जिले जगतसिंहपुर में, ऐसे बच्चों में
दीर्घकालिक कुपोषण देखा गया, जो बार-बार बाढ़ के संपर्क में आते हैं।
निरंतर खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए कृषि अनुकूलन अत्यधिक आवश्यक है। इसके
लिए कठोर मौसम पैटर्न को संबोधित करने हेतु तत्काल समाधान और दीर्घकालिक रणनीति
होनी चाहिए। ऐसे क्षेत्र जो इस स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, उन्हें तत्काल
सहायता देने पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। आपदा प्रबंधन में सार्वजनिक निवेश और
प्रशिक्षण, इन क्षेत्रों में दीर्घकालिक कुपोषण निवारण में मदद कर सकता है।खाद्य सुरक्षा पर
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की व्यापक जांच की तत्काल आवश्यकता है। भारत में खाद्य
सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरे को दूर करने के लिए खाद्य अवशोषण और कुपोषण पर जलवायु
परिवर्तन के प्रभाव को मापना बहुत आवश्यक है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3TdmtZk
https://bit.ly/3CNqNcx
https://bit.ly/3CnQqzd
https://bit.ly/3T9XMNn
चित्र संदर्भ
1. मक्के के खेत में खड़ी महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. 1956-1976 के औसत की तुलना में 2011 से 2021 तक औसत सतही हवा का तापमान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भूख से पीड़ित जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर देशों का मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. खेत में काम करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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